दीया हूँ
मधु शर्मादीया हूँ छोटा सा दोस्तो, सूरज मत दिखाओ,
उस अँधेरी कोठरी में चुपके से मुझे रख आओ,
जहाँ वो ग़रीब रात गये कुछ टटोलता रहता है,
गाँव में भेजने वास्ते पाई-पाई जोड़ता रहता है।
भुने चने खा, पीकर पानी तो जैसे-तैसे पेट भरे,
मेरे लिए तेल का इंतज़ाम बेचारा कहाँ से करे।
माँ-बाप की जिन आँखों का तारा कहलाता है,
रोशनी उन्हीं आँखों की वापस लाना चाहता है।
तुम्हारा दिया तेल और मैं दीया मिलकर जलेंगे,
उसके जीवन को भी देखना, उजाले से भर देंगे।
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