दैत्य का बाल
सरोजिनी पाण्डेयमूल कहानी: ल, ओरको कॉन लि पेने; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द फ़ेदर्ड ऑग्र); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स;
हिन्दी में अनुवाद: ‘दैत्य का बाल’ सरोजिनी पाण्डेय
किसी देश का राजा एक बार बहुत बीमार पड़ा। बहुत दिनों तक इलाज होता रहा लेकिन कोई लाभ न हुआ।
जब वैद्य, डॉक्टर, हकीम सब हार गए, तब राजपरिवार के लोगों ने ओझा-सोखा-गुनिया (witch doctor) लोगों का सहारा लिया। एक ओझा ने बताया कि यदि पहाड़ की चोटी पर रहने वाले दैत्य के शरीर का एक बाल मिल जाए तो उससे राजा की बीमारी का इलाज हो सकता है, लेकिन मुश्किल यह है कि उस दैत्य के पास पहुँचना ही कठिन है, क्योंकि वह मनुष्य भक्षी है। मनुष्य की गंध पाकर ही वह उन्हें खाने के लिए दौड़ता है।
दूर-दूर तक मुनादी करवा दी गई कि ‘जो भी दैत्य का बाल लाएगा वह भारी पुरस्कार पाएगा’।। लेकिन कोई परिणाम न निकला, भला जान किसको प्यारी नहीं है!
राजपरिवार में एक बहुत पुराना सेवक था, जो अक्सर कहता रहता था कि वह राज परिवार के लिए जान भी देने को तैयार है। दैत्य का बाल लाने के बात जब उससे कही गई तो वह यह काम करने के लिए तुरंत राज़ी हो गया। सेवक को पहाड़ पर जाने की राह बता दी गई और हिदायत दी गई कि पहाड़ की चोटी पर सात गुफाएँ हैं, उनमें से ही एक में शरीर पर काले, घने, लम्बे बालों वाला दैत्य रहता है। जिसका एक बाल राजा की दवा बनाने के लिए चाहिए।
सेवक चल पड़ा इस काम पर। चलते-चलते जब रात हो गई तो वह एक सराय में रुका। जब सराय के मालिक को सेवक का काम मालूम हुआ तो उसने कहा, “जब तुम पहाड़ पर जा ही रहे हो तो मेरे लिए भी एक बाल उस दैत्य का लेते आना, मैंने सुना है कि वह बहुत काम का होता है।”
सेवक ने कहा, “आपका काम करके मुझे बड़ी ख़ुशी होगी।”
“और सुनो, अगर तुम्हारी उस दैत्य से बात हो तो यह पता करने की कोशिश करना कि मेरी बेटी का अता-पता क्या उसे मालूम है? जो सालों पहले गुम हो गई थी। पता नहीं अब वह कहाँ है?”
सुबह होते ही सेवक चल पड़ा अपने रास्ते। चलते-चलते वह एक नदी के किनारे पहुँचा। जब मल्लाह उसे नाव से नदी पार करा रहा था, तब सेवक और मल्लाह बातें करने लगे।
मल्लाह ने उससे कहा, “क्या तुम मेरे लिए भी एक बाल लेते आओगे? मैंने सुना है कि है कि उसे पाने से नसीब खुल जाते हैं।”
सेवक ने कहा, “ठीक है!”
“और अगर तुम्हें मौक़ा मिले तो दैत्य से पूछना कि जब से मैं नाव खेने लगा हूँ, तब से इस नाव से कभी उतर नहीं पाया, क्या मैं कभी इस नाव से उतर भी पाऊँगा या नहीं?”
“ज़रूर, मैं दैत्य से आपका प्रश्न ज़रूर पूछूँगा!”
बात करते-करते वे नदी के पार पहुँच गए थे, राज सेवक उतरा और अपनी राह चल दिया।
रास्ते में चलते-चलते सेवक को जब भूख लगी तो उसने एक नदी के किनारे बैठकर अपनी खाने की पोटली खोली। अभी वह खाना खा ही रहा था कि दो सभ्य, कुलीन रईस पुरुष उसके पास आकर बैठ गए। खाना खाते-खाते वे तीनों आपस में बातें करने लगे।
जब उन लोगों को मालूम हुआ कि सेवक दैत्य के शरीर के बाल लेने जा रहा है तो उन्होंने कहा, “तुम हमारे लिए भी एकाध बाल क्यों नहीं ले आते?”
