सुप्त सम्राज्ञी
सरोजिनी पाण्डेयमूल कहानी: ला रेजिना मार मोटा; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द स्लीपिंग क्वीन); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय
प्रिय पाठक, अब तक जो लोक कथाएँ मैंअनुवाद करती रही हूँ उनको भारतीयता का पुट देने के लिए भारतीय परिवेश की रचना करती रही हूँ। इस अंक में जो कहानी अनुवाद करके प्रस्तुत कर रही हूँ उसमें मैंने वही परिवेश जीवित रखा है जिसमें मूल लोककथा संगृहीत की गई है। इसमें परिवार से संबंधित जो भावनाएँ हैं वे संभवत हर देश के लिए एक जैसी हैं। प्रस्तुत है। लोक कथा ‘सुप्त सम्राज्ञी’:
बात उन दिनों की है जब स्पेन पर एक न्याय प्रिय और सुशासक राजा मैक्समिलन राज्य करता था। उसके तीन बेटे थे विलियम, जॉन और सबसे छोटा था एंड्रयू, पिता का प्यारा और सबसे दुलारा।
किसी बीमारी के चलते राजा की आँखें चली गईं। राज्य के सारे चिकित्सक बुलाए गए लेकिन किसी को कोई इलाज इस बीमारी का मालूम नहीं था। सबसे बूढ़े और अनुभवी चिकित्सक ने कहा, “चूँकि इस तरह की बीमारी के इलाज के बारे में हमारा ज्ञान सीमित है, इसलिए महाराज, आप किसी ज्योतिषी को बुलवा लें!”
आनन-फ़ानन में सारे देश से ज्योतिषी बुला लिए गए। उन्होंने अपनी किताबों को खंगाला, लेकिन वहाँ भी इस बीमारी का कोई इलाज वे भी ना ढूँढ़ पाए। इन्हीं ज्योतिषियों के साथ एक ओझा भी दरबार में आ गया था। जब सब लोग अपनी बात कह चुके तब इस ओझा ने आगे बढ़कर कहा, “मैं इस तरह के अंधेपन के बारे में जानता हूँ, राजा मैक्समिलन, इसका इलाज केवल ‘सुप्त सम्राज्ञी’ के शहर में ही मिल सकता है, उसके कुएँ का पानी!।”
लोग उसकी बात सुनकर हैरान हो गए। अभी ओझा की बात पूरी भी ना हो पाई थी कि वह ग़ायब हो गया और फिर उसका कोई अता-पता ही ना मिला। राजा यह जानने को उत्सुक हो गया कि वह कौन था! क्योंकि उसको किसी ने इसके पहले देखा भी नहीं था अतः ज्योतिषियों में से एक को संदेह हुआ कि हो ना हो, वह पास के राज्य आर्मेनिया से आया हुआ ओझा है, जो जादू के ज़ोर से स्पेन में घुस आया था। राजा ने जानना चाहा क्या सुप्त सम्राज्ञी का राज्य भी आर्मेनिया के आसपास ही होगा। इस पर एक बूढ़े दरबारी ने कहा, “यह बात हम तब तक नहीं जान सकते, जब तक कि हम इसकी खोज न करें! यदि मैं युवा होता तो मैं अवश्य तुरंत इस खोज पर निकल जाता!”
सबसे बड़े राजकुमार विलियम ने इस पर आगे बढ़ कर कहा, “यदि किसी को इस खोज पर जाना चाहिए, तो वह मैं हूँ! प्रथम संतान का यह पहला कर्त्तव्य है कि वह अपने माता-पिता के स्वास्थ्य की चिंता सबसे पहले करे!”
