क्वां क्वां को! पीठ से चिपको

01-11-2024

क्वां क्वां को! पीठ से चिपको

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 264, नवम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

मूल कहानी: क्वाक्वा!अटेक्टि ला!; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (क्वैक!स्टिक टु माइ बैक); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; 
हिन्दी में अनुवाद: ‘क्वां क्वां को! पीठ से चिपको’ सरोजिनी पाण्डेय

 

किसी ज़माने में एक राजा राज करता था, उसकी एक बेटी थी, जो इतनी सुंदर थी कि आसपास के राज्यों के सभी जवान राजकुमार उससे शादी करना चाहते थे। अब शादी तो एक राजकुमार से ही हो सकती थी न, यह सोचकर राजा ने एक बहुत शानदार समारोह किया, जिसमें आस-पड़ोस के सभी विवाह योग्य राजकुमारों को बुलाया गया, जिससे रूप, गुण, बुद्धि देखकर पिता-पुत्री किसी एक राजकुमार को राजकुमारी का पति होने के लिए चुन सकें। 

इस समारोह में सुंदरी राजकुमारी गुमसुम बैठी रही। राजा ने अपनी बेटी से कहा, “बेटी जाओ थोड़ा हँसो-बोलो, खिलखिलाओ, सबसे मिलो-जुलो।” लेकिन राजकुमारी बस चुपचाप ही बैठी रही। परेशान हो कर राजा ने उससे पूछा, “बेटी क्या तुम मेरी इस दावत देने की वजह से नाराज़ हो?” 

“नहीं पिताजी, एकदम नहीं!” बेटी बोली।

”आखिर बात क्या है?” 

“पता नहीं क्या बात है पिताजी, मुझे हँसी आ ही नहीं रही है। ऐसा लगता है कि मैं ज़िन्दगी में अब कभी हंँस नहीं पाऊँगी!”

पिता ने कहा, “अगर ऐसी बात है तो मैं अभी यह घोषणा करता हूँ कि जो तुम्हें हंँसा देगा उसी से तुम्हारी शादी होगी!” राजकुमारी ने भी तभी अपनी शर्त भी सुना दी कि “जो उसे हंँसाने की कोशिश में सफल नहीं होगा, उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा!”

राजकुमारी और राजा की यह घोषणा सभी ने सुनी। 

उस दिन कई राजकुमारों ने उसे हंँसाने की कोशिश की लेकिन कोई सफल न हुआ। कई ने अपने जान से हाथ धोए और समारोह समाप्त हो गया। 

राजा और राजकुमारी की शर्त की बात धीरे-धीरे फैलने लगी। कुछ ही दिनों में दूर-दूर के गाँव तक भी यह बात फैल गई। गाँव में तो बातें और भी तेज़ी से फैलती हैं क्योंकि लोग चौपाल में या अलाव को घेर कर जब बैठते हैं तो आपस में ख़ूब बातें करते हैं। और फिर यह बात तो राजा बन जाने की थी! जो राजकुमारी को हंँसा लेगा राजकुमारी से उसका ब्याह होगा। फिर देर-सबेर वह राजा भी बन जाएगा क्योंकि राजकुमारी इकलौती संतान जो थी! 

गाँव के एक ग़रीब मोची के जवान बेटे ने भी यह चर्चा सुनी, जिसकी खोपड़ी की खाल फुँसी-फ्यास और खाज से भरी थी। इस वजह से उसे ज़्यादा काम भी नहीं मिल पाता था। 

उसने चौपाल में सबको सुना कर कहा, “मैं भी राजधानी जाऊँगा और अपना भाग्य आज़माऊँगा!”

