तीन महल

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 256, जुलाई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

मूल कहानी: आइ ट्रे कास्टेली; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द थ्री कासल्स्); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; 
हिन्दी में अनुवाद: ‘तीन महल’ सरोजिनी पाण्डेय

 

एक लड़का था, जिसने यह तय कर लिया था कि वह चोरी करने का ही काम करेगा। जब उसने अपने मन की बात अपनी माँ को बताई तो वह बड़ी दुखी हुई, “तुम्हें ऐसी बात कहते हुए लज्जा नहीं आती!” वह बोली, “अभी तुरंत गुरु जी के पास जाओ और अपने मन को शुद्ध करने का उपाय पूछो।”

माँ का कहा मानते हुए वह गुरु जी के पास पहुँच गया। उसे गुरु जी ने समझाया “बेटा, चोरी करना पाप है। लेकिन अगर तुम चोरों का धन चुराओ तो उसे पाप नहीं माना जाएगा।”

अब क्या था, लड़का चोरों के अड्डे की तलाश में चल पड़ा। एक जंगल में उसे चोरों का अड्डा मिल गया और उन्होंने इस लड़के को अपने काम में सहायता करने के लिए रख भी लिया। चोरों ने लड़के को समझा दिया, “हम चोर ज़रूर हैं लेकिन हम पापी नहीं है क्योंकि हम बस सूदखोरों को ही लूटते हैं।”

एक रात जब चोरों का दल चोरी करने गया था तब इस लड़के ने चोरों का सबसे तेज़ खच्चर लिया और उसे पर सोने के सिक्के लाद कर भाग चला। घर पहुँच कर सोना तो उसने अपनी माँ को दे दिया और ख़ुद पर चल पड़ा ईमान की रोटी कमाने . . . उस नगर के राजा के पास सौ भेड़ें थीं, लेकिन कोई चरवाहा उन भेड़ों की रखवाली के लिए तैयार नहीं होता था। लड़के ने राजा के पास जाकर भेड़ों की रखवाली का काम माँगा। राजा काम देने को तैयार तो हो गया लेकिन उसने एक शर्त भी बताई, “ठीक है, कल से तुम काम पर आ जाओ। भेड़ों को चारागाह ले जाना। लेकिन वहाँ जो धारा बहती है उसके पार मत जाना क्योंकि उसे पार जो अजगर रहता है वह भेड़ों को खा जाता है। अगर शाम को तुम सारी भेड़ें सही सलामत ले आए तो इनाम पाओगे, वरना अगर एक भेड़ भी कम हुई तो तुम्हें तुरंत निकाल बाहर करूँगा।” फिर हँसते हुए बोला, “और ऐसा तभी करना। होगा जब तुम अजगर से बचकर आ जाओगे।”

चारागाह जाने का रास्ता महल के बग़ल से था। जब पहले दिन लड़का भेड़ों का रेवड़ लेकर उधर से गुज़र रहा था तब राजा की बेटी सेब खाती हुई खिड़की से नीचे झाँक रही थी। उसने रेवड़ को हाँकते हुए लड़कों को देखा तो वह उसे बहुत अच्छा लगा। उसने अपने पास रखी टोकरी में से एक सेब निकाल कर लड़के की तरफ़ उछाल कर फेंक दिया। लड़के ने लपक कर सेब पकड़ा और अपनी जेब में रख लिया, बाद में खाने के लिए। 

लड़का जब चारागाह पहुँचा तो उसने देखा कि हरी कोमल घास चारों लहरा रही है, कुछ दूरी पर उसे एक साफ़ सुथरा सफ़ेद पत्थर भी दिखाई पड़ा। घास के बीच में ऐसा सुंदर पत्थर देखकर उसने सोचा, “वहीं बैठकर मैं आराम से राजा की बेटी का दिया सेब खाऊँगा।”

लेकिन वह पत्थर तो पानी की धार के उस पार था। धारा पतली-सी थी, वह बिना सोचे-विचारे उछलकर उस पार पहुँच गया। भेड़ें भी उसके पीछे चलती हुई उस पार आ गईंं। दूसरी तरफ़ की घास तो और भी अच्छी थी। भेड़ें आराम से चरने लगीं और लड़का सेब खाने के लिए चिकने पत्थर पर जा बैठा। 

अचानक उसे चट्टान के नीचे से एक तेज़ झटका लगा, ऐसा लगा मानों दुनिया हिल गई हो। उसने चारों ओर नज़र दौड़ाई तो कहीं कुछ नज़र नहीं आया। वह सेब खाने लगा। फिर दूसरा झटका आया, जो पहले से अधिक ज़ोरदार था, पर लड़का अभी भी उस तरफ़ से बेपरवाह सेब खाता रहा। 

और फिर तीसरा झटका आया और उसके साथ ही चट्टान के नीचे से एक तीन सिरों वाला अजगर बाहर आ गया। अजगर के हर मुँह में एक-एक गुलाब का फूल था। वह लड़के की ओर ऐसे बढ़ रहा था मानो उसे गुलाब का फूल देना चाहता हो। लड़का ज्योंही फूल लेने के लिए आगे बढ़ा अजगर अपने तीनों मुँह खोलकर ऐसे झपटा जैसे उसे तीन ही निवालों में निगल ही तो जाएगा! 

लेकिन यह नवयुवक चरवाहा उससे अधिक तेज़ निकला उसने अपनी लाठी से अजगर को पीटना शुरू कर दिया और तब तक पीटता रहा, जब तक अजगर ढेर नहीं हो गया। फिर उसने घास काटने वाले अपने हँसिए से अजगर के तीनों सिर काट लिए, दो तो उसने अपनी जेब में रख लिए और तीसरे को कुचल डाला, यह देखने के लिए कि इसमें भला है क्या? और उसमें उसे मिला क्या!! एक शीशे की चाबी! अब तो लड़के को बड़ी हैरानी हुई। उसने उस चट्टान को खिसकाने की कोशिश की। कुछ मेहनत के बाद चट्टान सरक गई और उसके नीचे उसे एक दरवाज़ा दिखाई पड़ा। जब लड़के ने उस में बंद ताले में अजगर के सिर से मिली शीशे की चाबी लगायी, तो दरवाज़ा खुल गया। अंदर जाकर उसने अपने को एक शीशमहल में पाया। उसके वहाँ पहुँचते ही कई दरवाज़ों से शीशे के ही सेवक निकाल कर आए और बोले, “महाराज की जय हो! हमारे लिए क्या आज्ञा है?” 

’मैं अपनी सारी सम्पत्ति देखना चाहता हूँ!” 

उसके ऐसा कहते ही सेवक शीशे की सीढ़ियों से ले जाकर शीशे की मीनारें, शीशे के घोड़े, शीशे का अस्तबल, शीशे के अस्त्र-शस्त्र, शीशे के कवच, लड़के को दिखाने लगे। शीशे के गलियारों से होते हुए, वे उसे एक ऐसे बग़ीचे में ले गए जहाँ शीशे के पेड़ों पर शीशे की चिड़िया गा रही थी। शीशे के ही पौधों पर शीशे के फूल लगे हुए थे। यहाँ लड़के ने इन फूलों में से एक छोटा सा गुच्छा तोड़ा और अपनी टोपी में लगा लिया। 

उस शाम जब वह भेड़ों को लेकर लौटा, उसी समय राजा की बेटी भी खिड़की से बाहर झाँक रही थी। वह वहीं से बोली, “क्या अपनी टोपी में लगा फूल तुम मुझे दोगे?” 

“क्यों नहीं,” चरवाहे लड़के ने कहा, “यह शीशे के फूल मेरे शीश महल के शीशे के बग़ीचे से तोड़े गए हैं।” और शीशे के फूलों का गुच्छा लड़की की ओर उछाल दिया। अगले दिन जब वह भेड़ें चराने ले गया तो उसने साँप का दूसरा सिर कुचल कर देखा। इस बार उसे चाँदी की एक चाबी मिली। आज फिर उसने पत्थर सरकाया, दरवाज़े में चाँदी की चाबी लगाई और रजत महल में आ पहुँचा। आज सैर पर ले चलने के लिए चाँदी के सिपाही दौड़ते हुए आ गए और उसकी आज्ञा पाकर उसे महल की सैर पर ले चले। चाँदी की रसोई में चाँदी के बर्तनों में सुगंधित पकवान बना रहे थे। चाँदी के बग़ीचे में चाँदी के फूल खिले थे। चाँदी के मोर नाच रहे थे। आज उसने चाँदी के फूलों का एक गुच्छा तोड़कर अपनी टोपी में लगा लिया। शाम को लौटने पर उसने चाँदी के फूलों का गुच्छा राजा की बेटी को दे दिया क्योंकि आज वह खिड़की पर खड़ी उसकी राह देख रही थी। 

अगले दिन लड़के ने अजगर का, काट कर रखा गया, तीसरा सिर कुचला और जैसा कि आप सोच ही रहे होंगे, सोने एक की चाबी निकाली। लड़के ने शिला सरकायी, दरवाज़े में सोने की चाबी लगा और स्वर्ण-महल में जा पहुँचा! आज सोने के सेवकों ने उसे सोने के पलंग, सोने की चादर, सोने के तकिया वाला शयनगृह दिखलाया। सोने के बड़े-बड़े पिंजरों में सोने की चिड़िया उड़ रही थी, सोने के फव्वारों से सुनहरी फुहारें निकल रही थीं, क्यारी में सोने के पौधों पर सोने के फूल खिले थे। उसने अपनी टोपी में सोने के फूलों का एक छोटा-सा गुच्छा लगा लिया। घर जाते हुए खिड़की पर इंतज़ार करती हुई राजा की बेटी दिखाई पड़ी और उसने फिर टोपी के फूल माँगे। चरवाहे नवयुवक ने सोने के फूल उसे दे दिए। 

इधर राजा ने राजकुमारी के लिए दूल्हा चुनने के लिए एक बड़ा आयोजन किया, जिसमें हथियार चलाने की प्रतियोगिता रखी गई। विजेता से राजा की बेटी का विवाह होने की घोषणा भी कर दी गई। 

यह समाचार पाकर लड़का पहले दिन शीशे की चाबी लेकर शीशमहल गया। वहाँ से शीशे का ज़िरह-बख़्तर पहन, शीशे का भाला लेकर, शीशे के घोड़े पर सवार होकर वह रंगभूमि में आ पहुँचा। बड़ी कुशलता से उसने सबको हरा दिया और फिर जल्दी ही शीश महल लौट आया। 

अगले दिन वह चाँदी का ज़िरह-बख़्तर पहनकर, चाँदी के घोड़े पर सवार हो, हाथ में चाँदी की कटार लेकर अखाड़े में आया और सभी लोगों को पस्त करके चला गया। लोग बहुत भौचक्के रह गए। कोई उसका अता पता भी नहीं जानता था। 

मुक़ाबले के तीसरे दिन सोने की ढाल, सोने की तलवार लिए, सुनहरे कपड़ों में सजा, सोने के घोड़े पर सवार एक नौजवान आया और राजकुमारी के साथ शादी करने के इच्छुक सभी जवानों को मात दे दी। 

अब राजा की बेटी चुप ना रही। उसने भरी सभा में ज़ोर से कहा, “मैं जान गई हूँँ कि तुम कौन हो। तुम वही नौजवान हो जिसने मुझे अपने शीशे, चाँदी और सोने के महल से लाकर शीशे, सोने और चाँदी के फूल दिए थे।”

राजा की बेटी से उसे चरवाहे नौजवान की शादी हो गई क्योंकि उसने राजा की सारी शर्तें पूरी कर दी थीं। 

“राजा के नगर में सब लोग हुए सुखी
 मैंने तो सब कुछ देखा था
 पर मुझे एक दमड़ी ना मिली”

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