मैं नारी हूँ

15-10-2024

मैं नारी हूँ

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 263, अक्टूबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

मैंं नारी हूँ सुरसरि जैसी, 
मैंं जग-पोषक, मैंं भर्ता हूँ
मैंं हूँ लक्ष्मी, मैंं ही दुर्गा, 
मैंं जग तारिणी कहलायी हूँ, 
 
ज्यों निकली ब्रह्म कमंडलु से
सिरजन की शक्ति रखती हूँ, 
कुछ अणु रख अपनी कुक्षी में
जगती को जीवन देती हूँ।
 
अपने स्तन से पान करा
मैंंने ही संतति पोसी है, 
मेरी मति-मेधा के कारण
सभ्यता यहाँ तक आयी है! 
 
तन में कोमलता है मेरे
जल के जैसी तरलाई है, 
है मन में शक्ति अपार भरी
जो ‘जल-विद्युत’ कहल़ाई है। 
 
बहती जब शांति-सरलता से
वसुधा का सिंचन करती हूँ
यदि उग्र रूप धारण करलूं
जल प्लावन करके गरजती हूँ, 
 
है चाह नहीं पूजी जाऊँ
दूषित हो जाऊँ पुजापे से, 
बहने दो सतत स्वच्छ धारा
कल्याण चाहते यदि मुझसे, 
 
 यदि शिलापात मग में होंगे
 उन पर प्रहार बरसाऊँगी, 
 कुछ क्षण विचलित होगी धारा
 फिर आगे मैंं बढ़ जाऊँगी, 
 
यदि बंध लगेंगे कुछ सुंदर
मैंं विद्युत बन लहराऊंँगी
कर दूंँगी मैंं जग को जगमग
नित नई राह दिखलाऊँगी, 
 
मत रोको तुम मेरा प्रवाह, 
ना जकड़ो कठिन बँधनों में, 
बहने दो मेरी शान्त धार
रखती हूँ अमृत मैंं उर में!!! 

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