हाय-हाय-मर्ची

15-02-2023

हाय-हाय-मर्ची

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 223, फरवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

मानव जीवन के लिए वायु और जल के बाद सबसे बड़ी आवश्यकता है—भोजन। भारतीय पाक-शास्त्रियों ने मनुष्य द्वारा ग्रहण करने के ढंग के आधार पर भोजन को पेय, भोज्य, चर्व्य, लेह्य आदि प्रकारों में बाँटा, पेय जो पिया जा सके—दूध, शरबत आदि, भोज्य जो निवाले बना कर खाया जाए—जैसे रोटी-भात आदि, चर्व्य जिन्हें बहुत चबाना पड़े जैसे चना—चबैनाआदि, लेह्य जैसे हलवा, लपसी आदि। 

भोजन मुख्य रूप से तो शरीर के पोषण और दैनिक क्रियाओं को कर पाने की शक्ति के लिए किया जाता है, परन्तु जब यह आवश्यकता पूरी हो जाए तब बारी आती है, स्वाद की। हालाँकि विद्वानों और आदर्शवादियों का विचार है कि भोजन को केवल शक्ति और पोषण के लिए ही ग्रहण किया जाना चाहिए, लेकिन यदि ऐसा ही होता तो दुनिया के सारे पाककला विशेषज्ञ तो निठल्ले ही बैठे रह जाते; संजीव कपूर और तरला दलाल को कोई कैसे जानता? टीवी पर करोड़ों कमाने वाले धारावाहिक कैसे बनते? तो साहब भोजन के स्वाद का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है, अब जब हम मानव विकास के क्रमिक दौर में ऐसी जगह पहुँच गए हैं, जब भोजन की कोई कमी नहीं है तब तो स्वाद हमारे जीवन का एक प्रमुख अंग ही बन गया है। 

अब भोजन के स्वाद की बात करें तो विद्वानों ने इन्हें छह रसों (स्वाद) का नाम दिया है, जिस थाली के भोजन में इन छह रसों का सुंदर संतुलन हो वह ‘षट्‌रस’ भोजन कहलाता है। भोजन के छह रस हैं, मधुर-मीठा, अम्ल-खट्टा, लवणीय-नमकीन, कटु-कड़वा, काषाय-कसैला और तीक्ष्ण-तीखा। मीठा जैसे गन्ना, नमकीन जैसे नमक, कटु जैसे करेला, कसैला जैसे हरड़, बहेड़ा, खट्टा जैसे नींबू और तीक्ष्ण (तीखा) जैसे मिर्च, और यही तीक्ष्ण (तीखी) मिर्ची/मिर्च मेरे इस लेख की नायिका है। 

आधुनिक जीव-वैज्ञानिक तीक्ष्ण (तीखा) को स्वाद नहीं मानते, बाक़ी के पाँच स्वादों को तो हमारी जीभ (रसना), जो हमारी स्वादेंद्रिय है, स्वाद कलिकाओं के द्वारा ग्रहण करती है, परन्तु ‘तीक्ष्णता’ सीधे स्नायुओं के द्वारा ग्रहण की जाने वाली ‘उत्तेजना’ है। इस बात की सच्चाई केवल वे लोग समझ सकते हैं, जिन्होंने खाना बनाने के लिए ढेरों चरपरी मिर्ची काटने के बाद हाथ में होने वाली जलन का अनुभव किया हो या फिर जिनकी आँख में मिर्ची लगी हो या जिनके घावों पर ‘मिर्च का छिड़काव’ किया गया हो! अब जो वस्तु खायी तो जाती हो भोजन के साथ, परन्तु अनुभव की जाती हो ‘पीड़ा’ (उत्तेजना) के रूप में, तो वह तो विशिष्ट ही हो गई ना, इसीलिए मैं इस लेख में मिर्च को नायिका बना रही हूँ। 

