जादू की अँगूठी 

01-09-2022

जादू की अँगूठी 

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 212, सितम्बर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

मूल कहानी: ल एनिलो मैजिको; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द मैजिक रिंग); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय

 

बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में एक लड़का रहता था। दिन भर बेचारा गाँव में किसी काम की तलाश में भटकता रहता, लेकिन उसकी कोई पूछ न होती थी। एक दिन वह अपनी माँ  से बोला, “माँ , मैं परदेस जाना चाहता हूँ। इस गाँव में मेरी कोई क़द्र नहीं है। परदेस जाकर कुछ कमाई करूँ तो तुम्हें भी थोड़ा सुख दे पाऊँगा।” ऐसा सोच कर वह घर छोड़कर चल पड़ा। चलते-चलते जब थक गया, तब एक जगह सुस्ताने बैठा, तो देखा कि एक दुब- पतली वृद्धा दो मटके पानी के लिए हुए, पहाड़ी पर हाँफती हुई चली जा रही है। वह झटपट उठा और वृद्धा के पास जाकर बोला, “अम्मा, तुम इतना पानी लेकर पहाड़ी पर कभी नहीं चढ़ पाओगी, लाओ पानी के मटके मुझे दे दो, मैं पहुँचा देता हूँ!” 

ऐसा कहकर, मटके लेकर वह अम्मा के पीछे उसके घर तक गया और पानी के मटके रसोई-घर में रख दिए। वृद्धा के घर में बहुत सारे बिल्लियाँ और कुत्ते थे, जो अम्मा के घर में आते ही उसके आसपास आ जुटे और दुम हिलाने लगे। 

“बेटा मैं तुम्हारा एहसान कैसे चुका पाऊँगी?” वृद्धा बोली। 

“इसमें एहसान वाली तो कोई बात ही नहीं है,” लड़का बोला, “आपकी मदद करना मेरे लिए ख़ुशी की बात है।”

“तनिक रुको,” कह कर अम्मा उठकर अंदर गई और एक पुरानी, घिसी हुई सी, बदरंग अँगूठी लाकर लड़के की उँगली में पहना दी और बोली, “बेटा ध्यान रखना, यह बहुत ही क़ीमती अँगूठी है। जब भी तुम इसे अपनी उँगली में घुमाते हुए कुछ माँगोगे तभी तुम्हारी वह इच्छा पूरी हो जाएगी। इस अँगूठी को कभी खोना मत, अगर ऐसा हुआ तो तुम पर मुसीबत आ जाएगी। तुम्हें मैं एक कुत्ता और एक बिल्ली भी दे रही हूँ, जो सदा तुम्हारे साथ रहेंगे। यह बड़े चतुर जीव हैं। कभी न कभी तुम इन का मोल समझ जाओगे।” 

लड़के ने बुढ़िया को बार-बार धन्यवाद दिया और उसे प्रणाम कर आगे बढ़ गया, हाँ, उसकी बातों पर उसने ध्यान नहीं दिया, सोचा कि बूढ़ी अम्मा सठिया गई है। उसने अँगूठी की परीक्षा करना भी ज़रूरी नहीं समझा और बिल्ली और कुत्ते को अपने साथ ले, वह अपनी राह चल पड़ा। पशु उसे प्यारे लगते थे, इसलिए वह इन दोनों के साथ उछलता-कूदता आगे बढ़ने लगा। चलते-चलते वह जंगल तक पहुँच गया। ये तीनों जंगल पार नहीं न कर पाए थे कि रास्ते में ही रात हो गई। आगे बढ़ा नहीं जा सकता था, तो तीनों ने एक पेड़ के नीचे ठहरना ही ठीक समझा। लड़का अपने दोनों और कुत्ते और बिल्ली को लेकर लेट गया, परन्तु भूख के मारे तीनों की अंतड़ियाँ कुलबुला रही थीं, आँखों में नींद का कहीं नामोनिशान नहीं था। लड़के को अपनी भूख से ज़्यादा इन दो जानवरों की चिंता हो रही थी, जो उसके साथ आने के कारण भूखे थे। 

