सूम का धन शैतान खाए
सरोजिनी पाण्डेय
मूल कहानी: ला स्पोसा शे विवेवा डी वेन्टो; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो; अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द वाइफ़ हू लिव्ड ऑन विंड);
पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; हिन्दी में अनुवाद: ‘सूम का धन शैतान खाए’-सरोजिनी पाण्डेय
मदनगढ़ का राजा जितना धनवान था, उतना ही कंजूस (सूम), जिसे कहते हैं मक्खी-चूस कंजूस, जो दूध में गिरी मक्खी को भी चूस कर उस पर लगे दूध को पी डाले। कंजूसी की हद यह कि खाने में दोनों समय एक रोटी, दाल के रस के साथ खाता और एक गिलास ठंडा पानी पीकर डकार ले लेता। वह अपने लिए केवल एक ही नौकर रखता था। उसे भी केवल एक रोटी और एक प्याज़ रोज़ खाने को मिलती थी और एक धेला वेतन का। नतीजा यह होता कि कोई नौकर एक सप्ताह से अधिक राजा की नौकरी नहीं कर पाता था।
इस कंजूस धनवान की भनक एक चंट-चालाक ठग के कानों में पड़ी। वह इतना चालाक था कि तुम्हारी आँखों से काजल चुरा ले और तुम्हें पता भी न चले, नाम था उसका महँगू। इस महँगू ने आकर राजा की नौकरी कर ली। महल के बग़ल में ही एक लकड़ी की टाल थी। उस टाल वाले की एक सुंदर लड़की थी, जो ब्याह ने लायक़ थी, टाल वाला धनवान भी था। महँगू ने इस टाल वाले से दोस्ती गाँठ ली। एक दिन बातों ही बातों में महँगू ने टाल वाले से पूछा, “आपकी बेटी सयानी हो गई है, क्या आप इसकी शादी की बात नहीं सोचते?”
टाल मालिक ने कहा, “जब भगवान की इच्छा होगी वह मेरी बेटी के लिए वर मेरे पास भेज देंगे।”
“क्या आप एक राजा से उसकी शादी करना चाहेंगे?”
”राजा? क्या तुम इस पास वाले राजा की बात कर रहे हो? क्या तुम नहीं जानते वह कितना कंजूस है? किसी को एक कौड़ी देने से पहले वह अपना हाथ ही कटा लेगा।”
“मैं इस राजा से आपकी बेटी की शादी करवा दूँगा, बस आपको मेरी बातें माननी पड़ेंगी। आपको इतना करना है कि यह बात फैला दें कि आपकी बेटी हवा पीकर जीती है!”
अब महँगू राजा के पास लौट आया। एक दिन मौक़ा देखकर वह बोला, “हुजूर आपकी उम्र निकली जा रही है; आप शादी क्यों नहीं कर लेते? एक बार उम्र निकल गई तो हाथ कुछ नहीं आएगा, आपके बाद भी तो राज्य को राजा चाहिए।”
महँगू की यह बात सुनकर राजा बिफर उठा, “तो तुम यह कहना चाहते हो कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ? और जल्दी ही मर जाऊँगा! जानते भी हो कि शादी करके बीवी को ख़ुश रखने में ख़जाने ख़ाली हो जाते हैं। रोज़ नई फ़रमाइशें, कपड़े, गहने, गाड़ी, नौकर-चाकर। रोज़ के व्रत त्योहार! नहीं नहीं, महँगू, मुझे यह रोग नहीं पालना है।”
“तो क्या आपने लकड़ी के टाल वाले की बेटी के बारे में नहीं सुना है? वह जवान है, सुंदर है और सबसे बड़ी बात, वह अपने पिता की इकलौती संतान है और बाप की सारी सम्पत्ति उसी की है। अरे, उसका तो खाने तक का भी ख़र्चा नहीं है, वह बस हवा पीकर रहती है।”
“क्या ऐसा भी कभी हो सकता है? मुझे तो भरोसा नहीं होता।”
“वह दिन में तीन बार अपने हाथ में अपना पंखा पकड़ती है, उसे डुलाती है, पंखे की हवा से उसकी भूख भी चली जाती है, बस तीन गहरी साँसें और उसकी भूख चली जाती है, देखने में स्वस्थ इतनी मानो रोज़ दूध-मलाई ही खाती है।”
अब राजा ने कहा, “मैं उससे मिलना चाहता हूँ।”
महँगू जी ने सारा प्रबंध कर दिया। चक्कर ऐसा चलाया कि एक सप्ताह बीतते न बीतते लकड़ी वाले की बेटी रानी बन गई। रोज़ भोजन के समय वह राजा के पास बैठती, अपना पंखा डुलाती और राजा उसे मगन होकर देखता रह जाता। बाद में लकड़ी की दुकान वाला स्वादिष्ट भोजन खीर-पूरी चुपके-चुपके भेज देता। रानी और महँगू इस भोजन से भोग लगाते।
इसी तरह कुछ दिन बीत गए।
एक दिन लड़की के पिता ने कहा, “महँगू, इस तरह कैसे चलेगा? मैं कब तक ब्याही बेटी के घर खाना भिजवाता रहूँगा? अब राजा से कहो कि अपनी बीवी का ख़र्च उठाए।”
अब एक दिन महँगू ने रानी से कहा, “लड़की सुनो, अब तुम्हें क्या करना है!”
