दरिया–ए–दिल

  
2122    1122    1122     22
 
सूद पर सूद इकट्ठा भी तू देगा कब तक
कर्ज़ खातों में यूँ गिरवी तू रहेगा कब तक? 
 
आज की ताज़ा ख़बर कल की बनेगी तारीख़
ऐसी ख़बरों को कोई रोज़ पढ़ेगा कब तक
 
हादसे यूँ ही यहाँ बढ़ते चले जायेंगे
बनके मासूम सा बच्चा तू डरेगा कब तक
 
वो गले मिल के यूँ हमदर्द बना फिरता है
दोस्त बन कर कोई दुश्मन यूँ छलेगा कब तक
 
जो हवा देते हैं शोलों को उन्हें है मालूम
ख़ाक दिल होगा यक़ीनन ये बचेगा कब तक
 
यूँ तो मंज़िल पे न पहुँचेगा कभी तू हर्गिज़
हौसला पस्त ये लेकर भी चलेगा कब तक
  
है समाँ आज अभी तेरा तू जो चाहे कर
हाथ पर हाथ यूँ धरकर तू मलेगा कब तक
 
चीर कर ‘देवी’ वो निकलेगा कभी तो आख़िर
ये उजाला भी अँधेरों में छुपेगा कब तक

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