चलनी में पानी

15-03-2022

चलनी में पानी

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 201, मार्च द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मूल कहानी: ला एक्वा नेल केस्टिलो; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (वाटर इन द बास्केट); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय


एक समय की बात है, एक विधवा स्त्री थी जिसने एक विधुर से शादी कर ली। संयोग देखो, इन दोनों के ही पास पहले विवाह से एक-एक बेटी थी। पति तो बाहर के कामों में लगा रहता था पर स्त्री, जो घर और बच्चों की देखभाल करती थी, वह अपनी बेटी पर तो जान छिड़कती थी पर सौतेली बेटी उसे फूटी आँख भी न भाती थी। रोज़ सुबह जब लड़कियाँ नदी से पानी भरने जातीं तो स्त्री अपनी बेटी को तो मटकी देती और सौतेली बेटी को चलनी (छलनी) देती थी। हर रोज़ जब वह सौतेली बेटी पानी के बिना लौटती तो उसे मौक़ा मिल जाता और वह उसकी ख़ूब धुनाई कर देती थी। 

एक दिन जब सौतेली बेटी चलनी में पानी भरने लगी तो वह उसके हाथ से छूट गई और धारा में बहने लगी। लड़की धारा के साथ-साथ दौड़ती जा रही थी, चलनी को फिर से पा लेने के लिए! वह दौड़ती जाती थी और सबसे चलनी के बारे में पूछती जाती थी। पर सब कह देते, “धारा के साथ-साथ दौड़ लगाती जाओ, शायद तुम चलनी को फिर से पा जाओ।”

अचानक उसे धारा के बीच में एक चट्टान पर बैठी एक वृद्धा दिखाई दी जो अपने कपड़ों से चीलर/पिस्सू (flea) ढूँढ़-ढूँढ़ कर निकाल रही थी। लड़की ने उससे भी पूछा, “अम्मा, क्या तुमने मेरी चलनी देखी?” बूढ़ी स्त्री बोली, “मेरे पास आओ, तुम्हारी चलनी मेरे पास है। लेकिन पहले तुम्हें मेरी पीठ देखनी होगी कि मुझे वहाँ जलन क्यों हो रही है?” लड़की ने जब बूढ़ी की पीठ देखी तो उसे ढेरों चीलर दिखाई दिए। लड़की ने उन्हें मार दिया। जब अम्मा की पीठ जलन शांत हुई तो उन्होंने पूछा, “मेरी पीठ पर क्या था जो मुझे जलन हो रही थी?” लड़की बोली, “आपकी पीठ पर हीरे-मोती गिरे थे वही आपको चुभ रहे थे।” लड़की ने ऐसा इसलिए कहा कि बूढ़ी अम्मा चीलर की बात जान कर कहीं लज्जित ना हो जाए! वृद्धा ने कहा, “बेटी, तुम्हें भी हीरे-मोती मिलेंगे!”

अब वह स्त्री उसे अपने साथ अपने घर ले गई। वह घर क्या था पूरा कूड़े का ढेर ही था! बुढ़िया ने सौतेली बेटी से कहा, “बिटिया रानी, मेरा बिस्तर लगा दोगी तो बड़ा उपकार होगा। ज़रा देखो तो मुझे न जाने क्या चुभता रहता है।” लड़की ने जब बिस्तर देखा तो उसमें खटमल भरे पड़े थे। पर वह थी कोमल मन वाली उसने कहा, “बिस्तर में तो बेला-गुलाब है, शायद इनके ही काँटे तुमको चुभते रहते हैं।” 

“प्यारी बेटी, तुम्हें भी बेला-गुलाब मिलें। बस, मेरा एक और काम कर दो, तनिक मेरा कमरा भी बुहार दो, देखूँ, तो ज़रा कचरे में क्या-क्या निकलता है।” 

