दरिया–ए–दिल

 

2122    2122    212
 
जब ख़ुशी रोई पुराने मोड़ पर
तब लगा ग़म मुस्कुराने मोड़ पर
 
वह रहा उस पार मैं इस पार थी
पर सुने हमने फँसाने मोड़ पर
 
ख़ामुशी ने जाने क्या क्या कह दिया 
शोर में गूँजे तराने मोड़़ पर 
 
क्या पता किसकी तलब लेकर गई
जो बचा उसको लुटाने मोड़़ पर
 
वापसी का रास्ता मिलता नहीं 
क्यों वो भटके, कौन जाने मोड़ पर 
 
अब है बेमतलब का रोना धोना, जब 
लुट गए ‘देवी’ पुराने मोड़़ पर

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