दरिया–ए–दिल

 

122    122    122    12
 
रिदा बन गया बद्दुआओं का आँचल
वो रंगे-रवां था क़बाओं का आँचल़
 
उसे दे सज़ाएँ या फिर क़ैद दे दें
जो थामे है झूठे बहानों का आँचल
 
हुई फ़ाहिशा वो ज़माने में कुछ यूँ
कि उड़ सा गया है हवाओं का आँचल
 
लकीरों की साज़िश की तहरीर पढ़ लो
कराह उठे जब भी अज़ाबों का आँचल 
 
चमकती दमकती है तक़दीर उसकी
सजाता जिसे है सितारों का आँचल
 
वो सजदे में शमो-सहर झुकता आया
बना आसमां जब अज़ानों का आँचल
 
नगर बेलिबासी को ओढ़े खड़ा था
ख़ुदाया उसे दे रिदाओं का आँचल
 
वो थी रात काली, थे बादल भी काले 
क़बा बन गया था घटाओं का आँचल
 
उसे पारसा मानता कोई कैसे
रिदा बन गया जब ख़ताओं का आँचल

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