विधवा का बेटा
सरोजिनी पाण्डेय
मूल कहानी: ला विडोवा इ इल ब्रिगान्टे; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (दि विडो एंड द ब्रिगान्ड); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स;
हिन्दी में अनुवाद: ‘विधवा का बेटा’ सरोजिनी पाण्डेय
प्रिय पाठक, आज जो लोक कथा मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उस मूल कथा में कहानी का नायक किशोर-नवयुवक, एक विधवा स्त्री का अपना औरस पुत्र है। विधवा स्त्री अपने प्रेम के मार्ग में उसे बाधा पाकर उसको मार डालना चाहती है। परन्तु मेरे भारतीय हृदय को यह स्थिति कुछ विचित्र-सी लगी इसलिए मैंने ‘लेखक की स्वतंत्रता’ का लाभ उठाते हुए विधवा को नायक की ‘सौतेली माँ’ लिखा है। इस स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए मेरी यह धृष्टता क्षमा के योग्य मानी जाएगी, ऐसी मुझे आशा है। आनंद लीजिए इस लोक कथा का:
किसी गाँव में एक विधवा अपने सौतेले किशोर बेटे के साथ रहती थी। पति की मृत्यु के बाद बहुत दिनों तक जब उन्हें गाँव में कोई काम-काज न मिला तो वे दोनों काम की तलाश में घर से निकल पड़े। रास्ते में चलते-चलते लड़का इधर-उधर अपनी गुलेल से पत्थर मारता चल रहा था। शाम होने तक उसने कुछ चिड़ियों का शिकार कर लिया, इस समय तक वे पहाड़ की तलहटी के जंगल में भी पहुँच गए थे। लड़के ने आसपास से कुछ सूखी लड़कियाँ इकट्ठी कीं और आग जला दी। माँ से कहा, “तुम इन चिड़ियों को भूनो तब तक मैं आसपास देख कर आता हूँ कि क्या हमें और कुछ मिल सकता है।”
चलते-चलते वह पास के गाँव में पहुँच गया। वहाँ वह एक ऐसी जगह पहुँचा जहाँ एक पत्थर की मूर्ति लगी थी। उस मूर्ति के हाथ में एक रस्सी थी और मूर्ति के आधार-स्तंभ पर खुदा था, “जो भी इस रस्सी से अपने को बाँध लेगा वह बहुत शक्तिशाली हो जाएगा।” लड़के ने खम्भे पर चढ़कर मूर्ति के हाथ की वह रस्सी उतार ली और उसे अपनी कमर के इर्द-गिर्द बाँध लिया। रस्सी कमर में बाँधते ही सहसा उसे लगा कि उसके शरीर के अंदर कुछ तेज़ी से बह रहा है उसके हर अंग में नयी शक्ति भर रही है। अपने को जाँचने के लिए उसने पास का एक पेड़ पकड़ कर खींचा और—वह तो जड़ के साथ ही ज़मीन से उखाड़ आया।
उधर लड़के की सौतेली माँ जंगल में चिड़ियाँ भून रही थी, वहाँ एक बटमार लुटेरा आया। अकेली स्त्री को जंगल में पाकर वह उसके पास आया और बोला कि अगर वह चाहे तो वह उसको अपने घोड़े की पीठ पर बैठा कर ले चल सकता है। विधवा स्त्री ने साफ़ इनकार कर दिया। जब बटमार ने कई बार ज़िद की तो विधवा बोली, “मेरा पीछा छोड़ दो। मेरा बेटा किसी भी समय आ सकता है और वह तुम्हें मार डालेगा।”
लेकिन उस बटमार का दिल उस सुंदर स्त्री पर आ चुका था। उसने जाने से इनकार कर दिया और बोला, “अब ज़िद मत करो। तुम सोचती हो कि मैं तुम्हारे ऐसा कहने से डर जाऊँगा?”
और होनी कुछ ऐसी हुई कि उसी समय कमर में जादुई रस्सी कसे विधवा का बेटा वहाँ आ पहुँचा।
उस किशोर को देखकर लुटेरे ने हँसकर कहा, “अच्छा तो यही तुम्हारा बहादुर बेटा है?”
“तुम कौन हो? यहाँ क्या कर रहे हो?” लड़के ने पूछा
“मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? बस मैं तुम्हें मारने ही वाला हूँ और क्या!”