लड़की ने झाड़ू-बुहारी करके कमरा चमा-चम चमका दिया। कूड़े में बदबूदार कचरा ही निकला पर उसने गुड़िया को बताया कि कूड़े में तो मानिक और लाल निकले!! आप समझते हैं ना कि उसने ऐसा क्यों कहा? कहीं बुढ़िया को बुरा ना लगे!! और बुढ़िया ने इस बार फिर वही कहा, “तुम्हें भी मानिक और लाल मिलें, मेरी बेटी।” अब कोई काम नहीं बच गया था। बुढ़िया लड़की को एक अलमारी के पास ले गई जिसमें तरह-तरह की सुंदर पोशाकें लटकी थीं। जब बुढ़िया ने लड़की से पूछा कि उसे कैसे कपड़े चाहिएँ तो लड़की ने साधारण सूती कपड़े चुन लिये। लेकिन उसे मिली बहुत शानदार रेशमी, ज़रीदार पोशाक! अब गहनों की बारी आई, बुढ़िया ने जब गहनों की पिटारी खोली तो उसमें हीरे, पन्ने, मोती, मानिक सोने चाँदी हर तरह के गहने भरे थे। लड़की ने पतली सी चाँदी की माला चुन ली, पर बुढ़िया माँ ने उसके गले में सोने का चमचमाता हार और कानों में हीरे के बुंदे पहना दिये। फिर आशीर्वाद देते हुए बोली, “तुम सदा सुंदरी बनी रहो। तुम्हारे बाल सुनहरे हो जाएँ। जब बाल सँवारो तो एक ओर से गुलाब और बेला, दूसरी ओर से हीरे-मोती गिरें। अब तुम जाओ अपने घर। यदि गधा रेंके तो देखना न मुड़कर, मुर्गा अगर बोले तो देखना जी भर कर!" 

लड़की चल पड़ी अपने घर की ओर, रास्ते में उसने गधे का रेंकना सुना पर वह रुकी नहीं। कुछ आगे बढ़ने पर जब मुर्गे की बाँग सुनी तो उसने पीछे मुड़कर देखा और सोचो तो भला क्या हुआ होगा? उसके माथे पर एक झिलमिल करता सितारा उग आया। 

जब उसकी सौतेली माँ ने उसे देखा तो हैरानी से पूछने लगी, “यह सब चीज़ें तुम्हें किसने दीं।”

“एक बूढ़ी अम्मा को मेरी बहती चलनी मिली, उसी ने अपनी चीलर-खटमल मारने के लिए यह सारी सौग़ातें मुझे दी है।”

“आज मुझे मालूम हुआ कि मैं दिल ही दिल में तुम्हें कितना प्यार करती हूंँ रानी बेटी, अब से पानी लाने तुम मटकी लेकर जाओगी और तुम्हारी बहन ले जाएगी चलनी।”

उसके बाद सौतेली माँ अपनी सगी बेटी से बोली, “पानी के लिए चलनी ले जाओ और उसे पानी में बहा देना हो। सकता है तुम्हारा भी भाग्य बहन की तरह ही जाग जाए।” अगले दिन दोनों बहनें पानी भरने चल पड़ीं। नदी पर पहुँचते ही सगी बेटी ने चलनी पानी में फेंक दी और धारा के साथ-साथ दौड़ने लगी। उसे भी चट्टान पर बैठी बूढ़ी और उसके पास पड़ी चलनी दिख गईं। उसने वृद्धा से पूछा, “क्या तुमने मेरी चलनी बहती देखी है?” 

“मेरे पास आओ, तुम्हारी चलनी मेरे पास है। लेकिन पहले ज़रा मेरी पीठ देख लो, मुझे कुछ जलन-सी हो रही है। देखो तो क्या है पीठ पर?” 

“तुम्हारी पीठ पर तो खाज के धब्बे और कपड़ों में चीलर भरे हैं!”

“भगवान करे तुम्हें भी खुजली और चीलर मिलें।"

बुढ़िया इस लड़की को भी अपने घर ले गई, बिस्तर झड़वाया और पूछा, “मेरे बिस्तरे में क्या है, ज़रा देख दो!”

“ढेरों जूँ (lice) और खटमल!”

"तुम्हें भी मिलें खटमल और जूँ!”

फिर सौतेली बहन ने भी घर में बुहारी दी और नाक चढ़ाकर बोली, “छी–छी . . . कितना बदबूदार कचरा निकला है तुम्हारे घर से!”

“बेटी तुम्हें भी बदबूदार कचरा मिलेगा!”

अब तक अम्मा का सब काम हो चुका था। अब उपहार देने की बारी थी। बूढ़ी माँ ने लड़की से पूछा, “सूती कपड़े पहनोगी या टाट के?” 

“मैं तो रेशम के लूंँगी जैसी मेरी बहन के!” 

