दूध सी चिट्टी-लहू सी लाल

15-09-2022

दूध सी चिट्टी-लहू सी लाल

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 213, सितम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मूल कहानी: बियान्का कॉम इल् लाटे-रोज़ा कॉम इल् सैंग्यू; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (लव ऑफ़ थ्री पोमेग्रेनेट्स); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय

 

प्रिय पाठक, इस अंक की लोक कथा में आप यह पाएँगे कि मानव का गोरी त्वचा और शारीरिक सौन्दर्य से प्रेम कितना आदि कालिक और सार्वभौमिक है और यह भी कि वह कितना क्षणिक है, यदि पुरुष उससे आकर्षित होता है तो स्त्री का भी अभीष्ट वही है:


एक बार की बात है, एक राजकुमार अपनी माता के पास बैठा, खरबूजा काट कर खा रहा था। तभी चाकू से उसकी उँगली कट गई और खरबूजे के सफ़ेद गूदे पर लाल ख़ून की एक बूँद टपक गई। कुमार ने उसे दो पल देखा और फिर माँ से बोला, “माँ, मेरी दुलहन दूध सी चिट्टीऔर लहू सी लाल होनी चाहिए!”

“कैसे? बेटा, जो लाल होता है, वही सफ़ेद भी कैसे होगा और जो सफ़ेद है वह लाल क्यों हो जाएगा? लेकिन अगर तुम्हें ऐसी ही लड़की चाहिए तो तुम स्वयं ही जाकर उसे ढूँढ़ कर ले आओ!” माँ ने कहा। 

फिर क्या था, राजकुमार चल पड़ा अपने लिए ‘दूध सी चिट्टी लहू से लाल’ दुलहनिया खोजने। 

बहुत समय से उसे भटकता देखकर एक स्त्री ने उससे पूछा, “नौजवान किस चीज़ की तलाश में भटक रहे हो?” राजकुमार ने मन ही मन सोचा-यह भी मेरी माँ जैसी ही है, यह मेरे मन की बात भला क्या समझेगी इसे क्यों बताऊँ? और वह आगे चल पड़ा। दर-दर भटकने के बाद एक दिन उसे एक जंगल में एक बूढ़ा, नाटा आदमी मिला। उसने भी पूछ लिया, “कहाँ जा रहे हो नौजवान?” राजकुमार को लगा कि यह अनुभवी पुरुष है, यह मेरी बात समझ लेगा और वह बोला, “आप मेरी बात से ज़रूर समझेंगे बाबा, मैं दूध सी चिट्टी और लहू सी लाल लड़की से शादी करना चाहता हूंँ, उसी की तलाश में हूंँ।” 

“बेटा, जो लाल है वह सफ़ेद नहीं होता, जो सफ़ेद है वह लाल नहीं होता। फिर भी—लो मैं ये तीन अनार तुम्हें देता हूंँ। इन्हें किसी पानी के सोते के पास ही खोलना और कहीं नहीं! आगे देखो क्या होता है!”

राजकुमार चल पड़ा तीन अनार लेकर!! जब एक झरने के पास पहुँचा तो उसने एक अनार खोला और एक बहुत सुंदर युवती अनार से बाहर उछल कर खड़ी हो गई। उसकी काया दूध जैसी गोरी-चिट्टी, गाल गुलाबी और होंठ थे लहू जैसे लाल! बाहर आते ही ज़ोर से बोली: 

“राजकुँवर झटपट ला पानी 
 कहीं न मर जाए तेरी रानी!”

राजकुमार झरने की तरफ़ भागा, जब तक अपनी अंजलि में पानी लेकर आया, तब तक बड़ी देर हो चुकी थी। ‘दूध-सी चिट्टी, लहू-सी लाल’ सुंदरी मर चुकी थी। 

राजकुमार ने दूसरा अनार खोला। इस बार भी एक बहुत सुंदर किशोरी, गोरी-चिट्टी, लाल-होंठ वाली, अनार में से बाहर आई। उसने भी वही कहा:

“राजकुँवर झटपट ला पानी 
 कहीं न मर जाए तेरी रानी!”

