ग्वालिन-राजकुमारी
सरोजिनी पाण्डेय
मूल कहानी: ला लाटिया रेजिना; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द मिल्कमेड क्वीन); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय
एक समय की बात है, एक राजा-रानी निस्संतान थे। एक दिन एक बुड्ढी स्त्री ने उनकी भाग्य रेखा देखकर बताया कि उन दोनों को एक संतान मिल सकती है। यदि वे बेटा चाहते हैं तो वह जल्दी ही घर छोड़ देगा और फिर कभी वापस नहीं आएगा और अगर बेटी चाहेंगे तो उसे वे, कड़ी निगरानी करके, अट्ठारह वर्ष तक अपने पास रख पाएँगे। राज-युगल ने पुत्री पाने के लिए प्रार्थना शुरू कर दी और नियत समय पर वे एक बेटी के माता-पिता बन गए। अब राजा ने एक भूमिगत महल पाताल लोक में बनवाया और उसी में राजकुमारी का लालन-पालन किया जाने लगा। राजकुमारी को यह पता भी नहीं था कि धरती के ऊपर की दुनिया कैसी है।
अट्ठारह वर्ष की होने पर राजकुमारी की जिज्ञासाएँ बढ़ने लगीं। बड़ी अनुनय-विनय कर उसने अपनी धाय माँ को राज़ी कर लिया कि वह उसे ऊपर की दुनिया में ले चले। दाई माँ को आख़िरकार दया आ ही गई और वह उसे महल के ऊपर के बग़ीचे में ले आई। राजकुमारी ने पहली बार सूरज, आकाश, चहकती चिड़ियाँ, उड़ते परिंदे देखे। वह अभी इस नये, जादुई-सी से लगते, संसार को अचरज से देख ही रही थी कि एक बहुत बड़ी चिड़िया आकाश में उड़ती आई और राजकुमारी को अपने पंजों में पकड़ कर उड़ा ले गई। उड़ते-उड़ते चिड़िया एक गाँव में पहुँची, एक खपरैल की छत पर राजकुमारी को छोड़कर वह उड़ गई।
एक किसान और उसका बेटा खेतों में काम कर रहे थे। उन्होंने दूर से अपने घर की छत पर कुछ चमकदार चीज़ देखी तो दौड़कर घर आए, सीढ़ी लगाकर छत पर पहुँचे तो वहाँ एक लड़की को हीरों का मुकुट पहने हुए पाया। इस किसान की अपनी पाँच बेटियाँ भी थीं जो घर में पली गायों की देखभाल करती थीं। राजकुमारी भी घर में ले आई गई और उन ग्वालिन बालाओं के साथ, उनकी बहनों की तरह ही ही रहने लगी, वही काम भी सीखने लगी। राजकुमारी के मुकुट का एक हीरा हर महीने बेच दिया जाता और पूरा परिवार इस धन से महीने भर आनंद से रहता था।
धीरे-धीरे मुकुट के सारे हीरे ख़त्म हो गए। अब एक दिन राजकुमारी ने किसान की पत्नी से कहा, “माँ, मैं आप लोगों के ऊपर बोझ बनकर नहीं रहना चाहती। आप यहाँ की रानी के पास जाइए और उनसे कुछ कशीदाकारी का काम माँग कर ले आइए, मैं यह कला जानती हूँ।”