वैज्ञानिकों की मानें तो मिर्ची लगने का अनुभव स्वाद या उत्तेजना ना होकर एक ‘पीड़ा’ है, चलो मान लेते हैं, कि पीड़ा ही है तो क्या, “पीड़ा में आनन्द जिसे हो, आए मेरी मधुशाला” कहकर कवि ने पीड़ा के अनुभव को आनंद नहीं माना है? यदि मदिरापान की ‘पीड़ा’ आनंददायी है, तो मिर्च के ‘स्वाद’ की पीड़ा भी कम आनंददायक और लोकप्रिय नहीं है। यदि ऐसा न होता तो ऊँची ‘दुकान फीके पकवान’ का मुहावरा न बनता! यहाँ ‘फीके ‘शब्द का आशय, मैंने बिना मिर्च-मसाले वाले पकवान से, अपनी सुविधा के लिए लगा लिया है, इसे आप अन्यथा न लें, बड़े-बड़े मीडिया वाले, वकील, पत्रकार शब्दों का आशय अपनी सुविधा के अनुसार निकालते हैं तो फिर मैं तो ठहरी एक अदनी-सी, नौसिखिया लेखिका। 

तो साहब, मिर्च एक ऐसी चीज़ है जिसके बिना बहुत सारे लोगों के लिए भोजन का आनंद अधूरा रह जाता है। कुछ लोगों के लिए मिर्च-खटाई वाली चटनी यदि ‘भोजन घसीट’ है तो कुछ के लिए क्षुधावर्धक भी। ग़रीब-मज़दूर, कामगरों के लिए तो सूखी, मोटी रोटी के ऊपर प्याज़, नमक के साथ रखी हरी मिर्च षट्‌रस व्यंजन से कम नहीं! हॉस्टल में रहकर मेस में खाना खाने वाले लोग यह भी जानते होंगे कि रसोई में यदि दाल-सब्ज़ी कम पड़ने लगे, तो रसोइया महोदय ऊपर से मिर्च झोंक देने में गुरेज़ नहीं करते और कम पड़ता हुआ भोजन सबके लिए पूरा पड़ जाता है। अतः मिर्च में  किफ़ायत-शि’आरी का गुण भी होता है! कम ख़र्च बाला-नशीं। 

हरी, लाल, काली, पीली, नारंगी रंगों और आधे इंच से लेकर सात-आठ इंच तक की लंबाई और मटर के दाने से लेकर छह-आठ इंच के घेरे तक में मिलने वाली मिर्च, देखने में कितनी सुंदर और लुभावनी होती है यह तो पारखी, और गुणग्राही दृष्टि ही समझ सकती है। साधारण, देसी मिर्च, जहाँ मेरा सब्ज़ीवाला, सब्ज़ियाँ ख़रीदने लेने के बाद, मेरे थैले में मुफ़्त में डाल देता है वहीं, यदि रंग-बिरंगी मिर्ची ख़रीदना चाहूँ तो मुझे अपनी ‘नाक से पैसे चुकाने’ पड़ते हैं (मैं अंग्रेज़ी मुहावरे का हिंदी अनुवाद लिख रही हूँ)। यदि आप कभी सब्ज़ी मंडी से सब्ज़ी ख़रीदते हैं, तो एक बार हरे मसाले की दुकान (जिस पर पुदीना, धनिया, करी-पत्ता, हरा लहसुन, अदरक, हरा प्याज़ आदि मिलते हैं) पर कुछ समय रुक कर देखिएगा। और मसाले एक तरफ़ और मिर्ची की ढेरियाँ एक तरफ़, यह संख्या में इतनी अधिक होती हैं जितनी कि और सब मसालों को मिलाकर बनेंगी, और शर्त यह भी है कि आप उन हरी मिर्चों की छवि देखकर इसकी ख़ूबसूरती के क़ायल न हो जाएँ तो मेरा नाम बदल दीजियेगा। 

गुणीजन मिर्च की नोक, उसकी गठन और महक से उसके तीखे या फीकेपन का अंदाज़ा भी लगा लेते हैं। यदि अनुभवी लोगों द्वारा तीखी समझी गई मिर्च फीकी निकल जाए तो बेचारी ‘सूरत हरामी’ होने की उपाधि भी पाती है। हालाँकि तीखापन मिर्ची का जन्मजात, स्वाभाविक, प्राकृतिक गुण है परन्तु कुछ प्रजातियों की मिर्चें पकने के बाद मीठी भी हो जाती हैं, जैसे कि शिमला मिर्च। आज के युग में जब संपूर्ण विश्व एक परिवार की तरह है उस समय हम जानते हैं भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के कुशल पाचकों द्वारा कुछ मिर्चें भोजन में स्वाद, कुछ रंग और कुछ सुगंध के लिए डाली जाती हैं, वह विज्ञापन तो आपने ज़रूर सुना होगा—‘देगी मिर्च का तड़का-अंग-अंग फड़का’! 

