मोरों का राजा 

01-04-2024

मोरों का राजा 

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

मूल कहानी: इल् री डेइ पेवानी; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द किंग ऑफ़ पीकॉक्स); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; 
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय

प्रिय पाठक, 
इस अंक की अनूदित लोक कथा के शीर्षक में मोर पक्षी का नाम है, जो भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। इसकी सुंदरता, इसका नृत्य भारत में आदिकाल से काव्य और कल्पनाओं को जन्म देता रहा है। कृष्ण के बालों में सजे मोर पंख से तो हर भारतीय परिचित ही है, मोर पर सवारी करने वाले देवता कार्तिकेय शिव जी के पुत्र और गणेश जी के बड़े भाई हैं। 

इस लोक कथा से यह मालूम होता है कि मोर की सुंदरता के चर्चे केवल भारत में नहीं पूरे विश्व में प्राचीन काल से ही होते रहे हैं, तभी तो इटली की लोक कथा में पुर्तगाल की राजकुमारी मोरों के राजा से विवाह करना चाहती है! 

मेरे बहुत खोज करने पर भी कथा में वर्णित इस तथ्य की पुष्टि नहीं हो पाई कि पेरू (दक्षिण अमेरिका का देश) में वास्तव में मोर पाए जाते हैं या नहीं! इस बात को आप यह सोचकर नज़रअंदाज़ कर सकते हैं कि जब इस कथा का जन्म हुआ होगा तब इटली और पुर्तगाल के लोगों का भौगोलिक ज्ञान इतना विकसित न रहा हो जितना आज है! 

मनुष्य के सौंदर्य प्रेम के बारे में विचार करते हुए इस कथा का आनंद लें:

एक समय की बात है, एक राजा और रानी थे, जिनके दो बेटे और एक बेटी थी। बेटी सबसे छोटी थी और वह माता-पिता की दुलारी थी। एक तो छोटी और ऊपर से बेटी, इसलिए वह राजा-रानी को बहुत ही प्रिय थी, वे दोनों उस पर जान छिड़कते थे। अचानक एक दिन राजा बीमार हो गए। धीरे-धीरे रोग इतना बढ़ा कि राजा की मृत्यु हो गई। इसके कुछ ही समय बाद रानी भी उस रोग से पीड़ित हो गई। जब रानी को लगा कि वह इस बीमारी से उबर नहीं पाएगी तो उन्होंने अपने दोनों बेटों को बुलाया और बेटी की देखभाल की ज़िम्मेदारी दोनों भाइयों पर डाल दी। उसके कुछ ही समय बाद उसकी भी मृत्यु हो गई। 

राजा और रानी अपनी बेटी को इतना प्यार करते थे कि उसे कहीं घूमने के लिए भी नहीं जाने देते थे। वह अपनी सेविकाओं के साथ महल में सभी सुख-सुविधाओं के साथ रहती थी, मन बहलाने के लिए वह खिड़की पर आ बैठती, अपनी दासियों के साथ बातें करती, आया की बेटी के साथ कभी-कभी खेलती, कढ़ाई-बुनाई के काम सीखती और कभी-कभी मीठे स्वर में गाती थी। 

एक दिन जब वह अपनी खिड़की पर खड़ी थी तब न जाने कहाँ से उड़कर एक मोर वहाँ आया और खिड़की की चौखट पर बैठ गया। लड़की ने इसके पहले इतना सुंदर पक्षी कभी नहीं देखा था, वह उसे देखकर विभोर हो गई। उसने चुग्गा डालकर पक्षी को भीतर बुला लिया। मोर देखकर उसके मुँह से निकला, “कितना सुंदर है यह पक्षी! अब जब तक मैं मोरों के राजा को नहीं पा लूँगी, तब तक विवाह नहीं करूँगी।” राजकुमारी ने मोर को अपने पास रख लिया। वह किसी बाहर के व्यक्ति को मोर को नहीं देखने देना चाहती थी इसलिए जब कोई आता तो वह उसे अपनी अलमारी में बंद कर देती। 

कुछ दिनों बाद दोनों भाइयों को चिंता होने लगी कि यदि हमारी बहन महल में ही बंद रही, कहीं बाहर घूमने-फिरने नहीं गई तो वह तो बीमार हो जाएगी। दोनों भाई आपस में बातें करने लगे कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि वह शादी करना चाहती है। 

दोनों भाई मिलकर छोटी बहन पास गए और उसके मन की बात जानी चाही। 

उन्होंने राजकुमारी से कहा, “जब तक तुम विवाह नहीं करोगी तब तक हम भी नहीं करेंगे। क्या तुम विवाह के लिए तैयार हो?” 

