भोर का चाँद

15-01-2024

भोर का चाँद

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 245, जनवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

भोर के धुँधलाए-खुलते आकाश में, 
मद्धिम-कुम्हलाता-सा गतयौवन चाँद! 
 
दो-चार बची हुई, रात की रोशनियों को
चुपचाप मानो गिनता हुआ-सा चाँद! 
 
करके रखवाली रात भर इस धरती की
‘नाइट की ड्यूटी’ से थका हुआ-सा चाँद, 
 
करने को विश्राम माता की गोदी में, 
घर जाने को तत्पर उतावला-सा चाँद
 
उजली गोरी चाँदनी जो रात भर थी साथ, 
उसके चले जाने से अनमना हुआ-सा चाँद! 
 
देने को कार्यभार धरती का सूरज को, 
सूरज की बाट जोहता हुआ सा-चाँद! 
 
देख कर के सूरज को उसकी किरणों के संग
अपने एकाकीपन से रुआँसा हुआ चाँद!! 
 
उषा की बेला में, पश्चिमी नभ-मंडल में
उदास, अकेला, निस्तेज, बोझिल-सा चाँद! 
 
मेरी बालकनी से दिखती सूरज की नई प्रभा
जिसकी प्रखरता से हारता हुआ-सा चाँद! 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

अनूदित लोक कथा
कविता
यात्रा-संस्मरण
ललित निबन्ध
काम की बात
वृत्तांत
स्मृति लेख
सांस्कृतिक आलेख
लोक कथा
आप-बीती
लघुकथा
कविता-ताँका
सामाजिक आलेख
ऐतिहासिक
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में