यह मिर्ची जो जाने-अनजाने मसालों की अघोषित साम्राज्ञी बनी बैठी है, मूल रूप से भारत की उपज है ही नहीं, बल्कि दक्षिण अमेरिका से सात सौ वर्ष पूर्व भारत में आई है। इटली से आई सोनिया गाँधी तो स्वयं भारत पर कभी राज्य ना कर सकीं पर यह ‘विदेशी मिर्च’ रसिकों की जिह्वा पर अखंड राज कर रही है। अभी कुछ वर्षों पहले तक भारत के असम प्रदेश में पैदा होने वाली ‘भूत झोलोकिया’ नामक मिर्च विश्व की सबसे तीखी मिर्च मानी जाती थी, परन्तु वैज्ञानिकों ने संकर प्रजातियाँ उत्पन्न कीं और वर्तमान में अमेरिका की ‘कैरोलाइना रीपर’ नमक मिर्च विश्व की सर्वाधिक तीक्ष्ण मिर्च मानी जाती है। मिर्ची की तेज़ी को नापने के लिए ‘स्कोविल हीट स्केल’ (एस एच एस) का उपयोग होता है जितना बड़ा एस एच एस उतनी तेज़ मिर्च! मिर्च की तेज़ी ‘कैप्सीसिन’ नामक रसायन से आती है। मिर्च का वानस्पतिक वैज्ञानिक नाम: 'कैप्सिकम’ है और इसी से ‘कैपसीसिन’ नाम की उत्पत्ति हुई है। 

एक ओर जहाँ ‘भूत झोलोकिया’ ज़ुबान पर लगते ही भूत के दर्शन कराती है, वहीं मिर्च की धूनी देकर माँयें अपने बच्चों की नज़र उतारती हैं। ओझा लोग मिर्च की धूनी देकर ‘पीड़ित’ लोगों के मुँह से ‘पीपल का भूत’, ‘मसान का भूत’, ‘फ़लां गाँव वाली चुड़ैल’ के अपने ऊपर होने की स्वीकारोक्ति भी कराते हैं और पीड़ित की मानसिक चिकित्सा भी की जाती है। किशोरियों और महिलाओं को मनचलों की छेड़छाड़ और बदतमीज़ी से बचने के लिए मिर्च से बने स्प्रे का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। 

वाह, मेरी मिर्ची! शाबाश! 

एक ओर तो हमारी मिर्ची मानसिक रोगियों के इलाज के काम आती है, वहीं यह भी कहा जाता है कि मिर्च खाने से शरीर के भार को कम रखने में सहायता मिलती है; मिर्च की लोकप्रियता का यह भी एक कारण हो सकता है। मिर्च में पाए जाने वाले रसायन मन की प्रसन्नता बढ़ाते हैं, जिन्हें अंग्रेज़ी में ‘मूड एलीवेटर्स’ कहते हैं, इसलिए कभी-कभी मेरे मन में यह जिज्ञासा होती है कि क्या शराब की तरह ‘मिर्चख़ोरी’ की आदत पड़ सकती है? 

मिर्च में विटामिन ‘सी’ की प्रचुर मात्रा के चुटकुले तो हम सभी ने बचपन से सुने हैं, मेरी यह दृढ़ मान्यता है कि विटामिन ‘सी’ का नाम अवश्य मिर्च खाने के बाद निकली हुई ‘सी-सी-सी’ से ही पड़ा होगा, चाहे उसमें वह विटामिन हो न हो। 

चटपटे, तीखे, चीनी व्यंजनों की भारत में बढ़ती लोकप्रियता का बड़ा कारण मिर्च का स्वाद ही है। हमारे देश में तो इटली जैसे यूरोपीय देश का पिज़्ज़ा भी मिर्ची के चूर्ण के साथ बिकता है। 

एक ओर जहाँ दक्षिण एशियाई, मैक्सिको, अफ़्रीकी देशों के लोग मिर्च के स्वाद के दीवाने हैं, वहीं यूरोपीय देशों में लोग मिर्च खाने से डरते हैं। 

इस भय का प्रभाव वहाँ छपे चिप्स के पैकेटों के ऊपर धधकती हुई आग की ज्वाला का चित्र देखकर होता है, मिर्च के स्वाद को अंग्रेज़ी में ‘हॉट’ कहते भी तो हैं! यह शायद इसलिए कि बिना अभ्यास के यदि आपने तेज़ मिर्ची खा ली तो आप सर्दियों के दिनों में भी पसीने से लथपथ हो जाएँगे मानो चूल्हे के आगे बैठे हों। 