किसान की पत्नी ने पहले तो बहुत ना-नुकुर की परन्तु फिर रानी के पास काम माँगने पहुँच गई। जब किसान की पत्नी ने काम माँगा तब रानी ने कहा, “तुम्हारी बेटियाँ तो ग्वालिनें है, भला वे राजसी कपड़ों में कशीदा कैसे कर पाएँगी?” परन्तु जब किसान की पत्नी ने बहुत निवेदन-याचना की तो बड़े बे-मन से रानी ने कुछ तरकाशी के धागे, सूइयाँ और एक रुमाल उसे कशीदा करने के लिए दे दिया। जब किसान की बीवी कढ़ाई किया हुआ रूमाल लेकर राजमहल वापस पहुँची तब उस पर बनी कशीदाकारी को देखकर रानी हैरान रह गई। उसने काम का मूल्य सोने के दो सिक्के से दिया और एक चादर कढ़ाई करने के लिए भी दे दी। इस बार का काम देखकर तो रानी बहुत प्रभावित हुई और तीन सिक्के दिए, साथ ही अपनी एक पुरानी पोशाक भी सजावट के लिए दे दी। राजकुमारी ने कशीदा करके जब इस पुरानी पोशाक को वापस भेजा तो वह राज दरबार में पहनने योग्य राजसी पोशाक में बदल चुकी थी।
“तुम्हारी बेटी ने ऐसी कला भला कहाँ से सीखी है?” रानी का प्रश्न था।
“मेरी बेटी अपने ख़ाली समय में मंदिर में जाकर बैठती है। वहाँ की पुजारिन ने उसे यह सब काम सिखाया है,” किसान की पत्नी बोली।
“तुम कहती हो तो मान लेती हूँ, लेकिन विश्वास नहीं हो रहा है। ख़ैर, अब मेरे बेटे के विवाह के सभी कपड़ों पर कशीदाकारी का काम वही करेगी,” ऐसा कहकर रानी ने उसे ढेरों काम पकड़ा दिया।
जब राजकुमार ने, जिसका विवाह होने को था, यह सुना कि उसके कपड़ों पर एक ग्वालिन सजावट कर रही है तो उसकी उत्सुकता बढ़ी। वह उसको देखने, उससे मिलने के लिए गाँव में उसके घर जा पहुँचा। वह वहाँ ऐसे समय पहुँचा जब ग्वालिन कुमारी कशीदा करने में व्यस्त थी। राजकुमार थोड़ा मनचला था, उसका दिल उस लड़की पर आ गया और वह अक़्सर उसे देखने के लिए वहाँ जाने लगा। एक दिन अचानक ही राजकुमार को न जाने क्या सूझा, उसने उस बाला को होंठों पर चूम लिया।
राजकुमार के इस विचित्र व्यवहार से वह घबरा गई, और उसे बहुत ग़ुस्सा भी आया। लड़की के हाथ में उस समय कशीदाकारी की सूई थी, वह अपना काम करने में व्यस्त जो थी। सूई राजकुमार की छाती में कुछ ऐसी घुसी कि सीधा उसके दिल तक पहुँच गई और राजकुमार संज्ञाशून्य हो गिर पड़ा।
युवती को पकड़ कर राज दरबार में लाया गया।
राजकुमार को मृत मान कर एक विशेष अदालत जुटी, जिसमें राजा की चार बेटियों, ‘मृत’ राजकुमार की बहनों को युवती की सज़ा तय करनी थी।
सबसे बड़ी बेटी ने उसे मौत की सज़ा सुनाई, दूसरी ने आजीवन कारावास की, तीसरी ने अपराधी की कम उम्र के कारण बीस वर्ष का कारावास दिया। सबसे छोटी राजकुमारी जो बुद्धिमान होने के साथ-साथ दयालु और समझदार भी थी, उसका कहना था कि राजकुमार ने अपनी मृत्यु स्वयं ही बुलाई थी और ग्वालिन युवती का इरादा भी हत्या करने का नहीं था इसलिए उसने राजकुमार के शरीर के साथ युवती को आठ वर्ष का एकांतवास देने की सिफ़ारिश की। उसका मानना था कि ऐसा करने से अपराधी को गहरा पश्चाताप होगा और वह भविष्य के लिए सुधर जाएगी। सभी सभासदों ने इस दंड विधान का समर्थन किया।
युवती को राजकुमार के शरीर के साथ एक एकांत मीनार में क़ैद कर दिया गया। सबसे छोटी राजकुमारी ने उस समय लड़की के कान में धीरे-से कह दिया, “घबराना मत मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”
