पंडुक सुन्दरी
सरोजिनी पाण्डेय
मूल कहानी: ला रागाज़ा कोलंबा; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द डव गर्ल); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय
किसी समय की बात है, एक बहुत दीन-हीन, ग़रीब लड़का था। एक दिन उस पर ऐसा दुर्दिन आया कि घर में खाने तक को कुछ न बचा। वह समुद्र के किनारे जाकर बैठ गया और इस जीवन को सुधार पाने का उपाय सोचने लगा। कुछ समय बाद जब उसने सिर उठाकर देखा तो एक परदेसी को अपने सामने खड़ा पाया। उस परदेसी ने लड़के से पूछ लिया, “क्या बात है बेटा, तुम बहुत उदास और परेशान लग रहे हो?”
“मैं भूख से मर रहा हूँ, मेरे पास कुछ खाने तक को नहीं है और भूख से बचने का कोई रास्ता भी सुझाई नहीं दे रहा है।”
“तुम चिंता न करो, बस मेरे साथ चलो, मैं तुमको खाना-पैसा और जो कुछ भी तुम चाहो, दूँगा।”
“इसके बदले में मुझे क्या करना होगा?” उस नौजवान ने पूछा।
“ज्या़दा कुछ नहीं, बस साल में एक दिन तुम्हें मेरे साथ काम करना पड़ेगा।”
नवयुवक को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। दोनों ने इक़रारनामे पर दस्तख़त कर दिए और दिन मज़े में कटने लगे। नौजवान को सचमुच ही कोई काम नहीं करना पड़ता था।
फिर एक दिन सुबह-सवेरे ही परदेसी ने लड़के को बुलाया और कहा, “दो घोड़े तैयार करो, हमें काम पर निकलना है।”
लड़के ने तुरंत आज्ञा का पालन किया और वे चल पड़े। बड़ी देर तक चलने के बाद वे एक बड़े पहाड़ की तलहटी में पहुँच गए, “अब तुम्हें पहाड़ की चोटी तक चढ़ाई करनी है,” परदेसी मालिक ने कहा
“यह मैं कैसे कर पाऊँगा?”
“यह तो मैं तुम्हें बताऊँगा!”
“अगर मैं न चाहूँ तो?”
“इक़रारनामें में लिखा हुआ है कि साल में एक बार तुमसे कोई भी काम, मैं, करवा सकता हूँ। अब चाहो या ना चाहो तुम्हें पहाड़ की चोटी पर जाना ही होगा और वहाँ जितने भी पत्थर मिलें, तुम्हें मेरे पास नीचे ज़मीन पर फेंकना होगा।”
ऐसा कहकर उस परदेसी ने एक घोड़े को मार डाला उसकी खाल उतारी और नवयुवक को वह खाल पहना दी। इसी समय एक बाज़ ने, जब ज़मीन पर मरा हुआ घोड़ा देखा तो वह नीचे मँडराया और घोड़े की खाल के खोल में बंद नवयुवक को लेकर उड़ गया। पहाड़ की चोटी पर पहुँचकर जैसे ही बाज़ ने अपना शिकार ज़मीन पर रखा, नौजवान घोड़े की खाल से बाहर निकल भागा।
“पत्थर मेरे ऊपर फेंको!” नीचे से परदेसी चिल्लाया।
लड़के ने अपने आसपास देखा, उसे कहीं पत्थर तो नज़र ही नहीं आए, बस चमकदार हीरे, जवाहरात सोने की ईंटें इधर-उधर पत्थर की तरह ही बिखरी पड़ी पड़ी थीं। नवयुवक ने नीचे झाँका। परदेसी चींटी जैसा दिखाई दिया जो गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रहा था, “मेरे ऊपर सारे पत्थर फेंको, जल्दी करो भाई! देर किस बात की?”