“ना, ना ऐसा नहीं है।”

“अब तुम सयानी हो गई हो, तुम्हें इस बारे में ज़रूर सोचना चाहिए। हम तुम्हारे लिए राजाओं और राजकुमारों के ये चित्र लाए हैं इसमें से जो भी तुम्हें अच्छा लगे तुम उसके बारे में हमें बताओ। आगे हम देखते हैं कि क्या करना है।”

“मैंने कहा ना कि मुझे विवाह की इच्छा ही नहीं है।”

“बहन, हमारे ही लिए सही तुम किसी को तो पसंद कर लो।”

“अगर आप दोनों ज़िद करते हैं तो पहले वादा करिए कि जिसे मैं चुनूँगी उससे ही मेरा विवाह होगा।”

“ज़रूर,!” दोनों भाई एक साथ बोले। उनके ऐसा कहने के बाद बहन ने अलमारी का दरवाज़ा खोला और मोर को बाहर निकाला, “आप यह पक्षी देख रहे हैं ना!” 

“हाँ, यह तो एक सुंदर मोर है।”

“मैं तब तक विवाह नहीं करूँगी, जब तक कि मोरों के राजा को नहीं देख लेती!”

“यह मोरों का राजा है कहाँ?” 

“मुझे नहीं मालूम, लेकिन मैं शादी करूँगी तो केवल उसी से करूँगी!”

“अगर ऐसा है तो हम मोरों के राजा की खोज में जाएँगे।” 

ऐसा कहकर दोनों भाइयों ने बहन की देखभाल की ज़िम्मेदारी उसकी आया और दासियों-सेविकाओं को दे दी। कुछ विश्वासपात्र सामंतों और मंत्रियों को राज्य की ज़िम्मेदारी दे दी और फिर दोनों भाई दो अलग-अलग दिशाओं में मोर-राजा की खोज में चल पड़े। वह जहाँ जाते हर किसी से पूछते रहते—क्या कभी किसी ने मोरों के राजा के बारे में सुना है? लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगती। लोग उन्हें मूर्ख समझते और खिल्ली उड़ाते। लेकिन दोनों युवकों ने हिम्मत नहीं हारी, उन्होंने अपनी खोज जारी रखी। भाग्य से एक शाम को बड़े भाई को एक बहुत वृद्ध सज्जन मिले वे कुछ जादुई विद्याएँ भी जानते थे। जब राजकुमार ने उनसे पूछा कि क्या कहीं मोरों का राजा रहता है? कभी उन्होंने उसके बारे में सुना है? तो उन्होंने कहा, “ज़रूर सुना है।” 

“वह सचमुच है? वह कैसा है? वह कहाँ रहता है?” राजकुमार ने कई प्रश्न एक साथ पूछ लिए।

“वह एक बहुत सुंदर युवक है जो मोरपंख के समान कपड़े पहनता है। पेरू उसकी राजधानी है, तुम्हें उससे मिलने के लिए वहीं जाना पड़ेगा।”

राजकुमार ने वृद्ध को धन्यवाद के साथ-साथ कुछ उपहार भी दिए और पेरू की ओर चल पड़ा। 

बहुत दिनों की यात्रा, बहुत तरह की यात्रा करके वह पेरू पहुँचा। वहाँ एक बड़े मैदान में सुंदर वृक्ष लगे थे। सहसा राजकुमार के कानों में आवाज़ आने लगी:

“ वह आ गया, वह आ गया, राह बनाओ उसके लिए।
वह हमारे राजा के विवाह का प्रस्ताव लाया है,
वह राजा को अपनी बहन देने आया है।”

युवा राजकुमार ने अपने चारों ओर नज़र घुमा कर देखा, उसे रंगीन पंखों की फड़फड़ाहट के सिवाय कुछ भी दिखाई न दिया, “मैं कहाँ हूँ?” उसके मुँह से प्रश्न फूटा।

“पेरू में,” अनजान स्वरों ने उत्तर दिया, “मोरों के राजा के राज्य में!”

“बहुत शुक्रिया!” राजकुमार बोला। 

“अरे ऐसा मत कहो!”

राजकुमार ने सोचा—यहाँ के तो वृक्ष भी विनम्र हैं, “क्या आप मुझे बताएँगे कि मैं कहाँ जाऊँ? राजा को कहाँ खोजूँ?” 

“बड़ी ख़ुशी से, दाहिने हाथ की तरफ़ जाओ। वहाँ तुम्हें एक सुंदर महल मिलेगा। पहरेदारों से कहो ‘राजा का भेदिया’ और वे तुम्हें भीतर जाने देंगे।”

“धन्यवाद!”

राजकुमार इस जादुई जगह के बारे में सोचता हुआ आगे बढ़ा। 

महल सफ़ेद, नीले, सुनहले और बैंगनी रंग से सजा हुआ था जो सूरज की रोशनी में सोने की तरह चमक रहा था। मुख्य द्वार पर पहरेदार मोरों की तरह ही शृंगार किए हुए थे, उन्हें देखकर यह पता भी नहीं लग पाता था कि वे मनुष्य हैं या पक्षी। 

“राजा का भेदिया” राजकुमार ने कहा और उसे जल्दी ही दरबार हॉल में पहुँचा दिया गया, जहाँ एक बहुत सुंदर सिंहासन रखा था जो हीरे-जवाहरातों से जड़ा हुआ था। जिसके चारों ओर सितारों की तरह चमकते हुए मोर पंखों का सुंदर चक्र बना था। सिंहासन पर जो राजा बैठा था वह सिर से पैर तक मोर पंखों से ढका हुआ था। उसको देखकर कहा ही नहीं जा सकता था कि वह मनुष्य है! 

राजकुमार ने झुक कर अभिवादन किया। राजा के संकेत पर दरबार से सारे दरबारी उठकर बाहर चले गए। 

“अब कहो, मैं सुन रहा हूँ!” सिंहासन पर बैठे मोरों के राजा ने कहा। 

“श्रीमान मैं पुर्तगाल का राजा हूँ,” राजकुमार ने कहा, “आपके पास अपनी बहन के विवाह का प्रस्ताव लेकर आया हूँ। मेरे दुस्साहस लिए मुझे क्षमा करिएगा, मेरी बहन ने क़सम खा ली है कि वह केवल ‘मोरों के राजा’ से ही विवाह करेगी!”

“क्या तुम अपने साथ उसका चित्र लाए हो?” 

“यह लीजिए श्रीमान!”

“यह तो बहुत सुंदर है। मैं विवाह के इस प्रस्ताव को स्वीकार करता हूँँ।”

“ओह श्रीमान! आपने मेरी सारी चिंता दूर कर दी। मेरी बहन की ज़िद पूरी हो जाएगी!”

राजकुमार ने सिर झुका कर आभार जताया और चलने को तैयार हो गया।

“रुकिए!” राजा ने कहा, “आप जा कहाँ रहे हैं?” 

“अपनी बहन को लाने के लिए महोदय।”

“बिल्कुल नहीं, जो एक बार मोरों के राज्य में आ जाता है, बाहर नहीं जा सकता। आप मेरे लिए अजनबी हैं। कौन कह सकता है कि आप किसी शत्रु देश के जासूस नहीं हैं? जो मेरे राज्य का भेद लेने आया है? आप मेरे चित्र के साथ एक पत्र लिखें और अपनी बहन के उत्तर की प्रतीक्षा करें।”

“ठीक है मैं यही करूँगा,” राजकुमार ने उत्तर दिया, “मेरे रहने का प्रबंध कहाँ होगा?” 

“जब तक आपकी बहन का उत्तर न आ जाए, तब तक आप नज़र बंद रहेंगे।”

और उसी समय राजकुमार को सैनिकों के साथ जाना पड़ा। 

इधर जब पेरू में यह सब हो रहा था, तब तक राजकुमारी का छोटा भाई निराश होकर अपने राज्य लौट आया था। जब बड़े भाई का पत्र पुर्तगाल पहुँचा तो छोटा राजकुमार मोरों के राजा का चित्र लेकर बहन के पास आया, चित्र देखते ही राजकुमारी चहक उठी, “यही तो है मेरे सपनों का ‘मोरों का राजा’! मैं उसे जल्द से जल्द देख लेना चाहती हूँँ।”

राजकुमारी के विवाह की तैयारी होने लगी। दहेज़ तैयार हुआ कपड़े-गहने बने, घोड़े सजाए गए। यात्रा के लिए सबसे बड़ा और सुखद जहाज़ चुना गया। एक दिन छोटे भाई ने राजकुमारी की आया से कहा, “पेरू तक की यात्रा बहुत लंबी हैऔर थकाऊ है। रास्ते की गर्मी, उमस, धूप से मेरी फूल-सी बहन कुम्हला जाएगी। उसे इन सब से बाचकर कैसे ले जाएँगे?” 

“कुछ मुश्किल नहीं है,” आया ने समझाया, “राजकुमारी को एक बंद पालकी जैसी गाड़ी में बंदरगाह तक लाया जाए और जहाज़ को तट से सटाकर रखा जाएगा। फिर राजकुमारी की गाड़ी को ही तख़्ते पर से जहाज़ में चढ़ा दिया जाएगा। इस तरह बिना थके, कुम्हलाए, राजकुमारी पेरू तक पहुँच सकेगी।”

यह योजना स्वीकार हो गई। 

इधर आया की भी एक बेटी थी जो राजकुमारी की हमउम्र और उसकी सहेली थी, बस फ़र्क़ इतना था कि आया की बेटी अति साधारण रंग रूप वाली थी जबकि राजकुमारी रूपवती और सुख-सम्पत्ति में पली सुकुमारी थी। 

जब आया की बेटी को राजकुमारी के पेरू जाने और शादी करने की बात मालूम हुई तो वह तिलमिला उठी। उसने अपनी माँ से कहा, “राजकुमारी का ब्याह होगा और मेरा नहीं! सारे सुख, सारे सम्मान उसे और मुझे कुछ नहीं? आख़िर हम दोनों तो साथ ही खेले हैं, बढ़े हैं। क्या मेरा दिल दिल नहीं है?” 

आया बोली, “तुम ठीक कह रही हो बिटिया! मैं तुम्हारी माँ हूँँ, मेरा भी दिल तड़प रहा है।”

ऐसा कह कर आया मन ही मन मोरों के राजा के साथ अपनी बेटी के विवाह की योजना बनाने लगी। बहुत सोचने के बाद उसे एक उपाय सूझ ही गया। उसने अपनी बेटी के लिए भी शादी की पोशाक और एक पालकी गाड़ी बिल्कुल वैसी ही बनवाई जैसी राजकुमारी की थी। फिर वह एक सोने की मोहरों से भरी थैली लेकर जहाज़ के कप्तान के पास गई और उससे बोली, “यह थैली तुम्हारे लिए है कप्तान! अब मेरी बात ध्यान से सुनो। जो गाड़ी जहाज़ में सबसे बाद में आएगी, उसमें मेरी बेटी होगी। मैं जैसा कहूँगी तुम वैसा ही करोगे। किसी रात को जब सब सो जाएँगे तब तुम राजकुमारी को समुद्र में धकेल देना और मेरी बेटी को राजकुमारी की गाड़ी में बिठा देना।”

पहले तो कप्तान बहुत डरा, लेकिन सोने की चमक किसी को भी अंधा कर सकती है। उसने सोचा ‘जब यह मोहरों की थैली मेरी हो जाएगी तो मैं भाग कर किसी दूसरे देश चला जाऊँगा और आराम की ज़िन्दगी जिऊँगा’ वह आया की बात मानने को तैयार हो गया। 

जहाज़ के चलने का समय आया। सारा सामान, घोड़ा-गाड़ी-डब्बे-बक्से, सब कुछ ठीक से लगा दिए गए। तभी अचानक राजकुमारी को अपने पालतू, प्यारे कुत्ते की याद आई जो सारी तैयारी के बीच महल में ही छूट गया था। वह उसके  लिए ज़िद पकड़ कर बैठ गई, “मैं बचपन से उसके साथ रही हूँ, उसे छोड़कर भला ख़ुश कैसे रह पाऊँगी!”

