ओछा राजा
सरोजिनी पाण्डेयमूल कहानी: इल री वेनेसियो; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द फॉपिश किंग); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय
प्रिय पाठक, कहा जाता है कि स्वस्थ और सुखी रहने के लिए अपने हृदय में थोड़ा बचपन सँजोए रखना चाहिए, उसी बालपन में एक बार फिर, कुछ देर के लिए ही सही, आपको ले जाने के लिए मैं ये लोक कथाएँ आप तक पहुँचा रही हूँ। इस लोक-कथा का आनंद लीजिए और बचपन के उन गलियारों में एक बार फिर घूम आइए जब आपने नानी, दादी या माँ के मुख से या फिर स्कूल की किताबों से ढक कर परियों–भूतों की कहानियाँ पढ़ी या सुनी थीं:
एक बार की बात है, एक राजा था, उसे अपने रूप पर बहुत अभिमान था। वह समझता था कि वह संसार का सबसे सुंदर पुरुष है। उसके पास एक दर्पण था जिसके सामने खड़े होकर वह रोज़ उससे कहता—
ओ मेरे अति प्यारे दर्पण!
मुझसे अधिक रूप और यौवन
है क्या किसी पुरुष के अंदर?
यदि हो, मुझ को तुरंत बता दो,
उसका कुछ संकेत, पता दो॥
उसकी रानी इस ओर ध्यान न देती थी परंतु कुछ समय बाद वह अपने पति के ग़ुरूर और ओछेपन से तंग आ गई। एक दिन जब राजा ने शीशे के सामने खड़े होकर अपना ओछापन दिखलाया तो रानी भी बोल पड़ी—
ओ रे राजा! अब बस भी कर
सुन मेरी बातें तू चुप रह कर
एक राजा है इस धरती पर
रूप में है जो तुझसे बढ़कर!!
ओछा राजा उछल पड़ा और ग़ुस्से में भरकर रानी से बोला, “मैं तुम्हें तीन दिन की मोहलत देता हूँ या तो तुम मुझसे अधिक सजीले आदमी का पता बताओ, नहीं तो मैं तुम्हारा सिर दूँलम करवा दूँगा।”
रानी अपने किए पर पछताने लगी, लेकिन करती क्या! अब तो तीर कमान से निकल चुका था। उसे तो हत्यारे की कटार अपने गले पर रखी हुई ही लग रही थी। घबराई हुई रानी ने अपने को कमरे में बंद कर लिया और दो दिनों तक लगातार रोती रही। तीसरे दिन उसने खिड़की खोली और मरने से पहले आख़िरी बार दुनिया देखनी चाही।
गली में उसे एक वृद्धा दिखाई दी, ऐसा लगता था मानो वह रानी की प्रतीक्षा ही कर रही हो।
“रानी जी, मुझे भीख दे दो,‟ वह बोली।
“तुम कहीं और जाओ, मुझे अकेला छोड़ दो,‟ रानी बोली, “मैं मुसीबत की मारी हूँ!‟
वृद्धा ने धीमे स्वर में कहा, “मुझे सब मालूम है, मैं आपकी मदद करना चाहती हूँ।‟
कुछ सोचकर रानी ने उसे भीतर बुला लिया।
“मुझे मालूम है राजा जी ने आपसे क्या कहा है।"
" क्या मेरे बचने का कोई उपाय है?"