मोची ने उसे समझाया, “बेटा पागल न बनो।”

लेकिन जवान अड़ गया, “पिताजी मैं तो कल ही चल दूँगा”

मोची बोला, “बेटा वे लोग शर्तों के पक्के हैं, तुम मार दिए जाओगे।”

“पिताजी यह भी तो हो सकता है कि मैं राजा बन जाऊँ।”

उसकी इस बात पर चौपाल में बैठे सभी लोग ठठाकर हंँस पड़े, “हा ऽ ऽ हा ऽ ऽ हा ऽ ऽ खाज भरे सिर वाला राजा??“

लेकिन खुजली वाले जवान मोची ने कोई परवाह नहीं की। वह अगली सुबह अपने पिता के पास गया और बोला, “पिताजी, मैं जा रहा हूँँ।” 

मोची हैरान हो गया। वह पिछली रात चौपाल में हुई बातचीत को मज़ाक समझ कर भूल चुका था, बोला, “बेटा क्यों आग में कूद रहे हो?” 

बेटा बोला, “यहाँ भी मैं कौन सा सुख से हूँँ, मेरी बीमार खाल के कारण लोग मेरा मज़ाक़ उड़ाते हैं, काम भी नहीं मिलता। आप मुझे तीन रोटियाँ, एक बोतल पानी और तीन रुपये दे दीजिए। मैं अपना भाग्य आज़माने ज़रूर जाऊँगा। हार गया तो मारा जाऊँगा।”

बेबस पिता चुप हो गया, बेटा तक़दीर के भरोसे निकल पड़ा। 

वह चला जा रहा था राजधानी की ओर। 

राह में उसे एक बुड्ढी स्त्री छड़ी टेक कर चलती हुई मिली। वह बहुत कमज़ोर और ग़रीब दिखलाई पड़ रही थी। 
खाज वाले सिर के जवान ने उससे पूछ लिया, “राम-राम अम्मा, तुम भूखी तो नहीं हो?” 

“बेटा मैं तो खाने की तलाश में ही भटक रही हूँँ! क्या तुम मुझे कुछ खाने को दे दोगे?” 

जवान ने तुरंत उसे अपनी तीन रोटी में से एक रोटी दे दी। बुढ़िया उसे जल्दी-जल्दी खा गई। यह देखकर दयालु जवान ने उसे दूसरी रोटी भी दे दी। दूसरी रोटी खाकर भी बुड्ढी अम्मा ने जब उसकी ओर आशा भरी नज़रों से देखा तो जवान का दिल पिघल गया। उसने तीसरी रोटी भी उसको दे दी और अपनी राह चल पड़ा। 

चलते चलते उसे दूसरी औरत दिखाई पड़ी जिसके शरीर पर जो कपड़े थे, वे चीथड़े थे और उसका शरीर भी अधनंगा सा दिखता था। उसने जवान के आगे हाथ फैला दिया, “बेटा मुझे कुछ पैसे मिल जाते तो अपने शरीर को ढकने के लिए कपड़े ले लेती।”

जवान ने उसे अपने साथ लिए तीन रूपयों में से उसे 1₹ दे दिया। फिर उसे लगा कि 1₹ तो बहुत कम है, इससे उसे कौन सा कपड़ा मिलेगा? 

उसने दूसरा रुपया भी दे दिया, परन्तु वह मन ही मन दुखी भी होता जा रहा था कि उस स्त्री की सहायता अच्छी तरह नहीं कर पा रहा है। ऐसा ही सोचते-सोचते उसने तीसरा रुपया भी उस औरत को दे दिया। 

जवान आगे बढ़ता रहा। चलते-चलते उसे रास्ते के किनारे लेटी, एक बहुत कमज़ोर, झुर्रियों भरे चेहरे वाली एक बहुत बूढ़ी स्त्री दिखाई दी जो हाँफ रही थी और बार-बार अपने होंठों पर जीभ फेर रही थी। इस लड़के को देखकर वह हाँफते हुए बोली, “बेटा अगर दो घूँट पानी पिला देते तो इस बुढ़िया के प्राण बच जाते, बड़ा पुण्य कमाओगे बच्चा।”