जब तक राजकुमार अंजलि में पानी लेकर उसे पिलाता, तब तक यह कन्या भी प्यासी ही मर गई। 

राजकुमार से रहा नहीं गया। अब उसने तीसरा अनार भी खोल डाला और इस परम सुंदरी के कुछ कहने से पहले ही झरने से पानी लेकर, उसके चेहरे पर फेंकने लगा। और इस बार सुंदरी जीवित बच गई! अनार में से निकली सुंदरी नवजात शिशु की तरह निर्वस्त्र थी। राजकुमार ने अपनी कमर का कमरबंद उसे उढ़ा दिया और उससे कहा, “इस पेड़ पर चढ़कर बैठो और मेरा इंतज़ार करो। मैं तुम्हारे लिए गाड़ी और कपड़े लेकर जल्दी आता हूंँ। फिर तुम्हें लेकर महल चलता हूंँ।”

अनार सुंदरी झरने के पास के पेड़ पर चढ़कर बैठ गई। 

अब सुनो आगे की कथा—

पास के गाँव के ज़मींदार के घर में एक नौकरानी थी, जो काली-कलूटी और कुरूप चेहरे वाली थी। वह इसी झरने से पानी भरने के लिए रोज़ आया करती थी। आज जब वह नौकरानी आई और गागर में पानी भरने के लिए उसे झरने में डुबोने लगी तो उसे पानी में एक सुंदर चेहरे की परछाईं दिखाई दी उस प्रतिबिंब को देखकर वह तो भौचक्की रह गई! नख़रे से बोली उठी:

“हाय! मैं तो बन गई रूपवती सुंदरी 
अब न कभी ढोऊँगी पानी की गगरी”

ऐसा कहकर उसने मटकी पटक दी, जो चूर-चूर हो गई। नौकरानी मटकती हुई घर की ओर चल दी। जब मालकिन ने उसे ख़ाली हाथ देखा तो डाँट कर बोली, “अरी कलमुँही, पानी नहीं लाई और गगरी भी गँवा आयी?” बेचारी ने दूसरी गागर उठाई और फिर झरने से पानी लेने चल पड़ी। झरने पर पहुँचने पर फिर वही हुआ जो पहले हुआ था। गागर को पानी में डुबोते हुए जल में ऊपर बैठी दूध सी चिट्टी-लहू सी लाल लड़की की छाया देख कर फिरसे नौकरानी का दिमाग़ फिर गया। उस छाया को अपनी समझ कर, वह फिर बोली, “अहा, सचमुच मैं कितनी सुंदर हूंँ!”
और गुनगुना उठी:

“हाय मैं तो बन गई रूपवती युवती! 
 आज से पानी भरेगी—मेरी जूती”

उसने फिर गगरी पटक दी और घर लौट आई। अबकी बार मालकिन ने उसे दो चपत लगा दीं और नई गागर देकर फिर से पानी के लिए भेज दिया। 

जब पेड़ों में छुपी बैठी सुंदरी ने उसे तीसरी बार गगरी लेकर आते देखा, तो उसकी हँसी छूट गई। जब नौकरानी ने खिलखिलाहट सुनी तो ऊपर देखा,  “अच्छा, तो यह तुम हो? तुम्हारे कारण मैंने दो गगरियाँ फोड़ डालीं और मालकिन से मार भी खाई। लेकिन तुम तो सचमुच बहुत सुंदर हो! ज़रा नीचे तो आओ! मैं तुम्हारे बाल सँवार दूँ, तो तुम और सुंदर हो जाओगी। मुझसे कैसी लाज? मैं भी तो तुम्हारी तरह एक औरत ही हूंँ।”

जब नौकरानी ने बार-बार ऐसा कहा तो रूप सुंदरी नीचे उतर आई। नौकरानी उसके बाल सँवारने लगी। उसने धीरे से अपने बालों में से एक पिन निकाला और रूप-सुंदरी के कान में चुभो दिया। युवती तुरंत मर गई। ख़ून की एक बूँद उसके कान से निकलकर ज़मीन पर टपकी और एक सफ़ेद कबूतर बनकर फुर्र हो गई। नौकरानी ने अपने सारे कपड़े उतार फेंके और पेड़ पर चढ़कर बैठ गई। 

कुछ देर में राजकुमार कपड़े और गाड़ी लेकर आया। नौकरानी की शक्ल-सूरत देखकर वह कुछ चिंतित हो गया, “तुम तो दूध सी चिट्टी और लहू सी लाल थीं, तुम इतनी साँवली कैसे हो गई?” 