आख़िरकार कुत्ते को मँगवाया गया। वह राजकुमारी की गाड़ी के पास लाया गया और राजकुमारी ने उसे अपने पास ही गद्दे पर सुला लिया। अब जहाज़ के लंगर पेरू चलने के लिए उठा दिए गए। 

एक रात को आया राजकुमारी के पास आई और धीरे से बोली, “आज मौसम सुहाना है। ठंडी बयार चल रही है, हम कल पेरू पहुँच जाएँगे। अपने सपनों के राजा से तुम मिल पाओगी! अब तुम गहरी नींद में सो जाओ जिससे कल तरोताज़ा रहो।”

राजकुमारी मोरों के राजा के मीठे सपने देखती हुई, अपने कुत्ते को गोद में लेकर गहरी नींद में सो गई। 

उसी रात को कप्तान ने राजकुमारी की पालकी गाड़ी का दरवाज़ा खोला और गहरी नींद में अपने कुत्ते को गोद में लेकर सोती राजकुमारी को उसके गद्दे में ही लपेटा और उठाकर समुद्र में फेंक दिया। पास ही आया की बेटी चुप कर खड़ी थी। कप्तान ने उसको राजकुमारी की गाड़ी में ले जाकर बिठा दिया। 

राजकुमारी जिस गद्दे पर सो रही थी वह पंखों से भरा हुआ मोटा गद्दा था, जो पानी के ऊपर तैरता रहा, डूबा नहीं। 

जब राजकुमारी की नींद खुली तो उसने देखा कि वह पानी में है और जहाज़ का दूर तक कोई निशान नहीं। 

अगली सुबह समुद्र के किनारे रहने वाले एक मछुआरे ने बड़ी भोर में ही कुत्ते के भौंकने की आवाज़ सुनी। उसने अपनी पत्नी से पूछा, “क्या तुम्हें भी कुत्ते के भौंकने की आवाज़ सुनाई द दे रही है?” 

“हाँ,” पत्नी बोली, “मुझे लगता है कोई ख़तरे में है।”

“मैं भी यही सोच रहा हूँ। सुबह होने ही वाली है, मैं बाहर जाकर देखा हूँ कि माजरा क्या है?” 

उसने अपना बल्लम उठाया और तट की ओर निकल गया। भोर के नीम उजाले में उसने देखा कि कोई चीज़ समुद्र में तैर रही है और वहीं से कुत्ते की आवाज़ आ रही है। जैसे-जैसे वह नज़दीक आई मछुआरा पानी में उतर गया और अपने बल्लम से गद्दे को खींच लिया। जब उसने भौंकते हुए कुत्ते के पास एक सुंदर युवती को दुलहन की पोशाक में बैठे देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना ही ना रहा। तभी घबरायी और दुखी राजकुमारी ने पूछा, “मैं कहाँ हूँ?” 

“तुम एक ग़रीब लेकिन दयालु मछुआरे के पास हो। जब तक तुम्हें तुम्हारा ठिकना ना मिले तुम हमारे साथ रह सकती हो।”

इधर राजकुमारी मछुआरे के घर पहुँची और उधर आया की बेटी दुलहन की तरह सजी हुई, अपनी पालकी-गाड़ी में बन्द, पेरू के राजा के महल की ओर अपने क़ाफ़िले के साथ चल पड़ी। जैसे ही गाड़ी जादुई पेड़ों के बग़ीचे में पहुँची अचानक चारों ओर से आवाज़ें आने लगीं . . . 

“दुहाई है दुहाई! 
ना जाने कैसी लड़की, 
‘पेरू की रानी’ बनने आई . . .” 

और इस आवाज़ के साथ ही हज़ारों मोरपंख हवा में उड़ने लगे। 

यह सब देख-सुनकर राजकुमारी के भाई का दिल आशंका से धड़कने लगा। यह सब उसे अपशगुन लगा। वह मन ही मन घबराया कि हो ना हो कुछ बुरा होने वाला है, यह सब ठीक नहीं हैं। वह पालकी के पास गया और पर्दा हटा कर देखा जहाँ आया की बेटी थी। वह भर्राए स्वर में बोला, “तुम्हें यह क्या हो गया बहन? आख़िर ऐसा हुआ कैसे? क्या समुद्री हवाओं और गर्मी ने तुम्हें ऐसा बना दिया?” 