“बिल्कुल है।‟
“जल्दी बताओ मैं तुम्हें मुँह माँगा इनाम दूँगी।"
“मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस जैसा मैं कहती हूँ वैसा ही करना, जब तुम राजा जी के साथ खाना खाने बैठो तो राजा से अपनी एक बात मानने को कहना, राजाजी कहेंगे ’तुम्हारी जान बख़्श दूँ क्या?’ तुम मना कर देना। इस पर राजा जी ज़रूर कहेंगे ’ठीक है बताओ, मैं मान लूँगा’ तब तुम कहना—
”सात पर्दों के अंदर,
राजपुत्र फिरंग देश का,
तुम से ज़्यादा सुंदर।"
रानी ने वृद्धा की बातों का अक्षरशः पालन किया, तो जैसा उसने कहा था ठीक वैसा ही हुआ। राजा रानी की बात सुनकर अवाक् रह गया, फिर सँभल कर रानी से बोला, " अगर सचमुच फिरंग देश के राजा का बेटा मुझसे अधिक सुंदर निकला तो तुम जैसा चाहो वैसा मेरे साथ करना।"
तीन दिन के बाद राजा कुछ सैनिकों को साथ ले फिरंग देश के लिए चल पड़ा। वह सीधे सम्राट के सामने पहुँचा और राजपुत्र को देखने की प्रार्थना की।
“मेरा बेटा अभी सो रहा है,“ सम्राट ने धीमे स्वर में कहा, " फिर भी तुम दूर से आए हो तो मेरे साथ आओ।"
सम्राट उसे अपने बेटे के कक्ष में ले गया और पहला पर्दा उठाया, अंदर से चमक दिखाई पड़ी। दूसरा पर्दा उठाया, चमक बढ़ गई। तीसरा-चौथा पर्दा उठाते-उठाते कमरा जगमगाने लगा। जैसे-जैसे पर्दे उठते जाते जगमगाहट बढ़ती जाती थी। और जब आख़िरी पर्दा हटा तब सबकी आँखें चौंधिया गईं। सिंहासन पर जगमगाता राजपुत्र हाथ में राजदंड और कमर में तलवार लटकाए बैठा था। चमक इतनी अधिक थी कि ओछे राजा को मूर्छा आ गई। सिरका और सुंघनी से उसे होश में लाया गया। स्वस्थ होने में उसे तीन दिन लग गए।
राजकुमार ने अपने सम्राट पिता से कहा, " पिताजी, उस राजा के जाने से पहले मैं उससे बात करना चाहता हूँ।" ओछे राजा को दरबार में लाया गया, अब वह स्वस्थ हो चुका था इसलिए राजपुत्र को देखकर बेहोश नहीं हुआ। बातचीत करते हुए राजकुमार ने राजा से पूछा, " क्या तुम मुझे अपने राज्य में बुलाना चाहोगे?"
" क्या ऐसा हो सकता है?"
राजकुमार बोला, " यदि तुम मुझसे फिर मिलना चाहते हो तो ये तीन सुनहरे गोलक ले लो, जब ये गोले सोने की परात में रखे शुद्ध दूध में डुबोए जाएँगे तो तुम मुझे मेरे इसी रूप में अपने सामने देख सकोगे।"
अपने देश लौटकर राजा ने रानी से कहा, “लो, मैं लौट आया हूँ, अब तुम मेरे साथ जो व्यवहार करना चाहो कर लो!“
उसकी पत्नी ने प्रसन्नता से कहा, " ईश्वर आपको लंबी उम्र दे!"
