दरिया–ए–दिल

 

2122    1212    22
 
दिल को ऐसा ख़ुमार दे या रब
तुझ पे जो जाँ निसार दे या रब
 
खिल उठें ख़ार संग फूलों के
एक ऐसी बहार दे या रब
 
ज़िंदगी का उतार दूँ कर्ज़ा
चार दिन और उधार दे या रब
 
डूबते क्यों हैं ख़्वाब आँखों में
पार इन को उतार दे या रब
 
फूलों की सेज पर तुझे भूलूँ
इस से बेहतर है, ख़ार दे या रब
 
जिसमें ईमान की रहे ख़ुशबू
ऐसा दिल मुश्कबार दे यारब
 
बेक़रारी नसीब में जिनके
उन दिलों को क़रार दे या रब
 
जो अनाथ औ’ यतीम हैं ‘देवी’
अपने दामन का प्यार दे या रब

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