मेरी माँ

15-05-2022

मेरी माँ

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

अक़्सर गाहे-बगाहे, जब-तब
याद आ जाती है 
मुझे, मेरी माँ! 
 
मुझसे कई-कई वर्ष छोटे 
मेरे सहोदरों के गर्भ-भार से शिथिल होती
साँवली-सलोनी, फ़ुर्तीली, मेरी माँ! 
 
चाहे और अनचाहे भी 
कभी-कभी अपनी ही संतति से, 
कुछ परेशान, कुछ झुँझलाई हुई लगती 
मेरी माँ, 
 
सर्दी की रातों में अपनी रजाई में 
हमको समेट, भूतों-परियों के क़िस्से सुनाती
थकी-माँदी उनींदी
मेरी माँ, 
 
हमारे शाला जाने से पहले 
रोज़ टटका1 भोजन को देने को
बड़े तड़के उठ, काम में जुट जाने वाली
कर्मठ, समर्पित
हम सबकी माँ! 
 
अपने लिए पान के पत्ते पर 
चूना-कत्था तथा लगाते हुए
शायद अपने बचपन में खोई हुई
कोई गीत गुनगुनाती, बिलमाती2 
भोली, मेरी माँ! 
 
यदा-कदा ही सही, 
मुँह में पान चबाते हुए 
मन ही मन ना जाने क्या? 
सोचती, स्वयं से ही लजाती, मुस्कुराती हुई, 
मेरी प्यारी माँ! 
 
अपने जीवन के पके हुए दिनों में 
अपनी पाली-पोसी, 
सयानी हो चुकी, अपनी सन्तानों को 
क़ीमती ख़ज़ाना समझने वाली 
स्वाभिमानी मेरी माँ! 
 
यात्रा के अंतिम दिनों में 
अशक्त हो चुकी, टूटी-फूटी, 
विस्मृतियों में डूबी, 
यादों के गलियारों में भटकती 
ईश्वर से मृत्यु का वरदान माँगती, 
मेरी बेचारी-सी माँ! 
 
और
अब तो जब भी
आईना मैं देखूँ
स्वर्ग से उतर, दर्पण में समाकर
मेरी ही आँखों से
मेरे ही चेहरे को निहारती-सी लगती है—
मेरी माँ, 
 
सुनती, पढ़ती रहती हूँ, 
'अतिमानवी', देवी तुल्य, 
अपार्थिव माता नाम के चर्चे
मेरे तो भाग्य में लिखी थी
सीधी, सरल, प्रेम-क्रोध सुख-दुख
देने-समझने वाली एक स्त्री
जो संयोग से ही सही
बन गई मेरी माँ . . .!
 

  1. टटका=ताज़ा
  2. बिलमाती=विश्राम करती

1 टिप्पणियाँ

  • 8 May, 2022 01:30 PM

    बहुत सुंदर ।माँ जीवन का अनमोल ख़ज़ाना होती है और जिसने भी वह खो दिया, मैं समझती हूँ , कि बस सब कुछ रहते हुए भी अनाथ हो गया । हमारे यहाँ एक कहावत है, “अगर माँ का आशीर्वाद आसमान समान , तो ईश्वर का आशीर्वाद दीपक समान” ! आँख नम हो गई । माँ शब्द ही ऐसा है …!

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