“बिल्कुल लेता आऊँगा।”
“क्या तुम हमारे लिए दैत्य से एक प्रश्न का उत्तर भी पूछोगे? हमारे बग़ीचे में एक बहुत सुंदर फुहारा है, जो कभी सुनहरा और रुपहला पानी फेंकता था, लेकिन अब वह सूख क्यों गया है?”
“मैं आपकी बात बिना भूले दैत्य से पूछ लूँगा।”
वह चलता रहा, चलता रहा, धीरे-धीरे अँधेरा घिरने लगा। उसने साधुओं के एक आश्रम का द्वार खटकाया और रात भर रुकने के लिए सहारा माँगा।
“भीतर आ जाओ,” कह कर साधुओं ने उसे भीतर बुला लिया।
बातें करते हुए जब साधुओं को उसके काम की बात मालूम हुई, तब एक साधु ने उससे पूछा, “क्या तुम्हें मालूम भी है कि तुम क्या करने जा रहे हो?”
“मुझे बताया गया है कि पहाड़ कि चोटी पर सात गुफाएँ हैं, उनके दरवाज़े खटखटाने पर एक में से मानुस-भक्षी दैत्य निकल कर मेरा स्वागत करेगा!!”
अब साधु बोला, “अरे रे रे!, हमारी बात ध्यान से सुनो। अगर तुम तनिक भी असावधान हुए तो वहाँ इतने ख़तरे हैं कि तुम अपनी जान से ही हाथ धो बैठोगे। यह कोई मजा़क की बात नहीं है। मैं तुम्हें दैत्य के बारे में बताऊँगा लेकिन शर्त यह है कि तुम्हें भी हमारी सहायता करनी होगी।”
“क्यों नहीं! आप लोग जो कहें मैं करने को तैयार हूँ।”
“मेरी बातें ध्यान से सुनो जब तुम पर्वत की चोटी पर पहुँचोगे तो तुम्हें सात गुफाएँ दिखाई देंगी। दाहिने से सातवीं गुफा दैत्य की है। उसी में तुम भीतर जाना बिल्कुल अंत तक, जहाँ घना अँधेरा होगा। हम तुम्हें एक मोमबत्ती और माचिस दे देंगे जिससे तुम्हें रास्ता सूझता रहेगा। ध्यान रहे तुम्हें गुफा के अंदर ठीक दोपहर में जाना होगा, जब दैत्य बाहर रहता है। वहाँ तुम्हें दैत्य की स्त्री मिलेगी जो बहुत बुद्धिमान है, वही तुम्हारी रक्षा करेगी और तुम्हें बताएगी कि क्या करना है। दैत्य की ओर से तुम सदा सावधान रहना तनिक सी चूक होने पर ही दैत्य तुम्हें खा जाएगा।”
“आप कितने अच्छे हैं बाबाजी, जो आपने वे सब बातें बताई जो मुझे मालूम नहीं थीं।”
“अब मैं तुम्हें वह भी बताता हूँ जो तुम्हें हमारे लिए करना है। इस आश्रम में हम सभी लोग न जाने कितने वर्षों से शान्तिपूर्वक रह रहे थे। लेकिन पिछले दस सालों से हम लोग ध्यान-साधना कुछ नहीं करते, बस आपस में लड़ते रहते हैं। एक को कुछ चहिए तो दूसरे को कुछ और, बहसों में ही सारी ज़िन्दगी निकल रही है। ऐसा क्यों है?”
अगले दिन सेवक पहाड़ की चोटी पर जा पहुँचा, तब तक दिन बहुत चढ़ आया था। जब सूरज सिर के ठीक ऊपर पहुँच गया, दोपहर हो गई तब उसने सातवीं गुफा में प्रवेश किया। वहाँ घुप्प अँधेरा था, उसने मोमबत्ती जलाई और आगे बढ़ा। उसे एक द्वार दिखाई दिया, खटखटाने पर एक बहुत सुंदर स्त्री ने दरवाज़ा खोलकर पूछा, “आप कौन हैं? और यहाँ क्यों आए हैं? क्या आपको मेरे पति के बारे में नहीं मालूम कि वह जिस आदमी को भी देखता है उसे खा जाता है!”