खाज से भरे सिर वाले लड़के की आँखों में उसे देखकर आँसू आ गए। उसने अपनी पानी की बोतल उसके होंठों से लगा दी, बोतल की आख़िरी बूँद तक उसने पी ली। जब बोतल ख़ाली हो गई तब तो चमत्कारी हो गया! वह बुड्ढी स्त्री देखते ही देखते एक परम सुंदरी परी में बदल गई, जिसके सिर पर सोने का मुकुट चमक रहा था। वह बोली, “मुझे मालूम है कि तुम कहाँ जा रहे हो मैं यह भी जानती हूँ कि तुम कितने अच्छे और दयालु इंसान हो। तुम्हें जो तीन स्त्रियाँ मिली थीं, वह और कोई नहीं, मैं ही थी जो तुम्हें परख रही थी। मैं राजा बनने में तुम्हारी सहायता करना चाहती हूँ। तुम यह सुंदर हंस लो। इसे हमेशा अपने पास रखना कभी इसे अपने से दूर मत जाने देना। जब भी कोई और, तुम्हारे सिवा इसे छूएगा तो यह बोलेगा ‘क्वां क्वां को!’ और तुम्हें तुरंत ही कहना है, ‘पीठ से चिपको’ बस!“

इतना कहकर वह सुंदर परी ग़ायब हो गई; अब बिना खाना-पानी और पैसों का यह युवक हंस को लेकर आगे चल पड़ा। शाम होते-होते वह एक सराय तक पहुँच गया। उसके पास पैसे तो थे नहीं, वह सराय के बाहर ही बैठकर रात काटने की बात सोचने लगा। तभी सराय का मालिक उसको वहाँ से हटाने की मंशा से आ ही रहा था कि भीतर से उसकी उसकी दो बेटियाँ दौड़ती हुई आईं और पिता से बोलीं, “पापा उस मुसाफ़िर को निकालिए मत जिसके पास वह सुंदर हंस है, वह बेचारा बीमार सा लगता है। वह भूखा भी लग रहा है।”

हंस को देखने के बाद सराय के मालिक को समझ में आ गया कि उसकी बेटियों के मन में क्या है। वह बोला, “ठीक है, मैं इसे खाना-बिस्तर सब दूँगा और हंस को भी बाड़े में रखवा दूँगा।”

इस पर अब मोची का बेटा बोला, “नहीं नहीं यह हंस बाड़े में नहीं जाएगा। यह हमेशा मेरे ही साथ रहता है।”

खाना खाने के बाद युवा को एक चारपाई दे दी गई। लड़का हंस को चारपाई के नीचे रखकर स्वयं ऊपर सो गया। वह गहरी नींद में सो रहा था तभी उसे लगा कि उसने किसी के चलने की आहट सुनी है। उसी समय हंस भी बोल उठा, ‘क्वां क्वां को!’ यह आवाज़ सुनते ही जवान भी तुरंत बोला, “पीठ से चिपको।” बोलने के साथ ही वह बिस्तर से यह देखने के लिए उठ खड़ा हुआ कि आख़िर माजरा क्या है? उसने देखा कि सराय के मालिक की बेटी, अपने बिस्तर के ही कपड़ों में, कमरे में घुस आई थी और हंस के पंख चुराने के लिए उसको पकड़े हुए थी और अब इसी हालत में वह हंस से चिपक गई थी। 

लड़की ने अब ज़ोर से आवाज़ लगाई, “दीदी मुझे छुड़ाओ, जल्दी यहाँ आओ।” बहन दौड़ती हुई आई और हंस से चिपकी बहन की कमर अपने दोनों हाथों से पकड़ कर उसे खींचने लगी। तभी हंस फिर बोल उठा, “क्वां क्वां को!” बिना देर लगाई जवान भी बोल उठा, “पीठ से चिपको!”

और दूसरी लड़की अपनी बहन से चिपक गई। 

युवक ने खिड़की के बाहर देखा सुबह का उजाला फैलने लगा था। वह उठा और तैयार होकर राजधानी के लिए निकल पड़ा। हंस भी जवान के साथ चल पड़ा जिसकी पीठ से सराय के मालिक की दो बेटियाँ, अपने रात के अस्त-व्यस्त कपड़ों में चिपकी हुई थीं। 

इन सब पर नदी से नहा कर लौटते हुए एक पंडित जी की नज़र पड़ी। वे बोल उठे, “राम राम भले घर की लड़कियाँ क्या इस तरह सुबह-सुबह घर से बाहर निकलती है?” अपनी छड़ी से वह लड़कियों को हंस से छुड़ाने की कोशिश करने लगा। हंस फिर बोल उठा, “क्वां क्वां को!”

जवान भी ‘पीठ से चिपको’ चिल्ला उठा। अब सड़क पर जवान के साथ हंस, हंस से चिपके तीन लोग चल रहे थे, पंडित जी, सराय के मालिक की बड़ी बेटी और छोटी बेटी। कुछ आगे चलने पर उन्हें बरतन का बड़ा टोकरा पीठ पर लेकर, बरतन बेचने निकला, एक ठठेरा मिला। उसकी पीठ के टोकरे में तवे, कड़़ाही, चिमटे, पल्टे, कलछी थे। जब उसने एक पंडित जी को दो लड़कियों और एक हंस से चिपके देखा तो बोल पड़ा, “यह मैं क्या देख रहा हूँ? कैसा ज़माना आ गया है!” और उसने अपने बरतनों में से एक कड़छी निकालकर पंडित जी को पीटना चाहा। अभी उसकी कलछी पंडित जी को लगी ही थी कि हंस बोल उठा, “क्वां क्वां को!”

खाज-खुजली से भरे सिर वाला लड़का बोल उठा, ‘पीठ से चिपको’ और ठठेरा भी पंडित जी से चिपक गया। 

लड़का अब तक राजा के महल के पास पहुँच गया था। सुबह-सुबह राजकुमारी महल के छज्जे पर टहल रही थी। तभी उसके सामने से यह जुलूस निकाला। 

खाज से भरे सिर वाले जवान के पीछे हंस, हंस के पीछे सराय वाले की एक बेटी, एक बेटी के पीछे दूसरी बेटी, दूसरी बेटी से चिपके पंडित जी, और पंडित जी से चिपका ठठेरा और ठठेरे की पीठ पर कड़ाही, तवे, चिमटे, कलछी का टोकरा!! यह सब देखकर राजकुमारी ज़ोर-ज़ोर से हंँसने लगी। बेटी के हंँसने की आवाज़ सुनकर राजा भी वहाँ आन पहुँचा और सड़क पर चल रहे क़ाफ़िले को देखते ही ख़ुद भी हंँसने लगा। सड़क पर आते-जाते लोग तो पहले से ही हंँसते-हंँसते आ-जा रहे थे। 

अचानक न जाने क्या हुआ कि सबकी आँखों के आगे ही रास्ते पर से वह हंस और उसे चिपके सभी लोग ग़ायब हो गए, कोई बचा तो वह था खाज से भरे सिर वाला नौजवान। 

नौजवान ने राजकुमारी के साथ राजा को भी महल के छज्जे पर देखा और निडर होकर राजा को अपना परिचय दिया और राजा की घोषणा के अनुसार राजकुमारी को हंँसाने का अपना पुरस्कार माँगा। 

राजा ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। उसके सिर की खाज और पुराने पैबन्द लगे कपड़ों को देखने के बाद उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। वह बोला, “भले नौजवान मैं तुम्हें अपने दरबार में नौकरी पर रख लूँगा तो तुमको यह मंज़ूर होगा न!” नौजवान ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया! वह तो राजा की शर्त के अनुसार राजकुमारी से शादी करने का अधिकारी था राजा ने आगे कुछ और कहने-करने से पहले नौजवान को नहाने धोने और बढ़िया कपड़े पहनने की आज्ञा दी। 

जब नौजवान साफ़-सुथरा हो, सज-धज कर बाहर आया तो इतना सजीला लग रहा था कि कोई उसे पहचान ही ना सका! राजकुमारी तो देखते ही उसके ऊपर लट्टू हो गई। शादी तय हो गई। 

नौजवान ने राजा से अनुमति लेकर एक बड़ी गाड़ी ली और सबसे पहले अपने गाँव गया। उसका पिता, बूढ़ा मोची, अपने इकलौते बेटे के चले जाने के दुख में डूबा था। नौजवान उसे अपने साथ राजमहल में ले आया और उसके बाद धूमधाम से नौजवान की शादी राजकुमारी से हो गई। 

कहानी खत्तम! पइसा हज्जम! 

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