दरिया–ए–दिल

 
2122    2122    2122    212
 
बंद है जिनके दरीचे, उन घरों से मत डरो
आग में झुलसे हुए उन मंज़रों से मत डरो
 
बे-अमाँ हैं बस्तियों के लोग जिनके घर जले
उनसे कैसे ये कहेंगे, मंज़रों से मत डरो
 
डर है तब जब नाव में पानी भी घुस कर आएगा
है तले गर नाव के फिर लंगरों से मत डरो
 
काँच के हैं घर हमारे, हम सभी ये जानते
किर्चियों पर चलने वालों, पत्थरों से मत डरो
 
काम आता है मनोबल, हौसले ऊँचे रखो
है समय की माँग लोगो, अजगरों से मत डरो
 
एक भीतर, अनगिनत बाहर लगे ललकारने
आसरा उस एक का हो, लश्करों से मत डरो
 
नीलकंठी बन सको तो बनके दिखला दो उन्हें
मन में है विश्वास तो फिर, विषधरों से मत डरो
 
होनी होकर ही रहेगी, कितना भी तुम टाल लो
गर्दिशें क़िस्मत की है इन चक्करों से मत डरो
 
राय अपनी अपनी ‘देवी’ देने वाले हों बहुत
सबकी सुन लो, अपनी कर लो, मशवरों से मत डरो

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