जग में सबसे बड़ा रुपैया
सरोजिनी पाण्डेयमूल कहानी: मनी कैन डू एवरीथिंग; चयन एवं पुनर्कथन: इटलो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन; पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय
बहुत पुरानी बात है, एक बड़े देश का राजकुमार आसपास के देशों की सैर को निकला। वह एक ऐसे देश में आ पहुँचा जहाँ के राजा का महल बड़ा ही शानदार था। उसे देखकर राजकुमार के मन में आया कि वह राजा के महल से भी बड़ा और शानदार महल अपने लिए बनवाए!
फिर क्या था, उसको धन की तो कमी थी ही नहीं, सो जल्दी ही उसने राजा के महल के सामने ही अपना भव्य महल बनवा लिया और बाहरी दीवार पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवा दिया, 'जग में सबसे बड़ा रुपैया'
एक दिन जब राजा सैर को निकला तो उसकी नज़र उस महल पर पड़ी, उसने राजकुमार को बुलवा भेजा। राजकुमार शहर में नया था और अभी तक कभी दरबार में नहीं गया था।
राजा ने कहा, "बधाई हो! बधाई! तुम्हारा महल तो लाजवाब है, उसके सामने तो हमारा महल कुटिया लगता है, वाह-वाह! अच्छा यह बताओ कि जग में सबसे बड़ा रुपैया लिखवाने का विचार क्या तुम्हारा ही था?"
राजकुमार थोड़ा घबरा गया उसे लगा कि कुछ ज़्यादा ही हो गया!
"जी जनाब!" वह बोला– "लेकिन यदि हुज़ूर चाहें तो मैं उसे आसानी से मिटवा दूँगा"
"नहीं, नहीं मैं ऐसा बिल्कुल नहीं चाहता, हाँ इतना ज़रूर है कि मैं तुम्हारी ज़ुबान से यह सुनना चाहता हूँ कि ऐसा तुमने क्यों लिखवाया। क्या तुम जो चाहो वह पैसे के बल पर करवा सकते हो? क्या तुम पैसे के बल पर मेरी हत्या भी करवा सकते हो?"
राजकुमार समझ गया कि वह मुसीबत में फँस गया है।
"हुज़ूर क्षमा करें, मैं वह वाक्य तुरंत मिटवा दूँगा और यदि आपको बुरा लग रहा है तो महल भी ढहा दूँगा।"
"ना-ना, सब कुछ बहुत अच्छा है, मगर तुमको अपना दावा सही साबित करना होगा कि पैसे से सब कुछ कराया जा सकता है। मैं तुम्हें तीन दिन का समय दूँगा कि तुम मेरी बेटी से बातचीत कर लो। यदि तुम ऐसा कर पाए तो ठीक, मैं उसकी शादी तुमसे कर दूँगा और नहीं कर पाए तो तुम्हारा सिर धड़ से अलग होगा, समझ गए ना!"
अब तो राजकुमार के सिर पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा।
राजकुमारी का कमरा महल में बहुत अंदर था। उसके आसपास सौ पहरेदारों का पहरा था। बेचारे राजकुमार की भूख- प्यास मर गई, रातों की नींद उड़ गई। राजकुमार बदरंग बदहवास बिस्तर में पड़ा रहता, हर पल अपनी मौत का दिन गिना करता।
उसका यह हाल देखकर उसकी धाय-माँ उसके पास आई। इस धाय-माँ ने बचपन से उसे पाला था, कुमार का दुख उससे देखा न जाता था। उसने राजकुमार से सारी बात पूछी। हाँफते-काँपते उसने सारी कहानी धाय माँ को सुना दी।
"बस इतनी सी बात!" धाय-माँ बोली, "और तुम हिम्मत हार बैठे! तुम्हारे ऊपर मुझे तरस आता है मुझे ज़रा सोचने दो। "
कुछ देर सोचने-विचारने के बाद बूढ़ी धाय-माँ डगमग करते पहुँच गई सुनार के पास।
उसने सुनार से ऐसा चाँदी का हंस बनाने को कहा जो इतना बड़ा हो कि उसमें आदमी बैठ सके, अंदर से खोखला हो और उसका पेट खुलता-बंद होता हो।
"ऐसा हंस कल तक बना दो।"
सुनार ज़रा ज़ोर से बोला, "कल तक! तुम पागल तो नहीं हो गई हो।"
"सुनार! ज़रा सोच लो," वह अशर्फ़ियों की थैली खनकाती हुई बोली, "आधा आज नगद, बाक़ी कल काम हो जाने पर।"
सुनार की तो बोलती बंद!