राजा ने अपनी रानी को सारी कहानी सुनाई और तीनों सोने के गोलक भी दिखलाए।
अपने भ्रम का टूटना और राजकुमार की जगमगाहट का असर उस पर इतना गहरा पड़ा कि उसकी मानसिक दशा बहुत बिगड़ गई और कुछ ही समय बाद इस सदमे के कारण उसकी मृत्यु हो गई।
राजा की मृत्यु का शोक काल पूरा होने के बाद एक दिन रानी ने अपनी एक विश्वस्त दासी को बुलाकर कहा, “एक सोने की परात और तीन सेर दूध ले आओ और फिर मुझे अकेला छोड़ दो।"
दासी के जाने के बाद रानी ने दूध परात में भरा और तीनों सुनहरी गेंदे उसमें डाल दीं।
आश्चर्य! पहले तलवार दिखाई दी और फिर सजीला राजकुमार प्रत्यक्ष हो गया। दोनों ने कुछ देर बातें कीं और फिर राजकुमार दूध में डुबकी लगाकर अंतर्धान हो गया। अगले दिन रानी ने फिर दासी से दूध मँगवाया, राजकुमार को बुलाया और बातें कीं। अब ऐसा ही दिन प्रतिदिन होने लगा। दासी इस रोज़ की भागदौड़ से ऊब गई। उसे मन ही मन लगने लगा कि रानी कोई जादू-टोना कर रही है या फिर पागल हो गई है।
अगले दिन जब रानी ने दासी से दूध मँगवाया तो उसने शीशे का एक कीमती गिलास ओखली में कूटकर चूरा बनाकर दूध में मिला दिया। रानी ने रोज़ की तरह दूध परात में डालकर उसमें सुनहरी गेंदें डुबो दीं। पर यह क्या! जब राजकुमार का राजदंड ऊपर निकला तो उस पर ख़ून के धब्बे थे, जब राजकुमार बाहर निकला तो सिर से पाँव तक ख़ून से लथपथ था, क्योंकि वह उस शीशे के चूरे के बीच से होकर निकला था, सारी त्वचा छिल कर लहूलुहान हो गई थी।
" हाय!" वह बोला, " तुमने मुझे धोखा दिया है।"
" नहीं " रानी घबराते हुए बोली, “मैंने कुछ नहीं किया है, मुझे क्षमा कर दो।"
परंतु रानी की बात पूरी होने से पहले ही राजकुमार सोने की परात में अंतर्धान हो चुका था।
इधर फिरंग राज्य में जब सिर से पैर तक घायल राजकुमार मिला तो हाहाकार मच गया। राज-चिकित्सक भी उसका इलाज नहीं कर पा रहे थे। सम्राट पिता ने मुनादी करवा दी कि जो भी राजकुमार का इलाज करेगा उसको मुँह माँगा इनाम दिया जाएगा। सारी राजधानी शोक में डूब गई। लोगों के हृदय आशंका से भर गए।
इधर रानी ने जब से फिरंग राजकुमार को घायल देखा तब से उसकी भूख, प्यास, नींद सब कुछ लोप हो गई। जब बेचैनी हद से बढ़ गई तब वह एक गड़रिये का वेश बनाकर फिरंग देश की ओर चल पड़ी।
पहली रात को ही वह जंगल में फँस गई। एक घना वृक्ष देखकर वह उसके नीचे दुबक कर बैठ गई और मन ही मन भगवान को याद करने लगी। पेड़ के पास ही एक छोटा सा गोल मैदान था। जब आधी रात हो गई तो वहाँ भूतों का एक दल आया। उनका मुखिया बीच में बैठ गया और सारे भूत उसे घेरकर बैठ गए। एक-एक भूत उठता और दिनभर की अपनी करतूतें मुखिया को सुनाता। सबसे आख़िर में लंगड़े भूत की बारी आई।
“लंगड़ दीन, तुमने क्या किया?“ सारे भूत एक स्वर में बोले, “तुम तो हमेशा ही काम बिगड़ते रहते हो!"
“इस बार बिल्कुल नहीं, जब से मैंने काम शुरू किया है, तब से अब तक का सबसे शानदार काम अब मैंने कर लिया है।"
और उसने राजा, रानी, और जगमगाते राजकुमार की कहानी कह सुनाई। कैसे उसने दासी की मति फेरी यह भी बताया, “बस तीन दिन और, उसके बाद राजकुमार भी हमारी जमात में शामिल हो जाएगा।"
मुखिया ने कहा, “यदि राजकुमार ठीक हो गया तो?"
लंगड़ा भूत बोला,“नहीं, ऐसा हो ही नहीं सकता क्योंकि राजकुमार का केवल एक ही इलाज है और वह किसी को मालूम ही नहीं है।"
मुखिया ने पूछा, “कौन सा इलाज है? हमें भी बताओ।"
“मैं नहीं बताऊँगा, अगर किसी ने सुन लिया तो?"
