मेरी रचनात्मकता

15-11-2021

मेरी रचनात्मकता

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 193, नवम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

कुछ कण विचार के बहुत सूक्ष्म
मानस पर मेरे तिरते हैं,
चेतना धरातल पर मेरे
वे कभी-कभी आ गिरते हैं,
 
यदि उर्वर हो मेधा मेरी
वे युग्म रूप ले लेते हैं,
ले कर के फिर कुछ गर्भकाल
वे 'रचना भ्रूण' पनपते हैं,
 
जब गर्भकाल पूरा होता
कुछ पीर प्रसव-सी होती है,
कुछ  लेकर श्रम, कुछ पीड़ा दे
एक रचना नई जन्मती है,
 
इस नन्ही 'रचना शिशु' को मैं
निज भावों से नहलाती हूँ,
देकर दुलार एक माता का
शब्दों के वस्त्र पहनाती हूँ,
 
लख कर अपनी हर नव कृति को
मैं मन ही मन इतराती हूँ,
अतिशय हुलास से भरकर फिर
पाठकगण तक पहुँचाती हूँ,
 
फिर यदाकदा कोई एक कृति
पा लेती बोल प्रशंसा के,
पर हैं अनमोल सभी कृतियाँ
सर्जक की दृष्टि से यदि देखें,
 
चाहे वह सुघड़ सलोनी हो
चाहे कुरूप और अनगढ़ ही
वे सभी मुझे प्रिय लगती हैं
मैं जननी जो हूँ उन सबकी!

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