दरिया–ए–दिल

 
2122    2122    2122    212
 
कर दे रौशन दिल को फिर से वो सितारा मिल गया
उसकी रहमत से ख़ुदाया फिर इशारा मिल गया
 
बदगुमानी के ही साहिल पर भटकते जब रहे
लौट आया जब भी ईमां, तब किनारा मिल गया
  
काफ़िरों के संग हमने क्या क्या खोया, क्या कहें
कामिलों से मिलते ही मक़सद हमारा मिल गया। 
  
दुश्मनों का जाल था या चाल थी कैसे कहूँ
उनके चंगुल से रिहा फिर से दुबारा हो गया
 
मन में शंकाएँ हज़ारों, सौ सवालों का शुमार
दिल की गाँठें खुलते ही उत्तर करारा मिल गया
 
इक किनारे ने जो ज़िद छोड़ी तो दूजा पास आया
डूबने वालों को तिनके का सहारा मिल गया
 
सुन दरारों की दलीलें दिल पिघलने लग गए
जब मिटी अनबन पुरानी, दिल दुलारा मिल गया
 
दूध के जो हैं धुले उनकी न ‘देवी’ बात कर
आदमी पहचान पाएँ फन ये यारा मिल गया

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