यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
देवी नागरानीयूँ उसकी बेवफ़ाई का मुझको गिला न था
इक मैं ही तो नहीं जिसे सब कुछ मिला ना था।
लिपटे हुए थे झूठ से कोई सच्चा न था
खोटे तमाम सिक्के थे, इक भी खरा न था।
उठता चला गया मेरी सोचों का कारवां
आकाश की तरफ़ कभी, वो यूँ उड़ा न था।
माहौल था वही सदा, फ़ितरत भी थी वही
मजबूर आदतों से था, आदम बुरा न था।
जिस दर्द को छुपा रखा मुस्कान के तले
बरसों में एक बार भी कम तो हुआ न था।
ढोते रहे है बोझ सदा तेरा ज़िंदगी
जीने में लुत्फ़ क्यों कोई बाक़ी बचा न था।
कितने नक़ाब ओढ़ के देवी दिये फ़रेब
जो बेनक़ाब कर सके वो आईना न था।