छोटी राजकुमारी ने अपना वादा निभाया। उसके खाने-पीने का प्रबंध अच्छी तरह करवाती रही। धीरे-धीरे तीन वर्ष कट गए। युवती रोज़ राजकुमार के निस्पंद, निर्जीव शरीर को देखती और अपनी असावधानी और क्रोध पर दुखी होती रहती।
एक दिन अचानक इस मीनार पर वही बड़े पंखों वाली चिड़िया आकर बैठ गई, जिसने इस बंदी राजकुमारी को पिता के बग़ीचे में से उठा लिया था। युवती ने बड़ी आशा से उसे देखा, पहचाना और उससे कहा, “ओ प्यारे पक्षी, मुझे फिर वैसे ही यहाँ से उठा ले चलो जैसे पिता के बग़ीचे से उठाया था!” लेकिन इस प्रार्थना का कोई असर नहीं पड़ा।
पक्षी ने मीनार में घोंसला बनाया और उसमें दस अंडे दे दिए। समय आने पर अंडों में से चूज़े निकल आए, चिड़िया दिन भर दाना चुग्गा ला ला कर चूज़ों को खिलाती और बंदी युवती रोज़ पक्षी से अपनी बात कहने के लिए छत पर आती।
जिस मीनार में युवती को एकांतवास की सज़ा दी गई थी, वह राजमहल के पास ही थी। एक दिन राजा की बेटियों ने बंदिनी को बड़ी चिड़िया से बातें करते सुन लिया। इस बात की सूचना राजा के पास पहुँचा दी गई। राजा ने तत्काल आज्ञा दी कि पक्षी का घोंसला तुरंत वहाँ से हटाया जाए। पहरेदारों ने अपनी लंबी बरछियों से घोंसले को तुरंत ही हटा दिया। चिड़िया के चूज़े जब घोंसले के साथ मीनार से ज़मीन पर गिरे तो ज़मीन पर गिरते ही मर गए।
उस शाम को बंदी युवती ने देखा कि पक्षी अपने पंजों में एक विशेष बूटी कहीं से लेकर आई और मृत चूज़ों पर फेरने और उनकी छोटी चोंचों में लगाने लगी। थोड़ी ही देर में बच्चे जीवित होकर चहचहाने लगे। आज युवती ने पक्षी से कहा, “ओ प्यारे पक्षी यह बूटी मुझे भी दे दो न!” इस बार चिड़िया ने उसकी बात मान ली और बची हुई सारी बूटी बंदिनी को दे दी और अपने बच्चों के साथ वह कहीं दूर उड़ गई।
इधर बंदिनी ग्वालिन ने राजकुमार के शरीर को उस बूटी से धीरे-धीरे सहलाना शुरू किया। धीरे-धीरे राजकुमार के शरीर में हलचल होने लगी और कुछ घंटे में राजकुमार जीवित हो उठा।
होश में आ जाने पर जब राजकुमार को सारी स्थिति का ज्ञान हुआ तो उसने सज़ा की मियाद पूरी होने तक क़ैद में रहना ही उचित समझा।
अब दो क़ैदी साथ-साथ उस मीनार में, एक दूसरे का ख़्याल रखते हुए, रहने लगे।
सबसे छोटी राजकुमारी अक़्सर वहाँ क़ैदी का हाल-चाल लेने आती थी, उसे छोड़कर और किसी को राजकुमार के पुनर्जीवित होने की बात पता नहीं चली। छोटी राजकुमारी इन दोनों का ही ख़्याल गुप्त रूप से रखने लगी और उनकी आवश्यकताएँ पूरी करने लगी।
अपना समय कुछ अच्छी तरह बिताने के लिए एक दिन अपनी छोटी बहन से राजकुमार ने गिटार की फ़रमाइश की जो जल्दी ही पूरी हो गई।
अब समय बिताने के लिए राजकुमार गिटार बजाता और ‘ग्वालिन’ उसकी धुन पर गाती।