“तो फिर यह भी देख लो!” कहते हुए लड़के ने एक उल्टे हाथ का एक झापड़ लुटेरे को मारा। लुटेरा घोड़े की पीठ से लुढ़क कर ज़मीन पर आ गिरा। लड़के ने झटपट अपने कमर के चाकू से उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी, फिर एक गड्ढा खोदा उसमें बटमार का शरीर दबा दिया। बटमार के घोड़े की पीठ पर ख़ुद सवार होते हुए माँ से बोला, “मैं अभी जा रहा हूँ तुम मेरा यहीं पर रहकर इंतज़ार करो।” और वह घोड़े को एड़ लगा वहाँ से चला गया।
कुछ दूर जाने के बाद उसे एक बड़े मैदान के बीचों-बीच एक बड़ा-सा घर दिखाई पड़ा। उसने उस घर के चारों ओर घोड़ा दौड़ाया लेकिन उसे कोई द्वार न दिखा। उसने एक और चक्कर लगाया इस बार उसे खुला हुआ एक बहुत बड़ा दरवाज़ा दिखाई दिया। घोड़े को बाहर ही बाँध कर वह उस घर में चला गया। सामने सीढ़ियाँ दिखाई दे रही थीं। वह ऊपर चढ़ता चला गया वहाँ उसे एक बड़ी मेज़ पर खाने की सात थालियाँ दिखाई दीं, जिनमें खाने का सामान भरा हुआ था। कई बोतलें शराब की भी रखी हुई थीं। उसने हर थाली में से थोड़ा-थोड़ा खाना खाया और हर बोतल में से थोड़ी-थोड़ी शराब पी ली। अब वह ऐसी जगह ढूँढ़ने लगा जहाँ वह छुप सके और देख सके कि आगे क्या होता है। छिपने की कोई जगह ढूँढ़ते हुए वह एक ऐसे कमरे में पहुँचा जहाँ सुरक्षित करके लाशें रखी गई थीं। लड़का समझ गया कि हो ना हो यह लुटेरों का ही घर है।
अभी वह कमरे में पहुँच ही था कि छह बटमार कमरे में तेज़ी से आए और अपनी-अपनी जगह खाना खाने बैठ गए। उनमें से एक बोला, “किसी ने मेरी प्लेट में से कुछ खाया है!”
दूसरा भी बोल पड़ा, “मेरी में से भी!” और फिर सारे एक साथ बोले, “मेरे में से भी!” वे सब घबरा गए, लेकिन फिर भी उन्होंने खाना जारी रखा। जब खाना खा चुके तब उन्हें ख़्याल लाया कि एक कुर्सी तो ख़ाली ही है! उन्होंने आपस में एक दूसरे को गिना और अपने एक साथी को कम पाया। वे आपस में बातें करने लगे, “हम लोग तो सात होते हैं। हम में से कोई एक नहीं लौटा।” दूसरा बोला, “ज़रूर कोई ना कोई बात है! कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारा एक साथी मारा गया हो?”
एक लुटेरा बोला, “मैं ख़ास कमरे में जाकर देखा हूँ कि वहाँ का क्या हाल है यह ख़ास कमरा वही कमरा था जिसमें लड़का छुपा हुआ था और जहाँ सुरक्षित की गई लाशें रखी थीं।
इस कमरे में लड़का दरवाज़े के पीछे छुपा हुआ था। जैसे ही एक लुटेरा कमरे में घुसा उसने उसका गला काट दिया और लाश को ले जाकर अस्तबल में फेंक आया। जब अपने साथी को देखने वहाँ दूसरा गया तो लड़के ने उसकी गला भी धड़ से अलग कर दिया। इसी तरह एक-एक करके वह छह लुटेरे उस कमरे में गए और लड़के ने सबके गले काट-काट कर लाशों का ढेर लगा दिया। यह सब करके लड़का वापस जंगल में चला गया और अपनी माँ के साथ लौटा। इस घर को अब उन्होंने अपना आशियाना बना लिया। लड़का शिकार करके लाता था, कुछ बेच देता कुछ खाता था। अब माँ बेटे को खाने पीने की कोई कमी न थी। माँ घर देखती, बेटा शिकार कर लाता, ज़िन्दगी आराम से चलने लगी।
एक दिन जब लड़का शिकार करने गया था, तब बटमारों का पुराना दोस्त उधर से गुज़रा। वहाँ पर एक विधवा स्त्री को अकेले रहते देखकर वह हैरान हो गया, “तुम यहाँ वीराने में एकदम अकेली?” उसने पूछा।
“मैं अकेली?” विधवा ने कहा, “मेरा बेटा शिकार करने गया है, मैं उसी का इंतज़ार कर रही हूँ।”
उनके बीच बात शुरू हो गई। एक से दूसरी बात निकाली और दोनों ने ख़ूब बातें कीं। बातें करते-करते वे एक दूसरे को पसंद करने लगे।
उस दिन के बाद से जब लड़का शिकार करने जाता तब वह लुटेरा उसकी माँ के पास आ जाता। विधवा डाकू को हमेशा सावधान रहने के लिए कहती रहती, “देखो बहुत सँभाल कर रहना, अगर मेरे बेटे को हमारे बारे में पता चला तो वह हमें ज़िन्दा नहीं छोड़ेगा।”
इस पर बटमार ने कहा, “वह हमें मारे इसके पहले हम ही क्यों ना उसे मार कर क़िस्सा ही ख़त्म कर दें?”
