मिर्चा राजा

15-03-2025

मिर्चा राजा

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 273, मार्च द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

मूल कहानी: इल् रियुसियो फ़ाटो ए मैनो; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो; अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द हैंडमेड किंग); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; हिन्दी में अनुवाद: ‘मिर्चा राजा’ सरोजिनी पाण्डेय

 

एक राजा था और एक रानी और उनकी थी एक प्यारी सी बिटिया—उनकी राजकुमारी! सब आनंदमय था, अचानक भाग्य ने करवट ली और रानी राजकुमारी को 'बिन माँ की बच्ची' बनाकर स्वर्ग सिधार गयी। 

राजा ने माँ-बाप दोनों बनकर उसका पालन पोषण किया। धीरे-धीरे राजकुमारी बड़ी हुई। जब विवाह योग्य हुई तो राजा के जैसी हैसियत वाले युवकों से विवाह के प्रस्ताव आने लगे। राजकुमारी सभी प्रस्तावों को ठुकराने लगी। हार कर राजा ने एक दिन अपनी बेटी से पूछ लिया, “बेटी क्या बात है, तुम शादी क्यों नहीं करना चाहतीं?”

“पिताजी, यदि आप चाहते हैं कि मैं शादी कर लूँ तो आप मुझे एक मन आटा और एक मन चीनी दिला दीजिए। मैं अपने लिए अपनी पसंद का दूल्हा अपने ही हाथों से बनाना चाहती हूँ।”

राजा ने पहले तो अचरज और अनिच्छा दिखाई लेकिन फिर कहा, “ठीक है!”और राजकुमारी को उसका माँगा गया सामान मिल गया। 

राजकुमारी ने आटा, चीनी, चलनी और परात लेकर अपने को अपने कमरे में ही बंद कर लिया। छह महीने राजकुमारी ने आटा चालने और गूँधने में लगाए और अगले छह महीने उसे आकार देने में। जब पुतला बनाकर तैयार हुआ तो वह उसे अच्छा नहीं लगा। बने हुए पुतले को उसने बिगाड़ कर फिर से आटे की लोई बना दिया। दोबारा पुतला गढ़ने लगी। इस बार छह महीने लगाकर जब नया पुतला बनाकर तैयार हुआ तो वह राजकुमारी को पसंद आ गया। अब उसने एक सुंदर, सुडौल, पका हुआ, लाल मिर्चा पुतले की नाक की जगह लगा दिया और कमरे में बने एक बड़े आले में उसे खड़ा कर दिया। जब यह काम हो गया तब राजकुमारी ने अपने पिता को कमरे में बुलवाया और उनसे कहा, “पिताजी इसे देखिए, यह है मेरा वर, 'मिर्चा राजा' मेरा ब्याह इसी से होगा।”

पिता ने ध्यान से उसे ऊपर से नीचे तक कई-कई बार देखा। उसका रूप-रंग, गठन, नैन-नक़्श सब उसे पसंद आये। 

“हाँ, देखने में तो यह सजीला है लेकिन 'अबोला' है!”

“आप कुछ समय इंतज़ार करिए, यह बोलेगा भी,”राजकुमारी ने कहा। 

अब राजकुमारी रोज़ आले में खड़े पुतले के सामने जाती और गाती:

“मिर्चा राजा मेरे हाथों से बने 
 काग़ज़ क़लम से नहीं उँगलियों से गढ़े, 

 छह महीने चाला-गूँधा, 
महीने में गढ़े, 
बिगड़े फिर छह महीने, 
छह महीने में बने, 

 कब तक खड़े रहोगे ऐसे
 अब तो मेरी सुन लो 
 उल्टा सीधा चाहे बोलो 
 लेकिन मुँह तो खोलो!”

और राजकुमारी अगले छह महीने तक, नियम से प्रतिदिन आले के सामने बैठकर यह गीत उसे पुतले को सुनाती रही। छह महीने बीतते न बीतते मिर्चा राजा एक दिन बोलने लगा! 

