बेला के फूल

01-05-2022

बेला के फूल

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 204, मई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

बसंत के अंत और ग्रीष्म के आरंभ में
मेरे बग़ीचे का बेला कलियों से भरता है, 
 
संध्या समय इसकी कुछ कलिकाएँ
सजग प्रफुल्लित प्रस्फुटित हो जाती हैं, 
किसी अभिसारिका की वेणी में गुँथ कर 
ये प्रेमी युगल के हृदयों को महकाती हैं, 
 
बचे हुए कुछ फूल
सुबह सवेरे किसी पुजारिन की डलिया में जा 
देवता के चरणों में अर्पित हो जाते हैं, 
 
मेरे जैसे कुछ विलंबित सैलानी
बचे-खुचे खिले एकाध फूल
कभी-कभी भाग्य से पा जाते हैं, 
रखकर कटोरी में इन्हें वे दिनभर
अपना घर-द्वार गमकाते हैं, 
 
मुग्धा, पुजारिन या सैलानी कोई भी हो
चुनने वालों की उँगलियों को ये पुष्प
सुरभित कर जाते हैं, 
 
मात्र एक दिन का लघु जीवन पाने वाले
ये श्वेत पुष्प, सब को सुवासित कर
स्वयं कुम्हला जाते हैं, 
 
कोई इन्हें ना चुने तो भी
ये मोगरे के फूल ग्रीष्म की रजनी को
कुछ शीतल सा सुगंधित करके
अपने जीवन को सार्थक कर जाते हैं
 
मेरे बग़ीचे के यह श्वेत, कोमल, 
बेला के फूल मुझको 
कुछ सोचने पर विवश कर जाते हैं

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