दरिया–ए–दिल

2122    2122    2122    2122
 
क्या ही दिन थे क्या घराने अब तो बस यादें हैं बाक़ी
उन दिनों के वे फ़साने अब तो बस यादें हैं बाक़ी
 
घर में दो थे छोटे कमरे, सात का परिवार था
दिन पड़े कुछ यूँ बिताने अब तो बस यादें हैं बाक़ी
 
गिल्ली डंडा, तू-तू मैं-मैं, खेलते बच्चे निकलकर
जाते थे घर घर बुलाने, अब तो बस यादें हैं बाक़ी
 
तीज पर, त्योहार पर मिलना मिलाना ख़ूब था
बातें थीं, थे ताने-बाने, अब तो बस यादें हैं बाक़ी
 
उन दिनों की बात है जब चोरी चोरी जाते थे
छत पे मिलने के बहाने, अब तो बस यादें हैं बाक़ी
 
वो किताबें लेना देना और छिपाना उनमें ख़त 
मिलना पढ़ने के बहाने, अब तो बस यादें हैं बाक़ी
 
व्याह शादी घर में होती, होता हंगामा सदा
मस्ती में मिल गाते गाने, अब तो बस यादें हैं बाक़ी
 
ढोलकी पर थाप देकर जब खनकती चूड़ियाँ
प्यार की वो दोस्ताने, अब तो बस यादें हैं बाक़ी.
 
अब नए इस दौर में बदलाव ‘देवी’ आया है
सब नया है हम पुराने, अब तो बस यादें हैं बाक़ी
 

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