एक बार रात के सन्नाटे में बंदीगृह की मीनार से गिटार और गाने की आवाज़ सुनाई दी तो बड़ी राजकुमारियाँ चकित हो गईं। वे अगले ही दिन वहाँ जा पहुँचीं, लेकिन वहाँ उन्हें तो अपना भाई ताबूत में बंद और शोक में डूबी युवती ही दिखलायी पड़े। वे चुपचाप लौट आईं। लेकिन अब जब-तब बंदीगृह की मीनार से संगीत और गीत की ध्वनि सुनाई पड़ने लगी।
राजा की बेटियों ने क़ैदी युवती की जेल बदलने की ज़िद करनी शुरू कर दी। राजा ने अपने पहरेदारों को उस युवती को दूसरी जगह बंद करने का आदेश दे दिया।
जब पहरेदारों ने ताला खोला तो बंदी युवती के साथ-साथ जीते-जागते अपने राजकुमार को देखकर वे भौचक्के रह गए। यह समाचार तुरंत राजा तक पहुँचाया गया।
जैसा कि समझा जा सकता है, इस समाचार से पूरे नगर में ख़ुशियाँ छा गईं। राजकुमार ने जेल से बाहर आते ही अपने माता-पिता के सामने उस बंदिनी से विवाह करने की इच्छा प्रकट की। यह बात भी तुरंत मान ली गई। सभी प्रसन्न थे। लेकिन तीन बड़ी राजकुमारियाँ एक ग्वालिन को अपनी भाभी नहीं माना चाहती थीं।
विवाह से पहले बंदिनी ने अपने होने वाली ननदों से कहा, “शादी से पहले मैं एक बार अपने माता-पिता से मिलने जाना चाहती हूँ। आप सबके लिए मैं क्या उपहार लेकर आऊँ?”
राजकुमारियों ने उसका उपहास करने का यह अवसर गँवाना नहीं चाहा।
सबसे बड़ी राजकुमारी बोली, “एक ग्वाले की बेटी भला और क्या लाएगी, एक लोटा दूध ले आना।”
दूसरी ननद चिढ़ कर बोली, “उंह . . . एक मटकी दही बहुत है!”
तीसरी ने कहा, “एक कटोरी मक्खन से मेरा काम चल जाएगा।”
चौथी सबसे छोटी बोली, “मेरे लिए मेरा भइया बहुत है!”
‘ग्वालिन राजकुमारी’ चली गई। वह सीधे अपने पिता के पास वहाँ पहुँची जहाँ वह अट्ठारह बरस की उम्र तक पाताल महल में पली थी, वह गाँव के ग्वालों के घर भला जाती भी क्यों!
एक सप्ताह बाद वह एक सुंदर बग्गी में सवार हो, दास दासियों के साथ, सबके लिए उपहार लेकर अपने होने वाले दूल्हे के घर लौटी। सारा शहर इस नई दुलहन को देखने के लिए उमड़ पड़ा।
बग्गी से उतरकर ‘ग्वालिन राजकुमारी’ सबको उपहार देने लगी, सबसे बड़ी राजकुमारी को दूध से भरा सोने का लोटा, दूसरी को चाँदी की मटकी में दही और तीसरी को रतन जड़ी कटोरी में घी दिया। सबसे छोटी राजकुमारी अब बोल पड़ी, “मेरे लिए तुम कुछ नहीं लाईं? मैं तो तुम्हारी हमेशा सहायता ही करती रही!”
ग्वालिन राजकुमारी ने मुस्कुराते हुए बग्गी का बंद पट खोला उसमें से एक सजीला नौजवान निकाला, “यह मेरा छोटा भाई है जो मेरे पीछे जन्मा था। यह तुम्हारा दूल्हा होगा और मैं तुम्हें भौजाई बन कर मिलूँगी!” यह कहते हुए होने वाली दुलहन ने उसे गले लगा लिया।
बस जी, यह क़िस्सा यहीं ख़त्म और पैसा हज़म! जैसे ग्वालिन के दिन बहुरे वैसे ही सबके बहुरें!!
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