कुरूप नौकरानी बोली:

“सूरज ने हर ली मेरी, सारी उजियाली 
झुलसा दिया तन मेरा, हो गई मैं काली।”

“तुम्हारी आवाज़ भी क्यों बदल गई है?” राजकुमार ने पूछा। 

“ज़ोर से हवा जो चली
 बदल गई मेरी बोली”

नौकरानी ने कहा। 

“तुम इतनी कोमल और सुंदर थीं, ऐसी बदशक्ल कैसे हो गईं?” राजकुमार ने पूछा। 

बोली नौकरानी:

“चुरा ले गए मेरा रूप, 
आँधी-पानी, धूल-धूप!”

राजकुमार निरुत्तर हो गया। उस कुरूप नौकरानी को ही गाड़ी में बिठाकर महल ले आया। 

अब सुनो आगे—

जिस दिन से नौकरानी राजकुमार की पत्नी बनकर महल में रहने लगी, उसी दिन से एक कबूतर रोज़ महल के रसोईघर की खिड़की की चौखट पर आकर बैठने लगा। कबूतर आता, चौखट पर बैठता और रोज़ रसोइए से पूछता:

“राजा के रसोइए मुझको ज़रा बता
राजपुत्र नई बीवी संग करता है क्या?” 

रसोईया उत्तर देता:

“बढ़िया खाना खाता है, 
शरबत के घूँट पीता है, 
नरम गुदगुदे बिस्तर पर
सुख की नींद सोता है।”

ऐसा रोज़ ही होता। एक दिन जब कबूतर आया, तो सवाल-जवाब के बाद बोला:

“सोने का पंख अगर चाहते हो पाना, 
थोड़ा मुझको पानी दे दो, थोड़ा दे दो दाना”

रसोइए ने एक कटोरी में पानी और तश्तरी में थोड़े से दाने रखकर कबूतर को दे दिए। कबूतर ने दाने खाए, पानी पिया और अपना शरीर थोड़ा सा हिलाकर, एक सुनहरा पंख चौखट पर गिरा दिया। रसोइया हैरान रह गया। जब कई दिन ऐसा होता रहा तो रसोइए ने सारी बात राजपुत्र को बताने की सोची। 

राजकुमार ने रसोइए की बात सुनी और कहा, “कल जब कबूतर आए तो तुम उसे पकड़ लेना और मेरे पास लाना। मैं उसे पाल लूँगा।”

रानी बनी नौकरानी, रसोइए और राजा की बातें छिप सुन रही थी। वह समझ गई कि यदि कबूतर राजा तक पहुँच गया तो उसका क़िस्सा तमाम हो जाएगा। वह अगली सुबह रसोइए के आने से पहले ही रसोईघर की खिड़की के पास जम गई। जब कबूतर आया और चौखट पर बैठा तो उसने उसे पकड़ लिया और एक सूजा उसकी छाती में घुसा दिया। कबूतर मर गया। उसकी छाती से निकलकर ख़ून की एक बूँद धरती पर टपकी। जहाँ कबूतर की छाती से निकला ख़ून गिरा वहाँ एक अनार का पेड़ उग आया और उसमें तुरंत ही फल भी लग गए। 

कुछ ही समय में यह बात पूरे राज्य में फैल गई कि कुरूप रानी के पेड़ का अनार खाने से कठिन से कठिन असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं, मौत के पास तक पहुँच गया रोगी भी स्वस्थ हो जाता है। लोग दूर-दूर से आते और उस अनार के फल ले जाते। आख़िरकार उस पेड़ के सारे फल ख़त्म हो गए। केवल एक, सबसे पहला, सबसे बड़ा अनार का फल बाक़ी बचा। कुरूप रानी ने घोषणा कर दी कि अब वह इस अनार को किसी को नहीं देगी, बस अपने लिए रखेगी। 

एक दिन एक बूढ़ी औरत आई और गिड़गिड़ाकर कुरूप रानी से बोली, “मेरा पति मरने वाला है, आप यह अनार मुझे दे दीजिए!”