“प्यारे बेटे,” राजा ने कहा, “मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। धन ले लो, घोड़े ले लो और जो कुछ भी तुम्हें चाहिए वह सब ले लो। मैं आशा करूँगा कि तुम तीन महीने में विजयी होकर लौटो।”
राजकुमार विलियम राज्य के बंदरगाह पर गया और बुडा को जाने वाले एक जहाज़ पर सवार हो गया, जो बुडा में तीन घंटे रुक कर आर्मेनिया जाने वाला था। राजकुमार बुडा द्वीप में उतरा और घूमने, द्वीप देखने के लिए निकल पड़ा। घूमते-घूमते वह एक अत्यंत रूपवती स्त्री से मिला। उससे बातें करते-करते तीन घंटे कैसे निकल गए, उसे मालूम नहीं हुआ। जहाज़ अपने नियत समय पर आर्मेनिया की ओर चल पड़ा। पहले तो राजकुमार बहुत दुखी हुआ लेकिन उस सुंदरी के साथ ने उसके मन से सारा दुख और पिता की बीमारी की बातें निकाल दीं। वह अपनी यात्रा का मुख्य उद्देश्य भी भूल गया।
जब तीन महीने बीत गए और राजकुमार का कोई पता न चला तो राजा को भय हुआ कि उसका पुत्र मारा गया है। अंधेपन के दुख के साथ-साथ राजा को पुत्र वियोग का दुख भी मिल गया।
उसे सांत्वना देने के लिए मँझले राजकुमार जाॅन ने सुप्त सम्राज्ञी के कुँए और भाई की खोज में जाने की बात कही। राजा मान तो गया परन्तु उसके मन से पुत्र को खोने का भय नहीं गया।
जहाज़ से यात्रा करने के बाद जॉन भी जल्दी ही बुडाद्वीप पहुँच गया। इस बार जहाज़ बुडा में एक दिन रुकने वाला था। जान भी दीप देखने के लिए, घूमने चल पड़ा। वह जलधारा के ऊपर झुके चीड़ के पेड़ों, फूलों से लदे सावनी के वृक्षों और सुंदर लता-बेलों वाले बग़ीचे में घूमता हुआ आगे बढ़ा। चलते-चलते वह एक चौराहे पर जा पहुँचा, जहाँ संगमरमर के सुंदर फुहारे लगे हुए थे, चौक को घेरती हुई सुंदर इमारतें और भवन खड़े थे। इन सबके बीच में एक शानदार महल था जिसमें सोने और चाँदी के स्तंभ थे और दीवारें पारदर्शक शीशे की थीं, जो धूप में चमचमा रही थीं। यहाँ जॉन ने अपने भाई को शीशे की दीवारों के पार घूमते हुए देखा। विलियम चिल्लाया, “तुम वहाँ क्या कर रहे हो मेरे भाई? तुम घर क्यों नहीं आए? हमें लगा कि तुम मर गए हो!”और दोनों एक दूसरे से गले मिले। अब विलियम ने बताया कि कैसे वह द्वीप पर उतरने के बाद सब कुछ भूल गया क्योंकि वह एक अपूर्व सुंदरी से मिल चुका था।
”उस सुंदरी का नाम लेजिस्टेला है,” उसने कहा, “और उसकी एक छोटी बहन भी है, इसाबेला, यदि तुम चाहो तो वह तुम्हें मिल सकती है!”
कहना न होगा कि इस सब में दिन बीत गया था और जहाज़ जॉन को लिए बिना आगे बढ़ गया था।
थोड़ी देर के दुख के बाद जॉन भी सब कुछ भूल गया, पिता की बीमारी, जादुई पानी, सब कुछ!! और अपने भाई की तरह वह भी इस शीश महल में मेहमान की तरह रहने लगा।
