दरिया–ए–दिल

 

2122    1212    22
 
तेरा इकरार है अज़ीज़ मुझे
तेरा इन्कार है अज़ीज़ मुझे
 
यूँ न मजबूर होके ‘हाँ’ कहती
उसका इसरार है अज़ीज़ मुझे
 
लाए मुस्कान मेरे होठों पर
ऐसा दिलदार है अज़ीज़ मुझे
 
रीढ़ बनकर रहे बुढ़ापे की
ऐसा आधार है अज़ीज़ मुझे
 
जो भुलाकर न भूल पाया कभी
उसका वो प्यार है अज़ीज़ मुझे
 
याद में तानसेन ज़िंदा हो
राग मल्हार है अज़ीज़ मुझे
 
जिसमें ‘देवी’ झलक ख़ुदी की हो
वो ही तक़रार है अज़ीज़ मुझे
 

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