स्वर्ग की सैर
सरोजिनी पाण्डेयमूल कहानी: वन डे इन पैराडाइज़; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन; पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय
बहुत पुरानी बात है, किसी गाँव में दो मित्र रहते थे, मित्रता इतनी कि एक दिन भी अगर एक दूसरे को ना देखें तो बेचैन हो जाएँ। लँगोटिये यार ऐसे कि खेलना-कूदना, पढ़ना-लिखना, खाना-पीना सब साथ-साथ! दोनों एक दिन एक क़सम खा बैठे कि जब भी, जो पहले शादी करेगा, दूसरे को उसका 'बेस्ट मैन' (ईसाई विवाह पद्धति के अनुसार दूल्हे का साथी-शाहबाला) बनना होगा, चाहे वह पृथ्वी के दूसरे छोर पर ही क्यों ना हो! वे यह क़सम कभी ना तोड़ेंगे।
परंतु ईश्वर को तो कुछ और ही मंज़ूर था। किसी का विवाह हो इससे पहले ही एक मित्र की मृत्यु हो गई।
कालचक्र चलता रहा। जीवित मित्र के विवाह का समय आया। विवाह का दिन भी निकट आ गया। अब उस युवक को यह चिंता खाए जा रही थी कि मित्र को निमंत्रण दिए बिना विवाह करके कहीं वह प्रतिज्ञा तोड़ने के पाप का भागी ना बन जाए। इस चिंता से मुक्ति पाने आख़िर वह चर्च के पादरी के पास गया और अपनी समस्या उनके सामने रखी। पादरी ने कुछ देर विचार करने के बाद कहा, "परिस्थिति तो पेचीदा है, लेकिन तुम्हें अपने वचन पर दृढ़ रहना चाहिए। उसकी क़ब्र पर जाओ और उसे निमंत्रण दे दो। तब यह उसके ऊपर होगा कि वह आए या ना आए। तुम पाप के भागी नहीं बनोगे।"
विवाह के लिए तैयार युवक मित्र की क़ब्र पर गया और उस पर हाथ रख कर बोला, "प्रिय मित्र, मैं शादी करने जा रहा हूँ, तुम्हारे 'बेस्ट मैन'( शहबाला) बनने का समय आ गया है।" और ईश्वर की लीला देखो! उसके ऐसा कहते ही क़ब्र फट गई और उसका मित्र सजा-सँवरा उसके सामने आ खड़ा हुआ, बोला, "क्यों नहीं! मैं अपना वादा ज़रूर निभाऊँगा, यदि मैं ऐसा न कर सका तो न जाने कितने समय तक मुझे नर्क की यातना झेलनी पड़ेगी।"
दोनों साथ पहले घर गए और उसके बाद विवाह समारोह के लिए गिरजाघर का रुख़ किया। विवाह संपन्न हुआ और उत्सव आरंभ हो गया। खाना-पीना, नाचना-गाना सब हुआ पर इस दौरान दूसरी दुनिया के बारे में न एक ने कुछ पूछा और न दूजे ने कुछ बताया। दूल्हे की ज़ुबान पर प्रश्न आते-आते रुक जाते। उसे उन्हें पूछने का साहस न होता। उत्सव समाप्त हुआ परलोक से आए मित्र ने दूल्हे से कहा, "देखो मित्र मैंने हम दोनों के बीच खाई गई क़सम को उस दूसरी दुनिया से आकर भी पूरा किया है, क्या तुम मुझे कुछ दूर भी पहुँचाने नहीं चलोगे?"