"इससे तो सारी दुनिया बदल सकती है," सुनार बोला, "मैं जी जान लगा दूँगा, हंस कल तक ज़रूर बना दूँगा।"
और अगले दिन चमचमाता, चोंच हिलाता हंस तैयार था।
राजकुमार से धाय ने कहा, "अपनी बाँसुरी लेकर हंस के अंदर बैठ जाओ और जब हम सड़क पर पहुँचें तो बाँसुरी बजाना शुरू कर देना।"
धाय ने हंस के गले में रेशम की डोरी डाली और उसे खींचते हुए लेकर शहर में घूमने लगी, राजकुमार भीतर बैठा बाँसुरी बजाने लगा।
ऐसा अनोखा नज़ारा शहर में पहले किसी ने देखा न था। सुरीली आवाज़ वाले चाँदी के हंस को देखने के लिए पूरा नगर उमड़ पड़ा।
उड़ते -उड़ते सुरीले हंस की ख़बर महल तक पहुँच गई, जहाँ राजकुमारी पहरे में क़ैद थी। राजकुमारी ने अपने राजा पिता से यह नज़ारा देखने के लिए विनती की।
राजा ने कहा, "कल राजकुमार को दिया गया समय पूरा हो जाएगा। कल तुम जाकर यह तमाशा देख आना।"
"पर पिताजी, वह औरत तो कल शहर से चली जाएगी," राजकुमारी ने उदास होकर कहा।
राजा से बेटी की उदासी न देखी गई। उसने पहरेदारों को आज्ञा दी कि उस औरत को हंस के साथ महल में बुलाया जाए जिससे राजकुमारी हंस को देख सके। धाय तो यही चाहती ही थी, झटपट पहुँच गई हंस लेकर महल के अंदर।
जब राजकुमारी हंस की मधुर, सुरीली आवाज़ सुनने में मगन हुई कि तभी हंस का पेट खुल गया और उसके अंदर से एक आदमी निकला।
"डरो मत," आदमी बोला, "मैं वही राजकुमार हूँ जो तुमसे बात ना कर पाया तो कल मौत के घाट उतार दिया जाएगा। अगर तुम अपने पिता से बता दोगी कि हमारी बातचीत हो गई है, तो मेरी जान बच जाएगी।"
अगले दिन राजा ने राजकुमार को बुलवा भेजा, "कहो भाई, क्या तुम्हारा रुपैया तुमको मेरी बेटी से बात करा सका?"
"जी हाँ! हुज़ूर," राजकुमार ने जवाब दिया।
"क्या कहते हो! तुमने राजकुमारी से बात की?"
"उससे ही पूछ लीजिए ना!"
राजकुमारी को बुलवाया गया।
उसने सारी बात बता दी कि कैसे राजकुमार हंस के अंदर छुपा था और राजा ने स्वयं ही उसे महल में बुलवाया था।
सब सुनने के बाद राजा ने राजकुमार को गले लगा लिया और अपना मुकुट उतारकर राजकुमार के सिर पर रख दिया और बोले, "तुमने साबित कर दिया कि तुम्हारे पास केवल धन ही नहीं बुद्धि भी है। मैं अपना राज्य और अपनी बेटी दोनों तुम्हें सौपता हूँ, सदा सुखी रहो।"
और राजकुमार और राजकुमारी बहुत लंबे समय तक ख़ूब सुख से रहे।
कहानी ख़त्म, पैसा हज़म।
5 टिप्पणियाँ
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सरल और सुंदर कहानी। बहुत बढ़िया
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कहानी पढ़कर बहुत मज़ा आया।धन्यवाद!!
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कहानी ख़तम पैसा हज़म सबसे अच्छी लाइन थी क्योंकि आजकल सीज़न 2 का ज़माना है अधूरी कहानी छोड़ के.. बहुत अच्छे शब्दों में अनुवादित, बहुत अच्छी कहानी...यूंही लिखती रहिए।
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बहुत सुन्दर लोक कथा और उससे भी सुंदर अनुवाद। बधाई
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बहुत सुंदर कहानी
कृपया टिप्पणी दें
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