दरिया–ए–दिल

 

हम क़यामत ख़ुद पे ढाने लग गये 
दर्द में भी मुस्कुराने लग गये

दर-दरीचे सहमे-सहमे आज कल
दहशतों से कँपकँपाने लग गये
 
धज्जियाँ उड़ने लगीं हैं ज्ञान की
अब हमें अनपढ़ पढ़ाने लग गये
 
किस क़दर बेहाल है घर का सुकूँ
शोरो ग़ुल के कारख़ाने लग गये
 
जब से दिल का दर्द से रिश्ता हुआ
हम ख़ुशी के गीत गाने लग गये
 
नारेबाज़ी करके ये फ़िरका-परस्त
अपनी इक पहचान पाने लग गये
 
फ़िरका-परस्त=जाति, पंथ, पुजारी

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