दरिया–ए–दिल

2122    1212    22
 
काश दिल से ये दिल मिले होते
फिर न हम तुम जुदा हुए होते
 
यूँ न नासूर वो बने होते
ज़ख्म दिल के अगर भरे होते
 
दो क़दम साथ साथ चलते गर
फ़ासले बीच के मिटे होते
 
होतीं मजबूरियाँ न बीच में गर
होते शिकवे न ये गिले होते
 
क़र्ज़ मुझ पर उधार रहते क्यों 
वक़्त पर गर चुका दिए होते
 
होती ताक़त अगर न दौलत में
लोग बेबस न यूँ बिके होते
 
ख़ूब जमती तेरी, मेरी, ‘देवी’
दोस्त बनकर न हम लड़े होते

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