अब नवयुवक सोचने लगा—अगर मैं परदेसी के लिए ये बेशक़ीमती पत्थर नीचे फेंक दूँगा तो वह मेरा परदेसी मालिक तो सब कुछ लेकर चलता बनेगा। मैं यहाँ पहाड़ की चोटी पर अकेला ही रह जाऊँगा। इससे तो अच्छा है कि मैं अपनी शक्ति भर कुछ उठा लूँ और नीचे उतरने की कोशिश करूँ। शायद इस मुसीबत से बच निकलूँ।
वह नौजवान कुछ देर के लिए पहाड़ की चोटी पर इधर-उधर टहलने लगा। सहसा उसे कुँए के मुहाने जैसा कुछ दिखाई दिया। उसने पहले तो अंदर झाँका फिर कुएँ की जगत पर चढ़कर भीतर उतर गया और फिर . . . देखता क्या है कि वह एक शानदार महल के द्वार पर खड़ा है। यह सयाने जादूगर का महल था।
युवक को वहाँ देखकर सयाने ने उससे पूछा, “तुम यहाँ मेरे पर्वत पर क्या कर रहे हो? अब मैं तुम्हें भून कर, तुम्हारे गोश्त से दावत उड़ाऊँगा। तुम ज़रूर उस परदेसी के लिए मेरे पत्थर चुराने आए हो। वह हर बरस भादों की अमावस को यही करता है और मैं हर बरस उसके ख़रीदे हुए ग़ुलाम का यही हाल करता हूँ।”
यह सब सुनकर युवक सयाने जादूगर के पैरों पर गिर पड़ा और क़सम खाकर गिड़गिड़ाने लगा कि उसने तो एक भी पत्थर नहीं उठाया है, चाहे उसकी तलाशी ले ली जाए।
“अगर तुम सच बोल रहे हो तो तुम्हारी जान बख्श़ दूँगा,” सयाने ने उत्तर दिया और फिर अपने जादू के पत्थरों को गिनने लगा।
जब पत्थर पूरे निकले तो उसने नौजवान से कहा, “तुम सच बोल रहे हो इसलिए मैं तुम्हें मारूँगा नहीं और अपनी नौकरी में भी रख लूँगा! मेरे पास बारह घोड़े हैं, रोज़ सुबह उठकर तुम्हें हर घोड़े को निन्यानबे बार चाबुक से मारना होगा। चोट इतनी ज़ोर से मारनी होगी कि मुझे यहाँ तक सुनाई दे, जहाँ इस समय हम दोनों खड़े हैं। सारी बातें समझ में आ गई हैं न!”
अगली सुबह नौजवान सेवक एक मज़बूत चाबुक लेकर घोड़ों के अस्तबल में पहुँचा। घोड़ों को देखकर उसे उन पर दया आ गई, उससे चाबुक चलाते नहीं बनी। अभी वह किंकर्तव्यविमूढ़ बना खड़ा ही था कि एक घोड़ा उससे मुख़ातिब होकर बोला, “बड़ी कृपा होगी तुम्हारी, हमें मत मारो, हम भी तुम्हारी तरह मनुष्य ही थे, जादूगर ने हमें घोड़ा बना दिया है। तुम चाबुक को ज़मीन पर पटको और हम उसी तरह हिनहिनाएँगे जैसे चाबुक की मार खाकर हिनहिनाते . . .” नौजवान को यह चाल अच्छी लगी और उसने वही किया। जादूगर ने आवाज़ें सुनी और संतुष्ट हो गया। यह सिलसिला चल निकला।
लड़के की सेवा और दया से ख़ुश होकर एक दिन एक घोड़े ने लड़के से कहा, “सुनो जवान, अगर तुम अपना भाग्य आज़माना चाहो तो बग़ीचे में जाओ। वहाँ तुम्हें एक सुंदर बावड़ी मिलेगी। हर सुबह वहाँ बारह पंडुकें पानी पीने आती हैं। वे पानी में डुबकी लगाती हैं और फिर सूरज की किरणों की तरह चमचमाती युवतियाँ बनकर बाहर निकलती हैं। अपनी पंडुकी की पोशाकें वे पास के पेड़ की डालियों पर लटका देती हैं और कुछ समय तक पानी में तैरती-खेलती हैं । उस समय तुम पेड़ पर चढ़कर छुप जाना और जब वह पंडुक-सुंदरियाँ ताल के बीच में पहुँचकर खेलने लगें, तब सबसे सुंदर पंडुक की पोशाक अपने कपड़ों के अंदर छुपा लेना। वह चाहे जितनी चिरौरी-विनती करे उसकी पोशाक मत लौटाना, नहीं तो वह फिर पंडुकी बन उड़ जाएगी।”
नौजवान ने जब बग़ीचे में बावड़ी ढूँढ़ ली तो वह रात में ही बावड़ी के पास के पेड़ों के झुरमुट में छुप गया।
अगली सुबह उसने पंखों की फड़फड़ाहट सुनी और धीरे-धीरे पंडुकों का झुंड भी दिखाई पड़ गया। पहले तो ताल से जी भर कर उन्होंने पानी पिया। फिर एक-एक करके ताल में उतर गईं, डुबकी लगाकर स्वर्ग की अप्सरा जैसी सुंदर होकर निकलीं। अपनी पंडुक के खोल तट पर रखकर वे सब जलक्रीड़ा में मग्न हो गईं। नौजवान धीरे-धीरे रेंगता हुआ गया और एक खोलरी अपने कपड़ों में छुपा ली। उस पर नज़र पड़ते ही सारी पंडुकें अपने-अपने खोल पहनकर उड़ गईं। बस एक पंडुकी, जिस की पोशाक नौजवान के पास थी, वहाँ बची रह गई। जब उसने अपनी पोशाक नौजवान से माँगी तो वह पोशाक लिए-लिए ही बगटुट भागा और पंडुक-सुंदरी उसके पीछे!
लड़का घोड़े के बताए रास्ते पर दौड़ रहा था सहसा उसे लगा कि वह तो अपने घर के पास ही पहुँच गया है। वह जान हथेली पर लेकर तेज़ी से दौड़ा और सुंदरी भी उसके पीछे-पीछे आती ही रही।
आख़िरकार वह अपने घर ही पहुँच गया। लड़के ने अपनी माता से इस सुंदरी को अपनी ‘दुलहन’ कह कर मिलवाया और माँ से यह भी कहा कि किसी भी हाल में वह उसकी दुलहन को घर से बाहर निकलने न दे।
नौजवान ने एक चालाकी और की थी, रात में तालाब के किनारे छुपने से पहले उसने अपनी जेब में हीरे-जवाहरात भर लिए थे। अब घर पहुँचकर सबसे पहले वह उनको बेचने की तैयारी करने लगा। अपनी दुलहन को अपनी माँ की निगरानी में छोड़ वह हीरे-जवाहरात बेचने के लिए बाज़ार चला गया।
इधर घर में पंडुक-सुंदरी लगातार रोती-बिलखती जा रही थी। जब कई घंटों तक ‘मेरी पोशाक दे दो, मेरे कपड़े दे दो’ कह कर वह रोती रही तो नौजवान की माँ परेशान हो गई।
वह बोली, “इस लड़की का शोर और रोना सुन और उसका बिलखना देखकर तो मैं पागल ही हो जाऊँगी। ढूँढ़ती हूँ, शायद इसकी पोशाक मुझे दिख जाए!” और माँ बेचारी घर भर में पंडुक की पोशाक खोजने लगी। बड़ी देर तक खोजने के बाद एक पुराने बक्से में उसे पंडुक-सुंदरी की सफ़ेद पंखों वाली पोशाक मिल ही तो गई!
उसने सुंदरी से पूछा, “बेटी क्या यही तुम्हारी पोशाक है, जिसके लिए तुम परेशान हो?” पोशाक देखते ही बेटे की ‘दुलहन’ का रोना रुक गया। उसने झपट कर वह पोशाक ले ली और पहनकर पंडुकी बन फुर्र से बाहर उड़ गई।
बूढ़ी माँ डर से पीली पड़ गई।
‘अब जब मेरा बेटा आएगा तो उसे क्या जवाब दूँगी? बहू के ग़ायब होने की बात कैसे बताऊँगी?’