“लेकिन वह मेरा बेटा है,” विधवा ने विरोध किया। इस पर बटमार बोला, “लेकिन है तो सौतेला न“
“सौतेला है तो क्या हुआ वह मुझे प्यारा है और वह भी मेरा ख़्याल अपनी माँ की तरह ही रखता है। मैंने उसे बहुत छुटपन से पाला है।” इस पर बटमार ने कहा, “शायद इसीलिए उसने तुम्हें यहाँ इस जंगल में लाकर रखा है! आख़िर तुम्हारी भी अपनी कोई ज़िन्दगी है कि नहीं?”
यह सुनकर विधवा स्त्री पेशोपेश में पड़ गई उसने बटमार से पूछा, “तो तुम्हीं बताओ क्या करना चाहिए?”
अब बटमार उसे समझाने लगा, “तुम बीमार होने का नाटक करो और अपने बेटे से कहो कि तुम्हारे इलाज के लिए शेरनी का दूध चाहिए। वह तुम्हें प्यार करता है। वह जब शेरनी का दूध लेने के लिए जंगल में शेरनी के पास जाएगा तब शेरनी उसे खा जाएगी और हम दोनों आज़ाद हो जाएँगे।”
विधवा भी बटमार के प्रेम में पागल थी। उसने अगले दिन अपने बेटे से कहा, “बेटा मैं मर रही हूँ, अगर शेरनी का दूध नहीं मिलेगा तो मेरी मौत हो जाएगी।”
अगले दिन ही लड़का शेर की माँद तक जा पहुँचा। उसे देखकर शेर ने उससे पूछा, “भाई तुम इधर कैसे?”
लड़के ने कहा, “भाई, मेरी माँ बहुत बीमार है अगर मुझे शेरनी भाभी का थोड़ा दूध मिल जाए तो मेरी माँ ठीक हो सकती है।”
“क्यों नहीं!”कहते हुए शेर ने लड़के के बरतन में दूध दे दिया, साथ ही अपना एक बच्चा भी दिया और कहा, “इसका ख़ूब ध्यान रखना। यह शिकार में तुम्हारी मदद करेगा।”
लड़का दूध और शेर का बच्चा लेकर घर अपनी माँ के पास लौट आया। लड़के को सकुशल और शेर के बच्चे के साथ आया देख माँ घबरा गई। उसने दूध पी लिया और कहा, “मुझे अब बहुत अच्छा लग रहा है।”
अगले दिन जब बेटा शेर के बच्चे को साथ लेकर शिकार करने चला गया, तब लुटेरा प्रेमी विधवा स्त्री से मिलने आया। स्त्री ने कहना शुरू किया, “क्या कोई विश्वास करेगा, मेरा बेटा तो कल शेरनी का दूध और साथ में एक शेर का बच्चा भी साथ लेकर घर आया है।”
लेकिन डाकू ने विधवा को फिर सलाह दी, “एक बार फिर तुम बीमार होने का नाटक करो और उससे कहो कि इस बार रीछनी का दूध पिए बिना स्वस्थ नहीं हो पाओगी। जब वह भालू का दूध लेने जाएगा तो भालू अवश्य ही उसे क्या फ़ाड़ डालेगा और तब हम शान्ति से एक दूसरे के साथ निडर होकर रह सकेंगे।”
अगले दिन फिर वही नाटक हुआ माँ ने अपने बीमार होने के का रोना बेटे को सुनाया और इस बार भालू के दूध की इच्छा बताई। लड़का जंगल से परिचित था। वह जगह ढूँढ़ कर भालू की माँद के पास पहुँचा। भालू एक शिकारी को अपने सामने देखकर पूछने लगा, “क्या बात है? तुम यहाँ क्यों आए हो?” लड़के ने हाथ जोड़कर कहा, “भैया भालू, मेरी माँ बहुत बीमार है उसके इलाज के लिए रीछनी भाभी का दूध चाहिए।
