दरिया–ए–दिल

 

2122    1212    22
 
मेरा घरबार है अज़ीज़ मुझे
मेरा परिवार है अज़ीज़ मुझे
 
खार के साथ हों गुलाब वहीं
ऐसा गुलज़ार है अज़ीज़ मुझे
 
सल्तनत की ख़बर से हो वाक़िफ़
ऐसी सरकार है अज़ीज़ मुझे
 
मेरे मौला की ओर से आए
वो भी आज़ार है अज़ीज़ मुझे
 
दीन दुनिया की हो तलब जिसको
वो तलबगार है अज़ीज़ मुझे
 
जिससे रोशन रहे ज़मीर मिरा
वो ही आसार है अज़ीज़ मुझे
 
याद रब की दिला दे जो मुझको
ऐसा हर ख़ार है अज़ीज़ मुझे
 
काम जिसके मैं आ सकूँ ‘देवी’ 
वो निराधार है अज़ीज़ मुझे

<< पीछे : 46. दिल को ऐसा ख़ुमार दे या रब आगे : 61. कर दे रौशन दिल को फिर से वो… >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो