कुबड़ा मोची टेबैगनीनो

15-05-2024

कुबड़ा मोची टेबैगनीनो

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 253, मई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

मूल कहानी: इल् गोबो टेबैगनीनो; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (टेबैगनीनो द हंचबैक); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स;
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय 

 

एक कुबड़ा मोची था, नाम था टेबैगनीनो। बेचारा बूढ़ा हो गया था, उसे कोई काम नहीं मिलता था, कभी कोई एक फटा जूता लेकर भी उससे मरम्मत कराने नहीं आता था। बेचारे को खाने के भी लाले पड़े थे। वह एक दिन घर से काम की तलाश में निकल पड़ा, उसे यह भी नहीं मालूम था कि वह रात कहाँ गुज़रेगी। 

चलते-चलते वह एक जंगल में पहुँच गया। जब रात हो गई तो वह घबराया और रैन-बसेरे की तलाश करने लगा। दूर कहीं उसे एक रोशनी दिखाई दी। वह उस ओर चल पड़ा। भाग्य से वह एक घर था। उसने दरवाज़े पर दस्तक दी। एक औरत ने द्वार खोला और टेबैगनीनो ने उससे रात भर के लिए आसरा माँगा। 

“यह घर तो एक ‘नरभक्षी’ जंगली आदमी का है। वह जिससे भी मिलता है उसे खा जाता है। अगर मैं तुम्हें घर में रख लूँगी तो वह तुम्हें भी खा जाएगा,” स्त्री ने बताया। 

टेबैगनीनो ने जब बहुत हाथ पैर जोड़ तब औरत को दया आ गई उसने कहा, “ठीक है तुम अंदर आ जाओ, लेकिन अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं तुम्हें राख की ढेरी में छुपा दूँगी।”

और उसने ऐसा ही किया। 

रात को नरभक्षी आया और ज़ोर-ज़ोर से सूँघता हुआ कहने लगा: 

“मानुस गंध पाकर मुँह में आता है पानी
पर मुझे दिखती नहीं उसकी कोई निशानी
नाक मेरी कभी झूठ बोलती नहीं
छुपा हुआ है कोई यहीं पर कहीं!”

नरभक्षी जंगली आदमी की पत्नी ने कहा, “तुम तो बस बेकार ही लार टपका रहे हो, कहीं कोई नहीं है; आओ मैं तुम्हें खाना देती हूँ। शायद तुम बहुत ज़्यादा भूखे हो।”

और पत्नी ने में खाना मेज़ पर लगा दिया। जंगली आदमी जब भरपेट खा चुका तब बोला, “अब तो मेरा पेट भर गया है, जो बचा है यह तुम उसको दे सकती हो, जो इस घर में कहीं छुपा हुआ है।”

“सच बात तो यह है कि एक बेचारे आफ़त के मारे को मैंने रात के लिए सहारा दिया है। अगर तुम यह वादा करो कि उसे नहीं खाओगे तो मैं उसे बाहर ले आऊँ।”

“उसे बाहर ले आओ।”

औरत ने टेबैगनीनो को राख के ढेर से बाहर निकाला और खाना दे दिया। खाना खाते हुए राख से ढका टेबैगनेनो थर-थर काँप रहा था। किसी तरह हिम्मत करके उसने खाना खा लिया। 

“इस समय तुम्हें मुझे भूख नहीं है,” जंगली आदमी ने कहा, “लेकिन मैं तुम्हें सावधान करता हूँ कि अगर सुबह-सवेरे तुम भाग नहीं गए तो मैं तुम्हें खा जाऊँगा।”

इसके बाद दोनों थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें करते रहे। टेबैगनीनो भी कम घाघ नहीं था। बोला, “वह तुम्हारे बिस्तर पर तो बहुत ही बढ़िया चादर बिछी हुई है!”

शान में आकर जंगली बोला, “जानते हो यह सोने और चाँदी के तारों से कशीदाकारी की हुई चादर है और इसमें जो झालर लगी है वह ख़ालिस सोने की है।”

“और अलमारी में क्या है?” 

“अलमारी में दो बोरे सोने की अशर्फ़ियाँ है।”

“और यह जो पलंग के पीछे छड़ी रखी है?” 

“इस छड़ी से बढ़िया मस्त मौसम आ जाता है!”

“और यह जो मैं आवाज़ सुन रहा हूँँ?” 

“यह एक तोता है जो मैंने मुर्गी के बाड़े में बंद कर रखा है। वह हमसे बातें करता है।”

“वाह, तुम्हारे पास तो बहुत नायाब चीज़ें हैं!” 

हाँ, यह बात तो है! इतना ही नहीं, मेरे अस्तबल में एक बहुत ख़ूबसूरत घोड़ी भी है, जो हवा से बातें करती हुई दौड़ती है!”

भोजन करने के बाद जंगली की पत्नी ने टेबैगनीनो को फिर उसी जगह ले जाकर राख के ढेर पर सोने के लिए कह दिया और स्वयं अपने पति के साथ सोने चली गई।अगली सुबह दिन उगने से पहले औरत ने टेबैगनीनो से कहा, “जल्दी उठो और भागो। मेरा पति जागे उसके पहले ही तुम यहाँ से भाग जाओ, वरना वह तुम्हें खा जाएगा।”

टेबैगनीनो ने स्त्री को धन्यवाद दिया और अपनी राह चल पड़ा। चलते-चलते वह राजा के महल तक पहुँच गया और राजा से आसरा पाने का संदेश महल में भेजा। दयालु राजा ने उससे मिलने की इच्छा प्रकट की। राजा से मिलने पर टेबैगनीनो ने अपनी सारी राम कहानी सुना दी। सब कुछ सुनाने के बाद राजा ने उसे इस शर्त पर महल में रख लेने की हामी भरी जब वह नरभक्षी जंगली आदमी के पास की एक अद्भुत चीज़ उसे लाकर दे देगा। 

उसने कहा, “टेबैगनीनो ध्यान से सुनो, तुम मेरे महल में रह सकते हो और तब तक जब तक इच्छा हो! लेकिन नरभक्षी के पास की चीज़ों में से एक चीज़ मेरे लिए ला दो।”

“वह क्या महाराज?” 

“तुमने बताया कि उस जंगल के आदमी के पास एक बहुत सुंदर रेशमी चादर है जिस पर सोने-चाँदी से कढ़ाई की हुई है और जिसमें सोने की किनारी लगी है। तुम वह मेरे लिए ले आओ, नहीं तो आसरा तो दूर की बात, मैं तुम्हें फाँसी पर चढ़ा दूँगा।”

कुबड़े मोची ने कहा, “महाराज मैं यह कैसे कर पाऊँगा? वह जंगली आदमी नरभक्षी भी है। आप तो मुझे मौत के मुँह में धकेल रहे हैं।”

“मैं कुछ नहीं जानता! ख़ूब अच्छी तरह सोच-समझ लो और फिर जैसा चाहो वैसा करो।”

बेचारे कुबड़े ने बहुत देर तक सोच-विचार किया और उसके बाद राजा के पास गया, “महाराज मुझे एक थैली में ततैये (बर्रैया) भर कर दे दीजिए, बर्रैया भी ऐसी जिन्होंने कई दिनों कुछ खाया ना हो। मैं आपके लिए वह चादर ले आऊँगा।”

राजा ने तुरंत अपने घुड़सवारों को बर्रैये पकड़कर लाने के लिए जंगल में भेज दिया। एक-दो दिनों राजा के घुड़सवार थैली भरकर बर्रैये पकड़ लाए। 

राजा ने बर्रैयों से भरा थैला टेबैगनीनो को दे दिया और साथ में एक जादू की छड़ी भी दी और कहा, “यह छड़ी ले लो। यह जादुई छड़ी है और यह तुम्हारे बड़े काम आएगी। जब तुम्हें पानी को पार करना हो तो इस छड़ी से ज़मीन पर मारना और बिना डर के पानी को पार कर लेना। अब तुम जाओ मैं तुम्हारा इंतज़ार समुद्र के किनारे करूँगा।” 

कुबड़ा मोची अब चल पड़ा जंगली आदमी के घर। वहाँ पहुँचने पर उसने दरवाज़े से कान लगाकर सुना, अंदर पति और पत्नी खाना खा रहे थे। टेबैगनीनो उनके सोने के कमरे की खिड़की पर चढ़ गया और चुपके से भीतर जाकर पलंग के नीचे घुस गया। 

जंगली आदमी और उसकी पत्नी खाना खाने के बाद सोने के लिए पलंग पर लेट गए, जब वे सो गए तब तो टेबैगनीनो ने पलंग के नीचे से बर्रैयों से भरे थैले का मुँह उनकी चादर के नीचे ले जाकर खोल दिया। बर्रैये क़ैद से एकदम से बाहर निकले और इधर-उधर भनभनाने लगे। जंगली आदमी करवटें बदलने लगा और जब बर्रैये उसे काटने लगे तो उसने चादर अपने शरीर पर से दूर फेंक दी। पलंग के नीचे छुपे टेबैगनीनो ने चादर को लपेटकर अपने पास रख लिया थोड़ी देर में भूखे बर्रैयों नेजंगली और उसकी पत्नी को डंक मारना शुरू कर दिया। दोनों दर्द और जलन से परेशान हो चीखते-चिल्लाते बाहर की ओर भागे। इधर टेबैगनीनो फिर से खिड़की पर चढ़ा और बाहर कूद कर, चादर ले, रफ़ू-चक्कर हो गया। 

थोड़ी देर बाद जंगली और उसकी पत्नी थोड़ा स्थिर हुई तो आदमी ने मुर्गियों के बाड़े के पास जाकर पास जाकर पुकारा, “बोलो तो प्यारे तोते, समय क्या हुआ है।”

तोता बोला, “चलाक कुबड़ा चादर लेकर भाग खड़ा हुआ, पूछते क्या हो यही समय हुआ!”

जंगली आदमी कमरे में गया और देखा कि पलंग पर चादर नहीं है! उसने अस्तबल से अपनी घोड़ी निकाली और कुबड़े के पीछे दौड़ा। कुछ दूर जाकर उसने उसे पकड़ ही लिया था, लेकिन अब तक तो टेबैगनीनो समुद्र के किनारे पहुँच गया था। उसने जादू की छड़ी, जो राजा ने उसको दी थी, ज़मीन पर पटकी। पानी दो हिस्सों में बँट गया और वह दौड़ता हुआ दूसरे किनारे पर पहुँच गया, पानी फिर से जुड़ गया। 
जंगली नरभक्षी जो अभी तट पर ही था, चिल्ला कर के बोला:

“ओ नीच टेबैगनीनो
तुम इधर कब आओगे? 
हिम्मत भी दिखलाई तो 
मुझसे ना बच पाओगे, 
पाते ही तुमको मैं
ज़िन्दा ही खा जाऊँगा, 
अगर नहीं खा पाया तो
फिर अपने प्राण गवाऊँगा”

उधर महल में चादर देखते ही राजा ख़ुशी से उछल पड़ा। उसने मोची को गले लगा लिया और कहा, “टेबैगनीनो अगर तुम चादर चुरा कर ले आए हो तो फिर तुम वह छड़ी भी ले आ सकते हो जिससे मौसम सुहाना हो जाता है।”

टेबैगनीनो परेशान हो गया, “मैं भला वह छड़ी कैसे ला सकता हूँ!”

“सोचो, ज़रा गहराई से सोचो!”

कुछ दिन सोचने-विचारने के बाद टेबैगनीनो ने राजा से एक बोरी भरकर अखरोट माँगे। 

अखरोट की बोरी लेकर टेबैगनीनो फिर जंगल में नरभक्षी जंगली आदमी के घर पहुँच गया। 

दरवाज़े पर कान लगाकर उसने सुना। जंगली आदमी और उसकी घरवाली सोने जा रहे थे। 

टेबैगनीनो चुपचाप छत पर चढ़ गया और जब उसे लगा कि वे ऊनींदे हो गए हैं तो घर की छत पर अखरोट तड़ातड़ फेंकने लगा। यह आवाज़ सुनकर जंगली आदमी जाग गया और बीवी से बोला, “सुनती हो, कितने बड़े-बड़े ओले पड़ रहे हैं! जल्दी से मौसम की छड़ी ले जाकर छत पर रख दो जिससे मौसम अच्छा हो जाए, वरना हमारी गेहूँ की फ़सल बर्बाद हो जाएगी।” 

आधी नींद से स्त्री उठी, खिड़की खोली और छड़ी को छत पर फेंक दिया। छड़ी टेबैगनीनो के पास जाकर गिरी। उसने लपककर उसको उठाया और ताबड़तोड़ भाग गया। 

थोड़ी देर बाद जंगली उठा। वह बहुत ख़ुश था कि ओलाबारी और वर्षा बंद हो गई थी। उसने प्यार से आवाज़ लगाई, “प्यारे तोते बताओ ज़रा अब वक़्त क्या है भला?” 

“यह वही वक़्त है जब कुबड़ा मौसम की छड़ी लेकर भाग खड़ा हुआ है!”

जंगली ने अस्तबल से घोड़ी निकाली और टेबैगनीनो का पीछा करने के लिए सरपट घोड़ी को दौड़ाया। इस बार भी जब वह सागर तट पर पहुँचा तो उसे को टेबैगनीनो दिखाई दिया। जंगली को देखते ही टेबैगनीनो ने ज़मीन पर जादू की छड़ी को पटका, पानी फटा और वह दौड़ लगा कर उस पार राजा के महल तक पहुँच गया। 

जंगली आदमी इस तरफ़ खड़ा हाथ मलता रह गया। और कुछ तो कर न सका बस चिल्ला कर बोला:

“ओ नीच टेबैगनीनो
तुम इधर कब आओगे? 
हिम्मत भी दिखलाई तो
मुझसे ना बच पाओगे, 
पाने पर तुमको तो मैं
कच्चा ही खा जाऊँगा
अगर नहीं खा पाया तो
अपने प्राण गवाऊँगा!”

राजा तो लालची था, मौसम की जादुई छड़ी देखकर वह थोड़ी देर तो ख़ुश रहा लेकिन फिर बोला,  “टेबैगनीनो तुम बहुत चालाक हो। अब तुम एक बार फिर आदमख़ोर के घर जाओ और वह दोनों अशर्फ़ियाँ की बोरियाँ मेरे लिए जंगली के घर से ले आओ। अगर तुम ऐसा नहीं कर सके तो तुम्हारा सिर धड़ पर नहीं रहेगा।”

मरता क्या न करता, बेचारा टेबैगनीनो सोच में डूब गया। कई दिनों की माथापच्ची के बाद वह राजा के पास आया और बोला, “मुझे लकड़हारे के कुछ औज़ार चाहिएँ।” राजा ने उसके लिए एक कुल्हाड़ी, कुछ पच्चड़ (wedges) और एक हथौड़े का इंतज़ाम कर दिया। 

टेबैगनीनो ने अपना भेष बदला, कुबड़ा तो वह था ही, लंबी दाढ़ी और बड़ी-बड़ी मूँछें लगाईं, एक बड़ा लबादा पहना और थैली में अपने औज़ार लेकर जंगल की ओर चल पड़ा। 

जंगली आदमखोर ने टेबैगनीनो को कभी दिन के उजाले में तो देखा ना था इसलिए वह उसकी शक्ल सूरत से परिचित नहीं था। राजा के घर में रहकर पकवान खा-खा कर वह मोटा भी हो गया था। 

जंगल में जब जंगली आदमख़ोर और टेबैगनीनो मिले तो दोनों ने एक दूसरे को दुआ सलाम किया, “आप कहाँ जा रहे हैं?” आदमखोर ने पूछा। 

“लकड़ी काटने!”

