चतुर और चालाक

01-08-2021

चतुर और चालाक

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

मूल कहानी: क्रैक एण्ड क्रुक; चयन एवं पुनर्कथन: इटलो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन; पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय

 

प्रिय पाठको, एक इतालवी लोककथा का अनुवाद प्रस्तुत कर रही हूँ, आज के परिप्रेक्ष्य अथवा परिचित कहानियों में इस तरह के प्रसंग याद करके इस कथा का आनन्द लें। 

कहीं किसी शहर में 'चतुर' नामक एक चोर था, जिसे कोई कभी पकड़ न सका था। चतुर की इच्छा थी कि उसी शहर में रहने वाले दूसरे शातिर चोर 'चालाक' से उसका परिचय हो जाए और दोनों साथ मिलकर बड़ी-बड़ी चोरियाँ करें। 

एक दिन जब चतुर एक सराय में एक अजनबी के साथ खाने की मेज़ पर खाना खा रहा था, तो उसने समय देखने के लिए अपनी कलाई पर नज़र दौड़ाई। उसकी घड़ी नदारद थी। उसने सोचा, बिना मुझे पता लगे मेरी घड़ी इस तरह केवल चालाक ही चुरा सकता है। हो न हो मेज़ की दूसरी तरफ़ चालाक ही बैठा है। अब उसने धीरे से उसका बटुआ उड़ा लिया। खाने के बाद, जब पैसे देने के लिए चालाक ने अपनी जेब में हाथ डाला तो बटुआ ग़ायब था। उसने अपने दूसरी तरफ़ बैठे आदमी से कहा,"ओहो! मैं पहचान गया, आप श्रीमान चतुर हैं।" 

"और आप चालाक हैं।"

"बिल्कुल ठीक है।"

"अब हम साथ-साथ काम करेंगे।" 

दोनों मिलकर शहर में राजा के ख़ज़ाने की तरफ़ चल दिए। ख़ज़ाना हर ओर से होशियार पहरेदारों से सुरक्षित था। दोनों ने मिलकर एक सुरंग खोदी और ख़ज़ाने से धन चुरा लिया। जब राजा को इस बात का पता चला तो उसे समझ में नहीं आया कि चोरों का पता कैसे लगाए! वह जेल-ख़ाने गया जहाँ 'जालसाज़' नामक चोर चोरी की सज़ा काट रहा था। राजा ने उससे कहा, "अगर तुम यह बता सको कि ख़ज़ाने के लुटेरे कौन थे, तो मैं तुम्हें आज़ाद कर दूँगा और ज़मींदार भी बना दूँगा।" 

जालसाज़ ने कहा, "यह काम चतुर या चालाक या फिर दोनों का मिला-जुला हो सकता है, क्योंकि वही दोनों इस समय शहर में सबसे शातिर चोर हैं। मैं आपको उन्हें पकड़ने का एक उपाय बताता हूँ। आप बाज़ार में मांस का दाम कई गुना बढ़वा दीजिए, ऐसी महँगाई में जो मांस ख़रीदने की हिम्मत करेगा, वह इन दोनों में से ही कोई होगा, जिसने ख़ज़ाना चुराया है।" 

राजा को बात समझ में आ गई। उन्होंने मांस का दाम हज़ार रुपए प्रति सेर करवा दिया। सारी जनता ने मांस ख़रीदना बंद कर दिया। आख़िरकार एक दिन राजा को ख़बर मिली कि एक कसाई के यहाँ एक साधू मांस ख़रीदने आया था। अब जालसाज़ ने राजा से कहा, "वह ज़रूर चतुर या चालाक था, जो रूप बदल कर आया होगा। अब मैं भिखारी बनकर घर-घर जाऊँगा और जो भी मुझे भिक्षा में मांस देगा मैं उस घर पर लाल निशान लगा कर आ जाऊँगा जिससे उन चोरों को पकड़ा जा सके।" 

लेकिन जब जालसाज़ लाल निशान लगा रहा था, तब चतुर ने उसे देख लिया। उसने शहर के सारे घरों पर लाल निशान लगा दिया जिससे यह पता ना चले कि चतुर और चालाक का घर कौन सा है।

