सूरज का नेह

01-08-2022

सूरज का नेह

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 210, अगस्त प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

सूरज का सतत नेह, 
बनकर के श्यामल घन 
झर गया धरती पर
झरझर झर झरझर, 
 
मेंह झरा, झर झर झर
वायु का उतर गया ज्वर
तृप्त हो गई धरा 
और हो गई उर्वर! 
 
पनपे बीज, पाकर के नेह-नीर
लजाई सकुचाई धरिणी
बैठ गई ओढ़ कर 
हरी हरी सुंदर चीर
 
लह-लह फ़सलें झूलीं 
मान से पृथ्वी फूली
धान्य होकर स्वर्णिम सब
बन गए मानो आभूषण
 
भर गए कोठार सब
हर्षित हुए नारी-नर 
हर घर से उठी तब
गीतों की नई लहर॥

सरोजिनी पाण्डेय। 

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