दरिया–ए–दिल

 

 221    2121    1221    212
 
चेहरे की ओर देख, नज़ारों की बात की
छेड़ा नज़र का ज़िक्र, सितारों की बात की 
 
क्यों बेसदा सी हो गईं सारी वो दस्तकें
जब चीखती हवा ने सहारों की बात की
 
उसके लिए गणित ही रही ज़िन्दगी सदा
बस उसने गुफ़्तगू में हज़ारों की बात की
 
यादों का लम्स छूता था कुछ इस तरह मुझे
यारों ने की जो बात क़रारों की बात की
 
उसकी क़बा ने उसको किया बेलिबास यूँ
जिसने बहार में भी शरारों की बात की
 
हर पंखुरी गुलाब की ज़ालिम ने नोंच ली
उस सरगने ने फिर भी बहारों की बात की
 
बेवक़्त वक़्त की हुई जब बात बातों में
कुछ दोस्त दुश्मनों के शुमारों की बात की
 
कहना न था वो कह दिया अपनों ने ग़ैरों से
ग़ैरत ने आके रंज के मारों की बात की

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