“अरे, जंगल में तो लकड़ी भरी पड़ी है, चाहे जितनी ले लीजिए।”

टेबैगनीनो ने अपने औज़ार निकाले और एक मोटे चीड़ के पेड़ को काटने लगा। पेड़ के तने में उसने एक पच्चड़ डाला और उसे हथौड़े से ठोका, दूसरा पच्चड़ डाला, उसे भी ठोका। तीसरा डाला और उसे भी ठोकने ही वाला था कि वह थोड़ा झुँझला गया उसको लगा कि एक पच्चड़ कुछ ज़्यादा गहरा ठुक गया है। वह बड़बड़ाने लगा। 

जंगली आदमी ने कहा, “इतना परेशान न होइए मैं आपकी मदद करता हूँ।”

और उसने अपना हाथ दरार में डालकर पच्चड़ को बाहर खींचने की कोशिश की। जैसे ही जंगली आदमखोर ने पच्चड़ ढीला करने के लिए पेड़ की दरार में हाथ डाला कि तभी टेबैगनीनो ने पेड़ पर ज़ोर से हथौड़ा चला दिया। सारे पच्चड़ एक साथ बाहर आ गिरे और जंगली का हाथ पेड़ की दरार में जाकर फँस गया। दर्द से छटपटाता जंगली चिल्लाने लगा, “मेरा हाथ निकालो, मेरी मदद करो, दौड़ कर मेरे घर जाओ और मेरी बीवी से दोनों बड़े वाले पच्चड़ माँगकर ले आओ। उन्हें पेड़ में ठोक दोगे तो मेरा हाथ ढीला होकर निकल जाएगा।” 

टेबैगनीनो सरपट घर की ओर दौड़ा और वहाँ जाकर जंगली की बीवी से बोला, “अलमारी से निकाल कर अशर्फियों वाली दोनों थैलियाँ मुझे दे दो। तुम्हारा पति उन्हें मँगा रहा है। ज़रा जल्दी करो।”

“मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है कि तुम क्या कह रहे हो? सारा धन तुम्हें दे दूँगी तो हमारा गुज़ारा कैसे चलेगा? अगर एक थैली की बात होती तो समझ में भी आती, लेकिन दोनों थैलियाँ! ना बाबा ना!” बीवी बोली। तब टेबैगनीनो ने खिड़की खोली और ज़ोर से आवाज़ लगाई “एक ही लाना है या दोनों?” 

“दोनों लेकर आओ और जल्दी से आओ!” जंगली ने भी ज़ोर से जवाब दिया। 

“सुना तुमने? कितना नाराज़ हो रहा है वह!” और टेबैगनीनो दोनों थैलियाँ लेकर भाग खड़ा हुआ। 

बड़ी देर तक जब तक टेबैगनीनो नहीं आया तो जंगली आदमी बड़ी देर तक कोशिश करके, दर्द सहकर अपना हाथ किसी तरह पेड़ की दरार से निकल पाया। बेचारे का हाथ लहू-लुहान हो गया था। कराहता हुआ वह घर पहुँचा। 

बीवी ने तुरंत पूछा, “सबसे पहले तो यह बताओ कि तुमने अशर्फियों की दोनों थैलियाँ क्यों मँगवाईं थीं?” 

जंगली तो हैरान रह गया। घबरा कर उसने तोते से पूछा, “ज़रा वक़्त तो बताना तोता राम!”

“यह वक़्त वह है जब कुबड़ा मोची अशर्फ़ियाँ लेकर जा रहा है!” तोते ने तुरंत जवाब दिया। 

इस बार जंगली ने टेबैगनीन का पीछा करने की बात सोची तक नहीं क्योंकि वह अपने हाथ के दर्द से व्याकुल था। 

धन पाकर और जंगली आदमी के पीछा न करने की बात जानकर राजा का लालच और बढ़ गया। इस बार उसने घोड़ी ना लाने पर टेबैगनीन को जान से मार देने की धमकी दे डाली। टेबैगनीनो नेता काँपते हुए कहा, “घोड़ी को लाना नामुमकिन है, एक तो अस्तबल में ताला लगा रहता है, दूसरे घोड़ी की लगाम पर कई-कई घंटियाँ लगी है, जो हिलने से बजती रहती हैं।”

“चाहे जो करो, बस घोड़ी ले आओ, नहीं तो स्वर्ग जाओगे।”

जान बचाने के लिए टेबैगनीनो सोचता रहा। आख़िरकार उसने एक उपाय सोच लिया। राजा से उसने एक बड़ा सूआ और एक थैली रूई माँगी। यह सामान लेकर वह फिर जंगल में घोड़ी के अस्तबल पहुँचा। रात में हवा जाने वाले छेद में से सरक-सरक कर वह किसी तरह अस्तबल में अंदर पहुँच गया। अंदर अँधेरा था। उसने घोड़ी के पेट में सूआ चुभाया, घोड़ी हिनहिनाई और पैर पटकने लगी। जंगली आदमखोर ने आवाज़ सुनी तो अपनी घरवाली से बोला, “लगता है घोड़ी को कुछ तकलीफ़ है! बेचारी!” और सोने चला गया। कुछ देर बाद टेबैगनीनो ने घोड़ी के पेट में फिर सुआ चुभाया। फिर वह हिनहिनाई और पैर पटकने लगी। जब जंगली ने कई बार घोड़ी की बेचैनी भरी आवाज़ें सुनीं तो उठ कर आया अस्तबल के अँधेरे से निकलकर घोड़ी को बाहर खुली हवा में, एक पेड़ से बाँध दिया और सोने चला गया। अब टेबैगनीनो भी अस्तबल से बाहर आया। उसने सारी घंटियाँ में रूई कसकर भरदी। घोड़ी के चारों सुमों में रूई के गोले बना-बनाकर बाँध दिए, जिससे टापों की आवाज़ न हो, और चुपचाप वह अपनी राह चल पड़ा। 

रोज़ के समय पर आदमखोर जागा और हमेशा की तरह तोते से समय पूछा:

“प्यारे तोते समय क्या है?” 

“इस समय कुबड़ा तुम्हारी घोड़ी पर सवार होकर जा रहा है,” तोता बोला। 

बेचारा जंगली मन मसोस कर रह गया। वह पीछा करता भी तो कैसे? घोड़ी तो कुबड़ा मोची चुरा ले गया था न! उस घोड़ी का पीछा भला और कौन कर सकता है? 

घोड़ी पाकर राजा फूला। न समाया। लेकिन तुरंत ही बोल भी उठा, “अब तो मुझे तोता भी चाहिए।”

“तोता तो बातें करता है, चिल्लाता भी है!”

“कोई उपाय सोचो। तोता लेकर आओ।” 

इस बार टेबैगनीनो को ज़्यादा माथापच्ची नहीं करनी पड़ी। 

वह स्वादिष्ट नर्म मकई के दाने, राजा के बाग़ के सुंदर मीठे फल और कई तरह की ताज़ी चमकीली मिर्ची लेकर तोते के पास जा पहुँचा। उन सभी स्वादिष्ट ललचाने वाली वस्तुओं की टोकरी दड़बे में बंद तोते के सामने रख दी और बोला, “तोताराम देखो तो तुम्हारे लिए मैं क्या-क्या लाया हूँ! अगर तुम चुपचाप मेरे साथ चले चलो तो ऐसी चीज़ तुम्हें रोज़ खाने को मिलेंगी।”

तोते ने एक लाल मीठे अनार पर चोंच मारी और दाने खाकर बोला: 

“बहुत मज़ेदार!” 

इस प्रकार मज़ेदार चीज़ों का लालच देकर टेबैगनीनो तोते को कंधे पर बिठाकर चल पड़ा और तोता भी ख़ुशी-ख़ुशी बैठा ही रहा। 

रात में जब जंगली घर आया तो तोते को आवाज़ दी, “प्यारे तोते समय क्या हुआ?”

कोई जवाब नहीं आया। 

उसने दूसरी बार आवाज़ लगाई, “तुमने सुना नहीं? तोताराम, समय क्या हुआ है?” 

जब इस बार भी कोई जवाब न आया तो वह दड़बे के पास गया। 

दड़बा . . . तो ख़ाली पड़ा था। जंगली के हाथों के तोते उड़ गए, वह हाथ मलता रह गया। 

उधर टेबैगनीनो जब तोते को लेकर राजा के पास पहुँचा तो बहुत बड़ा उत्सव मनाया गया। राजा की सब इच्छाएँ जो पूरी हो रही थीं! 
ख़ुशी से झूमते हुए हुए राजा ने कहा, “टेबैगनीनो इतना सब कर लेने के बाद अब बस एक ही काम बाक़ी रहता है।”

टेबैगनीनो बोला, “लेकिन अब वहाँ कुछ भी नहीं है, महाराज!”

“क्या बकते हो?” राजा ने तुरंत बात काटी, 

“जो सबसे ज़रूरी चीज़ है वह तो वहीं है, वह आदमखोर जंगली आदमी, जिसके डर से सारी जनता दुखी रहती है, जंगल की ओर जाती नहीं है।”

टेबैगनीनो को तो दोनों ओर से जान का ख़तरा था! 

कुछ देर सोचने के बाद उसने राजा से कहा, “मैं आपका आदेश पालन करने की कोशिश करूँगा। मेरे लिए आप एक ऐसी पोशाक बनवाइए जिससे मेरा कूबड़ छिप जाए और मेरे चेहरे पर ऐसा मुलम्मा लगवाइए कि मेरे नैन-नक़्श बदल जाएँ।”

राजा ने शहर के सबसे कुशल दर्जी और बहुरूपिया बुलवाए। उन्होंने मिलजुल कर टेबैगनीनो को ऐसी पोशाक पहनायी और ऐसा रंग-रोगन लगाया कि टेबैगनीनो ख़ुद अपने को ही ना पहचान पाए। इस प्रकार भेस बदलकर तो टेबैगनीनो जंगली के घर की ओर चल पड़ा। 

आदमखोर जंगली उसे अपने खेत में काम करता हुआ मिल गया। टेबैगनीनो ने अपनी टोपी उतार, सर झुका कर जंगली का अभिवादन किया। आदमखोर ने उससे पूछा, “महाशय, आप यहाँ क्या ढूँढ़ रहे हैं?” 

“मैं मृतकों के लिए ताबूत बनाता हूँ। टेबैगनीनो नाम का एक बूढ़ा मोची मर गया है, उसके लिए ताबूत की लकड़ी खोज रहा हूँ।”

यह सुनते ही जंगली आदमखोर ख़ुशी से उछल पड़ा, “तो वह धूर्त आख़िर मर ही गया! मुझे कितनी ख़ुशी हुई है यह ख़बर सुनकर कि बता नहीं सकता। उसके ताबूत के लिए मैं बिना मोल लिए तख़्ते दे दूँगा। आप यहीं पर ताबूत बना लें।”

“यह तो बहुत अच्छा रहेगा!” टेबैगनीनो बोला, “बस मुश्किल एक है कि मेरे पास उसकी क़द-काठी का नाप नहीं है।”

“यह तो बिल्कुल आसान है,” आदमखोर बोला, “वह कमीना मेरे जैसा ही था। आप मुझे नाप कर ताबूत बना लीजिए।”

टेबैगनीनो ने फट्टे काटना और उन्हें कीलों से जड़ना शुरू कर दिया। 

जब बक्सा तैयार हो गया तो वह बोला, “श्रीमान तनिक इसमें लेट कर देखिएगा कि बराबर बना है या नहीं।”

आदमखोर तुरंत आकर ताबूत में लेट गया। तब टेबैगनीनो बोला, “अब ढक्कन भी लगा कर देख लूँ।” और उसने ताबड़तोड़ ताबूत के ढक्कन को कीलों से जड़ दिया। और ताबूत को राजा के पास ले चला। 

शहर के सारे लोग जुट गए। 

जिसके डर से जंगल में जाना मुहाल हो गया था, उसका ताबूत ज़मीन में गहरे गाड़ दिया गया। 

राजा ने बूढ़े, कुबड़े मोची को अपने दरबार में अपना मंत्री बना लिया और सदा उसका सम्मान किया। 

“लंबी थी कहानी मैंने छोटे में सुनाई, 
 अब तुम भी अपनी बात कहो ना
 मेरे प्यारे भाई!”

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