जब हालत काफ़ी पतली हो गई, तो उसने अँगूठी की परीक्षा करनी चाही। अँगूठी अपनी उँगली में घुमाते हुए वह बोला, “हम भूखे हैं, हमें भोजन चाहिए!” अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि तीन थालियों में तीनों के लायक़ भोजन आ गया। तीनों ने आनंद से भोजन किया और फिर ज़मीन पर लेट गए। लड़के की आँखों में बड़ी देर तक नींद नहीं आई। 

वह इसी कल्पना में डूबा रहा कि अब अँगूठी से वह क्या-क्या माँगेगा। कभी सोचता सोने-चाँदी के ढेर, कभी सोचता हाथी, घोड़े, बग्गी, या कभी महल-क़िले और ज़मीन! ग़रीबी में पला, समझदार युवक जितना ही इस बारे में सोचता उतना ही उलझता जाता था। कुछ देर में वह इतना परेशान हो गया कि उसे लगा वह पागल हो जाएगा। अपने मन को समझाते हुए वह गुनने लगा—कितने ही लोग लालच में पड़कर अपनी ज़िन्दगी ही गँवा बैठते हैं। मैं कोई मूर्खता नहीं करना चाहता। आज के लिए जितना मिल गया वह बहुत है। अब कल की कल देखी जाएगी—ऐसा सोचकर वह करवट बदल कर सुख की नींद सो गया। 

सुबह जब वह जागा तो सूरज आकाश में काफ़ी ऊपर चढ़ आया था। पेड़ों के पत्तों से छनकर धूप ज़मीन पर पड़ रही थी, सुहानी हवा चल रही थी, पक्षी चहचहा रहे थे। रात की सुखद नींद के बाद लड़का अपने को तरोताज़ा अनुभव कर रहा था। उसने सोचा कि अँगूठी से एक घोड़ा माँग ले, पर जब जंगल इतना सुहाना लग रहा था तो उसे पैदल चलना ही भाया। 

उसने सोचा—अँगूठी से नाश्ते की माँग कर लेगा परन्तु जंगल में लगे जंगली फल, जामुन-बेर, मकोय आदि इतने स्वादिष्ट थे कि उसने यह विचार भी छोड़ दिया। 

फिर सोचा—चलो पीने के लिए कोई शरबत ही माँग लूँ, पर झरनों का पानी इतना साफ़ और मीठा था कि उसके जैसी तृप्ति और कोई शरबत भला क्या देता! 

तीनों ने भरपेट जंगली फल खाए, धारा का मीठा पानी पिया और संतोष से आगे चल पड़े। 

जंगल, खेत मैदान पर करते-करते तीनों एक नये नगर में, एक महल के पास से गुज़रे। तभी महल की खिड़की से एक सुंदरी ने नीचे झाँका। इस अलमस्त जवान की मस्तानी चाल को देखकर उसने एक ख़ूबसूरत मुस्कुराहट उसकी तरफ़ फेंक दी। उसी समय इस जवान ने भी ऊपर देखा और . . .! और उसकी अँगूठी तो बची रही, पर दिल अचानक खो गया!! 

“अब अँगूठी को इस्तेमाल करने का सही समय आ गया है,” युवक ने तय किया। 

अंगुली में अपनी अँगूठी घुमाते हुए वह बोला, “इस महल के सामने, इससे भी सुंदर, विशाल और सुविधाओं से सजा महल बन जाए!” पलक झपकने से पहले ही उसने अपने को एक आलीशान महल के अंदर पाया। ऐसा लगा मानो वह पैदा ही इसी जगह हुआ था। कुत्ता अपने घरौंदे में था और बिल्ली अपनी टोकरी में बैठी टुकुर-टुकुर राजकुमारी को देख रही थी। लड़का भी खिड़की पर आया, राजकुमारी की ओर टकटकी लगाकर देखा, दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराए और ठंडी आहें भी भरीं! अब उस लड़के को लगा कि राजकुमारी का हाथ माँगने में देर नहीं करनी चाहिए। 

जब युवक शादी का प्रस्ताव लेकर राजकुमारी के महल में गया तो राजकुमारी के साथ-साथ राजा और रानी भी ख़ुशी से झूम उठे। कुछ ही दिनों में धूमधाम से शादी हो गई। 

सुहागरात को कुछ देर तो राजकुमारी अपने नए-नए पति के साथ अठखेलियाँ करती रही पर वह कुछ अनमनी भी लग रही थी। और फिर उसने पूछ ही तो लिया, “सबसे पहले तो तुम मुझे यह बताओ कि अचानक ज़मीन फोड़कर तुम्हारा महल कुकुरमुत्ते की तरह कैसे उगाया?” लड़के को यह समझ में नहीं आया कि उसे सच्चाई बतानी चाहिए या नहीं? कुछ देर उसके मन में उलझन चलती रही, फिर उसने सोचा—अब यह राजकुमारी मेरी पत्नी बन चुकी है, मेरी जीवन-साथी मेरे सुख-दुख की संगिनी, अब इससे कोई रहस्य रखना ठीक नहीं होगा। और—इस साफ़ दिल इंसान ने अपनी बीवी को जादुई अँगूठी की बात बता दी। फिर दोनों शान्ति से सो गए। 

अब आगे का हाल सुनिए—जब लड़का गहरी नींद में बेसुध हो गया, तब राजकुमारी धीरे से उठी, दूल्हे की अंगुली से अँगूठी निकाल ली और महल के सभी नौकरों को बुलाकर आज्ञा दी, “इस महल को अभी छोड़ दो, मुझे अपने पिता के महल में चलना है!” जब वह सुरक्षित अपने पिता के पास वापस आ गई तो उसने अँगूठी को अपनी उँगली में घुमाया और बोली, “मेरे पति का महल दूर के पहाड़ों में, वहाँ की सबसे ऊँची चोटी पर चला जाए!” तभी लड़के का महल ऐसा ग़ायब हुआ मानो वहाँ कभी कुछ था ही नहीं। 

और दूर के पहाड़ी की चोटी पर एक महल वीराने में चुपचाप खड़ा दिखाई पड़ने लगा। 

सुबह जब लड़का उठा तो बीवी को नदारद पाया। उसने खिड़की खोली तो सामने का महल भी ग़ायब था! ध्यान से देखने पर उसे खाई और पहाड़ों की नीची-ऊँची चोटियाँ दिखाई पड़ीं। उसने अपनी अँगूठी टटोली, पर उँगली तो ख़ाली थी। उसने सेवकों को पुकारा, पर उसके कुत्ते और बिल्ली के सिवा कोई नहीं आया। इंसानों से पशु अधिक स्वामी भक्त निकले! अच्छा रहा कि पशुओं की चर्चा उसने अपनी विश्वासघाती पत्नी से नहीं की थी। धीरे-धीरे उसके सामने सारी स्थिति स्पष्ट हो रही थी, परन्तु अब वह कर भी क्या सकता था! 

उसने हर खिड़की दरवाज़े को खोल-खोल कर देखा कि नीचे जाने की कोई राह मिल जाए पर ऐसी कोई राह उसे दिखाई नहीं पड़ी। महल में कितने दिन का राशन पानी होगा? क्या उसको भूखा मरना पड़ेगा? या फिर इन ख़तरनाक ढलानों से गिरकर उसकी मौत होगी? बेचारा निराशा और अवसाद के गहरे गर्त में डूब गया। 

अपने स्वामी को अपार दुख में डूबा देख कुत्ता और बिल्ली उसके पास आए और मानव स्वर में बोले, “स्वामी हम दोनों इस पहाड़ से नीचे जाने की राह खोज लेंगे और अँगूठी आपके पास वापस लाएँगे आप इतने निराश न हों।”

“मेरे प्यारो! अगर मुझे तुम्हारा मोह न बाँधे रहता तो मैं कब का इस चोटी से कूदकर जान दे देता। भूखों मरने से तो यही अच्छा था, एक झटके में सब कुछ ख़त्म हो जाए!” 

कुत्ता और बिल्ली दरवाज़े से निकलकर ढलान से नीचे चल पड़े। पशु तो पशु ही ठहरा, जल्दी ही दोनों पहाड़ की तलहटी में बहती नदी के किनारे आ गए। कुत्ते ने बिल्ली को अपनी पीठ पर बैठा लिया और वे नदी पार पहुँच गए। 

दुष्ट दुलहन राजकुमारी के महल तक आते-आते रात हो गई थी। सारे महल में सोता पड़ गया था। फाटक की दरारों से होकर दोनों महल के अहाते में पहुँच गए। बिल्ली कुत्ते से बोली, “तुम यहीं पहरा दो, मैं धीरे से ऊपर जा कर देखती हूँ कि हम क्या कर सकते हैं!”

बिल्ली दबे पाँव ऊपर पहुँची और राजकुमारी का कमरा देखा। दरवाज़ा बंद था। धोखेबाज़ राजकुमारी अंदर गहरी नींद में होगी। अंदर कैसे पहुँचा जाए? बिल्ली अभी यह सोच रही थी कि उसे एक चूहा दिखाई पड़ा। उसने झपट कर चूहे को पकड़ लिया। चूहा मोटा-तगड़ा था, गिड़गिड़ा कर बिल्ली से प्राणों की भीख माँगने लगा। बिल्ली बोली, “मैं तुम्हें छोड़ तो दूँगी लेकिन तब, जब तुम मेरा एक काम करोगे। तुम दरवाज़े को कुतरकर मेरे घुसने लायक़ छेद बना दो!” चूहा तत्काल काम पर लग गया, उसे अपनी जान जो बचानी थी! कुतरते-कुतरते चूहा थकान से बेहाल हो गया पर बिल्ली तो क्या, वह अपने घुसने लायक़ भी छेद न बना पाया। अब बिल्ली ने पूछा, “क्या तुम्हारे बच्चे भी हैं?” 

“हाँ, हाँ, बिल्कुल है! मेरी ही तरह स्वस्थ, तंदुरुस्त। सात या आठ होंगे!” 

“तुरंत जाओ और एक को लेकर आओ।” बिल्ली बोली, “अगर तुम ना लौटे तो याद रखना, मैं तुम्हें छोड़ूँगी नहीं, चाहे तुम जिस बिल में भी घुस जाओ।” 

चूहा तुरंत भागा और चुटकी बजाते एक नन्हे चूहे को लेकर हाज़िर हो गया। बिल्ली ने उस नन्हे को समझाया, “छोटे मियाँ, ध्यान से सुनो! अगर तुम अपने पिता की जान बचाना चाहते हो तो, इस छेद से भीतर जाओ और राजकुमारी की उँगली में से सबसे पुरानी अँगूठी हो उसे उतार कर ले आओ।”

नन्हा चूहा तेज़ी से भीतर गया और तुरंत की लौट भी आया। उदासी से बोला, “उसकी किसी अंगुली में अँगूठी नहीं है!”

बिल्ली ने अभी भी हिम्मत नहीं छोड़ी, “इसका मतलब यह है कि वह उस जादू की अँगूठी को अपने मुँह में सँभाल कर रखे हुए सो रही है!” बिल्ली कहती गई, “फिर से अंदर जाओ और राजकुमारी की नाक में अपनी दुम से गुदगुदी करो। उसे छींक आएगी और मुँह से अँगूठी निकलकर गिरेगी। तुम तुरंत उसे उठाकर वापस आ जाना!”

ईश्वर की इच्छा कुछ ऐसी हुई कि जैसा बिल्ली ने सोचा था, सब ठीक वैसा ही हुआ। बिल्ली ने दोनों चूहों को धन्यवाद दिया और फ़ुर्ती से कुत्ते के पास वापस आ गई।

“क्या अँगूठी मिल गई?” कुत्ते ने पूछा।

”बिल्कुल मिल गई!” बिल्ली शान से बोली। दोनों जानवर जिस तरह दरारों से अंदर घुसे थे, उसी तरह, सूरज निकलने से पहले बाहर भी निकल आए और वापसी की राह पर चल पड़े। 

कुत्ता बेचारा बिल्ली से जलन के मारे मरा जा रहा था कि वह मालिक के काम न पाया और अब बिल्ली स्वामी को अधिक प्यारी हो जाएगी। नदी के किनारे पहुँचकर कुत्ते ने बिल्ली से कहा, “अँगूठी मुझे दे दो नहीं तो मैं तुम्हें नदी पार नहीं कराऊँगा।” लेकिन बिल्ली ने इंकार कर दिया। दोनों झगड़ने लगे। इसी झगड़े में अँगूठी पानी में गिर गई और एक मोटी मछली उसे निगल गई। अब क्या हो? बिल्ली को कुत्ते ने चुपचाप अपनी पीठ पर बिठाया और नदी पार करने लगा। पर भाग्य की बात! दूसरे किनारे पर पहुँचने से पहले वही मछली फिर दिखाई दी और कुत्ते ने उसे अपने मुँह में दबोच लिया। जब दोनों महल में लड़के के पास पहुँचे तो आपस में तू-तू मैं-मैं करते हुए लड़के को सारी कहानी सुनाई। सारी बात सुनकर लड़का ख़ुशी से फूला न समाया। उसने कुत्ते और बिल्ली को अपने आज़ू-बाज़ू बिठाया और देर तक उन्हें थपथपा कर प्यार करता रहा, पुचकारता रहा। जब दोनों जानवरों को यह समझ में आ गया कि दोनों मालिक को बराबर ही प्यारे हैं, तो कुत्ता और बिल्ली फिर से दोस्त बन गए। 

अब तीनों महल के अंदर गए और लड़के ने अँगूठी अपनी उँगली में घुमाई, बोला, “मेरा महल और मेरी दुलहन का महल अपनी जगह की अदला-बदली कर लें!” ऐसा कहना था कि दो महल हवा में ऐसे उड़े मानो दो बाज़ उड़ रहे हों। एक आकर शहर में बैठ गया और दूसरा पर्वत की ऊँची चोटी पर! 

कुछ दिनों के बाद लड़के ने अपनी माँ को अपने पास बुला लिया और उसकी ज़िन्दगी ख़ुशियों से भर दी। कुत्ता और बिल्ली उसके साथ ही रहे, जो कभी लड़ते-झगड़ते और कभी दोस्ती में डूबते-उतराते। और जादू की अँगूठी का क्या हुआ? आपका यह सवाल भी ज़रूरी है, लड़का समझदार था उसने अँगूठी से ज़्यादा कभी कुछ नहीं माँगा। उसका विश्वास था कि मेहनत का फल ही मीठा होता है। 

शहर के लोग जब कभी जंगल की ओर जाते थे, तो पहाड़ की ऊँचाइयों पर बने एक आलीशान महल को धीरे-धीरे खंडहरों में बदलते बरसों-बरस देखते थे। 

 तो यह थी इस बार की कहानी:

नसीहत से भरी, पर थोड़ी-सी रसीली, 
कभी लगी सच्ची, कभी जादू की पोटली!! 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

अनूदित लोक कथा
कविता
यात्रा-संस्मरण
ललित निबन्ध
काम की बात
वृत्तांत
स्मृति लेख
सांस्कृतिक आलेख
लोक कथा
आप-बीती
लघुकथा
कविता-ताँका
सामाजिक आलेख
ऐतिहासिक
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में