शाप मुक्ति
सरोजिनी पाण्डेयमूल कहानी: इल पलाज़ो डेल'ओमो मार्टिस; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (डेड मैन’स पैलेस); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय
प्रिय पाठक, आपमें से अधिकांश भारत के एक पारंपरिक, लोकप्रिय और बहुचर्चित पर्व, करवाचौथ/कर्क चतुर्थी से अवश्य परिचित होंगे, विशेष रूप से महिला वर्ग! आज जो इतालवी लोककथा मैं आपके लिए अनुवाद करके लाई हूँँ, उसमें और भारत में करवा चौथ के अवसर पर सुनाई जाने वाली कथा में कितना साम्य है आप उस पर ध्यान दीजिएगा। यह समानता या तो, देश-काल से परे, मानव मस्तिष्क की कल्पनाशीलता की सार्वभौमिकता सिद्ध करती है या फिर लोक कथाओं का पृथ्वी पर निर्बाध संचरण अथवा दोनों ही। यदि आप इस बारे में अपने विचार टिप्पणी में लिखेंगे तो मुझे अतिशय आनंद होगा एवं हम सब का ज्ञानवर्धन भी!
एक बार की बात है एक राजा था, जिसकी एक बेटी थी। एक दिन जब राजपुत्री अपनी दासी के साथ छज्जे पर घूम रही थी, “उसी समय नीचे की राह पर एक वृद्धा जा रही थी। वृद्धा ने ऊपर नज़र उठाई और राजकुमारी को छज्जे पर टहलते देख आवाज़ लगाई, मुझ ग़रीब पर दया करो राजकुमारी, मुझे कुछ दे दो!”
“क्यों नहीं अम्मा, यह लो,” ऐसा कहते हुए राजकुमारी ने सिक्कों से भरी एक थैली उसकी ओर गिरा दी।
” प्यारी बेटी, यह तो बहुत कम है। कुछ और दे दो ना!”
“यह लो एक और थैली!” कहते हुए राज पुत्री ने सिक्कों से भरी दूसरी थैली भी उसे दे दी। पर उस बुढ़िया का लालच तो देखो, वह इतने से भी ख़ुश नहीं हुई, “थोड़ी दया और करो, राजकुमारी!”
यह सुनकर अब राजकुमारी को क्रोध आ गया, “तुम बेहद लालची और गंवार हो, दो थैली भर धन पाकर भी तुम्हारा पेट नहीं भरा? अब तो तुम्हें दमड़ी भी नहीं मिलेगी!”
इस बात से तो बुढ़िया को भी क्रोध आ गया। वह राजकुमारी की आँखों में आँखें डाल कर बोली, “अगर ऐसा है तो मैं भी तुम्हें श्राप देती हूँ कि जब तक तुम्हारी शादी 'मृत राजा' से नहीं होती तुम्हें सुख नहीं मिलेगा!”
वृद्धा की बात सुनकर राजकुमारी बेचैन हो गई और आँखों में आँसू भरे नीचे उतर आई। राजा को जब बेटी की दशा का पता चला तो उन्होंने उसको समझाया, “बुढ़ियों की बात पर ध्यान नहीं देते बेटी! उम्र सबको ख़ब्ती बना देती है!”
“पिताजी मुझे नहीं मालूम कि मेरे भाग्य में क्या लिखा है!” राजकुमारी ने सिसकते हुए कहा, “लेकिन मैं 'मृत राजा' की खोज में ज़रूर जाना चाहती हूँँ।”
“जैसा तुम चाहो बिटिया, मैं मान लूँगा कि मेरी पुत्री कहीं खो गई,” कहते हुए राजा स्वयं भी फूट-फूटकर रो पड़ा।
राजकुमारी तो मानो पत्थर हो गई थी पिता के आँसुओं की परवाह किए बिना वह 'मृत राजा' की खोज में निकल पड़ी।
कई दिनों तक, भूखे-प्यासे, लगातार चलने के बाद वह संगमरमर के एक महल के सामने जा पहुँची, द्वार खुला था और सारे कमरे रोशनी से जगमग आ रहे थे। “कोई है? कोई है?” की आवाज़ में लगाते हुए राजकुमारी भीतर चली गई। कहीं से कोई आवाज़ नहीं आई। वह रसोई घर में चली गई जहाँ चूल्हे पर एक पतीली में खिचड़ी पक रही थी। उसने अलमारियाँ खोलीं, सब में राशन भरपूर था। राजकुमारी ने मन ही मन सोचा कि अब मैं यहाँ आ गई हूँ तो कुछ समय रह भी जाऊँ। कई दिनों की यात्रा की थकान और भूख से वह पीड़ित थी, तो खाना बनाकर खाया। अब वह बिस्तर की तलाश करने लगी। उसने एक कमरे का दरवाज़ा खोला, सामने आरामदायक बिछौना बिछा था, “अब कल जो होगा कल ही देखा जाएगा,” ऐसा सोचकर वह आराम से पलंग पर चढ़कर सो गई।
अगली सुबह उठकर वह फिर से संगमरमर महल में घूमने लगी। उसने सभी कक्ष खोल-खोल कर देखें। सभी एक से एक बढ़कर सजे थे।
आख़िरकार वह एक ऐसे कमरे में पहुँची जहाँ एक युवक का मृत-शरीर रखा था। उसके पैरों के पास एक पत्र भी रखा था जिस पर लिखा था:
पंद्रह महीने सात दिन,
जो करेगी मेरी निगरानी,
ब्याह करूँगा मैं उससे
वह बनेगी मेरी पटरानी।
“वह मुझे वह मिल ही गया जिसकी मुझे तलाश थी,” लड़की ने सोचा, “अब मुझे हर पल इस की चौकसी करनी है!!”
वह केवल बेहद ज़रूरी काम और भोजन के लिए शव के पास से हटती वरना वह वही बैठी रहती।
एकांत में रह कर उस शव की देखभाल करते करते एक वर्ष बीत गया। एक दिन उसने गली से एक आवाज़ सुनी, “दास-दासियाँ ख़रीद लो, नौकर-नौकरानियाँ मोल ले लो”।
“क्यों न मैं एक दासी ख़रीद लूँ,” युवती ने सोचा, “चलो एक दासी मोल ले ही लेती हूँँ, मुझे एक मुँह-बोलारी मिल जाएगी, कभी-कभार मैं झपकी भी ले लिया करूँगी, कितनी तो थक गई हूँ मैं?” युवती ने खिड़की से आवाज़ लगाकर विक्रेता को बुलाया और एक दासी ख़रीद ली।
अब वह उसको हमेशा अपने पास रखती। धीरे-धीरे तीन महीने का समय और बीत गया। एक दिन जब थकान के कारण राजकुमारी अधमरी-सी हो रही थी, तब उसने दासी से कहा, “मैं थोड़ा आराम करना चाहती हूँ, अगर मैं सो जाऊँ तो भी तुम मुझे तीन दिन से ज़्यादा मत सोने देना। चौथे दिन मुझे ज़रूर उठा देना। भूलना क़तई नहीं। हाँ! चौथे दिन!!!”
“मैं बिल्कुल नहीं भूलूँगी, आप आराम करिए,” दासी ने उत्तर दिया। राजकुमारी तो थकी थी ही, सो पड़ते ही सो गई। दासी दिन-रात शव की निगरानी करने लगी। तीन दिन बीत गए और चौथा दिन भी! राजकुमारी सोती रही-सोती रही। दासी अपने आप से बुदबुदाती रही, “सोती है तो सोए, क्या मैं उसे उठाऊँगी? बिल्कुल नहीं-बिल्कुल नहीं।”
धीरे-धीरे शापित राजा के शाप की अवधि पूरी हो गई और उसकी आँखें खुलने लगीं। जब उसकी आँखें पूरी खुलीं और उस शापित युवक ने दासी को अपने पास पाया तो उछल पड़ा। उसे अपनी बाँहों में भरकर चिल्लाया, “तुम मेरी पटरानी हो, तुम्हीं मेरी महारानी हो!”
उसकी आवाज़ सुनते ही मानो सारे महल में प्राण आ गए। नौकर-नौकरानी, रसोईया, माली, घोड़ा-रथ, साईस-सारथी और न जाने कौन-कौन! सभी का कोलाहल सुनाई पड़ने लगा/पूरा माहौल जीवंत हो गया। जब यह कोलाहल, नींद में बेसुध राजकुमारी के कानों में पड़ा तो उसकी नींद भी खुल गई। उसे समझ में आ गया कि वह पूरे सप्ताह सोती रह गई है।
“मैं छली गई! मेरे साथ धोखा हुआ!” राजकुमारी बिलख उठी, “उस दुष्टा ने मुझे नहीं जगाया और अब मेरा भाग्य भी सो गया! न जाने कौन-सी मनहूस घड़ी मैंने उसे ख़रीद लिया था!”
पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत! वह शव युवक राजा का ही था जो किसी के शाप के कारण निश्चित अवधि के लिए मृत हो गया था। उस राजा ने क्रीतदासी से पूछा, “मेरे शाप की अवधि में क्या तुमने ही मेरी सेवा और देखभाल की थी?”
“वैसे तो मैंने एक सेविका भी बुलाई थी पर वह मेरे किसी काम नहीं आई। वह अपने कमरे में बस सोई पड़ी रहती थी।”
“इस समय वह कहाँ है?” मृत से जीवित हुए युवक ने पूछा।
“हमेशा की तरह अपने कमरे में सोई पड़ी होगी!”
अब राजा ने उससे विवाह कर लिया जैसा कि पहले से तय था। लेकिन दासी चाहे जितना भी सिंगार-पटार कर ले, उस पर रूप नहीं चढ़ता था। हीरे के गहने पहनकर भी रानी जैसी रोबीली वह लगती ही नहीं थी, राजा कुछ खिन्न रहने लगा!
शादी का उत्सव एक सप्ताह तक चला, अंत में राजा ने सबको मिठाई के डिब्बे बाँटे। राजा ने रानी से कहा कि मिठाई का डब्बा वह उसकी नौकरानी को भी अपने हाथों से ही देना चाहते हैं। परन्तु दुलहन बनी नौकरानी ने यह कह कर साफ़ इनकार कर दिया कि उस नाकारा, कुंभकरण की नींद वाली, नौकरानी के पास वह नहीं जाएगी, जिसे सोने के सिवाय और कोई काम ही नहीं है। परन्तु सच्चाई यह थी कि बेचारी राजकुमारी अपने कमरे में, अपने भाग्य पर रोती-बिलखती दिन काट रही थी! उसका कलेजा यह सोच-सोच कर फटता रहता था कि अपनी नींद के कारण उसने अपने भाग्य को सुला दिया था।
शादी के उत्सव के बाद राजा ने अपना राज-काज सँभाला। उसे अपनी सम्पत्ति की देखभाल करने के लिए पूरे राज्य का दौरा करना था। जब राजा निरीक्षण करने के लिए जाता तो लौटने पर महल के सभी कर्मचारियों के लिए कोई न कोई उपहार लेकर आता था, ऐसी उस राज्य की परंपरा थी। इस बार भी राजा ने भ्रमण पर जाने से पहले महल के सभी कर्मचारियों से उनकी इच्छा पूछी, किसी ने टोपी माँगी, किसी ने रुमाल, किसी ने लहँगा-दुपट्टा किसी ने धोती-साड़ी। राजा जी सब की फ़रमाइश एक काग़ज़ पर लिख रहे थे कि कोई चीज़ भूल न जाएँ। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, “तुम अपनी दासी को भी बुला लो और उसकी मर्ज़ी पूछ लो कि उसे क्या चाहिए? आख़िर है तो वह इसी महल की दासी!”
दासी बना दी गई राजकुमारी दासी के रूप में भी इतनी सुंदर, शांत और शालीन लग रही थी कि जब वह राजा जी के पास आई तो वे उसे मंत्रमुग्ध हो देखते ही रह गए। फिर सँभल कर उससे पूछा, “तुम भी बता दो कि तुमको क्या चाहिए, मैं सबको उपहार देना चाहता हूँँ।”
युवती ने एक गहरी साँस लेकर कहा, “यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो मेरे लिए एक माचिस की डिबिया, एक मोमबत्ती और एक चाकू लेते आइएगा।”
उस युवती की माँगें सुनकर राजा हैरान हो गए, उन्होंने उसे विश्वास दिलाया कि उसकी इच्छा ज़रूर पूरी की जाएगी।
राजा जी चले गए और अपने राज्य का काम-धाम देखने के बाद सारे उपहार भी ख़रीदे। सारा सामान पोत पर लादा दिया गया।
जब पोत को चलाने की बात आई, लंगर उठा तो उसमें गति न हुई, जहाज़ न तो आगे खिसका न पीछे! नाविकों ने राजा से गुहार लगाई, “स्वामी कहीं ऐसा तो नहीं कि आप कुछ भूल गए हो!” पहले तो राजा को लगा कि कोई चीज़ भूले नहीं है, लेकिन जब उन्होंने अपनी सूची देखी तो पता लगा कि रानी की दासी का उपहार तो भूल ही गए हैं! वह तुरंत ही फिर से बाज़ार गए और एक सौदागर के यहाँ जाकर उन तीनों चीज़ों को माँगा।
राजा ने बताया, “ये चीज़ें मेरी एक सेविका के लिए हैं!”
“ज़रा ध्यान से सुनिए,” व्यापारी ने कहा, “जब आप घर पहुँचें तो ये चीज़ें उसको उसी दिन मत दीजिएगा। उसे तीन दिन इंतज़ार करने दीजिए और जब आप उसे यह सब देने जाएँ तो उसके कमरे में पहुँचकर उससे कहिएगा कि आप प्यासे हैं और पानी पीने के बाद उसे उसका उपहार देंगे। जब वह पानी लेने जाए तो आप तीनों चीज़ें उसकी मेज़ पर रख कर छुप जाइएगा। और ऐसी जगह रहिएगा जहाँ से आपको वह मेज़ दिखलाई पड़ती रहे!”
“मैं ऐसा ही करूँगा,” राजा ने कहा।
जब राजा महल वापस पहुँचे तो सारे नौकर चाकर उनसे मिलने आए। राजा साहब ने सबको उनके उपहार दे दिए, सब ख़ुश हो कर चले गए। सबसे बाद में रानी की दासी भी आई। उसने अपने उपहारों के बारे में पूछा, राजा ने कहा, “घबराओ मत, तुम्हारी चीज़ें भी मैं ले आया हूँँ। अभी बहुत थका हूँँ, बाद में दे दूँगा।” बेचारी अपने कमरे में आकर गुपचुप रोती रही। राजा ने उसे अब भी कुछ नहीं दिया था। तीसरे दिन युवती के द्वार पर खटखटाहट हुई और राजा उसके सामने आकर खड़े हो गए, बोले, “मैं तुम्हारी मँगवाई चीज़ें लेकर आया हूँँ, पर सबसे पहले तुम मुझे एक गिलास पानी पिला दो।” बेचारी चुपचाप पानी लेने चली गई। इधर राजा ने वे तीनों चीज़ें उसकी मेज़ पर सजा दीं और स्वयं पलंग के नीचे छुप गए। राजकुमारी जब कमरे में लौटी तो राजा को कमरे में न देख कर उसने मन में सोचा कि मेरी चीज़ों को लेकर आए नहीं इसीलिए चले गए।
जब वह पानी का गिलास मेज़ पर रखने लगी तब उसकी निगाह उन वस्तुओं पर पड़ी जो उसने मँगवाई थीं। अब उसने जल्दी से दरवाज़ा बंद कर लिया, अपने कपड़े उतारे, माचिस से मोमबत्ती जलाई, चाकू उठाया और मोमबत्ती के पास ही मेज़ में गाड़ दिया। चाकू गाड़ते हुए बोलती भी रही, “क्या तुम्हें मेरे पिताजी का महल याद है? जब एक भिखारिन बुढ़िया ने मुझसे कहा था कि मुझे ख़ुशी तभी मिल सकेगी जब मैं 'मृत-राजा' से शादी कर लूँगी।”
चाकू बोला, “हाँ बिल्कुल याद है!”
“और तुम्हें यह भी याद होगा कि कैसे दुनिया भर में भटक कर मैं इस महल तक आई, जहाँ 'मृत-राजा' था!”
“बहुत अच्छी तरह याद है,” चाकू का जवाब था।
“तुम्हें यह भी याद होगा कि मैंने एक साल तीन महीने उस ’मृत राजा' के शव की रखवाली की और उसके बाद मैंने केवल मन बहलाने के लिए दूसरी दासी को ख़रीदा था। जिसे मैंने तीन दिन की नींद के बाद जगाने को कहा था, मैं कितना थकी हुई थी! और उसने मुझे सात दिन तक नहीं जगाया और उस 'मृत-राजा' ने जागने पर उसे गले लगा कर, उससे ही विवाह कर लिया।”
चाकू से आवाज़ आई “बस अब चुप रहो! . . . वह सब याद करके मेरा कलेजा फटता है!”
“बोलो तो ज़रा कि इनाम किसे मिलना चाहिए था? जिसने पंद्रह महीने सेवा की या जिसने सात दिन?”
“बेशक तुम को ही, राजकुमारी।”
“तुम सब जानते हो और तुम सब मानते भी हो, तो मेरे दुखों का अंत करो आओ और सीधे मेरे सीने में गड़ो!”
जब राजा ने मेज़ में गड़े चाकू के हत्थे को हिलते-डुलाते देखा तो पलंग के नीचे से निकल आया और राजकुमारी को अपने अंक में भर लिया।
“मैंने सब कुछ सुना है, तुम ही मेरी पत्नी बनोगी लेकिन तुम तब तक अपने कमरे में ही रहो जब तक मैं सब कुछ ठीक न कर लूँँ!”
राजा अब अपनी उस समय की पत्नी के पास गया और यह इच्छा प्रकट की कि राज्य भ्रमण से सही सलामत लौटने के उपलक्ष्य में वह एक दावत करना चाहता है। रानी ने उसके इस विचार का स्वागत नहीं किया। उसका कहना था, “यह तो फ़ुज़ूलख़र्ची है!” परन्तु राजा ने परंपरा का हवाला देकर फिर से उत्सव की तैयारी करवा ली!
राजधानी के सभी गण्यमान्य लोग दावत में आए। रानी की दासी जब वहाँ नहीं दिखाई दी तो राजा ने रानी से पूछा, “तुम्हारी दासी यहाँ दिखाई नहीं पड़ रही है, उसे भी बुलाओ।”
रानी ने कहा, “आप उस दासी को भूल क्यों नहीं जाते?”
“अगर तुमने उसे नहीं बुलाया तो मैं ख़ुद जाऊँगा उसे लाने के लिए।“
आख़िर दासी सभा में आई आँखों में आँसू भरे हुए।
जब भोजन समाप्त हो गया तब राजा ने अपने राज्य-भ्रमण की कहानी सुनानी शुरू की, “इस बार मैं पड़ोस के एक ऐसे राज्य में भी गया, जहाँ का राजा मेरी ही तरह शाप ग्रस्त होकर मरा पड़ा था। एक युवती ने उसकी मृतदेह की देखभाल सवा साल तक की। ऐसा करते हुए वह बहुत कमज़ोर और उदास हो गई। उसने बातचीत करने और अपना मन बहलाने के लिए एक नौकरानी रख ली। जब एक सप्ताह बच गया तो वह थकी-हारी युवती सो गई और नौकरानी ने उसे जगाया भी नहीं। शापमुक्त होने पर जब राजा जागा तो उसने दासी से ही शादी कर ली क्योंकि वही उसके सामने थी।
“मेरे प्यारे लोगो! अब आप बताइए कि राजा ने ग़लती तो नहीं की? रानी किसे बनना चाहिए था? जिसमें पंद्रह माह सेवा की या जिसमें केवल सात दिन?”
सारी जनता एक स्वर से बोली, “जिसने पंद्रह महीने सेवा की!!”
राजा ने अपनी बात आगे जारी रखी, “मेरे प्रजाजनों! आपके सामने यह दासी रानी के रूप में है जिसने मेरी सेवा एक सप्ताह की थी। जिस युवती ने मेरी रक्षा सवा साल तक की वह दासी के रूप में खड़ी है। धोखा देने की सज़ा किसे मिलने चाहिए?”
“धोखेबाज़, दुष्टा, नीच, दासी को!” भोज में उपस्थित सारे लोग एक साथ बोले।
राजा ने रानी बनी दासी का सिर मुँड़वा कर, उसे गधे पर बिठाकर राज्य से बाहर निकलवा दिया . . . दासी बनकर रह रही राजकुमारी से विवाह कर लिया।
इस तरह राजा और राजकुमारी शापमुक्त हो साथ-साथ, ख़ुशी-ख़ुशी कितने दिन जिए इस बात का पता तो मुझको तो है नहीं, यदि आपको मालूम पड़े तो बताइएगा मुझको भी।
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