“मैं अपने मालिक की बीमारी दूर करने के लिए आपके पति के शरीर का बाल लेने आया हूँँ। अब तो मैं यहाँ तक आ ही गया हूँँ, तो अपना भाग्य आज़माएँ बिना नहीं जाऊँगा। दैत्य मुझे खाता है तो खाले!”
“सुनो मैं यहाँ कई सालों से रह रही हूँ। अब मैं इस नर्क जैसी जि़न्दगी से थक चुकी हूँँ, तुम मेरी मदद करो तो हम दोनों यहाँ से भाग सकते हैं। दैत्य की नज़र तुम पर किसी हाल में नहीं पड़नी चाहिए, नहीं तो वह तुम्हें तुरंत खा जाएगा। मैं तुम्हें चारपाई के नीचे छुपा दूँगी। रात में जब दैत्य सो जाएगा, तब मैं उसके बाल तुम्हारे लिए उखाड़ दूँगी। कितने बाल चाहिए तुम्हें?” दैत्य स्त्री ने सारी योजना सेवक को समझा दी।
“चार बाल” सेवक बोला! उसने राजा, केवट, सराय वाले, अमीर भाइयों के लिए बाल और साधुओं के प्रश्नों के बारे में भी दैत्य की पत्नी को बता दिया।
लड़की ने सेवक को खाना दिया और उसके साथ बातें करती रही। उसने बताया कि जब दैत्य भूखा होता है, तब वह मानुस गंध बहुत जल्दी सूँघता है। अगर उसका पेट भरा हो तो उसे परवाह नहीं होती। ऐसा बताते-बताते लड़की दैत्य के लिए खाना भी बनाती रही। शाम होते ही बहुत ज़ोर का शोर सुनाई दिया मानो अंधड़ आ रहा हो। सेवक भाग कर चारपाई के नीचे घुस गया। दैत्य एक तूफ़ान की तरह घर में घुसा। वह ज़ोर-ज़ोर से साँस ले रहा था और कह रहा था:
“आती है आती है
मानुस गंध आती है,
छुपा है कोई यहीं कहीं,
मेरी नाक बताती है
आती है आती है
मानुष गंध आती है”
तब दैत्य की पत्नी बोली, “बेकार की बातें न करो, तुम भूखे हो इसलिए तुम्हें हर जगह ‘मानुस गंध’ आती है। चुपचाप बैठो और खाना खा लो।”
दैत्य ने खाना तो खा लिया लेकिन ‘मानुष-गंध’ उसे फिर भी आती रही। वह पूरे घर में किसी मनुष्य को खोजता फिरा, यहाँ तक कि वह थक गया। क्रोध में भरकर दैत्य की स्त्री ने कहा, “मैं भी तो मानुस हूँ, मुझे खा लो और सो जाओ। अब तक दैत्य को नींद आने लगी थी, वह बिस्तर में जा लेटा। जल्दी ही सो भी गया।
राजा का सेवक चारपाई के नीचे साँस रोके पड़ा हुआ था।
कुछ देर में स्त्री की फुसफुसाहट की आवाज़ सुनाई दी, वह कह रही थी, “ध्यान से सुनो, मैं सपना देखने का बहाना करके इसके शरीर के बाल उखाड़ने जा रही हूँँ।”
उसने एक बाल उखाड़ कर चारपाई के नीचे हाथ बढ़ा दिया, सेवक। ने दैत्य का बाल ले लिया। तभी दैत्य चिल्लाया, “हाय हाय, तुम मेरे बाल क्यों नोंच रही हो?”
“मुझे एक डरावना सपना आया था!”
“तुम सपने में क्या देख रही थी?”