अब जालसाज़ ने राजा से कहा, "मैंने आपको बताया था ना, कि चतुर और चालाक बहुत धूर्त है, पर मैं उनसे कम नहीं हूँ। आप ख़ज़ाने की सीढ़ियों के नीचे एक टब में उबलता हुआ कोलतार रखवा दीजिए। जो भी ख़ज़ाने में चोरी करने जाएगा कोलतार में फँस जाएगा और पकड़ा जाएगा।" राजा ने फिर जालसाज़ की बात मान ली।

इधर कुछ दिनों में जब चतुर और चालाक का पैसा ख़त्म हो गया, तो वे फिर चोरी करने के लिए ख़ज़ाने गए। आगे-आगे चालाक चला, घुप अँधेरा था और वह टब में गिर पड़ा। चतुर दौड़कर आया पर तब तक चालाक का पैर कोलतार में जम चुका था। चतुर घबरा गया और चालाक का सिर काट कर अपने साथ लेकर भाग गया। 

अगली सुबह राजा को सूचना मिली कि चोर पकड़ा गया है, पर यह क्या! सिर तो ग़ायब था पहचान तो हो नहीं सकी। आगे क्या करें?

अब फिर जालसाज़ ने सलाह दी, "एक काम कर सकते हैं, इस मरे आदमी को शहर की सड़कों पर घसीटते हुए ले जाएँ, जिस घर से रोने की आवाज़ें सुनाई देंगी वहीं इसका घर होगा।" ऐसा ही किया गया। 

जब चालाक की पत्नी ने खिड़की से झाँका तो अपने पति का शव सड़क पर घसीटते हुए देखा। वह ज़ोर-ज़ोर से रोने और चिल्लाने लगी, लेकिन चतुर वहीं मौजूद था उसे समझ में आ गया कि अब उनका अंत होने वाला है। उसने झटपट कुछ प्लेटें ताबड़तोड़ इधर-उधर उछाल दीं और साथ ही साथ बेचारी चालाक की पत्नी को पीटता भी जाता था। रोना-चिल्लाना सुनकर राजा के सैनिक घर में घुस आए और उन्होंने देखा कि एक आदमी अपनी पत्नी को प्लेटें तोड़ने के कारण पीट रहा है। वे चुपचाप चले गए। 

हार कर अब राजा ने मुनादी करवा दी कि 'यदि ख़ज़ाना लूटने वाला चोर अपने को प्रकट करके, मेरे बिस्तर से, मेरे नीचे की चादर चुरा लेगा तो मैं उसे क्षमा कर दूँगा'। 

चतुर चोर ने आत्मसमर्पण कर दिया, साथ ही राजा के बिस्तर की चादर चुराने की चुनौती भी स्वीकार कर ली। 

अब चतुर चोर एक क़ब्रगाह गया और क़ब्र खोदने वाले से एक शव खरीद लाया। उसे अपने कपड़े पहना कर अपने साथ ले, वह महल की छत पर जा बैठा। इधर राजा साहब ने कपड़े बदले और अपनी बंदूक साथ में लेकर सोने चले गए। आधी रात को चतुर चोर को जब लगा कि राजा सो गए हैं तो उसने एक रस्सी के सहारे शव को राजा के शयन कक्ष की खिड़की के सामने लटका दिया। राजा को लगा कि चोर आ गया है। उन्होंने तुरंत बंदूक दाग दी। रस्सी के साथ शव नीचे गिर पड़ा। जब तक राजा भागा-भागा नीचे चोर को देखने के लिए गया, तब तक चतुर चोर ने राजा के बिस्तर की चादर चुरा ली!

राजा अपने वचन से बँधा था, इसलिए उसने चोर को क्षमा कर दिया और आगे वह चोरी न करे इसलिए उसे ज़मींदार भी बना दिया। 

फिर! फिर क्या ! कहानी ख़तम पैसा हज़म!

आगे फिर कभी कोई नई कहानी . . . 

3 टिप्पणियाँ

  • 28 Jul, 2021 11:13 PM

    कुछ भी कहो कहानी ने अंत तक बांधे रखा । शायद पाठक वास्तविकता से ऊब गए हैं और इस प्रकार की काल्पनिक कहानियों में रमने लगे हैं । बहुत सुंदर । अनुवाद में भी आपने मूल के भाव को बनाए रखा । बधाई

  • सुंदर लोककथा और शानदार प्रस्तुति

  • बहुत खूब

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