पाँसों का खिलाड़ी
सरोजिनी पाण्डेय
मूल कहानी: इल् गियोकाटोर डि बिलियार्डो; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द बिलियर्डस् प्लेयर); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स;
हिन्दी में अनुवाद: ‘पाँसों का खिलाड़ी' सरोजिनी पाण्डेय
एक समय की बात है, एक युवक चौपड़ के पाँसे फेंकने में बड़ा कुशल था। वह धर्मशालाओं और भोजनालयों में आने-जाने वाले यात्रियों को चुनौती दे देकर चौपड़ खेलने को कहता और जब वे उसकी कुशलता और चालाकी भरी चालों से हार जाते तब, उसे ख़ूब आनंद आता था! एक दिन उसे एक सराय में एक सुदूर, अनजाने देश का एक मुसाफ़िर ठहरा हुआ मिल गया, उसको भी इस चौपड़ के खिलाड़ी ने चुनौती दी, “क्या तुम मेरे साथ पाँसों का खेल खेलोगे?”
“चलो खेलें!”
“दाँव पर क्या लगाओगे?”
“अगर तुम जीते तो, मैं अपनी एक बेटी का हाथ तुम्हें विवाह के लिए दे दूँगा!”
खेल खेला गया और चुनौती देने वाला युवक इस बार भी जीत गया। दूर देश के यात्री ने कहा, “मुबारक हो, मैं सूर्य नगर का राजा हूँ। अपने देश पहुँचकर तुम्हें बुलाने के लिए निमंत्रण पत्र भेजूँगा।”
जवान खिलाड़ी रोज़ बुलावे की प्रतीक्षा करता रहा, लेकिन पत्र नहीं आया। अब जब उसका सब्र ख़त्म हो गया तो वह चल पड़ा सूर्य नगर की खोज में।
पूरे सप्ताह वह यात्रा करता और रविवार को किसी नगर में रुकता और गिरजाघर से रविवार की सभा से बाहर निकलते हुए लोगों से सूर्य नगर का पता पूछता। अधिकांश समय उसे यही उत्तर मिलता कि उन्होंने तो सूर्य नगर का नाम भी नहीं सुना है, उसके बारे में कुछ बता पाना तो बड़े दूर की बात है।
कई सप्ताह की यात्रा के बाद एक दिन जब वह एक नगर में रुका तो रविवार की सभा के बाद गिरजे से निकलते हुए एक वृद्ध सज्जन ने युवक से कहा, “मुझे विश्वास है कि ऐसा राजा कहीं न कहीं ज़रूर रहता है क्योंकि मैंने बचपन से उसके बारे में सुना है। लेकिन कहाँ? किस तरफ़? यह मुझे मालूम नहीं।”
पाँसों का खिलाड़ी एक सप्ताह और चला अगले पड़ाव में फिर उसे एक और वृद्ध मिला जो सभा से वापस आ रहा था। जब युवक ने उसे अपनी बात बताई तो उसे वृद्ध ने सूर्य नगर जाने के रास्ते की दिशा बता दी।
युवक एक सप्ताह और चला और फिर एक शहर में रुका। यहाँ भी वह एक गिरजाघर के पास ही ठहरा। दिन में सभा से लौटते लोगों में से एक आदमी ने उसको बताया, “बस यहाँ से कुछ ही दूर पर, जहाँ नगर की सीमा आ जाएगी वहीं सूर्यनगर के राजा का महल है। उसे पहचानना बहुत आसान है क्योंकि उस महल में दरवाज़े नहीं है।”
युवक हैरान होकर बोला, “फिर मैं भीतर कैसे जाऊँगा?”
उत्तर मिला, “मुझे क्या मालूम? हाँ अगर तुम महल के बाहर के कुंज में छुपकर कुछ देर रहो तो हो सकता है कुछ पता चले क्योंकि उस महल से तीन लड़कियाँ दोपहर के समय पास की बावड़ी पर रोज़ नहाने आती हैं।”
जवान खिलाड़ी महल के पास के घने कुंज में छुप कर बैठ गया। ठीक दोपहर में जब सूर्य बीच आसमान में चमकने लगा, तब वहाँ तीन लड़कियाँ आईं और अपने कपड़े उतार बावड़ी में घुसकर पानी में खेलने लगीं। इधर कुंज में छुपे युवक ने सबसे सुंदर लड़की के कपड़े चुरा लिए। खेलने के बाद तीनों लड़कियाँ अपने कपड़े पहनने के लिए जब पानी के बाहर आईं तो सबसे सुंदर लड़की के कपड़े ग़ायब थे! दूसरी दोनों लड़कियाँ जल्दी मचाने लगीं, “जल्दी करो, हम सब तैयार हैं! तुम्हें देर क्यों लग रही है? जल्दी वापस चलो!” एक ने कहा।
“मुझे अपने कपड़े नहीं मिल रहे हैं, तुम लोग थोड़ा ठहरो न!”
“ज़रा और ध्यान से देखो जल्दी करो और आ जाओ! हम चलते हैं!” यह कहते हुए वह दो लड़कियाँ तो चली गईं।
तीसरी, सबसे सुंदर लड़की, रोने लगी। अब कुंज में छुपा कर बैठा पाँसों का खिलाड़ी उछल कर बाहर आया और लड़की से बोला, “अगर तुम मुझे सूर्य नगर के राजा के पास ले चलो तो मैं तुम्हें तुम्हारे कपड़े वापस दे दूँगा!”
“आख़िर तुम हो कौन?” लड़की ने हैरानी से पूछा!
“मैंने अपने शहर में यहाँ के राजा को चौपड़ के खेल में हराया था और उसने अपनी बेटी की शादी मुझे करने का वादा किया था,” खिलाड़ी ने बताया।
दोनों युवाओं ने एक दूसरे को ध्यान से देखा और मन ही मन एक दूसरे को पसंद करने लगे। अब लड़की बोली, “मैं सूर्य नगर के राजा की बेटी हूँ और वे दोनों मेरी बहनें हैं। तुम मुझसे ही शादी करना क्योंकि मैं तुम्हें पसंद करने लगी हूँ। लेकिन मेरे पिताजी तुम्हारी आँखों पर पट्टी बाँधकर मुझे चुनने को कहेंगे। तुम मेरे हाथों को छूकर मुझे पहचान लेना। यह देखो, मेरी यह छोटी उँगली थोड़ी-सी कटी हुई है!”
इतना समझा कर वह उसे महल के अंदर अपने पिता के पास ले चली। महल में पहुँचकर युवक ने राजा से मिलने पर कहा, “आप तो मुझे भूल गए लेकिन मैं आपकी शर्त नहीं भूला। आप जानते ही हैं कि मैं, आपके वादे के अनुसार आपकी बेटी से शादी करने आया हूँ।”
“ठीक है, कल तुम्हारी शादी हो जाएगी, लेकिन पहले तुम अपनी पसंद की लड़की चुन तो लो।”
ऐसा कहकर उसने अपनी तीनों बेटियों को बुलवाया, “यह मेरी बेटियाँ हैं! इन्हें देख लो और पसंद कर लो! जिससे तुम शादी करना चाहो उसे चुन लो!”
फिर राजा ने खिलाड़ी की आँखों पर पट्टी बँधवा दी और बंद आँखों से लड़की को पहचानने को कहा। पहली लड़की खिलाड़ी के सामने आई खिलाड़ी ने उसके हाथ छुए और बोला, “यह मुझे अच्छी नहीं लगी।”
अब दूसरी बेटी को उसके पास लाया गया।
“मैं इससे भी शादी नहीं करना चाहता!”
सबसे बाद में जब तीसरी लड़की आई तो खिलाड़ी ने उसका हाथ भी टटोला और एक उँगली थोड़ी सी कटी पाकर बोला, “आपकी यह बेटी मुझे पसंद है!”
शादी धूमधाम से हो गई। नए ब्याहे जोड़े को उनके कमरे में भेज दिया गया। जब आधी रात हो गई तो दुलहन दूल्हे से बोली, “मैं तुमसे प्रेम करने लगी हूँ! मैं तुमसे कोई बात छुपाना नहीं चाहती! मेरे पिताजी तुम्हें कभी भी मरवा सकते हैं!”
“आओ तब हम कहीं भाग चलें!” दूल्हे ने कहा।
दोनों चुपके से अपने कमरे से निकले, घुड़साल में गए और एक-एक घोड़े पर सवार हो भाग चले। राजा को भी चैन नहीं था उसे कुछ आहट लगी तो जाकर बेटी का कमरा देखा और जैसा कि उसे डर था, वही हुआ कमरा ख़ाली पड़ा था। दूल्हा दुलहन नदारद थे। वह सीधे घुड़साल पहुँच वहाँ भी दो घोड़े नदारद! अब राजा ने घुड़सवार सैनिकों का, एक दल अपनी बेटी और उसके दूल्हे को पकड़ लाने के लिए भेज दिया। कुछ ही दूर जाने पर दुलहन को घोड़े की टापों की आवाज़ सुनाई देने लगी और जल्दी ही सैनिक भी दिख गए। उसने जल्दी से अपने बालों से एक कंघी निकाली और ज़मीन पर फेंक दी, देखते ही देखते वहाँ एक जंगल उग आया, जिसमें एक आदमी और एक औरत लकड़ियाँ बीन रहे थे। जब सैनिक वहाँ पहुँचे तो उन दोनों से पूछा, “क्या तुमने इधर से एक नए जोड़े को घोड़े पर सवार, जाते देखा है?”
उस आदमी और औरत ने कहा, “हम यहाँ लड़कियाँ बटोर रहे हैं, जब अँधेरा हो जाएगा तो घर चले जाएँगे।”
अब सैनिकों ने ऊँची आवाज़ में कहा, “हम यह पूछ रहे हैं कि इधर से सूर्य नगर के राजा की बेटी और उसका दूल्हा गुज़रे थे क्या?”
लकड़ियाँ इकट्ठी करते जोड़े ने उत्तर दिया, “जब हमारा छकड़ा भर जाएगा, तब हम घर चले जाएँगे।”
सैनिक परेशान होकर वापस राजा के पास लौट गए। राजा ने पूछा, “वह भगोड़े मिले?”
“हम उन्हें पकड़ने वाले ही थे कि अचानक रास्ते में एक जंगल आ गया, जहाँ हम एक आदमी और एक औरत मिले जो लगता था कि बहरे थे, वह हमारी बात समझ ही नहीं पाए,” सैनिकों ने राजा को बताया!
“उन्हें पकड़ लेना चाहिए था, वही तो वह नया जोड़ा था!” राजा बड़बड़ाया।
राजा ने अब और भी तेज़ घुड़सवार सैनिक बेटी की खोज में भेजे। वे भागे हुए जोड़े को पकड़ ही लेते कि राजा की बेटी ने अपने बालों से एक और कंघीवाला पिन निकाला और ज़मीन पर पटक दिया। बात की बात में वहाँ एक बड़ी, हरी भरी क्यारी दिखाई देने लगी जिसमें एक औरत और एक आदमी आलू और गाजर खोद रहे थे। सैनिकों ने उनसे पूछा, “क्या तुमने इधर से एक नए ब्याहे जोड़े को जाते देखा है?”
इस पर वह औरत बोली, “आलू दो रुपए सेर है और गाजर, तीन रुपये सेर!”
सैनिकों ने अपनी बात दोहराई। लेकिन वे दोनों आपस में आलू-गाजर के दाम की चर्चा ही करते रहे। सैनिक चिढ़कर वापस चले गए। राजा से उन्होंने निवेदन किया “हम बस दस क़दम की दूरी पर ही थे कि अचानक बीच में एक आलू गाजर का खेत आ गया, वहाँ जो किसान थे वह हमारी बात समझ ही नहीं पाए तब तक शायद घुड़सवार दूर निकल गए होंगे,” सैनिकों ने राजा को बताया ।
“उन्हें ही पकड़ लेना चाहिए था, वह मेरी बेटी और उसका दूल्हा ही थे!”
सैनिक उल्टे पाँव वापस भेज दिए गए, घोड़े जान की बाज़ी लगाकर दौड़े। अब पकड़ा तब पकड़ा ही था कि सूर्य नगर के राजा की बेटी ने अपने जुड़े का एक पिन फिर ज़मीन पर फेंक दिया और राह में एक मंदिर बन गया जहाँ एक पुजारिन आरती कर रही थी और पुजारी घंटी बज रहा था। यहाँ भी राजा के सैनिकों ने राजा की बेटी और उसके दूल्हे के बारे में पूछताछ की। उत्तर मिला, “अभी तो आरती हो रही है, उसके बाद भजन होंगे फिर भोग लगेगा तुम लोग भी बैठ जाओ प्रसाद सबको मिलेगा!”
लेकिन सैनिक अब तक निराश हो गए थे वे मुँह लटका कर राजा के पास लौट आए और सारा हाल बता दिया।
“तुम्हें उन्हें पकड़ लेना चाहिए था वही तो वह नया जोड़ा थे!” राजा चिल्लाया।
“हम पूजा करते लोगों को कैसे पकड़ लेते?” सैनिकों का उत्तर था।
अब सूर्य नगर के राजा ने भी कोशिश छोड़ दी थी, वह निराशा, हताश उदास हो कर महल के भीतर चला गया।
और पाँसों का चतुर खिलाड़ी एक बार फिर दाँव जीत गया था।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- अनूदित लोक कथा
-
- तेरह लुटेरे
- अधड़ा
- अनोखा हरा पाखी
- अभागी रानी का बदला
- अमरबेल के फूल
- अमरलोक
- ओछा राजा
- कप्तान और सेनाध्यक्ष
- काठ की कुसुम कुमारी
- कुबड़ा मोची टेबैगनीनो
- कुबड़ी टेढ़ी लंगड़ी
- केकड़ा राजकुमार
- क्वां क्वां को! पीठ से चिपको
- गंध-बूटी
- गिरिकोकोला
- गुनी गिटकू और चंट-चुड़ैल
- गुमशुदा ताज
- गोपाल गड़रिया
- ग्यारह बैल एक मेमना
- ग्वालिन-राजकुमारी
- चतुर और चालाक
- चतुर चंपाकली
- चतुर फुरगुद्दी
- चतुर राजकुमारी
- चलनी में पानी
- छुटकी का भाग्य
- जग में सबसे बड़ा रुपैया
- ज़िद के आगे भगवान भी हारे
- जादू की अँगूठी
- जूँ की खाल
- जैतून
- जो पहले ग़ुस्साया उसने अपना दाँव गँवाया
- तीन कुँवारियाँ
- तीन छतों वाला जहाज़
- तीन महल
- दर्दीली बाँसुरी
- दूध सी चिट्टी-लहू सी लाल
- दैत्य का बाल
- दो कुबड़े
- नाशपाती वाली लड़की
- निडर ननकू
- नेक दिल
- पंडुक सुन्दरी
- परम सुंदरी—रूपिता
- पाँसों का खिलाड़ी
- पिद्दी की करामात
- प्यारा हरियल
- प्रेत का पायजामा
- फनगन की ज्योतिष विद्या
- बहिश्त के अंगूर
- भाग्य चक्र
- भोले की तक़दीर
- महाबली बलवंत
- मूर्ख मैकू
- मूस और घूस
- मेंढकी दुलहनिया
- मोरों का राजा
- मौन व्रत
- राजकुमार-नीलकंठ
- राजा और गौरैया
- रुपहली नाक
- लम्बी दुम वाला चूहा
- लालच अंजीर का
- लालच बतरस का
- लालची लल्ली
- लूला डाकू
- वराह कुमार
- विनीता और दैत्य
- शाप मुक्ति
- शापित
- संत की सलाह
- सात सिर वाला राक्षस
- सुनहरी गेंद
- सुप्त सम्राज्ञी
- सूर्य कुमारी
- सेवक सत्यदेव
- सेवार का सेहरा
- स्वर्ग की सैर
- स्वर्णनगरी
- ज़मींदार की दाढ़ी
- ज़िद्दी घरवाली और जानवरों की बोली
- कविता
-
- अँजुरी का सूरज
- अटल आकाश
- अमर प्यास –मर्त्य-मानव
- एक जादुई शै
- एक मरणासन्न पादप की पीर
- एक सँकरा पुल
- करोना काल का साइड इफ़ेक्ट
- कहानी और मैं
- काव्य धारा
- क्या होता?
- गुज़रते पल-छिन
- जीवन की बाधाएँ
- झीलें—दो बिम्ब
- तट और तरंगें
- दरवाज़े पर लगी फूल की बेल
- दशहरे का मेला
- दीपावली की सफ़ाई
- पंचवटी के वन में हेमंत
- पशुता और मनुष्यता
- पारिजात की प्रतीक्षा
- पुरुष से प्रश्न
- बेला के फूल
- भाषा और भाव
- भोर . . .
- भोर का चाँद
- भ्रमर और गुलाब का पौधा
- मंद का आनन्द
- माँ की इतरदानी
- मेरी दृष्टि—सिलिकॉन घाटी
- मेरी माँ
- मेरी माँ की होली
- मेरी रचनात्मकता
- मेरे शब्द और मैं
- मैं धरा दारुका वन की
- मैं नारी हूँ
- ये तिरंगे मधुमालती के फूल
- ये मेरी चूड़ियाँ
- ये वन
- राधा की प्रार्थना
- वन में वास करत रघुराई
- वर्षा ऋतु में विरहिणी राधा
- विदाई की बेला
- व्हाट्सएप?
- शरद पूर्णिमा तब और अब
- श्री राम का गंगा दर्शन
- सदाबहार के फूल
- सागर के तट पर
- सावधान-एक मिलन
- सावन में शिव भक्तों को समर्पित
- सूरज का नेह
- सूरज की चिंता
- सूरज—तब और अब
- सांस्कृतिक कथा
- आप-बीती
- सांस्कृतिक आलेख
- यात्रा-संस्मरण
- ललित निबन्ध
- काम की बात
- यात्रा वृत्तांत
- स्मृति लेख
- लोक कथा
- लघुकथा
- कविता-ताँका
- सामाजिक आलेख
- ऐतिहासिक
- विडियो
-
- ऑडियो
-