“मैं सपने में पहाड़ के नीचे का आश्रम देख रही थी। साधु होकर भी वे इतनी बुरी तरह लड़ झगड़ रहे थे कि मैं डर गई।“
दैत्य ने कहा, “यह सपना नहीं सच है। साधुओं में इतना झगड़ा इसलिए होता है क्योंकि एक राक्षस स्वभाव का आदमी उनके बीच में साधु का वेश रख कर रह रहा है।”
“साधु लोग उससे छुटकारा कैसे पा सकते हैं?”
“उन साधुओं को परोपकार के कई काम एक साथ शुरू करने होंगे, तभी वे उन कामों में सहायता न करने वाले को पहचान पाएँगे। वे आश्रम से उसे बाहर निकाल दें तो लड़ाइयाँ बंद हो सकती हैं।”
इतना कहकर दैत्य खर्राटे भरने लगा। कुछ देर शान्ति रही। फिर दैत्य की पत्नी ने दैत्य के शरीर से एक बाल उखाड़ा। वह चौंक उठा, “ओह! दर्द हो रहा है!”
“मैं सपना देख रही थी,” स्त्री धीरे से बोली।
“फिर? इस बार क्या देख रही थी?”
“तुमको दो रईस भाइयों के घर के बग़ीचे में लगा हुआ फ़व्वारा याद है? मैंने सपने में देखा कि वह फुहारा सूख गया है। भला ऐसा कैसे हो गया?”
“आज तो तुम सारे सच्चे सपने देख रही हो! यह सच है कि उन रईस भाइयों के बग़ीचे का फ़व्वारा सूख गया है, कारण यह है कि जहाँ से फ़व्वारा में पानी जाता है, वहाँ एक साँप कुंडली मारे बैठा है। फुहारे के पास की ज़मीन को खोदते हुए अगर बहुत आराम से उसके मुख तक पहुँच जाए और उस साँप को वहाँ से हटा दिया जाए तो फ़व्वारा फिर से सुनहला और रुपहला पानी फेंकने लगेगा!”
दैत्य की पत्नी ने कुछ देर तक सोने का नाटक किया और उसके बाद फिर दैत्य के शरीर से एक बाल तोड़ लिया।
दैत्य चिंहुक उठा, “लगता है तुम आज मेरे शरीर पर उगे सारे बाल उखाड़कर ही दम लोगी!”
“माफ़ कर दो, मुझे फिर सपना आ गया था। न जाने क्यों गहरी नींद नहीं आ रही है!”
“अब की बार क्या सपना देखा? भला बताओ तो।“
“मैंने सपने में एक ऐसा मल्लाह देखा जो कभी अपनी नाव से उतर ही नहीं पता! सारी दुनिया से कट कर वह बस नाविक हो कर ही रह गया है। उसकी हालत देखकर मुझे इतना दुख हुआ कि मैं सपने से जाग पड़ी।”
“तुम बिल्कुल सच कह रही हो। वह नाविक इतना बेवुक़ूफ़ है कि सवारी को उतर जाने देता है और स्वयं नाव पर बैठा ही रह जाता है। अगर वह यात्री के उतरने से पहले उनसे किराया ले ले और यात्री को नाव में छोड़कर तट पर उतर जाए तो वह तो नाव पर से उतर आएगा और यात्री नाव पर ही रह जाएगा, जब तक कि उसे अगला यात्री न मिल जाए। मैं ने ही उस नाव पर ऐसा मंत्र करवाया है कि नाव कभी ख़ाली न रहे।”
थोड़ी सी ही देर के बाद स्त्री ने दैत्य के शरीर से चौथा बाल भी उखाड़ लिया। अब दैत्य की खीझ बेक़ाबू हो रही थी, “लगता है आज तुम न सोओगी और ना मुझे ही सोने दोगी। तुम कहीं और जाकर लेटो, मैं दिन भर का थका हूँ मुझे सोने दो।”
“मैं ख़ुद भी परेशान हो गई हूँ, पलक झपकते ही तो सपना आ जाता है। अभी सपने में एक आदमी सालों पहले खोई हुई बेटी के ग़म में पागल हो, मरने की तैयारी कर रहा था,” रुआँसी स्त्री बोली।
“हो सकता है तुमने अपने पिता को ही सपने में देखा हो, वह एक सराय चलाता है,” ऐसा कहकर पत्थर-दिल दैत्य फिर सो गया।
राजा के सेवक को अब तक दैत्य के देह के चार बाल मिल गए थे। वह भी निश्चिंत हो गया था।
सुबह हुई दैत्य अपनी पत्नी से विदा ले काम पर निकल गया। सेवक चारपाई के नीचे से बाहर निकाला। उसने दैत्य की पत्नी से मिले हुए दैत्य के शरीर के चार बाल सावधानी से एक कपड़े में बाँध लिए। फिर सेवक और स्त्री एक दूसरे का हाथ पकड़ कर गुफा से भाग निकले।
सबसे पहले वे आश्रम में रुके। उन्होंने साधुओं को ‘नक़ली साधु’ की बात बता दी और उससे छुटकारा पाने का उपाय भी।
आगे बढ़ने पर वे उन रईस भाइयों के घर में पहुँचे, वहाँ उनको एक बाल दिया और फव्वारे को ठीक करने का उपाय उन्हें बताया, फिर अपनी डगर चल पड़े।
अब वे दोनों नदी किनारे पहुँचे। वहाँ उन्होंने केवट को दैत्य का बाल दिया। वह बहुत ख़ुश हुआ और उसे अपना प्रश्न भी याद आया। बोला, “दैत्य ने क्या मेरे बारे में भी कुछ बताया?”
“वह बात हम तुम्हें उस पार पहुँच कर बताएँगे,”सेवक ने उत्तर दिया।
दूसरे किनारे पर पहुँचकर जब दोनों नाव से उतर गए, तब सेवक ने उसे दैत्य की कही सारी बात बता दी कि वह नाव पर से कैसे हट पाएगा।
सराय पहुँचने पर राजा का सेवक दूर से ही ख़ुशी से चिल्लाया, “देखो, देखो, मैं तुम्हारी बेटी और दैत्य का बाल दोनों तुम्हारे लिए लेकर आया हूँ।”
लड़की के पिता ने तुरंत उसकी शादी राजा के सेवक से करनी चाहिए परन्तु उस स्वामीभक्त ने कहा, “मैं पहले अपने बीमार राजा के पास जाऊँगा और। दैत्य का बाल वहाँ दूंँगा। फिर यदि उनकी आज्ञा हुई तो तुम्हारी लड़की से शादी करूँगा।”
राजा का सेवक दैत्य का बाल लेकर उनके पास पहुँचा। ओझा-सोखा लोगों ने मिलकर दैत्य के बाल से राजा का इलाज किया। वह स्वस्थ हो गया और अपने स्वामीभक्त सेवक को बहुत सारा इनाम दिया।
यह सब हो जाने के बाद सेवक ने विनम्रता से राजा से पूछा, “स्वामी, यदि आपकी आज्ञा हो तो, मैं एक सराय के मालिक की बेटी से शादी करना चाहता हूँँ।”
विवाह की बात सुनकर राजा ने अपने प्रिय सेवक का पुरस्कार दुगना कर दिया और उसे विवाह कीअनुमति भी दे दी।
उधर गुफा में रहने वाले दैत्य की क्या दशा हुई?
जब उसने देखा कि उसकी सेवा करने वाली स्त्री वहाँ नहीं है तो वह उसकी खोज में निकल पड़ा, यह निश्चित करके कि इस बार जब वह मिली तो उसे तुरंत खा लेगा, वह आदमखोर तो था ही!
वह नदी तक आया वहाँ उसे मल्लाह नाव में बैठा मिला। दैत्य कूद कर नाव में बैठ गया और बोला, “तुरंत उस पार चलो।”
मल्लाह ने कहा, “पहले तुम किराया दो फिर उस पर पहुँचाऊँगा!”
दैत्य ने किराया दे दिया। उसे यह मालूम नहीं था कि मल्लाह को गुप्त बात मालूम हो चुकी है। दूसरे किनारे पर पहुँचने से पहले ही मल्लाह नाव पर से छलाँग लगाकर धरती कूद गया और दैत्य कभी नाव पर से उतर ही नहीं पाया!
कौन जाने की वह किसी देश की, किसी नदी पर चलने वाली, किसी नाव पर आज भी बैठा हो!!!
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