भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली

देवी नागरानी

 

 

भीतर से मैं कितनी खाली


(सिंधी – हिंदी काव्य की तर्जुमानी)

 

देवी नागरानी

 

 

समर्पण

करोना के करिश्मे
जो कभी न देखे
वही भोग रहा है आदमी
आँखें नहीं रोती
बस रूह सिसक सिसक कर
अपनी छटपटाहट दर्ज करा रही है

—देवी नागरानी
 

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