सबके सामने तो महँगू टाल वाले की बेटी को ‘रानी’ ही कहता था, लेकिन अकेले में उसे ‘लड़की’ या ‘प्यारी लड़की’ कहता। आगे उसने रानी को समझाया, “तुम राजा से ज़िद करो कि वह तुम्हें अपना ख़ज़ाना दिखाएँ, आख़िर तुम उनकी बीवी हो। तुम्हारा इतना तो हक़ बनता ही है। अगर वह कहता है कि तुम्हारे चप्पलों में फँस कर कुछ जवाहरात, अशरफ़ियाँ खो सकती हैं तो तुम नंगे पैरों जाने को तैयार हो जाना लेकिन ख़ज़ाना देखने की ज़िद ना छोड़ना।”
रानी ने अपने कंजूस पति से ख़ज़ाना देखने की ज़िद की। हर बार राजा का मुँह उतर जाता, पर रानी ने भी अपनी ज़िद नहीं छोड़ी। आख़िर में राजा उसे नंगे पैरों ख़जाने में ले जाने को तैयार हो गया। अब महँगू ने रानी से कहा कि वह अपने घाघरे की नीचे की किनारी में गोंद लगाकर ख़जाने में जाए। रानी ने वैसा ही किया। राजा रानी को लेकर चोर दरवाज़े के पास पहुँचा, फ़र्श पर से उसका ताला-पल्ला खोला। जब रानी सीढ़ियाँ उतर कर नीचे पहुँची तो ख़ज़ाने को देखकर उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं, चारों ओर सोने के सिक्कों के अंबार लगे थे। इतना बड़ा ख़ज़ाना देखकर रानी तो मानो पागल-सी हो गई! वह अपना घाघरा घुमा-घुमा कर ख़ुशी से नाचने लगी। जब वह नाचती तो हर बार उसके गोंद लगे, लहराते लहँगे में कुछ सिक्के चिपक जाते थे। जब रानी ख़जाने से बाहर निकली तब उसके लहँगे में चिपक कर बहुत सारे सिक्के आ गए थे। महँगू वे सारे सिक्के इकट्ठे किए और जाकर लकड़ी वाले को दे आया, जिससे वह आनेवाले दिनों में उसकी और अपनी बेटी की दावत का ख़र्च चलाता रहे। इस तरह महँगू और रानी बनी लकड़ी वाले की बेटी मज़े उड़ाते रहे और कंजूस राजा हवा पीकर ज़िन्दा रहने वाली रानी को पंखा डुलाते देखता रहा।
एक दिन की बात है, राजा और रानी सैर को गए। वहाँ राजा को अपना एक भतीजा मिला जो उन्हें बहुत दिनों से नहीं मिला था। भतीजे ने जब अपने चाचा के साथ चाची को देखा तो वह हैरान रह गया, “अरे वाह चाचा जी, आपने शादी कब कर ली? हमें तो इस ख़ुशी का पता ही नहीं चला!”
राजा भी बहुत ख़ुश हुआ और जोश में आकर भतीजे को अगले सप्ताह अपने घर शादी की दावत खाने का न्योता दे डाला!
राजा ने दावत तो दे दी लेकिन अब उसे अपने किए पर पछतावा होने लगा, “यह मैंने क्या कर दिया! अब मैंने दावत दे दी है तो भतीजे के साथ दो-चार और लोगों को भी बुलाना ही पड़ेगा। शादी की दावत है तो गोश्त भी बनवाना ही पड़ेगा। बाप रे बाप, कितना तो ख़र्च हो जाएगा!”