“मैं तुमसे बात नहीं करूँगा, पहले अपने पिताजी को बुलाओ।”

राजकुमारी दौड़ी-दौड़ी पिता के पास पहुँची और बोली, “पिताजी जल्दी चलिए मेरा अबोला वर बोलने लगा है!!”

झटपट राजा राजकुमारी के कमरे में आए और राजकुमारी के वर से बातें करनी शुरू कर दीं। कुछ देर इधर-उधर की बात हुई फिर मिर्चा राजा ने राजकुमारी का हाथ शादी के लिए माँग लिया। राजा की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने शादी के लिए हामी भर दी और मिर्च राजा को अपने साथ खाना खाने को भी बुलाया। कुछ ही दिनों में मिर्चा राजा की शादी राजकुमारी से हो गई। शादी में आसपास के देशों के राजा अमीर उमराव, व्यापारी, अधिकारी शामिल हुए। कुछ मेहमान दूर से आए कुछ पास से। निमंत्रित मेहमानों में एक रानी थी जिसका नाम था 'दिलरुबा रानी' वह बड़ी दिलफेंक रानी थी। दिलरुबा की नज़र जब मिर्चा राजा पर पड़ी तो वह उस पर दिलो-जान से फ़िदा हो गई और मन ही मन उसने पक्का कर लिया कि चाहे जो हो जाए वह मिर्चा राजा को अपने लिए पाकर ही रहेगी! 

राजकुमारी और मिर्चा राजा की शादी धूमधाम से हो गई। दूल्हा-दुलहन सुख से रहने लगे। अब राजकुमारी के पिता को बस एक बात खटकती थी कि मिर्चा राजा कभी महल से बाहर नहीं जाता था और उसके साथ राजा की बेटी भी महल के अंदर ही रहती थी। 

राजा ने आख़िर एक दिन अपनी बेटी को बुलाकर कर कह ही दिया, “बेटी क्या बात है? तुम और जमाई राजा कभी बाहर सैर करने नहीं जाते? बाहर की खुली और साफ़ हवा तुम लोगों के लिए अच्छी रहेगी। कभी-कभी घूमने ज़रूर जाना चाहिए।”

“हाँ पिताजी, आप सही कह रहे हैं। अब आपने कहा ही दिया है तो हम आज ही सैर के लिए निकलेंगे,”राजकुमारी बिटिया बोली। 

तुरंत गाड़ी निकाली गई उसमें घोड़े जोते गए और राजकुमारी निकल पड़ी सैर के लिए अपने दूल्हे मिर्चा राजा के साथ। 

उधर दिलरुबा रानी तो हमेशा राजा को उठा लेने की ताक में ही रहती थी। जैसे ही उसे अपने जासूसों से ख़बर मिली कि मिर्चा राजा सैर के लिए जा रहा है, उसने भी अपनी गाड़ी से उसका पीछा करना शुरू कर दिया। 

जब मिर्चा राजा की गाड़ी शहर से बाहर खेतों के आसपास पहुँची तो उसका का मन पैदल ही टहलने का हुआ और वह गाड़ी से उतर पड़ा। तभी हवा का बहुत तेज़ झोंका आया जो उसे उड़ा कर दिलरुबा रानी की गाड़ी तक ले आया, अंदर से झटके से दिलरुबा रानी निकली और मिर्चा राजा को अपनी ओढ़नी में छुपा कर पकड़ ले गई। 

राजकुमारी और गाड़ीवान बड़ी देर तक इधर-उधर मिर्चा राजा को खोजते रहे, लेकिन उसका कहीं अता-पता ही नहीं मिला। दुखियारी राजकुमारी महल में लौट आयी। 

“जमाई राजा कहाँ है?”पिता ने पूछा

“एक हवा का झोंका आया और वह न जाने कहाँ उड़ गया!”राजकुमारी रोते-रोते बोली, “मुझे कोई न छेड़े, मुझसे कोई न बोले, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो अपना दुख मुझे ख़ुद सहने दो।”

लेकिन बहुत दिनों तक राजकुमारी यह दुख और अकेलापन न सह सकी, एक दिन वह उठ खड़ी हुई, एक थैली में कुछ मोहरें लेकर वह अपने घोड़े पर सवार हुई और चल पड़ी अपने पति मिर्चा राजा की खोज में। 

एक रात जब वह एक जंगल से होकर गुज़र रही थी, कानों में केवल जंगली जानवरों की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं तभी उसे एक घर से आती रोशनी दिखाई दी। राजकुमारी ने उस घर के द्वार को खटखटाया। 

“कौन है?”अंदर से आवाज़ आयी। 

“एक भली मानुष मुसाफ़िर . . . आज की रात पनाह दे दो नहीं तो जंगली जानवर मुझे खा जाएँगे!”

“इधर से तो कोई भला मानुष आता-जाता नहीं, बस जंगली जानवर और चोर-लुटेरे आते जाते हैं। यदि भली हो तो नाम बताओ!”

जब राजकुमारी ने अपना परिचय दिया तब दरवाज़ा तुरंत खुल गया। एक लंबी दाढ़ी वाला साधु राजकुमारी का स्वागत कर रहा था, ”राजकुमारी आप इस भयानक जंगल में क्या कर रही हैं?”

”मैं अभागी अपने पति को खोजती फिर नहीं हूँ! मैं अपने लिए एक दूल्हा अपने हाथों से गढ़ा था . . .” राजकुमारी ने अपनी सारी राम कहानी साधु को सुना दी। 

”राजकुमारी,” बूढ़े साधु ने कहा, “आपको अपने पति को ज़रूर ढूँढ़ना चाहिए, वह यह शाहबलूत का फल अपने पास सँभाल कर रखिए। कल सुबह इसी राह पर आगे जाइएगा, वहाँ मेरा भाई आपको मिलेगा। उस से बात करिएगा। वह आपकी मदद करेगा।”

अगले दिन राजकुमारी जब उसी राह पर आगे चलती गई तो उसे दूसरा साधु भी मिल गया। उसने राजकुमारी को एक अखरोट दिया और उसे तीसरे भाई के घर की राह बता दी। तीसरा भाई उन दोनों से उम्र में बड़ा था। उसने एक बादाम देकर राजकुमारी को वह राह बता दी जो दिलरुबा रानी के महल को जाती थी। बूढ़े साधु ने उसे यह भी बताया कि जो सुंदर शानदार महल दिलरुबा रानी का है, उसके पास साथ एक पुराना वीरान-सा महल भी है, वह जेल ख़ाना है। जब वह महल की खिड़की के नीचे पहुँचे तो शाह बालूत का फल फोड़े उसमें से जो क़ीमती चीज़ निकल उन्हें बेचने के लिए आवाज़ लगाए। आवाज़ सुनकर दिलरुबा की नौकरानी इसे भीतर बुला ले जाएगी दिलरुबा जब उन अजूबा चीज़ों का दाम पूछे तो वह कहे कि उसे धन नहीं चाहिए बस रानी के पति के साथ अकेले में मिलना चाहती है। 

“याद रखो दिलरुबा का पति तुम्हारा मिर्चा राजा है। अगर उस रात तुम मिर्चा राजा से ना मिल पाओ तो अगले दिन अखरोट तोड़ना और अगर दूसरे दिन भी मिर्चा राजा से अकेले में भेंट न हो सके तो आख़िरी दिन बादाम फोड़ना। आगे जैसी तुम्हारी क़िस्मत!”

राजकुमारी चलते-चलते दिलरुबा रानी के महल की खिड़की के नीचे पहुँच गई। वहाँ उसने शाहबलूत का फल फोड़ा। उसमें से एक गुड़िया-सी लड़की निकली, जिसके पास एक करघा था और उस पर सोने के तार से ज़री बुन रही थी। राजकुमारी ने आवाज़ लगानी शुरू की: 

“ले लो, ले लो सोने के तार से कपड़ा बुनती लड़की ले लो। करघे पर सोने का जाल बुनती जुलाहन ले लो।”

 महल की खिड़की खुली। एक नौकरानी ने बाहर झाँका और दौड़कर मालिकिन के पास गई, “मालिकिन ज़रा चलकर देखिएगा कि कितनी सुंदर चीज़ बिकाऊ है! ऐसी नायाब चीज़ तो आपके ही महल में होनी चाहिए!”

राजकुमारी को भीतर बुलाया गया। दिलरुबा ने पूछा, ”इन चीज़ों का क्या दाम लोगी?”

“मुझे रुपया पैसा नहीं चाहिए, बस एक रात आपके पति के साथ अकेले बिताना चाहती हूँ।”

दिलरुबा को यह सौदा पसंद नहीं आया, लेकिन नौकरानी ने दिलरुबा के कान में कुछ फुसफुसा कर कहा और किसी तरह उसे मना लिया। 

नौकरानी ने मिर्चा राजा को दूध में मिलाकर नशीली चीज़ पिला दी। जब वह सोने लगा तो राजकुमारी को कमरे में पहुँचा दिया। राजकुमारी ने कमरे में पहुँचकर बहुत कोशिश की लेकिन मिर्ज़ा राजा टस से मस ना हुआ। उसने कई बार वह गाना भी गया:

“मेरे मिर्चा राजा, मेरे हाथों से बने
 काग़ज़ पर क़लम से नहीं 
मेरे हाथों से गढ़े
छह महीने छाना गूँधा गढ़ा छह महीने 
बिगड़े फिर छह महीने, छह महीने में बने, 
दिलरुबा ने क़ैद कर लिया जल्दी से तुम जागो
मेरे प्यारे मिर्चा राजा मुझे संग ले पर भागो।”

लेकिन मिर्चा राजा ने ना कुछ कहा ना कुछ सुना। आख़िर दिन निकल आया। राजकुमारी का रोना-धोना थम गया। वह निराश होकर शहर छोड़ कर जाने ही वाली थी कि उसे दूसरे साधू के दिए हुए अखरोट की याद आ गई। जब उसने अखरोट तोड़ा तो उसमें से एक गुड़िया जैसी लड़की निकली जो एक सोने के गोल फ़्रेम में लगा रेशम के कपड़े पर सुनहरी जारी से क़सीदा कर रही थी। अब राजकुमारी ने सड़क पर आवाज़ लगाई: 

“सोने के फ़्रेम पर रेशम का रुमाल 
ज़री की कढ़ाई तो लगती कमाल”

इस बार फिर दिलरुबा रानी की नौकरानी ने उसे भीतर बुलाया। फिर मोल भाव हुआ और बात वहीं आ गई कि एक रात यदि पति के साथ गुज़ारने पर सोने का फ़्रेम, ज़री का तार और क़सीदाकरी सब दिलरुबा की हो जाएगी! दिलरुबा ने इस बार बड़ी आसानी से शर्त मान ली ‌मिर्चा राजा को अफ़ीम पिलाई और राजकुमारी को कमरे में जाने दिया गया। 

उस रात भी राजकुमारी रोती रही और मिर्चा राजा को अपनी और उसकी कहानी गीत गाकर सुनाती रही। लेकिन सब बेकार . . .