इसी बात पर एक घटना याद आ रही है, मेरे पति पहली बार मुझे साथ लेकर अपनी ससुराल यानी मेरे मायके आए थे। मेरी तीन छोटी बहनों को नए-नए जीजा मिले थे। जीजा-साली का हास-परिहास का सम्बन्ध होता है, यह तो हम सभी जानते हैं। बस! जीजा जी को छेड़ने के आनन्द में बहनों ने मिलकर मेरे पति को पान के बीड़े में मिर्ची डालकर खिला दी। मिर्च की मात्रा, ग़लती से ही सही, कुछ अधिक हो गई। यह मिर्ची उन्हें इतनी तेज़ लगी कि देखते ही देखते उनकी आँख-नाक से पानी बहने लगा, कान और गाल, लाल और गर्म हो गए ऐसा लगने लगा मानों मूर्छित हो जाएँगे। घर में सनसनी फैल गई, नए-नए दामाद के साथ यह कैसा मज़ाक! मेरी बहनों की स्वीकारोक्ति के बाद तो उन तीनों की शामत ही आ गई। ख़ैर जल्दी-जल्दी कुल्ला कराया गया, दही, घी, शक्कर सभी कुछ खिलाया गया। जलन, बेचैनी, और घबराहट शान्त होने में घंटे भर का समय लगा। बाद में डॉक्टरी पढ़ रहे मेरे भाई ने बताया कि यह बहुत ख़तरनाक काम था। इस तरह के रसायन यदि अचानक अधिक मात्रा में शरीर में पहुँच जाएँ तो गंभीर परिणाम निकल सकते हैं। आप का स्वभाव यदि रोमांच प्रियता का है तो मिर्ची के साथ नए प्रयोग करते समय आप सतत सावधान रहें। 

इस घटना के बहुत वर्षों बाद अमेरिका जाना हुआ, वहाँ ‘मोंटेरे बे’ नामक स्थान पर हम लोग सैर के लिए गए। समुद्र के तट पर एक दुकान पर बहुत आकर्षक और बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था “विश्व की सबसे तेज़ मिर्ची की चटनी की दुकान” पूरी दुकान में विश्व भर की तमाम तरह की मिर्चों की चटनियाँ, अचार और सॉस बिक रहे थे। जिस चटनी को विश्व की सबसे तेज़ चटनी कहा गया था, उसका स्वाद लेने के लिए हमें बाक़ायदा ‘शपथ-पत्र’ भरना पड़ा और यह लिख कर देना पड़ा कि ‘इस मिर्च की चटनी को चखने का निर्णय हमारा अपना, स्वतंत्र निर्णय है। इसके खाने से यदि हमारे ऊपर कोई विपरीत प्रभाव पड़ा तो उसके लिए दुकान या दुकान वालों की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है, मेरी आयु अट्ठारह वर्ष से अधिक ह़ै।’ इतनी सतर्कता और प्रतिज्ञा पत्र भरने के बाद जब मिर्च की चटनी का स्वाद चखने की बारी आई तो हिम्मत ही न हुई कि उसे कुछ अधिक मात्रा में खाएँ! बस यह समझिए कि सूई की नोक के बराबर चटनी चखी गई। मेरे जैसे मिर्चीख़ोर के लिए यह कोई बड़ी बात न थी। 

यूरोपीय लोगों का मिर्च से अपरिचय एक और चुटकुले के रूप में आपको सुनाती हूँ। भारत पर ब्रिटिश राज्य के समय की बात है, एक अँग्रेज़ अधिकारी की किसी गाँव के आसपास नियुक्ति हुई। सुबह उसने ग्रामीणों को लोटे में पानी लेकर खेत-मैदान की ओर जाते हुए देखा। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने कारण जानना चाहा। अधिकारी के नौकर ने उससे कहा, “हुज़ूर आपको कल सुबह इसका बात का पता चल जाएगा।” उसने रात को साहब के लिए भारतीय भोजन में थोड़ी मिर्च भी डाल दी। अगली सुबह अँग्रेज़ अधिकारी को समझ में आ गया कि ग्रामीणों का लोटे में पानी लेकर ‘मैदान’ जाने का क्या कारण था। 

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि लगभग सत्ताइस तरह की मिर्ची भारत में पैदा होती हैं, जिनमें चपट्टा, कंठारी, बोरिया, भावनगरी, कश्मीरा, सन्नम, कायन आदि आदि है, (अधिक जानकारी के लिए आप गूगल पर खोज सकते हैं)! 