और इस बार भी उसकी विनम्रता काम कर गई। भालू ने भालुनी का दूध उसके बरतन में दिया और अपने बच्चों में से एक बच्चा भी उसे देते हुए कहा, “इस घर ले जाओ इसकी देखभाल करो यह जंगल में हमेशा तुम्हारी मदद करेगा!” लड़के को भालू का दूध और साथ में एक भालू का शावक लेकर आते देखा तो माता तो मानो अधमरी ही हो गई। अगले दिन जब उसने डाकू से हाल बताया तो। डाकू भी हैरान रह गया। लेकिन वह तो स्त्री पर दीवाना हो चुका था।
उसने कहा, “तुम्हारे बेटे में ज़रूर ही कोई शैतानी ताक़त आ गई है। एक बार और कोशिश करके देखो। इस बार उससे कहो कि बाघिन का दूध ले आए। बाघिन बहुत ग़ुस्सैल होती है, वह अवश्य ही उसे चीर-फाड़ देगी।”
कुछ दिन बाद फिर बीमार होने का। नाटक दोहराया गया। लड़का इस बात से अनजान था कि उसकी सौतेली माँ उसकी जान लेना चाहती है।
लड़के का भाग्य अच्छा था। वह जब बाघिन के पास दूध देने पहुँचा तो उसने भी वही किया जो पहले शेर और भालू कर चुके थे। बाघिन ने उसे अपना दूध तो दिया ही साथ में एक शिशु भी उसे दे दिया। यह सब देखकर विमाता के मन में भय समा गया।
अगले दिन जब डाकू मिलने आया तो स्त्री ने उससे सारा क़िस्सा सुना दिया, “मुझे भी लगता है कि इस लड़के में ज़रूर शैतान की आत्मा आ गई है।”
डाकू की समझ में न आया कि अब वह क्या करें! कुछ देर सोचने के बाद उसने कहा, “मैं बताता हूँ कि तुम क्या करो! तुम उसके साथ अस्तबल देखने जाओ। अस्तबल में एक मोटी ज़ंजीर रखी है। तुम उस ज़ंजीर को देखने का नाटक करो और खेल-खेल में ज़ंजीर अपने बेटे के गिर्द लपेटो। बेटा तुम्हें बहुत प्यार करता है। वह तुम्हें रोकेगा नहीं। तब तुम चालाकी से उसे ज़ंजीर में कसकर बाँध देना। मैं पास ही छुपा रहूँगा और मौक़ा पाकर उसे मार दूँगा।”
अगले दिन माँ ने डाकू के बताए हुए तरीक़े को अपनाते हुए जब लड़के को ज़ंजीर से बाँध दिया, तब डाकू छुरा लेकर उस पर झपटा।
यह सब देखकर लड़का तुरंत सारा माजरा समझ गया। उसने ज़ोर सेआवाज़ लगाई:
“शेर के बच्चे, भालू के बच्चे,
बाघ के बच्चे! दौड़ो
इस डाकू से मुझे बचाओ
इसको चीरो-फाड़ो”
उसकी आवाज़ सुनते ही तीनों हिंसक जीव उस पर टूट पड़े, डाकू को चीर फाड़ डाला।
लड़के ने एक ही झटके में ज़ंजीर तोड़ डाली। उसकी सौतेली माँ जो जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रही थी उसके ऊपर भी उसने वे तीनों जानवर ललकार दिए:
“शेर के बच्चे, भालू के बच्चे,
बाघ के बच्चे, आओ
मेरी इस सौतेली माँ को
फाड़-चीर कर खाओ”
और इस तरह डाकू के प्रेम में अंधी सौतेली माँ का अंत हुआ। लड़का अपने घोड़े पर सवार होकर अपना भाग्य आज़माने आगे चल पड़ा।
इस बार की कहानी यहीं होग यी पूरी।
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