“यह लो कपड़े टाट (सनई) के पहनो इनको ठाठ से!”

अम्मा ने पूछा, “गले के लिए लोगी मोटी रस्सी की माला, या फिर दूँ तुमको हार चाँदीवाला?” 

“ना पहनूँगी गहना में कोई चाँदी वाला मुझको तो चाहिए हार हीरों वाला!”

“पर मैं तो दूँगी बस रस्सी की माला!”

“कानों में क्या पहनोगी गिलट या फिर चाँदी?” 

“अम्मा मुझको देना तुम लड़ियाँ बस हीरों की“

“माँगो चाहे जो भी पर पाओगी गिलट ही, अच्छा अब तुम घर को जाओ, गधा रेंके तो पीछे ना मुड़ना, मुर्गा बाँग दे तो जी भर कर देखना।”

लड़की चली घर को, राह में गधा रेंकने लगा। लड़की तो थी ऐंठू, कहना मानना तो उसने सीखा न था। सो गधा जब रेंका तो उसने देखा घूम और तभी बेचारी के सिर पर उग आई गधे की दुम! उस दुम को काटना होता था बेकार जितना भी काटो उग आती थी बार-बार! 

“मेरी प्यारी अम्मा, बुरा है मेरा हाल
 नाक तक बढ़ आए हैं, गधे की दुम के बाल, 
 जितना भी इन्हें काटूँ, ये कम होना न जाने
 हर बार उगते हैं, ये हो हो करके दुगने!”

अब सुनो। आगे का हाल— 

माथे पर चमकते सितारे वाली लड़की के साथ ब्याह रचाने के लिए राजा का संदेशा आया। जिस दिन वह अपनी होने वाली दुलहन को ले जाने के लिए आने वाला था उस दिन सौतेली माँ ने सौतेली बेटी से कहा, “अब तो मेरी बिटिया बनने चली है रानी, विदा होते-होते मेरा एक काम और कर दो। यह जो पानी का बड़ा कंंडाल है, उसे रगड़-रगड़ कर धो दो। तुम ज़रा अंदर घुसकर रगड़ो, मैं अभी आकर तुम्हारी मदद करती हूंँ।”

सितारे वाली लड़की दयालु तो थी ही सो घुस गई कंडाल में, उसे धोने के लिए। और सौतेली माँ लपकी खौलता पानी लाने के लिए कि पानी कंडाल में डाल कर सौतेली बेटी को मार दे और अपनी बेटी को राजरानी बनने के लिए भेज दे। परन्तु भाग्य का खेल देखो, उधर से सौतेली बहन गुज़री। उसने जब सितारे वाली बहन को कंडाल में घुसे देखा तो पूछा, “सुंदरी, तुम इसमें क्यों घुसी हो?” 

“मैं यह सफ़ाई इसलिए कर रही हूँ कि बाद में मेरा ब्याह राजकुमार के साथ हो जाएगा।” 

“यह काम तुम मुझे करने दो, जिससे तुम्हारा नहीं, मेरा ब्याह राजकुमार से हो जाए!”

बेचारी सीधी-सादी सितारे वाली लड़की ने अपनी बहन के लिए कंडाल की सफ़ाई छोड़ दी और बाहर निकल आई। माँ थोड़ी देर में खौलता पानी लेकर आई और सौतेली बेटी को ख़त्म करने के इरादे से उसे कंडाल में डाल दिया। जब उसने अपनी ही बेटी की चीखें सुनी, तब उसे समझ में आया कि उसने तो अपनी ही बेटी को जला कर अधमरा कर दिया है। वह बेतहाशा रोने-चीखने-चिल्लाने लगी। उसका रोना-पीटना सुनकर उसका पति भी दौड़ा-दौड़ा आया। अपनी बेटी से सारा हाल जानकर उसका भी पारा चढ़ गया और चाहे-अनचाहे उसका हाथ अपनी बीवी पर उठ गया। दो बेटियों की अम्मा ख़ूब चीखी चिल्लाई, पर उसकी उसके पति ने कर दी उसकी ख़ूब धुनाई! 

सितारे वाली लड़की तो बन गई अब रानी उसके साथ ही ख़त्म होती है मेरी यह कहानी, 

“जो दिल ही दिल में औरों से जलन करे। अपने ही मन की आग में बार-बार जल मरे॥”

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