"क्यों नहीं यार! ज़रूर चलूँगा, हाँ, ज़्यादा दूर नहीं जाऊँगा क्योंकि आज मेरी सुहागरात है।"
परलोकवासी मित्र ने हँसते हुए कहा, "मैं समझता हूँ मेरे मित्र! तुम जहाँ से चाहो, लौट आना मैं कुछ नहीं कहूँगा। बस, थोड़ा सा तो साथ चलो।"
दूल्हे ने दुल्हन से कहा, "प्रिये, मैं बस तनिक देर के लिए बाहर जा रहा हूँ, अभी वापस आता हूँ।"
दोनों दोस्त चल पड़े। वे इधर-उधर की पुरानी बातें याद करते, बतियाते, हँसते-हँसाते चल रहे थे। क़ब्रगाह कब आ पहुँचे उन्हें पता भी न चला। दोनों दोस्त गले मिले। धरतीवासी ने सोचा कि यदि मैं अब भी इससे से कुछ नहीं पूछता तो कभी न पूछ पाऊँगा इसलिए उसने हिम्मत जुटाई और पूछ बैठा, "तुम परलोक में रहते हो इसलिए मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ, दूसरी दुनिया आख़िर है कैसी?"
"मैं बता नहीं सकता, मजबूर हूँ," परलोकवासी ने कहा, "यदि तुम जानना ही चाहते हो तो मेरे साथ स्वर्ग चले चलो।"
और आश्चर्य! क़ब्र का मुँह खुला और परलोकवासी के पीछे-पीछे उसका दोस्त भी क़ब्र में उतर गया। वे स्वर्गलोक पहुँच गए। परलोकवासी अपने मित्र को एक सुंदर शीश महल में ले गया, जिसके दरवाज़े सोने से बने थे। फ़रिश्ते वाद्य यंत्रों पर अद्भुत स्वर-लहरियाँ बजा रहे थे, जिन पर स्वर्गवासी आनंद से झूम रहे थे। धरतीवासी मित्र यह सब देखकर अवाक् रह गया। इतना शानदार! इतना मोहक!! अलौकिक!!! वह इस माहौल में ही मस्त रहता, यदि स्वर्ग लोक के दूसरे भाग उसे न देखने होते।
"आओ चलें, यहाँ के और नज़ारे देखें," परलोकवासी मित्र बोला।
अब वे एक ऐसे बग़ीचे में पहुँचे जहाँ के वृक्षों पर पत्तियों की जगह सुरीली आवाज़ों वाले रंग-बिरंगे पक्षी लगे थे। उनका कल नाद सब और गुंजित हो रहा था। अगला नज़ारा एक ऐसे मैदान का था जहाँ कर्णप्रिय रागिनी की लय पर किन्नर-किन्नरियाँ नृत्य कर रहे थे।
अभी धरतीवासी मित्र मंत्रमुग्ध-सा नृत्य का आनंद ले ही रहा था कि परलोकवासी ने उसे झकझोरा, "आओ चलें सितारों की दुनिया देखने।"
सितारों को तो वह अपलक देखता ही रह गया। यहाँ घास मखमली नरम और नदियाँ दूध की थीं!
सहसा धरतीवासी मानो तंद्रा से जागा, "मित्र, मैंने जितना सोचा था उससे बहुत अधिक देर हो चुकी है। मेरी नयी-नवेली दुल्हन मेरी प्रतीक्षा कर रही होगी। अब मुझे जाना चाहिए।"
"क्या इतनी जल्दी स्वर्ग से तुम्हारा जी भर गया?"
"जी भर गया . . . ? नहीं तो! पर मुझे जाना ही होगा।"
"अभी तो देखने को बहुत कुछ बाक़ी है।"
"मैं मानता हूँ, मैं जानता हूँ, पर मुझे जाना ही होगा।"
"ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी," परलोकवासी उसे क़ब्र तक ले आया और अंतर्धान हो गया। धरतीवासी ने क़ब्र से बाहर पैर रखा लेकिन क़ब्रगाह को पहचान ना सका। वह स्थान स्मारकों, मूर्तियों और ऊँचे-ऊँचे वृक्षों से अटा पड़ा था। वह कुछ घबराया सा क़ब्र के बाहर निकला तो पत्थर की झोपड़ियों के बदले उसे ऊँची-ऊँची इमारतें दिखाई दीं, सड़क पर मोटर गाड़ियाँ और ट्रामें दौड़ रही थीं आसमान में हवाई जहाज़ उड़ रहे थे, "मैं किस दुनिया में पहुँच गया हूँ! कहीं मैंने ग़लत रास्ता तो नहीं पकड़ लिया? और इन लोगों ने तो कपड़े भी न जाने कैसे पहने हैं!"
