राजा और गौरैया
सरोजिनी पाण्डेय
भोजपुरी लोक-कथा
एक थी गौरैया मनचली और शौक़ीन, रहती थी एक शहर में, देखती थी लोगों को रंग-बिरंगे, सुंदर कपड़े पहने हुए, उसका भी बहुत मन होता था कि वह भी मनुष्यों की तरह कपड़े पहने। एक दिन उसकी भेंट एक दूसरी गौरैया से हुई जो गाँव से आई थी। उसने इसे बताया कि खेतों में कपास पैदा होता है और वह कपास शहर में इसलिए ही भेजा जाता है कि उससे कपड़े बनें। फिर क्या था गौरैया उड़ते-उड़ते जा पहुँची पास के गाँव में। खेतों में, कपास के डोडे फूटने शुरू हो गए थे, सफ़ेद रूई डोडों के ऊपर लगी हुई थी। गौरैया ने कुछ रूई के फाहे चुन लिए और अपने घर लौट आई। अब उसे तो रूई से कपड़ा बनाकर अपने लिए पोशाक बनवानी थी। अन्य चिड़ियों के बताने से वह पहुँच गई कपास ओटने वाली के पास और उससे बोली कि उसकी रूई ओट दे। ओटने का अर्थ होता है, कपास में से बीज अलग करना, तो ओटनहारी ने पूछा कि तुम मुझे मज़दूरी में क्या दोगी? चिड़िया थोड़ी देर के लिए तो सोच में पड़ गई फिर बोली उठी:
“ओटनहरिया बहिनी ओट दे
आधा तैं ले आधा मैं!”
कपास ओटने वाली ने कपास में से बीज अलग करके रूई को साफ़-सुथरा कर दिया। आधी रूई अपने पास रख ली और आधी चिड़िया को लौटा दी और चिड़िया से बोली कि अब इसे लेकर सूत कातने वाली के जाए।
चिड़िया रूई लेकर दौड़ी-दौड़ी सूत कातने वाली के पास गई और रूई उसके सामने रख कर बोली:
“कतनहरिया बहिनी कात दे
आधा तैं ले, आधा मैं!”
सूत कातने वाली ने रूई का सूत बना दिया, आधा सूत मज़दूरी समझकर अपने पास रख लिया और आधा चिड़िया को दे दिया।
अब चिड़िया कता हुआ सूत लेकर पहुँची जुलाहे के पास और उससे बोली:
“जोलहवा भैइया बीन दे
आधा तैं ले आधा मैं!”
जुलाहे ने सूत को अपने करघे पर चढ़ाया और ठकाठक-ठकाठक सूत से कपड़ा बना दिया, आधा कपड़ा अपने पास रख लिया और आधा चिड़िया को दे दिया।
चिड़िया ने कहा, “तुमने तो यह बिल्कुल सफ़ेद कपड़ा बनाया है, मुझे तो अपने कुरते के लिए रंगीन कपड़ा चाहिए!”
जुलाहे ने कहा, “इसको लेकर रंगरेज़ के पास जाओ वह इन्हें मनचाहे रंग में रँग देगा।”
अब चिड़िया कपड़ा लेकर पहुँची रंगरेज़ के पास और वही शर्त दोहराई:
“रंगरेज़वा भैइया रंग दे
आधा तैं ले आधा मैं!”
रंगरेज़ ने आधा कपड़ा फाड़ कर अपने पास रख लिया और आधा चटक लाल रंग में रँग कर चिड़िया को दे दिया। कपड़ा लेकर चिड़िया गई दर्जी के पास और उससे कहा कि एक कुर्ता (झूली) और एक टोपी (कुली) उसके लिए सिल दे:
“दरजियवा भइया, सी दे
आधा तैं ले आधा मैं!”
दर्जी ने आधा कपड़ा मज़दूरी में लेकर चिड़िया के लिए एक छोटा सा कुर्ता (झूली) और एक छोटी सी टोपी (कुली) सिल दी, चिड़िया ने अपने कपड़े पहने और सीधे उड़ गई राजा के महल के पास, वहाँ एक डाल पर बैठकर ऊँचे स्वर में गाने लगी:
“रजवा के थोर धन, मोरे बहुत धन,
रजवा के थोर, धन मोरे बहुत धन”
जब कई बार चिड़िया यह गाना गा चुकी तो राजा के कानों में भी यह आवाज़ आई, उन्होंने अपने सिपाहियों को भेजा कि वे जाकर पता करें कि कौन यह शोर मचा रहा है।
सिपाहियों ने आसपास देखा तो उन्हें कुर्ता और टोपी पहन कर एक डाल पर बैठी चिड़िया दिखाई दे गई, जो ऊँचे स्वर में गा रही थी:
“रजवा के थोर धन, मोरे बहुत धन”
यह सूचना सिपाहियों ने तत्काल राजा को दी। राजा को कुछ क्रोध आया कि छोटी चिड़िया की ऐसी मजाल कि मुझे चुनौती दे रही है? उन्होंने सैनिकों से कहा, “जाओ चिड़िया का कुर्ता और टोपी छीन लो!”
