गिरिकोकोला 

01-05-2024

गिरिकोकोला 

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

मूल कहानी: गिरिकोकोला; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (गिरिकोकोला); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स;
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय 

 

किसी ज़माने में, किसी शहर में एक व्यापारी था, उसकी तीन बेटियाँ थीं। एक बार वह कुछ दिनों के लिए व्यापार के सिलसिले में बाहर जाने लगा तो उसने अपनी बेटियों से कहा, “प्यारी बेटियो, मैं कुछ दिनों तक घर से बाहर रहूँगा, जाने से पहले मैं तुम्हारे लिए कुछ उपहार लाना चाहता हूँ, बताओ तुम्हें क्या चाहिए?” तीनों बहनों ने सोच-विचार किया और अंत में पिता को बताया कि वे ऐसा सोना, चाँदी और रेशम चाहती हैं जिससे वे तार बना सकें और अपना समय ख़ुशी से बिता सकें। व्यापारी ने तीनों बेटियों के लिए सोना, चाँदी और रेशम लेकर दे दिया और उन्हें सावधानी से रहने की सलाह देकर व्यापार के लिए चला गया। 

तीनों बेटियों में जो सबसे छोटी थी, उसका नाम था गिरिकोकोला और वह सबसे अधिक रूपवती थी। दोनों बड़ी बहनें हमेशा उससे ईर्ष्या करती थीं। पिता जब चले गए तब सबसे बड़ी बेटी ने तार बनाने के लिए सोना चुना, मँझली लड़की ने चाँदी ले ली और गिरीकोकोला के लिए बच गया रेशम! शाम के समय सब काम पूरे करने के बाद तीनों बहनें खिड़की के पास बैठीं और अपना-अपना तार बनाने लगीं। आने-जाने वाले राहगीर जब खिड़की पर देखते तो सबसे छोटी बहन का रूप देखकर हैरान होते। शाम को आकाश में चाँद उग आया उसने जब तीनों बहनों को तार बनाते देखा तो बोला: 

“सोने वाली सुंदर है, 
चाँदी वाली भी कम नहीं, 
रेशम वाली सबसे सुंदर 
उसका कोई जवाब नहीं
सुंदर और असुंदर, 
सब को मेरा आशीर्वाद, 
मीठी नींद में सोना पूरी-लम्बी रात!” 

चंद्रमा की यह बात सुनकर दोनों बड़ी बहनें ग़ुस्से से लाल हो गईं। और अपने धागे बदलने का निश्चय किया। अगले दिन गिरिकोकोला को तार बनाने के लिए चाँदी दे दी गई। एक बड़ी बहन ने सोना ले लिया और एक ने रेशम। 

साँझ हुई तीनों बहनें तार बनाने लगीं और आकाश में चाँद उग आया। आज इन बहनों को देखकर वह गाने लगा:

“सोने वाली सुंदर है 
रेशम वाली भी कम नहीं, 
चाँदी वाली सबसे सुंदर 
उसका कोई जवाब नहीं, 
 सुंदर और असुंदर 
 सब को मेरा आशीर्वाद, 
मीठी नींद में सोना पूरी-लंबी रात!!” 

आज चाँद की बातें सुनकर दोनों बहनें, जो जलन से मरी जा रही थीं, उन्होंने गिरिकोकोला को ख़ूब ताने दिए और इतना परेशान किया कि कोई ऐसी-वैसी लड़की तो पागल ही हो जाती! 

अगली शाम को जब वे तार बनाने बैठीं तो उन्होंने गिरिकोकोला को सोना दे दिया और इंतज़ार करने लगीं कि भला आज चाँद क्या कहेगा! 

और संझा को चंदा फिर गा उठा:

“चाँदी वाली सुंदर है
रेशम वाली भी कम नहीं 
सोने वाली सबसे सुंदर
उसका कोई जवाब नहीं, 
सुंदर और असुंदर . . .
सबको मेरा आशीर्वाद
मीठी नींद में सोना पूरी लंबी रात।”

अब तक तो दोनों बड़ी बहनें जल-भुनकर ख़ाक हो गई थीं, उन्हें अपनी छोटी बहन की सूरत देखना भी पसंद नहीं आ रहा था। उन्होंने गिरिकोकोला को ले जाकर चारा रखने वाली दुछत्ती में बंद कर दिया। बेचारी लड़की दुछत्ती में बंद रोती-कलपती रही! 

अगले दिन जब चाँद निकला तो खिड़की पर केवल दोनों बहनें थीं, गिरिकोकोला का पता नहीं था। 

दुछत्ती की खिड़की से अपनी चाँदनी की किरण भेज कर चाँद ने गिरिकोकोला से कहा, “मेरी किरण का सहारा लेकर बाहर निकल आओ।” और वह उसे लेकर अपने घर चला गया। 

दिन भर के बाद फिर साँझ हुई। दोनों बहनें अपना काम लेकर खिड़की पर जा बैठीं और तार बनाने लगीं। 

आज जब चाँद उगा तो उसने गाना गया: 

“सोने वाली सुन्दर है
चाँदी वाली का जवाब नहीं
लेकिन जो मेरे घर है 
उसका कोई जवाब नहीं
सुंदर और असुंदर 
सबको मेरा आशीर्वाद
मीठी नींद में सोना पूरी लंबी रात।” 

यह सुनकर दोनों बहनें दौड़ी-दौड़ी दुछत्ती में गईं, वहाँ देखा तो गिरिकोकोला नदारद थी! 

अगले दिन सुबह-सुबह ही दोनों बहनें एक जादूगरनी के पास गईं और जादू टोने से पता लगवा कर उससे अपनी बहन का पता पूछने लगीं। जादूगरनी ने अपने जादू से पता लगाया और बताया कि गिरिकोकोला चाँद के घर है और बड़े आराम से रह रही है। ऐसा सुख जो उसने अब तक कभी न पाया था। अब जलन की मारी दोनों बहनों ने पूछा कि गिरिरकोकोला को भला मारा कैसे जा सकता है? 

“यह सब तुम मेरे ऊपर छोड़ दो,” जादूगरनी बोली। फिर उसने एक बंजारिन का भेस बनाया और चाँद की खिड़की के नीचे जाकर अपना सामान बेचने के लिए पुकार लगाने लगी। 

गिरिकोकोला ने खिड़की से झाँका बंजारन बोली, “क्या तुम बालों में लगाने के यह पिन खरीदोगी? ख़ूब फबेंगे तुम पर! और यह तो सस्ते भी बहुत हैं।”

जूड़े के उन पिनों को देखकर गिरिकोकोला का दिल मचल गया। उसने बंजारन का भेष बनाए हुए जादूगरनी को भीतर बुलाया और बोली, “भीतर आ जाओ अम्मा और इस पिन को लगाना मुझे सिखा दो।”

बस, जादूगरनी तो चाहती यही थी, उसने गिरिकोकोला के बालों में जैसे ही वह पिन लगाया वह पत्थर की मूर्ति बन गई। 

बंजारन तुरंत दौड़ती हुई दोनों बड़ी बहनों के पास यह ख़बर सुनाने जा पहुँची। 

थका हारा चाँद जब दुनिया का फेरा कर लेने के बाद घर पहुँचा तो देखा कि गिरिकोकोला तो मूर्ति में बदल गई है! 

“क्या मैंने तुम्हें समझाया नहीं था कि किसी को भीतर न आने देना,” चाँद बड़बड़ाया, “मेरी बात न मानने के लिए तुम्हें तो ऐसे ही छोड़ देना चाहिए।”

लेकिन थोड़े ही समय बाद उसका मन बदल गया। चाँद ने धीरे से पिन लड़की के बालों से निकाल दिया और गिरिकोकोला फिर से सुंदर लड़की बन गई और उसने क़सम खाई कि अब किसी अजनबी को घर के भीतर नहीं आने देगी। 

कुछ समय बाद दोनों बड़ी बहनें एक बार फिर जादूगरनी के पास पहुँचीं और उससे पता लगाने लगीं कि गिरिकोकोला सचमुच मर चुकी है न? जादूगरनी ने अपनी कई किताबें खोलीं, पढ़ा और वह भी हैरान रह गई कि पता नहीं कैसे गिरिकोकोला तो अब भी जीवित थी। यह सुनते ही दोनों बहनें जादूगरनी से हाथ जोड़कर विनती करने लगीं कि एक बार किसी तरह वह फिर से गिरकोकोला को मार दे। इस बार जादूगरनी ने एक सुंदर स्त्री का रूप बनाया। अपने बालों में रंग-बिरंगी कंघियाँ लगा कर, सज-सँवर कर, सुन्दर कंघियों और काजल-सुरमा, लाली-इतर की बकसिया हाथ में लेकर गिरिकोकोला के घर के आसपास फेरे लगाने लगी। आवाज़ भी देती जाती थी, “बाल सँवरवा लो!, रूप निखरवा लो!” आवाज़ सुनकर गिरिकोकोला खिड़की पर आई और इस स्त्री के रूप को देख कर अपने भी सौंदर्य को और निखारने के लिए आतुर हो गई, भला दुनिया में कौन सुंदर नहीं दिखाना चाहता! 

आवाज़ देकर उसे अंदर बुलाया और अपने बाल सँवारने के लिए कहा। जादूगरनी ने झट से उसके बाल खोले और एक कंघी उसके सिर में लगाई। जैसे ही कंघी उसके सिर में लगी, बेचारी गिरिकोकोला फिर मूर्ति में बदल गई और जादूगरनी सुंदरी वहाँ से रफ़ू चक्कर हो गई। 

चंद्रमा जब अपने काम से लौट कर घर आया तब उसने गिरिकोकोला को फिर एक मूर्ति के रूप में पाया। क्रोध से वह बिलबिला उठा, बकझक करता हुआ बड़ी देर तक अपना सिर पीटता रहा। 

लेकिन कुछ समय बाद जब ग़ुस्सा शांत हुआ तो उसने एक बार फिर लड़की को क्षमा करने का विचार किया और धीरे से कंघी उसके बालों से निकाल दी। गिरिकोकोला सजीव हो उठी, “अब बहुत हो गया, अगली बार फिर ऐसा हुआ तो मुझे दया नहीं आएगी। तुम हमेशा के लिए मूर्ति बनी रहोगी,” वह ज़ोर से बोला। 

गिरिकोकोला ने उसके सामने एक बार फिर क़सम खाई, “आगे ऐसा कभी नहीं होगा।” 

लेकिन गिरिकोकोला की दोनों दुष्ट बड़ी बहनें और जादूगरनी आसानी से हिम्मत हारने वाले लोगों में न थे। एक बार फिर रंग-बिरंगी सुंदर पोशाकें लेकर एक सौदागरनी ने गिरिकोकोला की खिड़की के नीचे आवाज़ लगाई। इस बार भी बेचारी गिरिकोकोला जाल में फँस गई और एक पोशाक पहनकर देखने लगी। और फिर जो होना था वही हुआ जैसे ही उसने कपड़े पहने वह मूर्ति बन गई। 

इस बार चंद्रमा को कोई दया नहीं आई, वह गिरिकोकोलाक की मूर्खता से ऊब चुका था। अगले दिन उसने यह मूर्ति एक कबाड़ी को चंद पैसों में बेच दी। 

कबाड़ी अपने ठेले पर मूर्ति लाद कर शहर से होकर जा रहा था कि एक राजा के बेटे की नज़र उस सुंदर मूर्ति पर पड़ी। वह उसकी सुंदरता पर ऐसा मुग्ध हो गया कि उसने सोने की अशर्फ़ियाँ देकर वह मूर्ति ख़रीद ली और अपने कमरे में सजा दी। गिरिकोकोला की मूर्ति के ऊपर राजा का बेटा ऐसा फ़िदा हुआ कि वह घंटों अपने कमरे में बैठा उस पत्थर की मूर्ति को निहारता रहता, जब कभी कमरे से बाहर जाता कमरे में ताला लगा देता। वह नहीं चाहता था कि उस सुंदरी को उसके सिवा कोई और भी देखे। 

एक बार राजकुमार की बहन को किसी जलसे में जाना था। उसने सोचा कि भाई के कमरे में जो मूर्ति है उसने जो कपड़े पहने हैं वह बहुत सुंदर हैं। वही कपड़े पहन कर आज जलसे में जाए। 

एक तालासाज़ से उसने ऐसी चाबी ख़रीदी जो सारे ताले खोल सकती थी, चुपके से भाई के कमरे में गई और मूर्ति से कपड़े उतारने लगी। और देखती क्या है कि जैसे ही उसने कपड़े मूर्ति के कपड़े उतारने शुरू किये, गिरिकोकोला के शरीर में हरकत होने लगी। जैसे ही कपड़े पूरे उतारे वह जीवित हो गई। बेचारी राजकुमारी तो डर से अधमरी हो गई। लेकिन सजीव होते ही गिरिकोकोला ने उसे सँभाल लिया और सारी कहानी कह सुनाई। 

अब राजा की बहन और गिरिकोकोला पलंग के नीचे जाकर छुप गईं। 

कुछ समय बाद जब राजकुमार कमरे में वापस आया तो मूर्ति को वहाँ न देख घबरा गया। ग़ुस्से और दुख से वह पागल जैसा लगने लगा। उसका यह रूप देखकर दोनों लड़कियाँ पलंग के नीचे से बाहर निकल आईं। गिरिकोकोला ने राजकुमार को अपने भाग्य की पूरी कथा विस्तार से सुना दी। यह सब सुनकर राजकुमार तुरंत अपने माता-पिता के पास पहुँचा और गिरिकोकोला से विवाह करने की अनुमति चाही। 

 . . . मेरे समझदार पाठक तो समझ ही गए होंगे कि ऐसी स्थिति में राजकुमार को विवाह की अनुमति न मिलना तो सम्भव ही नहीं था, तो बस धूमधाम से राजकुमार और गिरिकोकोला का विवाह हो गया। 

दोनों बड़ी बहनों का क्या हुआ यह तो मुझे मालूम नहीं लेकिन जैसे गिरिकोकोला को सुख मिला वैसे ही सबको मिले। 

इस अंक की कहानी यहीं ख़त्म अगले अंक में फिर मिलते हैं। 

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