दरिया–ए–दिल

2122    2122    2122    212
 
आपसे ज़्यादा नहीं तो आपसे कुछ कम नहीं
आप तो बस आप हैं, आप जैसे हम नहीं
 
गो निज़ामत आजकल की आपसी बाहम नहीं
सब उसूलों पर चलें ऐसे यहाँ आदम नहीं
 
अपनी नाकामी का दोषी जो मुझे ठहरा रहा
अपने बल पर कर सके कुछ इतना उस में दम नहीं
 
लोगों को कहते सुना है, ‘वक्त भरता जख्म है’
यह भी सच है दोस्तों,  हर जख्म का मरहम नहीं
 
हम पुरानी रीतियों को आज तक भूले कहाँ
उन उसूलों पर अमल करने का कोई ग़म नहीं
 
बाप दादा के ज़माने की हैं कुछ पाबंदियाँ
एक हो तो तोड़ भी लें, वे बहुत हैं कम नहीं
 
अब हवाएँ और हैं रुख उनके भी कुछ और हैं
मौत की ‘देवी’ खबर सुन, आँख होती नम नहीं 
 

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