“अब बस एक ही अनार तो बचा है, वह मैं किसी को नहीं दूँगी। मैं उसे सजावट के लिए रखूँगी!” कुरूप नौकरानी बोली। राजकुमार ने यह बात सुन ली। वह कुछ नाराज़ होकर बोला, “सजावट किसी की जान से बढ़कर नहीं है, तुम इस बेचारी बूढ़ी को मना मत करो। अनार दे दो।”

 कुरूपा को अनार देना ही पड़ा। 

वृद्धा जब अनार लेकर अपने घर पहुँची तब तक उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी। अब बूढ़ी ने सोचा कि जब यह अनार सजावट के लिए ही बचाया जा रहा था तो वह स्वयं ही से क्यों न रखे ले? और अनार उसने रख लिया। 

यह वृद्धा हर सुबह मंदिर में भगवान के दर्शन करने जाती थी। अब जब वह मंदिर के लिए निकलती तब, अनार के अंदर से ‘दूध सी चिट्टी-लहू सी लाल’ लड़की निकलती, घर साफ़ करती, खाना बनाती, बर्तन साफ़ करती, ग़रज़ यह कि बूढ़ी अम्मा की घर गृहस्थी का सारा काम निपटा कर, फिर अनार में चली जाती। जब ऐसा कई दिन हो चुका तो अम्मा कुछ चिंतित हो गईं। उन्हें लगा, न जाने किस भूत-प्रेत का साया उनके घर पर है! अगले दिन जब वह मंदिर गईं तो सारा हाल पुजारी जी को कह सुनाया। पुजारी जी ने उन्हें सलाह दी कि कल वह अपने समय से ही घर से निकले। लेकिन मंदिर आने के बदले घर वापस जाकर कहीं छुप जाएँ, हो सकता है कि पता लग जाए कि सारा काम कौन करता है? 

अगले दिन बूढ़ी अम्मा ने पुजारी की सलाह के अनुसार ही काम किया। उन्होंने देखा कि सजावट के लिए रखे अनार में से एक बहुत सुंदर लड़की निकली और घर के काम में जुट गई। बूढ़ी अम्मा ने बाहर निकल कर उस लड़की को पकड़ लिया और पूछा, “तुम कहाँ से आती हो?” 

“अम्मा शांत रहिए मुझे डरिए मत, मारिएगा मत!” 

“मैं तुम्हें मार नहीं रही हूंँ, बस इतना बताओ कि तुम कहाँ से, कैसे आती-जाती हो?” 

“मैं अनार में रहती हूंँ और . . .” लड़की ने सारी कहानी बूढ़ी अम्मा को सुना दी। 

बूढ़ी अम्मा ने उस युवती को अपने घर में अपनी बेटी की तरह ही रख लिया। अब वह उसे रोज़ अपने साथ मंदिर ले जाने लगीं। 

एक दिन राजकुमार भी मंदिर आया। जब उसकी नज़र बूढ़ी अम्मा के साथ की लड़की पर पड़ी तो वह ज़ोर से बोल उठा, “अरे यह तो वही है, दूध सी चिट्टी लहू सी लाल, जिसे मैंने झरने के पास देखा था!” राजकुमार ने बूढ़ी अम्मा से ही पूछ लिया, “सच बताइए यह लड़की कहाँ से आई है?” 

“अरे तनिक सब्र करो बेटा, बताती हूँ, यह लड़की उसी अनार से निकली है जो तुमने मुझे मेरे पति के लिए दिलवाया था!”

“तो तुम वही हो? अनार वाली? सच बताओ, तुम अनार में वापस कैसे चली गईं।” 

‘दूध सी चिट्टी लहू सी लाल’ लड़की ने सारी बातें सिलसिलेवार सुना दीं। 

राजकुमार उसे साथ लेकर आया और एक बार फिर सुंदरी से सारी बातें, कुरूप रानी से कहने को कहा। जब बात पूरी हो गई तो राजपुत्र ने कुरूप रानी से कहा, “अब तो तुमने पूरी कहानी सुन ली! मैं तुम्हें मार नहीं सकता क्योंकि तुम चाहे जैसी है, मेरी पत्नी हो। तुम्हीं बताओ तुम्हारे साथ क्या किया जाए?”

सब कुछ जान-सुनकर, कुरूप नौकरानी ने राजकुमार की कमर से कटार निकाली और अपनी छाती में घोंप ली!! 

अब आगे और क्या कहूंँ? आप तो सब समझदार लोग हैं, जान ही गए होंगे!!!

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