दरिया–ए–दिल

 

221    2121    1221    212
 
अपनों के बीच ग़ैर थे उसको पता न था 
चेहरे पे चेहरे होंगे यूँ वो जानता न था 
 
मन में थी बात दूसरी,  लब पर अलग रही  
कहना था और कुछ ही मगर हौसला न था 
  
इस बार ऐसा क्या हुआ ऐ दिल बता भी दे
पहले कभी भी हादसा ऐसा हुआ न था
  
तारीक दिल की बस्तियाँ ऐसी न थीं कभी
विश्वास का तो ऐसे जनाज़ा उठा न था
  
यूँ यक ब यक वो आ मिली मुझसे गले ख़ुशी
जिसका मेरे ग़मों से कोई वास्ता न था
  
कुछ इस तरह मैं आज हुई महवे बंदगी
सजदे में सर मेरा कभी ऐसे झुका न था. 
  
थी बेहिसाब दिल की तमन्नाएँ क्या कहूँ  
ख़्वाइश का खाली था कुआँ  ‘देवी’ भरा न था 

<< पीछे : 95. इन्द्रधनुष-सा रंग रंगीला याद… आगे : 97. तारीकियाँ मिटा दो, इक बार… >>

लेखक की कृतियाँ

कहानी
पुस्तक समीक्षा
साहित्यिक आलेख
अनूदित कहानी
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो