दरिया–ए–दिल

 

221    2122    221    2122
 
चुपके से कह रहा है ख़ामोशियों का मौसम
माहौल में भी देखो तब्दीलियों का मौसम
 
बिन शोरगुल जो गुज़रा ये शादियों का मौसम
यादों में गूँजता बस शहनाइयों का मौसम
 
जैसे ठहर गया है यह वक़्त, आदमी भी
रह रह के याद आता आसानियों का मौसम
 
अपने किए पे सोचो, जागो क़दम उठाओ
जाएगा बीत कर ये कठिनाइयों का मौसम
 
कहते हैं क्या नज़ारे, क़ुदरत के ये इशारे
आएगा लौटकर फिर अमराइयों का मौसम
 
करना है जो करे अब, वह जो ‘करोना’ चाहे
उसके लिए है मौक़ा, मनमानियों का मौसम
 
क्यों लड़खड़ा रहे वो, जो चल रहे सँभल कर
ऐसा है आया ‘देवी’, हैरानियों का मौसम

<< पीछे : 29. क्या ही दिन थे क्या घराने… आगे : 31. फिर कौन सी ख़ुश्बू से मिरा… >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो