चतुर राजकुमारी
सरोजिनी पाण्डेय
मूल कहानी: इल् फ़िग्लियो डेल् रे डी डेनिमार्का; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द किंग ऑफ़ डेनमार्क’स सन); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स;
हिन्दी में अनुवाद: ‘चतुर राजकुमारी’ सरोजिनी पाण्डेय
बहुत पुराने समय की बात है, एक राजा और रानी को कोई संतान न थी अनेक तीर्थों में भटकने, पूजा-पाठ करने, यज्ञ-हवन के बाद रानी ने एक बेटी को जन्म दिया। पुत्री का भविष्य जानने के लिए उन्होंने 12 ज्योर्तिविदों को बुलाया 11 ज्योतिषियों ने तो राज पुत्री को सोने की दूरबीन दीं। सबसे बूढ़े 12वें ज्योतिषी जी ने चाँदी की दूरबीन दी। सभी पंडितों ने उसे जी-भरकर आशीर्वाद दिया, किसी ने बुद्धि का, किसी ने ज्ञान का, किसी ने रूप का आशीर्वाद दिया। जब सबसे बूढ़े ज्योतिषी की बारी आई तो वह चुप रहा, चाँदी का उपहार देने के कारण उसका उपहास जो किया गया था। परन्तु राजा और रानी की बड़ी अनुनय-विनय के बाद वह बोला, “राजकुमारी को जितने भी आशीर्वाद दिए गए हैं, सब सच होंगे लेकिन राजकुमारी जिस पुरुष का नाम सबसे पहले सुनेगी उसी से प्रेम करने लगेगी!” यह सुनकर राजा की बुद्धि चकरा गई।
उन्होंने पूछा, “इससे कैसे बचा जा सकता है?”
ग्यारह पंडित बोले, “अपने महल के पास ही एक बड़ा महल बनवाइए। उसे सभी सुविधाओं से सुसज्जित कीजिए। राजकुमारी को दासियों और दाई के संरक्षण में उसी महल में रखिए। लेकिन उस महल में कोई खिड़की नहीं होनी चाहिए, छत पर केवल एक छोटा सा झरोखा बनवा दिया जाये।”
ऐसा ही किया गया।
राजा और रानी समय-समय पर राजकुमारी को देखने जाते थे और उसे धीरे-धीरे बढ़ता हुआ देखकर प्रसन्न होते थे। जैसा कि ज्योतिषियों ने कहा था राजकुमारी जैसे-जैसे बढ़ती जा रही थी वैसे-वैसे वह और सुंदर और बुद्धिमान होती जा रही थी। लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ी हो रही थी उसको यह बात अच्छी तरह समझ में आ रही थी कि जिस दुनिया में वह रह रही है, उससे अलग कोई दूसरी दुनिया अवश्य है; इसके साथ ही उसके मन में यह बात भी पक्की होती जा रही थी कि एक न एक दिन उसे इस बंधन से बाहर निकलना है। एक दिन जब नौकरानियों और दासियों की अदला-बदली हो रही थी, तब लड़की छत में बने झरोखे के नीचे जाकर खड़ी हो गई उसने आसपास के कुर्सी और मेज़ एक के ऊपर एक रखकर एक ऊँची मीनार बना ली और धीरे-धीरे वह झरोखे तक पहुँच गई। बाहर देखने पर उसे केवल आकाश दिखाई दिया, जिसमें सूरज चमक रहा था, बादल भी थे लेकिन उसे धरती नहीं दिखाई पड़ी। लेकिन नीचे से आई हुई आवाज़ से उसे ज़रूर सुनाई दे रही थी। महल के पास से उस समय दो मुसाफ़िर आपस में बातें करते हुए जा रहे थे।
एक ने पूछा, “राजा के महल के बग़ल में यह दूसरा महल कैसा है?
जवाब मिला, “तुमको नहीं मालूम? राजा अपनी बेटी को इसी महल में रखते हैं, क्योंकि ऐसी भविष्यवाणी है कि जिस भी पुरुष का नाम वह सबसे पहले सुनेगी उसी से प्रेम कर बैठेगी।”
पहले मुसाफ़िर ने फिर पूछा, “क्या वह बहुत सुन्दर भी है?”
“लोग सोचते तो यही हैं लेकिन उसे किसी ने देखा तो है नहीं।”
“हो सकता है वह बहुत सुंदर हो लेकिन उतनी सुंदर कभी भी नहीं हो सकती जितना दानापुर के राजा का बेटा है। क्या तुमको मालूम है कि दानापुर के राजा का बेटा इतना रूपवान है कि वह अपने चेहरे पर सात पर्दे लगाकर रखता है, और वह कहता है कि वह तब तक शादी नहीं करेगा जब तक उसे अपने जोड़ की लड़की नहीं मिलेगी।”
यह बातचीत सुनते ही राजा की बेटी पागल-सी हो गई और फ़र्श पर गिर पड़ी। सारी दासियाँ दौड़ती हुई इसके पास आयीं और उन्होंने देखा कि राजकुमारी ज़ार-ज़ार रो रही है और कहती जा रही है, “मुझे यहाँ से बाहर जाना है, मुझे यहाँ से निकलना है!”
“शांत हो जाओ,” उसकी दाई माँ ने कहा, “तब तक रुको, जब तक राजा तुमसे मिलने नहीं आते। उन्हीं से तुम यह बात करना।”
महीने का आख़िर होने पर उसके पिता हमेशा की तरह उससे मिलने आए। राजकुमारी ने रो-रो कर उनसे कहा कि उसे इस जेल खाने में क्यों बंद किया गया है? उसे बाहर निकलना है। इसपर अब राजा उसे अपने साथ अपने महल में ले गए और सबको यह ताकीद कर दी गई कि कोई कभी किसी पुरुष का नाम राजकुमारी के आगे नहीं लेगा! लेकिन राजकुमारी के दिमाग़ में तो “दानापुर का राजकुमार” बसा हुआ था, वह हमेशा चिड़चिड़ी रहती। पिता ने बहुत बार पूछा कि क्या बात है? वह इतनी उदास और चिड़चिड़ी क्यों है? वह जवाब देती, “कुछ भी नहीं, कुछ भी तो नहीं!”
लेकिन अंत में एक दिन वह अपने पिता के पास पहुँची और घुटनों पर बैठकर दानापुर के राजकुमार के बारे में बताया।
“पिताजी दानापुर के राजा के पास ख़बर भेजिए, क्या वहाँ का राजकुमार, विवाह कर के मुझे अपनी पत्नी बनाएगा?”
“उठो बेटी, शांत हो जाओ!” राजा ने आज्ञा दी, “मैं तुरंत उनके यहाँ अपने दूत भेजूँगा। मैं दानापुर के राजा से अधिक बड़े राज्य का स्वामी हूँ। वह मेरे प्रस्ताव को कभी नहीं ठुकराएँगे“
दूत दानापुर के राजा के दरबार में पहुँचे। राजा ने अपने बेटे को बुलवाया वह अपने चेहरे पर सात पर्दे लगाए हुए दरबार में आया। राजा ने उसे बताया कि उसके विवाह का प्रस्ताव आया है यह सुनकर राजकुमार ने अपने चेहरे से पहला पर्दा उठाया और दूत से पूछा, “क्या वह मेरी तरह रूपवती है?”
दूत ने उत्तर दिया, “हाँ श्रीमान!”
अब राजकुमार ने दूसरा पर्दा उठाया, “क्या वह मेरी तरह रूपवती है?”
“जी हाँ, श्रीमान!”
इस प्रकार उसने सातों परदे एक-एक करके उठा दिए। सातवाँ पर्दा उठाने के बाद उसने फिर पूछा, “क्या वह मेरी तरह रूपवती है!”
अब दूत ने अपना सिर झुका कर कहा, “नहीं श्रीमान।”
“उससे जाकर कहो कि मैं उससे विवाह नहीं कर सकता!”
“लेकिन उन्होंने तो क़सम खायी है,” दूत ने विनम्रता से कहा, “कि वह आपके सिवा किसी और से शादी नहीं करेंगीं, बल्कि फाँसी पर लटक जाएँगी।”
यह सुनकर दानापुर के राजकुमार ने एक रस्सी उठाई और उसे दूत की ओर फेंकते हुए बोला, “यह रस्सी ले जाओ और उससे कहो कि वह फाँसी लगा ले!”
दूत बेचारा रस्सी लेकर वापस लौट आया।
राजा, राजकुमारी के पिता, क्रोध से जल उठे। लड़की बिलख कर रोने लगी और पिता ने क़सम ले ली कि वह दूत को फिर वहाँ भेजेंगे।
इस बार भी दानापुर के राजकुमार ने एक-एक करके साथ परदे उठाए और सातवाँ पर्दा उठाकर पूछा, “क्या वह मेरे जैसी ही सुंदर है?”
दूत ने फिर वही जवाब दिया, “नहीं श्रीमान!”
राजकुमार ने विवाह से इनकार कर दिया।
दूत काँपते हुए बोला, “हमारी राजकुमारी ने क़सम खाई है कि यदि आपसे विवाह न हुआ तो वह तलवार से अपना गला काट लेंगी!”
इस बार राजकुमार ने एक तलवार उसकी ओर फेंकी और कहा, “अपनी राजकुमारी से कह दो कि वह अपना गला काट ले!”
इस बार जब दूत लौटे तो राजकुमारी के पिता ने दानापुर राजा से युद्ध करने की बात कही। लड़की ने रो-गिड़गिड़ा कर पिता को युद्ध न करने के लिए राज़ी कर लिया!
कुछ महीनों बाद उसने फिर चिरौरी-विनती करके, पिता से कहकर दानापुर दूत भिजवाए, दानापुर के राजकुमार ने फिर उसी प्रकार प्रश्न किया। अंत में दूत में भी वही उत्तर दिया, “नहीं, श्रीमान! इस बार उन्होंने कहा है कि अगर आपने उन्हें ठुकरा दिया तो वह अपने को गोली मार लेंगी।”
“ठीक है, यह पिस्तौल ले जाओ और अपनी राजकुमारी को दे दो।”
दूत पिस्तौल लेकर लौट आए।
राजा फिर ग़ुस्से से लाल-पीला होकर छटपटाया और राजकुमारी फिर फूट-फूटकर रोई!
इस बार उसने पिता से कहा, “पिताजी मेरे लिए लोहे की पतली चादर का ताबूत बनवाइए और मुझे उसमें बंद करके समुद्र में फेंकवा दीजिए, मैं अब जीना नहीं चाहती। मुझे देखना है कि मेरा भाग्य मुझे कहाँ ले जाता है।”
पिता कै यह बात बिल्कुल मंज़ूर नहीं थी, लेकिन राजकुमारी अपनी ज़िद पर अड़ी रही।
अंत में उसका हठ पूरा किया गया। एक ताबूत में उसे राजसी वस्त्र पहनकर बंद कर दिया गया। सिर पर उसके मुकुट भी लगा दिया गया। उसके साथ रस्सी, चाकू और पिस्तौल भी रख दी गई, साथ में कुछ भोजन की सामग्री भी और वह समुद्र में तैरा दी गई।
कई दिनों तक बहते-बहते वह ताबूत तट पर जा लगा, जहाँ एक द्वीप पर एक रानी का महल दिखाई पड़ रहा था। सुबह के समय जब दासियों ने महल की खिड़कियाँ खोलीं तो उन्हें तट पर एक ताबूत की तरह की चीज़ दिखाई दी। उन्होंने रानी को सूचना पहुँचाई, “महारानी यदि आप खिड़की पर चलकर देखें तो आपको एक बहुत ख़ूबसूरत संदूक दिखाई देगा, जो समुद्र की लहरों से तट पर आ गया है!”
रानी ने तुरंत बक्सा या ताबूत महल के भीतर लाने का आदेश दिया। रानी के सामने उसे जब खोला गया तो उसमें से एक सुंदर नवयुवती बाहर निकली। रानी ने पूछा, “तुम समुद्र में, एक संदूक के अंदर बंद होकर क्यों तैर रही हो?”
तब लड़की ने सारी कहानी रानी को सुना दी।
रानी ने फिर कहा, “तुम चिंता ना करो, बिल्कुल भी चिंता ना करो दानापुर के राजा का बेटा मेरा भाई है। वह मुझसे मिलने के लिए और एक गिलास समुद्र का पानी पीने के लिए हर महीने यहाँ आता है। कुछ ही दिनों बाद उसके आने का समय होगा।”
और कुछ दिन के बाद सचमुच दानापुर के राजा का बेटा वहाँ आ पहुँचा।
अब दासी के स्थान पर उसके लिए समुद्र के पानी का भरा हुआ गिलास लेकर रानी ने इस नवयुवती को भेज दिया। जैसे ही दानापुर के राजकुमार की नज़र इस युवती पर पड़ी, वह उसे पसंद करने लगा और बोल पड़ा,
“ओह! यह सुंदरी है कौन?”
उसने अपनी बहन से पूछा, “यह ख़ूबसूरत लड़की कौन है?”
“मेरी एक दोस्त है,” बहन ने बताया।
“दीदी सुनो, अब मैं महीने में एक बार के बदले दो बार आया करूँगा!”
अगली बार वह दो सप्ताह बाद ही आ गया।
फिर इस नवयुवती ने उसे समुद्र-जल का गिलास दिया।
इस बार दानापुर का राजकुमार कहने लगा, “दीदी, अब मैं यहाँ हर सप्ताह आया करूँगा!”
अगले सप्ताह ही वह फिर आ पहुँचा। लेकिन इस बार दासी उसके लिए समुद्र का पानी लेकर आयी। राजकुमार ने पानी से पीने से इनकार कर दिया और पूछा, “क्या वह पहले वाली युवती यहाँ नहीं है?”
“है तो, परन्तु वह थोड़ी बीमार है!”
“ठीक है, मैं उसके कमरे में उससे मिलना चाहता हूँ!”
राजकुमारी कमरे में बिस्तर पर लेटी थी। उसके पास ही एक रस्सी का टुकड़ा, एक चाकू और एक पिस्तौल रखे थे। राजकुमार ने उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया और नवयुवती को ही देखता रह गया।
राजकुमारी ने प्रश्न किया, “राजकुमार अब बताइए कि इन तीन चीज़ों में से मैं अब कौन-सी चीज़ इस्तेमाल करूँ?”
राजकुमार की समझ में कुछ न आया! अब राजकुमारी ने बताना शुरू किया कि वह उसी राजा की बेटी है जिसके दूतों को तीन बार लौटा दिया गया था। राजकुमार बोला, “मुझे बहका दिया गया था। अगर मुझे पता लगता कि तुम इतनी सुंदर हो, तो मैं पहली बार में ही हाँ कह देता।”
उसकी यह बात सुनकर युवती तुरन्त बिस्तर छोड़कर उठ खड़ी हुई और पिता को पत्र लिखा, “मैं फ़लाँ दीप पर फ़लाँ रानी के महल में हूँ। यहाँ पर दानापुर के राजकुमार भी हैं, जो मुझसे शादी करना चाहते हैं।”
पिता राजा को जब बेटी को जब पत्र मिला तो उनकी बाँछें खिल गईं, बिना देर किए वह अपनी बेटी की शादी दानापुर के राजकुमार से करने के लिए दलबल लेकर निकल पड़े।
आगे क्या हुआ होगा यह आप लोग सोचते रहिए, क्योंकि कहानी ख़त्म तो, और भी पैसा हज़म!!
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अँजुरी का सूरज
- अटल आकाश
- अमर प्यास –मर्त्य-मानव
- एक जादुई शै
- एक मरणासन्न पादप की पीर
- एक सँकरा पुल
- करोना काल का साइड इफ़ेक्ट
- कहानी और मैं
- काव्य धारा
- क्या होता?
- गुज़रते पल-छिन
- जीवन की बाधाएँ
- झीलें—दो बिम्ब
- तट और तरंगें
- तुम्हारे साथ
- दरवाज़े पर लगी फूल की बेल
- दशहरे का मेला
- दीपावली की सफ़ाई
- पंचवटी के वन में हेमंत
- पशुता और मनुष्यता
- पारिजात की प्रतीक्षा
- पुराना दोस्त
- पुरुष से प्रश्न
- बेला के फूल
- भाषा और भाव
- भोर . . .