उधर जब दो रातों तक महल के बग़ल के जेल खाने में बंद क़ैदी राजकुमारी के रोने और गाने के कारण रात भर नहीं सो पाए तो उन्होंने तय किया कि अगले दिन जब राजा बाहर घूमने आएँगे तो वह उनसे अपनी बात बताएँगे। अगले दिन जब मिर्चा राजा ताज़ी हवा खाने महल से निकले तो क़ैदी कमरे की खिड़कियों की सलाखें पकड़ कर खड़े हो गए और पास से गुज़रते मिर्चा राजा से कहने लगे, “राजा जी हम दो रातों से सो नहीं पा रहे हैं! रात भर आपके महल से रोने और दर्द भरे गाने की आवाज़ें आती रहती हैं। आप भला ऐसे में कैसे सो लेते हैं?”

कुछ क़ैदी बोले, “कोई औरत कहती है कि वह आपकी पत्नी है और आपको उसने अपने हाथों से बनाया है। आप यह सब सुनकर भी कैसे सो पाते हैं?”

यह सब सुनकर मिर्चा राजा सोचने लगा कि हो ना हो उसे रात में कुछ नशा करा दिया जाता है, नहीं तो उसे यह सब सुनाई क्यों नहीं देता? ”आज रात को मैं दूध नहीं पियूँगा!”

बेचारी राजकुमारी भी बहुत दुखी और परेशान थी। उसके पास केवल छोटा-सा बादाम बचा था और वह मिर्चा राजा को अब तक न पा सकी थी। आज उसने बदाम भी फोड़ दिया। उसमें से फिर एक लड़की निकली जो एक सुनहरी टोकरी लिए थी। राजकुमारी ने उस गुड़िया को बेचने के लिए आवाज़ लगाई: 

”छोकरी ले लो छोकरी, सोने की टोकरी ले लो, सोने की टोकरी!”

आज भी महल के भीतर वह बुलाई गई भाव-ताव हुआ आज भी वह जीत गई और कमरे में भेज दी गई। 

मिर्चा राजा पलंग पर सोया था लेकिन आज वह नशे में बेहोश न था, आज उसने दूध पीने का नाटक किया था दूध पिया न था। राजकुमारी कमरे में आई मिर्चा राजा को देखकर वह अपना गाना शुरू ही करने वाली थी कि मिर्चा राजा ने आँखें खोल दी और धीरे से बोला:

“मेरी प्यारी रानी पहले कहो तुम यह कहानी, तुम मेरा पता भला कैसे किससे जानी?”

”मिर्चा राजा,” राजकुमारी बोली, “मैंने कभी हिम्मत नहीं हारी!”

और उसने अपनी सारी राम कहानी सुना दी। मिर्चा राजा ने भी उसे बताया कि कैसे दिलरुबा उसे हमेशा पहरे में और नशे में रखती थी। वह चाहते हुए भी इस क़ैद से भाग नहीं पा रहा था। अब दोनों ने चुपके से दरवाज़ा खोला, सारा महल सोया पड़ा था ‌। दोनों राजकुमारी के घोड़े पर एक के पीछे एक बैठे और भाग चले। अगली सुबह जब दिलरुबा ने मिर्चा राजा को महल में नहीं पाया तो अपने बाल नोचने लगी। बालों के साथ-साथ उसने अपने सिर की खाल भी नोंच डाली और तड़प-तड़प कर मर गई। 

राजकुमारी अपने हाथों गढ़े हुए मिर्चा राजा के साथ पिता के महल पहुँच गई। 

मिर्चा महल में ख़ुशियाँ छाईं, जनता ने दिवाली मनाई, 
लेकिन बेचारे क़िस्सागो मिली ना एक भी पाई!! 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सामाजिक आलेख
अनूदित लोक कथा
दोहे
चिन्तन
ललित निबन्ध
कविता
सांस्कृतिक कथा
आप-बीती
सांस्कृतिक आलेख
यात्रा-संस्मरण
काम की बात
यात्रा वृत्तांत
स्मृति लेख
लोक कथा
लघुकथा
कविता-ताँका
ऐतिहासिक
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में