“मैं क्या जानूँ!” कह कर आया की बेटी चुप हो गई। 

“देखो राजा आ रहा है, अब हम सबकी ख़ैर नहीं!”

मोर के पंखों से सजी वर्दी वाले अंगरक्षकों के बीच मोरों का राजा सजधज के साथ अपनी होने वाली रानी और उसके काफ़िले से मिलने आ पहुँचा था। अंगरक्षकों ने ऊँचे स्वर में बिगुल बजाया और जादुई पेड़ों ने गीत गाया:

“जय हो हमारे राजा की, प्यारे मोरों के राजा की, 
दुलहन के मामले में, खोटी है क़िस्मत जिसकी”

गीत के साथ-साथ हवा में इतने पंख उड़े कि वहाँ कोहर जैसा छा गया। 

“दुलहन कहाँ है?” राजा ने पूछा।

“यही दुलहन है, महाराज!” संकोच से छोटा राजकुमार बोला। 

“यही वह ख़ूबसूरत लड़की है, जिसकी तारीफ़ के क़सीदे मुझे सुनाए गए? जिसका चित्र मुझे दिखलाया गया?” मोरों का राजा क्रोध में भरकर बोला। 

“हमारा इसमें कोई दोष नहीं है, राह की गर्मी और नमक भरी हवाओं ने यह ज़ुल्म ढाया है।”

“कैसी हवा? और कैसा समुद्र? चुप रहो धोखेबाज़! तुम लोगों ने मुझसे धोखाधड़ी की है। तुमने मोरों के राजा को मूर्ख समझ लिया है। पहरेदारों, इन्हें क़ैद कर लो। एक-एक कर सबको फाँसी पर चढ़ाया जाएगा, तैयारी करो।” 

ऐसा कहकर पैर पटकता, दिल सम्हालता राजा वहाँ से चला गया। एक तो उसका अपमान हुआ था दूसरे वह दिन रात राजकुमारी का सुंदर चित्र देख-देख कर उसके प्रेम में दीवाना हो चुका था, यहाँ तक कि राजकुमारी का चित्र उसने अपने गले में पहनकर अपने हृदय के पास ही रखा था। 

अब इधर अभागे क़ैदियों और विरह में व्याकुल राजा को छोड़कर हम चलते हैं ग़रीब मछुआरे के घर, राजकुमारी के पास! 

अगली सुबह राजकुमारी ने मछुआरिन से पूछा, “क्या आपके पास एक छोटी डलिया होगी? आज के खाने का इंतज़ाम मैं करना चाहती हूँ,” मछुआरिन ने हामी भरी और एक छोटी डोलची राजकुमारी को दे दी। राजकुमारी ने डोलची अपने कुत्ते को दे दी और उससे कहा, “तुम सीधे शाही रसोई में जाओ और हमारे लिए खाना ले आओ।” कुत्ते ने डोलची अपनी अपने दाँतों से पकड़ी और दौड़ गया। वह सीधे राजा की रसोई में गया वहाँ से एक भुना मुर्ग उठाया, टोकरी में रखा और डलिया मुँह में दबाकर मछुआरे के घर लौट आया। यहाँ तीनों ने छक कर खाना खाया। कुत्ते को भी चूसने के लिए हड्डियाँ मिल गई थीं। 

अगले दिन कुत्ता टोकरी दाँतों में दबाए राजा की रसोई में गया, एक तल कर बनी मछली को उठाया और टोकरी में डाल वापस चल दिया। 

जब दो दिन लगातार ऐसा हुआ तो रसोइए ने सारी घटना राजा को बताना उचित समझा। राजा ने सब सुनकर आज्ञा दी कि अगर कल भी कुत्ता आए तो उसे पकड़ लिया जाए, पकड़ा न भी जा सके तो कम से कम यह पता लगाया जाए कि वह आख़िर जाता कहाँ है? 