सिपाहियों ने तत्काल राजा के आदेश का पालन किया। लेकिन चिड़िया तो मनचली और साथ ही साहसी भी थी। अब वह गाने लगी:
“रजवा कंगाल मोर झूली कुली लइगै,
रजवा कंगाल मोर झूली कुली लइगै!”
अब फिर राजा ने जब यह बात सुनी तो झुँझला उठे। उन्होंने सिपाहियों को आज्ञा दी कि जाकर चिड़िया का कुर्ता और टोपी उसे लौटा दें।
चिड़िया को अपने कपड़े वापस मिल गए तो उन्हें पहन कर फिर बैठ गई और अब और भी ज़ोर लगा कर, तेज़ स्वर में गाने लगी:
“रजवा डेरान मोर झूली कुली दइगै
रजवा डेरान मोर झूली कुली दइगै!”
राजा तो फिर राजा ठहरा, ऊँची नाक और शान-बान वाला, उसे इस बात पर भी क्रोध आ गया कि छोटी-सी चिड़िया उसे डरपोक कह रही है! उन्होंने हुक्म दिया कि चिड़िया को पकड़ लाया जाये और रसोइयों को दे दिया जाय कि वह चिड़िया को पका दें। राजा चिड़िया को खा जाना चाहता था।
चिड़िया पर घोर संकट आ गया। वह राजा के रसोई घर में पहुँचा दी गई। लेकिन उसने अभी साहस ना छोड़ा। जब उसके शरीर में रसोइए ने मसाला लगाना शुरू किया तो वह गाती रही:
“आज तो हमरे हरदी लागी,
आज त मोर बियाह होई!”
रसोइए को चिड़िया के साहस को देखकर उस पर दया आ गई। उसने ज़रा से तेल को हल्का गर्म कर चिड़िया के पंख में लगा भर दिया। चिड़िया बेहोश हो गई और रसोइया ने वैसी ही बेहोश चिड़िया राजा की थाली में परोस दी।
राजा तो ग़ुस्से से लाल-पीला हो ही रहा था। चिड़िया द्वारा किए गए अपमान के कारण वह व्याकुल था। उसने चिड़िया को बिना चबाए ही निगल लिया।
पेट में जाकर चिड़िया को होश आ गया और वह इधर-उधर पंख फड़फड़ाने लगी, चोंच से चोट मारने लगी। राजा बेचारा पेट की पीड़ा से व्याकुल हो उठा।
थोड़ी देर में राजा को हाजत महसूस हुई और ऐसा लगा मानो उसे पाखाना होगा। उसने शौचालय में एक सैनिक की तैनाती कर दी कि यदि चिड़िया पाखाने के साथ जीवित बाहर निकले तो उसे तुरंत तलवार से मार दिया जाए। सैनिक सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गया। राजा ने जैसे ज़ोर लगाया चिड़िया फड़फड़ा कर बाहर निकली और खिड़की से बाहर उड़ गई। इधर सैनिक ने तलवार चलाई और राजा को चूतड़ों पर गहरी चोट आई। चिड़िया ने पेड़ पर से जब यह नज़ारा देखा तो वह खिलखिला कर हँसने लगी और एक बार फिर गाने लगी,
“मूरख राजा रिसि में आए
रिसि के मारे चूतर कटाए!”
भोजपुरी की कहावत भी है, “रिसि खाए आपके बुद्धि खाय आन के,” –क्रोध से अपनी हानि होती है, दूसरे की हानि करने के लिए बुद्धि का प्रयोग करना पड़ता है।
“छोटी चिड़िया जीत गई राजा की बुद्धि नष्ट हुई” अगले अंक में फिर नई कहानी, तब तक के लिए विदा।
1 टिप्पणियाँ
-
राजा और गौरैया कहानी अलग हट कर है।चोटी सी चिड़िया मैं कितनी चतुराई की वह राजा पर भारी पड़ गईं। पढ़ते समय आगे क्या होगा उत्सुकता बनी रही। अच्छी कहानी।
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