उसने एक वृद्ध को रोककर पूछा, "बाबा! यह कौन-सी बस्ती है?"
"तुम क्या इस शहर का नाम पूछ रहे हो?"
"शहर? ठीक है, मान लिया कि यह शहर है, पर मैं इसे पहचानता नहीं हूँ, क्या आप मुझे उस घर का रास्ता दिखा देंगे जिसके एक आदमी की शादी कल हुई थी।"
"कल? मैं तो गिरजाघर में ही काम करता हूँ, कल तो कोई शादी नहीं हुई, मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि कल गिरजे में कोई शादी नहीं हुई।"
"कैसी बातें कर रहे हैं आप! मेरी ही शादी कल हुई है।"
और उसने अपने मृत दोस्त को क़ब्र तक छोड़ने जाने की कहानी सुना दी।
"बच्चे, तुम अपने दिमाग़ का इलाज करवाओ," बूढ़े ने कहा," दूल्हे और उसके दोस्त की पुरानी कहानी को तुम सच मान बैठे हो, जिसमें दूल्हा कभी नहीं लौटा और उसके इंतज़ार में उसकी दुल्हन घुट-घुट कर मर गई !"
"बस-बस! रहने दो बाबा! मैं ख़ुद ही वह दूल्हा हूँ तुम्हारी बात कैसे मानूँ।"
"मेरी नहीं सुनते हो तो जाओ बिशप के यहाँ पूछकर अपनी तसल्ली कर लो।"
"बिशप? पर हमारी बस्ती में तो पादरी जी ही है?"
"पादरी? कैसा पादरी? हम तो हमेशा से यहाँ बिशप को ही देख-सुन रहे हैं।"
ऐसा कहकर गिरजाघर का वह कर्मचारी उसे बिशप के पास ले गया। युवक ने अपनी कहानी जब बिशप को सुनाई तो उन्हें अपने बचपन में सुनी हुई कहानी याद आ गई। उन्होंने सारे बही-खातों को खंगालना शुरू कर दिया। बीस साल पहले? पचास साल पहले? सौ साल पहले? दो सौ साल पहले? वे सोचते रहे, पन्ने पलटते रहे, आख़िरकार तीन सौ साल पहले के पुराने, पीले पड़े, ख़स्ताहाल पन्नों पर वे नाम मिले, जिसमें उस दूल्हे का नाम था, जो क़ब्रिस्तान से ग़ायब हो गया था और दुल्हन उसके वियोग में मर गई थी।
"तुम मेरा विश्वास ना करो तो ख़ुद देख लो, वे दोनों ही मर चुके हैं," बिशप ने बताया।
"लेकिन दूल्हा तो मैं ही हूँ!"
"अच्छा तो क्या तुम दूसरे लोक में गए थे? मुझे वहाँ के बारे में कुछ तो बताओ।"
लेकिन कुछ बोलने से पहले ही युवक हल्दी-सा पीला पड़ गया।
धरती फटी और वह उसमें समा गया! !
और मेरी कहानी भी यहीं ख़त्म हो गई!!
फिर मिले तो फिर एक नई कहानी, तुमको सुनाएगी मेरी लेखनी!!
ठीक है न?
1 टिप्पणियाँ
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बहुत अच्छा अनुवाद, कहीं ऐसा नहीं लगा कि यह मूलतः हिन्दी में नहीं थी.
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