अभी वह बेचारी यह सब सोचकर परेशान हो रही थी कि बेटा वापस आ गया। अपनी दुलहन को नदारद देखकर बेतहाशा चिल्लाने लगा, “हाय माँ, यह तुमने क्या अनर्थ कर दिया! तुमसे ऐसी उम्मीद न थी।”
नौजवान अपना सिर पकड़ कर बैठ गया। कुछ देर बाद वह सँभला और रास्ते में खाने के लिए दो रोटियाँ अपने साथ बाँध, माँ के पैर छुए और बोला, “माँ, मुझे आशीर्वाद दो! मैं तुम्हारी बहू को ढूँढ़ने जा रहा हूँ।”और घर से निकल गया।
जब वह जंगल से होकर जा रहा था तो उसने देखा कि तीन डाकू लूट का सामान आपस में बाँट रहे थे। उसे देखकर वे बोले, “तुम अच्छे आए। आओ तुम हमारा फ़ैसला कर दो। तुम बाहरी हो इसलिए बेईमानी नहीं करोगे। हमने तीन चीज़ें चुराई हैं, अब यह बँटवारा करना है कि किसको क्या मिले।”
“वे तीन चीज़ें क्या है?” नौजवान ने पूछा।
“एक बटुआ जो हर समय धन से भरा रहता है, चाहे जितना ख़र्च करो। एक जोड़ा जूते, जिसे पहन कर हवा से भी तेज़ चला जा सकता है और एक ऐसा चोग़ा जिसे लपेटकर अदृश्य हुआ जा सकता है,” डाकुओं ने बताया।
“ठीक है, तो पहले मुझे इन सब जादुई चीज़ों की जाँच तो कर लेने दो।”
अब नौजवान ने सबसे पहले जूते पहने, फिर बटुआ उठाया और चोग़ा लपेटकर डाकुओं से पूछा, “क्या मैं दिखाई पड़ रहा हूँ?”
तीनों डाकू एक स्वर में बोले, “नहींs s s”
“और अब कभी दिखाई भी नहीं पड़ूँगा!”
यह कह कर वह हवा की गति से उड़कर सयाने जादूगर के पर्वत पर जा पहुँचा, उसने जादुई जूते जो पहने थे!
पर्वत पर पहुँचकर वह फिर बावड़ी के पास पहुँच गया। समय होने पर बारह पंडुकें फिर तालाब पर नहाने आईं। नौजवान ने अपनी दुलहन पंडुकी की पोशाक उठा ली, वह अदृश्य जो था! पंडुक सुंदरी ‘मेरी पोशाक दो, मेरे कपड़े दो’ कहती हुई दौड़ी, लेकिन इस बार नौजवान सावधान था, उसने तुरंत उस पंडुक-सुंदरी की सफ़ेद पंखों वाली पोशाक में आग लगा दी!
“यह तुमने बहुत अच्छा किया,” पंडुक-सुंदरी बोली, “अब मैं हमेशा के लिए तुम्हारी दुलहन बन कर रह सकती हूँ! लेकिन इसके लिए पहले तुम्हें सयाने जादूगर का सिर काटना पड़ेगा! फिर अस्तबल के बारह घोड़ों को इंसान बनाना होगा। ऐसा करना कोई कठिन नहीं है, बस उनकी आयल से तीन-तीन बाल उखाड़ कर फेंक देने होंगे।”
अब नौजवान ने फिर से जादुई चोग़ा पहना और अदृश्य होकर सयाने जादूगर की गर्दन उड़ा दी। फिर बारह सैनिकों को घोड़े के रूप की क़ैद से आज़ाद किया।
जितने हो सकते थे, उतने जवाहरात उठाए और पंडुक-सुंदरी को अपनी दुलहन बना कर घर ले आया!
यह सुंदरी भी किसी राज्य की राजकुमारी थी जिसे सयाने जादूगर ने अपनी माया में क़ैद कर रखा था।
अच्छा जी,
तो यह कहानी हुई ख़त्म,
और पैसा भी हो गया हज़म!
अगर दिया भाग्य ने साथ,
एक और कहानी पढ़ेंगे आप।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- अनूदित लोक कथा
-
- तेरह लुटेरे
- अधड़ा
- अनोखा हरा पाखी
- अभागी रानी का बदला
- अमरबेल के फूल
- अमरलोक
- ओछा राजा
- कप्तान और सेनाध्यक्ष
- काठ की कुसुम कुमारी
- कुबड़ा मोची टेबैगनीनो
- कुबड़ी टेढ़ी लंगड़ी
- केकड़ा राजकुमार
- क्वां क्वां को! पीठ से चिपको
- गंध-बूटी
- गिरिकोकोला
- गुनी गिटकू और चंट-चुड़ैल
- गुमशुदा ताज
- गोपाल गड़रिया
- ग्यारह बैल एक मेमना
- ग्वालिन-राजकुमारी
- चतुर और चालाक
- चतुर चंपाकली
- चतुर फुरगुद्दी
- चतुर राजकुमारी
- चलनी में पानी
- छुटकी का भाग्य
- जग में सबसे बड़ा रुपैया
- ज़िद के आगे भगवान भी हारे
- जादू की अँगूठी
- जूँ की खाल
- जैतून
- जो पहले ग़ुस्साया उसने अपना दाँव गँवाया
- तीन कुँवारियाँ
- तीन छतों वाला जहाज़
- तीन महल
- दर्दीली बाँसुरी
- दूध सी चिट्टी-लहू सी लाल
- दैत्य का बाल
- दो कुबड़े
- नाशपाती वाली लड़की
- निडर ननकू
- नेक दिल
- पंडुक सुन्दरी
- परम सुंदरी—रूपिता
- पाँसों का खिलाड़ी
- पिद्दी की करामात
- प्यारा हरियल
- प्रेत का पायजामा
- फनगन की ज्योतिष विद्या
- बहिश्त के अंगूर
- भाग्य चक्र
- भोले की तक़दीर
- महाबली बलवंत
- मूर्ख मैकू
- मूस और घूस
- मेंढकी दुलहनिया
- मोरों का राजा
- मौन व्रत
- राजकुमार-नीलकंठ
- राजा और गौरैया
- रुपहली नाक
- लम्बी दुम वाला चूहा
- लालच अंजीर का
- लालच बतरस का
- लालची लल्ली
- लूला डाकू
- वराह कुमार
- विनीता और दैत्य
- शाप मुक्ति
- शापित
- संत की सलाह
- सात सिर वाला राक्षस
- सुनहरी गेंद
- सुप्त सम्राज्ञी
- सूर्य कुमारी
- सेवक सत्यदेव
- सेवार का सेहरा
- स्वर्ग की सैर
- स्वर्णनगरी
- ज़मींदार की दाढ़ी
- ज़िद्दी घरवाली और जानवरों की बोली
- कविता
-
- अँजुरी का सूरज
- अटल आकाश
- अमर प्यास –मर्त्य-मानव
- एक जादुई शै
- एक मरणासन्न पादप की पीर
- एक सँकरा पुल
- करोना काल का साइड इफ़ेक्ट
- कहानी और मैं
- काव्य धारा
- क्या होता?
- गुज़रते पल-छिन
- जीवन की बाधाएँ
- झीलें—दो बिम्ब
- तट और तरंगें
- दरवाज़े पर लगी फूल की बेल
- दशहरे का मेला
- दीपावली की सफ़ाई
- पंचवटी के वन में हेमंत
- पशुता और मनुष्यता
- पारिजात की प्रतीक्षा
- पुरुष से प्रश्न
- बेला के फूल
- भाषा और भाव
- भोर . . .
- भोर का चाँद
- भ्रमर और गुलाब का पौधा
- मंद का आनन्द
- माँ की इतरदानी
- मेरी दृष्टि—सिलिकॉन घाटी
- मेरी माँ
- मेरी माँ की होली
- मेरी रचनात्मकता
- मेरे शब्द और मैं
- मैं धरा दारुका वन की
- मैं नारी हूँ
- ये तिरंगे मधुमालती के फूल
- ये मेरी चूड़ियाँ
- ये वन
- राधा की प्रार्थना
- वन में वास करत रघुराई
- वर्षा ऋतु में विरहिणी राधा
- विदाई की बेला
- व्हाट्सएप?
- शरद पूर्णिमा तब और अब
- श्री राम का गंगा दर्शन
- सदाबहार के फूल
- सागर के तट पर
- सावधान-एक मिलन
- सावन में शिव भक्तों को समर्पित
- सूरज का नेह
- सूरज की चिंता
- सूरज—तब और अब
- सांस्कृतिक कथा
- आप-बीती
- सांस्कृतिक आलेख
- यात्रा-संस्मरण
- ललित निबन्ध
- काम की बात
- यात्रा वृत्तांत
- स्मृति लेख
- लोक कथा
- लघुकथा
- कविता-ताँका
- सामाजिक आलेख
- ऐतिहासिक
- विडियो
-
- ऑडियो
-