तीन महीने बीत गए। दूसरे पुत्र का भी कोई निशान नहीं था। राजा मैक्समिलन चिंता के मारे अधमरा हो गया।
उसके साथ-साथ सारा दरबार और सारा राज्य आशंका में डूब गया।
ऐसे समय में सबसे छोटे राजकुमार एंड्रयू ने साहसपूर्ण घोषणा की, कि वह अपने भाइयों और सुप्त-सम्राज्ञी के कुँए के जादुई पानी की खोज में जाएगा।
“तो तुम भी मुझे छोड़कर जाना चाहते हो,” राजा ने कहा, “अंधेपन और दुख में तो मैं डूबा ही हूँ, क्या मैं अपने सबसे छोटे बेटे से भी हाथ धो बैठूँगा?” लेकिन एंड्रयू को पूरा विश्वास था कि वह अपने दोनों भाइयों के साथ सुरक्षित और जादुई पानी लेकर ही लौटेगा। अंततः पिता भी उसकी बात से सहमत हो गए।
इस बार भी जहाज़ ने बुडा द्वीप पर लंगर डाला। जहाँ वह दो दिनों तक रुकने वाला था। जहाज़ के कप्तान ने राजकुमार एंड्रयू से कहा, “तुम यहाँ उतर सकते हो, लेकिन यदि तुम चाहते हो कि उन दोनों जवानों की तरह, जो यहाँ उतरे और फिर ग़ायब हो गए, यहीं के न हो जाओ, तो समय से वापस आ जाना!” जॉन समझ गया कि कप्तान उसके ही दोनों भाइयों की बात कर रहा है, जो अवश्य ही कहीं इस द्वीप पर होंगे।
वह भाइयों की खोज में चल पड़ा और उसने शीश महल में उनको पा भी लिया। तीनों भाई एक दूसरे से गले मिले। बड़े भाई ने एंड्रयू से कहा कि कैसे वे जादू के ज़ोर से बूडा पर ही फँस गए, “हम यहाँ सचमुच स्वर्ग में हैं, उसने कहा, “हम दोनों के पास एक-एक सुंदर स्त्री है। इस द्वीप की स्वामिनी मेरे पास है और उसकी छोटी बहन जॉन के पास है। अगर तुम भी यहीं रुक जाओ, तो मुझे पक्का भरोसा है कि कोई ना कोई सुंदर स्त्री तुम्हें भी मिल जाएगी।”
बात को बीच में ही रोककर एंड्रयू बोला, “तुम दोनों सचमुच ही पागल हो गए हो। तुम्हें पिता के प्रति अपने कर्त्तव्य का ज्ञान ही नहीं रहा। मैं सुप्त सम्राज्ञी के कुँए के जादुई पानी की खोज के लिए निकला हूँ। मुझे मेरे कर्त्तव्य पथ से न तो धन, न आनंद और न ही सुंदर स्त्रियाँ डिगा सकती हैं।”
यह सुनने के बाद उसके दोनों भाई चुप हो गए और झुँझलाकर वहाँ से चले गए।
एंड्रयू तत्काल अपने जहाज़ पर वापस आया। लंगर उठा लिया गया था, सही हवाएँ चल रही थीं और जहाज़ सीधे आर्मेनिया की ओर चल पड़ा।
आर्मेनिया की माटी पर पहुँचते ही एंड्रयू ने हर किसी मिलने वाले से सुप्त सम्राज्ञी के शहर का पता पूछना शुरू किया। लेकिन वहाँ किसी ने इसके बारे में सुना ही नहीं था। कई सप्ताह की व्यर्थ खोज के बाद उसे एक वृद्ध के बारे में पता चला, जो एक पहाड़ की चोटी पर रहता था।
“वह एक बूढ़ा आदमी है, बहुत-बहुत बूढ़ा! इतना पुरातन जितनी पुरानी यह दुनिया है, उसका नाम फ़ारफ़ेनेलो है। अगर उसको इस ‘सुप्त सम्राज्ञी’ के शहर का पता नहीं है, तो कोई भी तुम्हें उसका पता नहीं बता सकता!”
एंड्रयू पहाड़ की चढ़ाई चढ़ गया। वहाँ उसने सफ़ेद लंबी दाढ़ी वाले, कमज़ोर बूढ़े को उसकी झोपड़ी में देखा। उससे उसने अपनी तलाश की बात बताई।
वृद्ध फ़ारफ़ेनेलो बोला, “प्यारे नौजवान, मैंने उस महल के बारे में सुना तो है। वह यहाँ से बहुत दूर है । पहले तुम को समुद्र पार करना होगा जिसमें शायद तुम्हें एक महीना भी लग जाए, राह में आने वाले ख़तरों के बारे में तुम्हें मैं क्या बताऊँ! यदि तुमने उस समुद्र को पार भी कर लिया तो भी ख़तरे बने ही रहेंगे! सुप्त सम्राज्ञी के द्वीप के भयंकर, बड़े और घातक ख़तरे! उस द्वीप का ही नाम ‘अश्रु द्वीप’ है। तुम्हें नाम से ही ख़तरों का अनुमान हो रहा होगा।” इतना बता कर बूढ़ा चुप हो गया।
सही जानकारी मिल जाने से एंड्रयू बहुत ख़ुश हुआ और वह ब्रिंडिज़ नामक बंदरगाह से जहाज़ पर चढ़ गया। समुद्र को पार करना बेहद कठिन और ख़तरनाक था क्योंकि उसमें बड़े-बड़े ध्रुवीय भालू तैर रहे थे, जो बड़े से बड़े जहाज़ को भी उलट देने की ताक़त रखते थे। एंड्रयू निर्भीक और साहसी शिकारी था। जहाज़ इन भालू के पंजों से बचता हुआ ‘अश्रु द्वीप’ पर पहुँच गया।
बंदरगाह एकदम सुनसान था। एंड्रयू उतरा और उसने एक संतरी को बंदूक लिए हुए देखा। वह एकदम स्थिर था, कोई गति उसमें न थी। संतरी से उसने राह पूछी लेकिन वह वैसे ही मूर्ति की तरह खड़ा रहा। फिर वह खलासियों के पास पहुँचा कि वे उसका सामान उतारें। लेकिन वे भी मूर्ति की तरह स्थिर थे, उनकी पीठ पर बड़े-बड़े संदूक लदे थे, एक पैर आगे था और एक हवा में उठा हुआ! एंड्रयू शहर में घुस गया रास्ते पर उसने एक मोची को देखा जो जूता सिलते-सिलते मूर्तिवत् हो गया था। एक कहवा घर में एक स्त्री काफ़ी का इंतज़ार कर रही थी और दुकान वाला कॉफ़ी डालते-डालते, और ग्राहक स्त्री कुर्सी में बैठी, मूर्ति बन गये थे। गलियाँ, घर, चौबारे, खिड़कियाँ सब लोगों से भरे हुए थे लेकिन वे सभी मोम की मूर्ति की तरह भिन्न-भिन्न मुद्राओं में जम गए थे, यहाँ तक कि घोड़े, कुत्ते, बिल्ली और सभी जीव मुर्दे की तरह अपने-अपने स्थान पर जमे खड़े थे। मसान जैसी इस ख़ामोशी में चलते-चलते एंड्रयू एक महल के सामने आ खड़ा हुआ जोकि राजाओं और शासकों की मूर्तियों से सजा हुआ था। सुनहरे अक्षरों में लिखा था “एक सूचना” चमचमाते अक्षरों में लिखा था, “पेरिमस द्वीप की शासक, उज्जवल आत्माओं की स्वामिनी के लिए”।
एंड्रयू सोच में पड़ गया, “यह रानी आख़िर होगी कहाँ? कहीं वही तो सुप्त सम्राज्ञी न होगी?” वह संगमरमर की नक़्क़ाशीदार सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर गया। उसने कई ऐसे कमरे पार किए जो सुंदर चित्रों और अपूर्व कलाकृतिओं से सजे थे। हर जगह हथियारों से लैस पहरेदार सावधान की मुद्रा में खड़े थे—शांत, मूर्तिवत! एक ऊँचे मंच पर ज़रीदार चँदोवे से सजा, हीरे-जवाहरात जड़े अस्त्र-शस्त्र से सज्जित सिंहासन था, उस पर संगमरमर की सीढ़ियों से चढ़कर पहुँचा जा सकता था। पास में ही रखे एक सोने के गमले में से निकलकर एक अंगूर की बेल सिंहासन पर लिपट गई थी, जो अंगूर के गुच्छों से लदी थी। इतना ही नहीं बग़ीचे के अनेक फलदार पेड़ पौधे झाड़ बनकर महल की खिड़कियों दरवाज़ों पर फैल गए थे। इतना चलने के कारण एंड्रयू थक गया था और भूखा भी था। उसने पास के एक पेड़ से एक सेब तोड़ा और जैसे ही उसने उसमें दाँत लगाए, उसके आँखों की रोशनी कम होने लगी और थोड़ी ही देर में पूरी ख़त्म हो गई। हे ईश्वर, मैं इस मूर्तियों से भरे देश से बाहर कैसे निकलूँगा? वह हाथ से टटोल-टटोलकर महल से बाहर निकलने की कोशिश करने लगा। चलते-चलते अचानक वह एक गड्ढे में गिरा और नीचे चलता चला गया और सिर के बल पानी में गिर पड़ा। कुछ हाथ पैर मारने से वह पानी से बाहर निकल पाया। जैसे ही उसका सिर पानी से निकला उसे समझ में आ गया कि उसकी दृष्टि फिर वापस आ गई है। और उसके सिर के ऊपर खुला आकाश था। “अच्छा, तो यही वह कुआँ है,” उसने अपने आप से कहा, “जिसके बारे में वह ओझा बता रहा था! इसी पानी से मेरे पिता की आँखें ठीक होंगी। अगर मैं कभी यहाँ से बाहर निकल पाया तो मैं यह पानी पिता के पास ले जा पाऊँगा।” तभी उसकी नज़र कुँए में लटकी एक रस्सी पर पड़ी, वह रस्सी के सहारे चढ़ता हुआ कुँए से बाहर निकल आया।
अब तक रात हो गई थी। इसलिए एंड्रयू ने सोने के लिए एक बिस्तर की तलाश शुरू की। उसको जल्दी ही शाही सजावट वाला एक शयनकक्ष मिल गया, जिसमें एक बहुत बड़ा पलंग था। उस पर एक देवकन्या के समान सुंदर युवती सो रही थी उसका चेहरा शांत था और वह ऐसे सो रही थी मानो किसी ने उस पर जादू कर दिया हो। एंड्रयू ने कुछ देर विचार किया, फिर वह उस पलंग पर ही लेट गया। उसके लेटने से उस सुन्दरी को कोई असुविधा नहीं हुई और पूरी रात आराम से गुज़र गई। सुबह होने पर वह पलंग से नीचे कूदा। उसने एक पत्र लिखा, जो उसने बिस्तर के पास की मेज़ पर छोड़ दिया। पत्र में लिखा था– “२१ मार्च २०३ को स्पेन के राजा मैक्समिलन का बेटा एंड्रयू, इस बिस्तर में सोया” फिर उसने एक बोतल में कुँए का पानी भरा और जिस पेड़ का फल खाने से उसकी आँखों की रोशनी गई थी, उससे एक सेब तोड़ा और घर की ओर चल पड़ा।
वापसी की यात्रा में जहाज़ फिर बीडा बंदरगाह पर आकर रुका। जहाँ एंड्रयू अपने भाइयों से मिलने के लिए उतरा। उसने उन्हें अश्रु दीप के आश्चर्यों के बारे में बताया और उस रात के बारे में भी जब वह एक सोती हुई सुंदरी के बग़ल में सोया था। उसने अपने भाइयों को वह सेब भी दिखाया जिसको खाने से उसकी आँखों की रोशनी चली गई थी, और वह पानी भी जिससे उसकी आँखों की रोशनी वापस आई।
ईर्ष्या में जल उठे दोनों भाइयों ने एंड्रयू के विरुद्ध एक योजना बनाई। उन्होंने जादुई पानी की बोतल चुरा ली और उसकी जगह पर बिल्कुल उसी जैसी दूसरी बोतल रख दी। उन्होंने एंड्रयू को बताया कि वे दोनों भी उसके साथ ही घर चलेंगे जिससे वे अपनी पत्नियों को माता-पिता से मिला सकें।
राजा मैक्समिलन को अपने तीनों पुत्रों को एक साथ देख कर जो आनंद हुआ उसका वर्णन शब्दों में नहीं हो सकता। गले मिलने मिलाने के बाद राजा ने पूछा, “तुम में से सबसे भाग्यशाली कौन निकला?” विलियम और जाॅन चुप रहे।
लेकिन एंड्रयू बोला, “पिताजी मैं बड़े अदब से कहता हूँ कि वह भाग्यशाली मैं ही था, और मैं ही अपने दोनों खोए हुए भाइयों को लेकर आया हूँ। मैं सुप्त सम्राज्ञी के शहर में पहुँच गया था और वहाँ से वह पानी भी ले आया हूँ जिससे आपकी आँखों की रोशनी ठीक हो जाएगी। मैं एक और भी अजूबे की चीज़ लाया हूँ, मैं अभी दिखाऊँगा कि वह कैसे काम करती है।”
ऐसा कहते हुए एंड्रयू ने वह जादुई सेब निकाला और अपनी माँ को खाने को दिया। रानी ने उसमें दाँत लगाए ही थे कि उसी क्षण वह अंधी हो गई और ज़ोर से चीखी।
“माँ, परेशान मत हो क्योंकि इस बोतल के पानी की एक बूँद से ही तुम्हारी आँखें वापस आ जाएँगी और पिता जी की भी, जो कि इतने दिनों से अंधेपन का दुख झेल रहे हैं,” बोतल निकालते हुए एंड्रयू बोला।
लेकिन हाय! यह तो वह पानी था, जो उसके बड़े भाइयों ने बोतल बदल कर दिया था। माँ की नज़र वापस नहीं आई। रानी रोने लगी, राजा क्रोधित हो गए और एंड्रयू थरथर काँपने लगा।
तब उसके दोनों बड़े भाई सामने आए, “ऐसा इसलिए हुआ पिताजी, क्योंकि इसको सुप्त सुंदरी का जादुई पानी मिला ही नहीं था। वह पानी तो हम लाये हैं,” और जैसे ही चुराए हुए जादुई पानी की बूँदे राजा और रानी की आँखों से लगीं, दोनों की नज़र वापस आ गई।
दरबार में हल्ला मच गया। एंड्रयू ने अपने भाइयों को चोर और दग़ाबाज़ कहा और बड़े भाइयों ने उसको को शातिर और झूठा! राजा को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर झगड़ा क्यों हो रहा है!! लेकिन अंत में उन्होंने विलियम और जॉन और उनकी पत्नियों का साथ दिया और एंड्रयू से कहा, “शांत हो जाओ बेशर्म लड़के! मेरा दुख दूर करने के बजाय तुम तो अपनी माँ को भी अंधा करने पर तुले हुए थे! सिपाहियों, इस नामुराद लड़के को यहाँ से ले जाओ। जंगल ले जाकर इसको मार डालो और इसका दिल निकाल कर मेरे लिए ले आओ, नहीं तो यहाँ मार-काट मच जाएगी।”
हाथ पैर पटकते, रोते-चिल्लाते एंड्रयू को लेकर सिपाही जंगल में चले गए। वहाँ पहुँचकर एंड्रयू ने उनको अपनी कहानी फिर से सुनाई। सिपाही समझ गए कि उसके साथ धोखा हुआ है। वे किसी निर्दोष के ख़ून से अपने हाथ गंदे नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने एंड्रयू से प्रतिज्ञा करवाई कि वह शहर में कभी लौट कर नहीं जाएगा और उसे आज़ाद कर दिया।
वे एक कसाईखाने से तुरंत के मारे गए सूअर का दिल लेकर राजधानी लौट आए।
इधर अश्रु द्वीप पर नौ महीने बीत गए और सुप्त सम्राज्ञी ने एक बेटे को जन्म दिया। प्रसव की पीड़ा से रानी जाग गई उसके जागते ही सारा राज्य सचेत हो गया। संतरी पहरा देने लगे, मोची ने पूरा जूता सिल दिया। कहवा घर में बैठी स्त्री का कप कॉफ़ी से भर गया। पीठ पर बोझा लादे खलासियों ने पीठ का सामान नीचे पटक कर आराम करना शुरू किया।
जागने पर रानी ने आँखें मल कर देखा और बोली, “मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि दुनिया का वह कौन-सा बहादुर है, जो इस द्वीप पर, मेरे कमरे तक, मेरे पलंग तक आया और मुझे और मेरी सारी प्रजा को जादू के बंधन से आज़ाद किया!” तभी रानी की एक दासी ने सिरहाने की मेज़ पर रक्खा हुआ पत्र उसे पढ़ने को दिया। अब रानी को मालूम हो गया कि उसका उद्धारक स्पेन के राजा मैक्समिलन का बेटा एंड्रयू था। तुरंत उसने राजा के नाम एक पत्र लिखा जिसमें एंड्रयू को तुरंत भेजने की बात लिखी, और ऐसा न करने पर युद्ध की धमकी भी दे डाली।
पत्र पा कर राजा मैक्समिलन ने विलियम और जॉन को बुलवा कर पत्र पढ़वाया और उनकी राय पूछी। कोई यह न कह सका कि क्या करना चाहिए। अंत में विलियम बोला, “हम इन सब के बारे में तब तक नहीं जान सकते जब तक कि रानी से न मिल लिया जाए, मिलने मैं स्वयं वहाँ जाऊँगा!”
विलियम की यात्रा बहुत आसान रही क्योंकि मोरगन ली फ़े का इंद्रजाल टूट चुका था। समुद्र से ध्रुवीय भालू ख़त्म हो गए थे। वह अश्रुद्वीप की रानी के सामने पहुँचा और स्वयं को राजकुमार एंड्रयू बताया। रानी ने एंड्रयू की पहचान सुनिश्चित करने के लिए विलियम से सवाल पूछने शुरू किए—तुम यहाँ पहली बार कब आए? तुम शहर में कैसे पहुँचे? पहले में और अब में तुम्हें क्या अंतर लग रहा है? तुम्हें मैं पहली बार कैसी हालत में मिली थी? महल में तुम्हारे साथ क्या हुआ? आदि आदि आदि।
इन सवालों से नक़ली एंड्रयू जल्दी ही घबरा गया और हकलाने लगा। रानी तुरंत समझ गई कि विलियम झूठ बोल रहा है। उसने विलियम का सिर कटवा कर एक भाले पर लटकवा कर, नगर के मुख्य द्वार पर लटकवा दिया, उसके नीचे एक इमारत भी लिखवा दी—“जो झूठ बोलेगा वह ऐसे ही मरेगा“।
कुछ दिनों बाद राजा मैक्समिलन को सोती सम्राज्ञी का एक और पत्र मिला जिसमें एंड्रयू को न भेजने पर स्पेन पर हमला करके पूरे राज्य को धूल में मिला देने की धमकी दी गई थी। मैक्समिलन तो पहले से ही एंड्रयू को मरवा देने के कारण शोक, ग्लानि और पश्चाताप के समुद्र में डूबा था, वह अपने मँझले बेटे जॉन के सामने जाकर बिलखने-रोने लगा, “हम क्या करें उस रानी को कैसे बताएँ कि एंड्रयू अब इस दुनिया में नहीं है और विलियम भी घर नहीं लौटा है। अब जॉन ने अश्रुद्वीप जाने का फ़ैसला किया और रानी को समझाने की बात सोची। अश्रुद्वीप के बंदरगाह पर पहुँचा ही था कि भाले की नोक पर लटका विलियम का सिर उसे दिखाई पड़ गया। वह उल्टे पैरों स्पेन लौट आया। पिता के सामने उसने गुहार लगाई, “पिताजी हम बर्बाद हो गए हैं, विलियम मर चुका है। अगर मैं भी शहर के अंदर घुसता तो विलियम के बग़ल में मेरा सिर नगर के द्वार पर लटका होता!” यह समाचार सुनकर राजा का तो मानो कलेजा ही फट गया, “विलियम मर गया, हाय विलियम! अब मेरी समझ में आ गया है कि एंड्रयू निर्दोष था। यह सब मेरे ही पापों का फल है। जॉन, सच-सच बताओ कि माजरा क्या है? कैसे तुम लोगों ने एंड्रयू के साथ दग़ाबाज़ी की? मेरे मरने से पहले सारा सच मुझे बता दो तो मैं चैन से मर तो सकूँगा!”
अब जॉन ने बताया, “इस सब की वजह हमारी पत्नियाँ हैं, उनके प्रेम में पागल हो हम कभी अश्रुद्वीप गए ही नहीं थे। हमने ही एंड्रयू की बोतल के जादुई पानी को बदल दिया था।”
यह सब सुनकर राजा मैक्समिलन तो पागल ही हो गया। वह छाती पीट-पीट कर रोने और विलाप करने लगा!
उसने अपने उन सिपाहियों को बुलवा भेजा, जिन्हें उसने एंड्रयू। की हत्या करने के लिए भेजा था। मैक्समिलन वह जगह देखना चाहता था, जहाँ सिपाहियों ने उसके बेटे को मारकर दफ़नाया था। जब सिपाहियों ने यह सब सुना तो वे बग़लें झाँकने लगे। राजा समझ गए कि दाल में अवश्य कुछ काला है, इससे उन्हें थोड़ी सी आशा बँधी, “जल्दी बताओ कि क्या बात है? मैं केवल सच सुनना चाहता हूँ! तुम्हारा अपराध चाहे जो हो वह मैं माफ़ कर दूँगा लेकिन मेरे लिए सच जानना बहुत ज़रूरी है।”
सिपाहियों ने जब जान की अमान पाई तो बता दिया कि उन्होंने राजा की आज्ञा का उल्लंघन किया और राजकुमार को नहीं मारा। राजा मैक्समिलन ने उन सिपाहियों को गले लगा लिया और उनके लिए पुरस्कार की घोषणा भी कर दी।
शहर की हर गली और चौराहे पर इश्तेहार लगवा दिए गए कि ‘जो भी राजकुमार एंड्रयू को खोज लाएगा उसे आजीवन राजसी जीवन जीने का पुरस्कार दिया जाएगा।’
जब एंड्रयू को यह ख़बर लगी तो अपने माता-पिता के लिए नवजीवन बनकर वह महल में लौट आया। सारा हाल सुनकर वह तुरंत अश्रुद्वीप की ओर चल पड़ा। वहाँ उसका भव्य सत्कार हुआ
“एंड्रयू! तुम मेरे और मेरी प्रजा के प्राणदाता हो! तुम ने ही हमें मोरगन ली फ़े के इंद्रजाल से बचाया है। तुम मेरे स्वामी हो और यह सारा राज्य तुम्हारा है।”
सुप्त सम्राज्ञी ने घोषणा करवा दी। उसके बाद महीनों तक अश्रुद्वीप में आनंद-उत्सव होते रहे। लोग इतने सुखी और संतुष्ट हो गए कि अब इस द्वीप को अश्रुद्वीप के स्थान पर हास्यद्वीप के नाम से जाना जाने लगा।
बस इस बार यहीं तक।
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- करोना काल का साइड इफ़ेक्ट
- कहानी और मैं
- काव्य धारा
- क्या होता?
- गुज़रते पल-छिन
- जीवन की बाधाएँ
- झीलें—दो बिम्ब
- तट और तरंगें
- दरवाज़े पर लगी फूल की बेल
- दशहरे का मेला
- दीपावली की सफ़ाई
- पंचवटी के वन में हेमंत
- पशुता और मनुष्यता
- पारिजात की प्रतीक्षा
- पुरुष से प्रश्न
- बेला के फूल
- भाषा और भाव
- भोर . . .
- भोर का चाँद
- भ्रमर और गुलाब का पौधा
- मंद का आनन्द
- माँ की इतरदानी
- मेरी दृष्टि—सिलिकॉन घाटी
- मेरी माँ
- मेरी माँ की होली
- मेरी रचनात्मकता
- मेरे शब्द और मैं
- मैं धरा दारुका वन की
- मैं नारी हूँ
- ये तिरंगे मधुमालती के फूल
- ये मेरी चूड़ियाँ
- ये वन
- राधा की प्रार्थना
- वन में वास करत रघुराई
- वर्षा ऋतु में विरहिणी राधा
- विदाई की बेला
- व्हाट्सएप?
- शरद पूर्णिमा तब और अब
- श्री राम का गंगा दर्शन
- सदाबहार के फूल
- सागर के तट पर
- सावधान-एक मिलन
- सावन में शिव भक्तों को समर्पित
- सूरज का नेह
- सूरज की चिंता
- सूरज—तब और अब
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