लेकिन अब क्या हो सकता था, तीर कमान से निकल चुका था।
तब एकाएक एक उसे ख़र्च बचाने का ख़्याल आया, “प्यारी रानी, तुम जानती हो कि बाज़ार में गोश्त कितना महँगा है, दावत के लिए वही सबसे महँगी चीज़ होगी। ऐसा करता हूँ कि गोश्त ख़रीदने के बदले मैं शिकार करने चला जाता हूँ, ख़रीदने का पैसा बच जाएगा। दो-तीन दिन में तो मैं इतना शिकार कर ही लूँगा कि दावत के लिए मांस की कमी न रहे और दमड़ी भी न ख़र्च हो।”
“यह तो बहुत अच्छा रहेगा,” रानी बोली, “आप जल्द ही चले जाएँ जिससे काम समय से पूरा हो जाए।”
जब राजा जंगल चले गए, तब रानीने संदेश भेजकर महँगू को बुला लिया। उसे एक विश्वासपात्र चाबी बनाने वाले के पास भेजा। चाबी बनाने वाले को ख़ज़ाने का चोर दरवाज़ा दिखाकर रानी ने कहा, “इस दरवाज़े की चाबी मुझसे कहीं खो गई है! राजा जी शिकार पर गए हैं। जल्दी इसकी चाबी बना दो, नहीं तो अनर्थ हो जाएगा।”
अब भला चाबी बनाने वाला रानी की बात कैसे टालता! उसने जल्दी ही ऐसी चाबी बना दी जो ताले में लग गई।
रानी ने ख़जाने का दरवाज़ा खोला और थैलियों में सिक्के भर कर बाहर ले आयी। इस धन से उसने पूरे महल में रेश्मी पर्दे लगवाए, पहरेदारों के लिए नई पोशाक सिलवाई। पूरे महल को राजसी ठाठ-बाट से सजा दिया। जब राजा शिकार करके लौटे तब इस सजे-सजाए, जगमगाते महल को देखकर पागल-से हो गए और अपना पुराना घर खोजने लगे, इधर-उधर चक्कर लगाने लगे, “मेरा घर कहाँ गया? यहीं तो हुआ करता था!” वह बेचारे इधर-उधर घूम कर देखने और पूछने लगे।
एक दरबान ने हिम्मत करके कहा, “आप क्या ढूँढ़ रहे हैं महाराज! भीतर क्यों नहीं जाते?”
“क्या यह मेरा ही महल है?”
“और नहीं तो किसका है स्वामी! भीतर चलिए।”
भीतर पहुँच कर राजा ने अपना माथा धुन लिया। हे भगवान! मेरी सारी जमा-पूँजी इस महल की सजावट में लुट गई!
“रानी, तुम कहाँ हो?”
वह सारा महल देख-देख कर चकरा रहा था, सुंदर फूल-दान, छत से लटकते, जगमगाते आतिशदान, रतन जड़े गुलदस्ते, “बीबी ओ बीवी! तुम कहाँ चली गईं!” पॉलिश किए हुए नए कुर्सी-मेज़-दीवान, दीवारों पर सोने के फ़्रेम में लगे आईने।
“हे राम! सारा पैसा बह गया! पाई-पाई ख़र्च हो गयी!”
वह अब और अधिक न सह सका! अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर निढाल हो लुढ़क गया। रानी भी वहीं थी। राजा ने उससे पूछा, “हे भगवान! ओ बीवी, ओ रानी! क्या मेरी एक-एक पाई चली गयी? बीवी, ओ रानी!!” बीवी रानी ने तुरंत एक वकील को बुला भेजा और चार गवाह भी बुला लिए! नोटरी ने आकर राजा का हाल देखा, फिर उससे पूछा, “राजा साहब, क्या बात है? क्या आपने मुझे अपनी वसीयत लिखने को बुलाया है?”
“एक-एक पाई, बीवी ओ, बीवी!!”
“महाराज, एक बार फिर से बोलिए, क्या आप अपना सब कुछ अपनी बीवी को देना चाहते हैं!”
“एक एक पाई, ए बीवी, रानी ऽ ऽ“
जब तक वकील राजा की पूरी वसीयत लिखता, राजा को एकाध हिचकी और आयी, फिर वह हमेशा के लिए चुप हो गया।
राजा की पत्नी ही उसकी अकेली वारिस थी। वह गहरे शोक में डूब गई।
शोक की अवधि पूरी होने के बाद उसने महँगू से शादी रचा ली।
सच ही कहा गया है,
“सूम का धन शैतान खाए”
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