अगले दिन कुत्ता जब बकरे की टाँग उठा कर भागा तो रसोइया उसके पीछे दौड़ा। उसने देखा कि कुत्ता एक मछुआरे के घर पहुँच गया है। 

रसोइए ने वापस आकर सारी बात राजा को बता दी। राजा ने तय किया कि वह अगले दिन कुत्ते का पीछा स्वयं करेगा, वैसे भी वह लोगों की दया का पात्र बना हुआ था और अपनी क़िस्मत पर दिल ही दिल में रो रहा था। 

अगले दिन जब कुत्ता टोकरी लेकर खाना लाने चला गया, तब राजकुमारी ने अपना शादी का जोड़ा निकाल कर पहन लिया और शान्ति से घर में बैठ गई। मछुआरिन से उसने कह दिया कि अगर कोई कुत्ते को खोजता हुआ आए तो उसे कमरे में उसके पास भेज दिया जाए। 

कुछ समय बाद ही कुत्ता राजा की रसोई से खाना लेकर वापस आ गया। उसके पीछे-पीछे अपने दो अंगरक्षकों के साथ मोरों का राजा भी आ पहुँचा। मछुआरे से पूछा गया “क्या तुमने इधर एक कुत्ते को देखा है?” 

“हाँ महाराज।”

“वह रोज़ हमारी रसोई से खाना क्यों चुरा रहा है?” 

“वह ऐसा अपने मर्ज़ी से करता है महाराज वह हमारे लिए खाना लेकर आता है, हमने उसे कुछ सिखाया नहीं है!”

“तुमने वह कुत्ता कहाँ पाया?” 

“वह हमारा कुत्ता नहीं है, वह एक दुलहन का है जो हमारे पास रहती है!”

“मैं उसे देखना चाहता हूँ,” राजा ने कहा। 

“महाराज क्षमा करिएगा, हम लोग बहुत ग़रीब हैं, आपका सत्कार अच्छी तरह नहीं कर सकते!” जब राजा भीतर आ गया तो उसके सामने तस्वीर वाली सुंदर युवती दुलहन बड़ी खड़ी थी। 

वह बोली, “मैं पुर्तगाल के राजा की बेटी हूँ और मेरा भाई आपकी क़ैद में है।”

“क्या सचमुच ऐसा है?” मोरों का राजा बोल उठा। 

“देखिए आपने जो अपना चित्र भेजा है वह मैं अपने गले में हर समय अपने दिल के नज़दीक रखती हूँ,” राजकुमारी बोले जा रही थी। 

“मुझे यह गोरख धंधा समझ में नहीं आ रहा है!” राजा ने कहा “तुम मेरा इंतज़ार करो, मैं अभी थोड़ी देर में आता हूँ,” राजा तुरंत तीर की तरह अपने महल वापस आ गया। उसने दोनों भाइयों को क़ैद में से निकलवाया और कहा, “तुम्हारी बहन मिल गई है। तुम हमारे आदरणीय मेहमान हो। लेकिन पहले मुझे यह बताओ कि यह सब हुआ कैसे?” 

दोनों भाइयों ने कहा, “हम स्वयं यह नहीं जानते महाराज कि यह सब कैसे हुआ! हम जितना ही इस बारे में सोचते हैं उतना ही उलझते जाते हैं।”

तब राजा ने राजकुमारी की आया को बुलवाया, उसको डराया-धमकाया गया। डर के आगे भूत भागे, सो आया ने सारी बात उगल दी। अब आया को और उसकी बेटी को सिपाहियों ने क़ैद करके जेल में डाल दिया। राजा ने अपना शृंगार सुंदर मोरपंखों से किया, बैण्ड-बाजे के साथ बारात साज कर वह मछुआरे के घर की तरफ़ अपनी दुलहन लेने चला: 

“अहा रे मस्ती छाई आहा रे मस्ती छाई, 
मोरों के राजा की रानी, 
पेरू में रहने आई है
सुन्दर हमारी रानी पेरू में है आई।”

इसके साथ ही हवा में हज़ारों रंग-बिरंगे मोर; पंख उड़ने लगे। मोर पंख इतने ऊँचे उड़े इतना चमके कि उनके आगे सूरज की चमक भी फीकी पड़ गई। 

जब यह सारा जुलूस महल में वापस आया तब मोरों के राजा और राजकुमारी का विवाह हो गया। 

आया और उसकी बेटी को फाँसी की सज़ा दी गई। 

अनेक उपहारों के साथ दोनों राजकुमारों को पुर्तगाल के लिए विदा कर दिया गया। हाँ, वे लोग जहाज़ के कप्तान को कभी नहीं पकड़ पाए क्योंकि वह तो मोहरों की थैली लेकर न जाने किस देश को भाग गया था। 

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