यदि विदेशों में इसे हेलोपिनो, चिली, चिले्, पेपर, पेरी-पेरी आदि कहा जाता है, तो वहीं भारत के भिन्न-भिन्न प्रदेशों में मिलकू (तमिल), मिरपकाया (तेलुगू), मिरी (गुजराती), लोंका (बांग्ला) मेनासिनाकाइ (कन्नड़) आदि नामों से पुकारा जाता है। अब भला नाम में क्या रखा है? चाहे जिस नाम से पुकारें इसका स्वाद (?) तो वही परम तुष्टिदायक होता है, चटोरों के लिए स्वर्गीय आनन्दप्रद! 

इस मसाले के नाम पर तो कितने पकवानों के नाम विश्व प्रसिद्ध हो गए हैं, राजस्थान का मिर्ची बड़ा, हैदराबादी मिर्ची का सालन, चिली पनीर, चिल्ली चिकन आदि का नाम कौन नहीं जानता, यदि मिर्ची का स्वाद ना हो तो चाट के चटकारे, भेलपूरी का आनंद और झालमुढ़ी की झाल क्या ख़ाक मिल पाएगी? 

हमारे देश में तो मिर्ची जी के जलवे ही निराले हैं, रजत पट की कुशल अभिनेत्री नरगिस पहेली बुझाती हैं—
“छोटी सी छोकरी, लालबाई नाम है, पहने वो घाघरा, एक पैसा दाम है, मुँह में सबके आग लगाए आता है रुलाना”। 

तो कभी गोविंदा पूछते हैं, “तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ?” 

कभी लावणी गायिका स्वयं का परिचय ही, “लौंगी मिर्ची मैं कोल्हापुर की” कह कर देती है और कहीं दूसरी लोक गायिका भी अपने गुणों की तुलना छोटी और तेज़ मिर्च से करते हुए कह बैठती है, “छोटी मिरच बड़ी तेज बलमा, बड़ी तेज बलमा,  हमें छोटी ना जान्यो।” 

“हाय, हाय, मिर्ची” वाला गाना भी आप लोगों ने अवश्य ही सुना होगा, मेरे इस लेख का शीर्षक भी तो यही है! 

आशा है मेरे इस आलेख से मिर्ची खाने वालों को आनंद आया होगा और मिर्ची ना खाने वालों के मन में उत्सुकता जागी होगी, इस अनोखी ख़ूबसूरत वस्तु का स्वाद लेने की, तो आपको बता दूँ कि, लेख में जैसा उल्लेख कर ही चुकी हूँ, मिर्ची खाते समय सावधानी बरतें। अब आख़िर में एक और सलाह दे दूँ कि जब आप मिर्ची की बनी कोई चीज़ ख़रीद कर घर ले जा रहे हों तो, उसे कहाँ रखें इस बात की भी विशेष सावधानी बरतिएगा। क्यों? तो, सुनिए: 

एक दिन मैंने अपने एक मित्र को बहुत उदास देखा पूछा, “क्या बात है, बड़े परेशान लग रहे हो?”

वह बोला, “कल मेरे पिताजी, चाचा जी के साथ मिर्ची की चटनी लेने बाज़ार गए थे।”

“तो? आज क्या बीमार हो गये?” 

“नहीं, चटनी ख़रीद कर उन्होंने पैंट की पिछली पॉकेट में रख ली, जब दोनों भाई ऑटो में बैठे तो थोड़ी ही देर में पिताजी, ऑटो से उतरकर सरपट दौड़ने लगे। आज तक मैं उन्हीं को ढूँढ़ रहा हूँ! बहुत परेशान हूँ।”

1 टिप्पणियाँ

  • 14 Feb, 2023 06:25 PM

    सरोजिनीजी हाय हाय मिर्ची लेख काफ़ी रोचक है।हम पूरी रचना पढ़ करके मन ही मन मुस्करा:::देगी मिर्च का तड़का अंग अंग फड़का ये एमडीएच मिर्च का स्लोगन है।हम भी मिर्चखोर है।इसलिए भी ये लेख को पढ़कर पूरी जानकारी ली और आनद उठाया।धन्यवाद।

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