- भोर का चाँद
- भ्रमर और गुलाब का पौधा
- मंद का आनन्द
- माँ की इतरदानी
- मेरी दृष्टि—सिलिकॉन घाटी
- मेरी माँ
- मेरी माँ की होली
- मेरी रचनात्मकता
- मेरे शब्द और मैं
- मैं धरा दारुका वन की
- मैं नारी हूँ
- ये तिरंगे मधुमालती के फूल
- ये मेरी चूड़ियाँ
- ये वन
- राधा की प्रार्थना
- वन में वास करत रघुराई
- वर्षा ऋतु में विरहिणी राधा
- विदाई की बेला
- व्हाट्सएप?
- शरद पूर्णिमा तब और अब
- श्री राम का गंगा दर्शन
- सदाबहार के फूल
- सागर के तट पर
- सावधान-एक मिलन
- सावन में शिव भक्तों को समर्पित
- सूरज का नेह
- सूरज की चिंता
- सूरज—तब और अब
- अनूदित लोक कथा
-
- तेरह लुटेरे
- अधड़ा
- अनोखा हरा पाखी
- अभागी रानी का बदला
- अमरबेल के फूल
- अमरलोक
- ओछा राजा
- कप्तान और सेनाध्यक्ष
- काठ की कुसुम कुमारी
- कुबड़ा मोची टेबैगनीनो
- कुबड़ी टेढ़ी लंगड़ी
- केकड़ा राजकुमार
- क्वां क्वां को! पीठ से चिपको
- गंध-बूटी
- गिरिकोकोला
- गुनी गिटकू और चंट-चुड़ैल
- गुमशुदा ताज
- गोपाल गड़रिया
- ग्यारह बैल एक मेमना
- ग्वालिन-राजकुमारी
- चतुर और चालाक
- चतुर चंपाकली
- चतुर फुरगुद्दी
- चतुर राजकुमारी
- चलनी में पानी
- छुटकी का भाग्य
- जग में सबसे बड़ा रुपैया
- ज़िद के आगे भगवान भी हारे
- जादू की अँगूठी
- जूँ की खाल
- जैतून
- जो पहले ग़ुस्साया उसने अपना दाँव गँवाया
- तीन कुँवारियाँ
- तीन छतों वाला जहाज़
- तीन महल
- दर्दीली बाँसुरी
- दूध सी चिट्टी-लहू सी लाल
- दैत्य का बाल
- दो कुबड़े
- नाशपाती वाली लड़की
- निडर ननकू
- नेक दिल
- पंडुक सुन्दरी
- परम सुंदरी—रूपिता
- पाँसों का खिलाड़ी
- पिद्दी की करामात
- प्यारा हरियल
- प्रेत का पायजामा
- फनगन की ज्योतिष विद्या
- बहिश्त के अंगूर
- भाग्य चक्र
- भोले की तक़दीर
- महाबली बलवंत
- मूर्ख मैकू
- मूस और घूस
- मेंढकी दुलहनिया
- मोरों का राजा
- मौन व्रत
- राजकुमार-नीलकंठ
- राजा और गौरैया
- रुपहली नाक
- लम्बी दुम वाला चूहा
- लालच अंजीर का
- लालच बतरस का
- लालची लल्ली
- लूला डाकू
- वराह कुमार
- विनीता और दैत्य
- शाप मुक्ति
- शापित
- संत की सलाह
- सात सिर वाला राक्षस
- सुनहरी गेंद
- सुप्त सम्राज्ञी
- सूर्य कुमारी
- सेवक सत्यदेव
- सेवार का सेहरा
- स्वर्ग की सैर
- स्वर्णनगरी
- ज़मींदार की दाढ़ी
- ज़िद्दी घरवाली और जानवरों की बोली
- सांस्कृतिक कथा
- आप-बीती
- सांस्कृतिक आलेख
- यात्रा-संस्मरण
- ललित निबन्ध
- काम की बात
- यात्रा वृत्तांत
- स्मृति लेख
- लोक कथा
- लघुकथा
- कविता-ताँका
- सामाजिक आलेख
- ऐतिहासिक
- विडियो
-
- ऑडियो
-