“बेवकूफ़, इस बियाबान जंगल में आधी रात को जो भी आएगा वह डर से ही मर जाएगा। तुम बताओ तो सही!"
“तो सुनो, इलाज करने के लिए इलाज करने वाले को उस आश्रम में जाना पड़ेगा जहाँ स्फटिक बूटी उगती है। थैली भर बूटी को लाना पड़ेगा और उसका रस निकालना पड़ेगा। फिर इस रस का लेप पूरे शरीर पर करने से ही राजकुमार ठीक हो पाएगा"
यह सब रानी सुन रही थी। वह बूटी की तलाश में जाने के लिए बेचैन हो उठी। उसने सुबह होने का भी इंतज़ार नहीं किया और आश्रम की खोज में चल पड़ी। बड़ी लंबी यात्रा और भटकाव के बाद वह आख़िर उस आश्रम में पहुँची ही गई। साधु ने उसे दुत्कार कर भगाने लगे, परंतु जब उसने फिरंग देश के राजकुमार और भावी राजा की दशा बताई और उसके प्राण बचाने की बात कही तो वे बूटी देने के लिए तैयार हो गए। वह थैली भरकर पारदर्शी स्फटिक बूटी की थैली लेकर फिरंग राजधानी की ओर सरपट चल पड़ी।
राजधानी शोक में डूबी, मरघट जैसी लग रही थी। वह सीधे महल पहुँच गई। दरबान ने गड़रिया के वेश वाली रानी को भीतर जाने से रोका। वह गिड़गिड़ा कर अंदर जाने की प्रार्थना करने लगी। तभी उदासी में डूबे सम्राट की नज़र उस गड़रिये पर पड़ी । उसने पूछा कि गड़रिया क्या चाहता है ?
“महाराज कुछ देर के लिए मुझे राजकुमार के पास अकेला छोड़ दिया जाए। सभी हकीम-वैदों को वहाँ से हटा दिया जाए।“
सब ओर से निराश सम्राट ने उसकी बात मान ली। नौकरों को आदेश दे दिया कि गड़रिया को जो भी चाहे वह दे दिया जाए। उसने एक ओखली और मूसल मँगवाया, स्फटिक बूटी को कूटकर रस निकाला। अब इस रस को नरमी से राजकुमार के घावों पर लगाने लगा। जहाँ-जहाँ रस लगाया जा रहा था वह घाव भरते जा रहे थे। जब सारे घाव भर गए तो गड़रिया ने सम्राट को उसका बेटा दिखाने को बुलवाया। राजा अपने स्वस्थ और सुंदर पुत्र को देखकर निहाल हो गया। उसने गड़रिये को मालामाल करना चाहा, परंतु उसने कुछ भी स्वीकार नहीं किया और जाने की आज्ञा माँगी। राजकुमार ने बड़े अनुरोध से कहा, “निशानी के तौर पर कम से कम यह अँगूठी तो लेते जाओ," और अपनी अँगूठी उतार कर उसने गड़रिये को दे दी।
अब रानी अपने महल को लौट पड़ी। वहाँ पहुँचकर उसने सोने की परात में शुद्ध दूध भरा। उसे अब किसी पर भरोसा नहीं रह गया था, इसलिए दूध और परात वह स्वयं ही लाई। उसमें तीन सुनहरे गोलक डाले। जल्दी ही राजकुमार परात में से प्रत्यक्ष हो गया। परंतु निकलते ही उसने अपना राजदंड दिखला कर रानी को धमकाया। रानी ने बिलख कर रोते हुए कहा, “नहीं, नहीं राजपुत्र! मैंने कभी आपको धोखा नहीं दिया।"
वह राजकुमार के पैरों पर गिर पड़ी, “मैंने तो आपकी जीवन रक्षा की है, उसका सबूत यह अँगूठी है जो आपने मुझे स्वयं दी है।“ राजकुमार को संदेह में डूबे देखकर रानी ने सारी कहानी विस्तार से सुना दी।
सब सुनकर राजपुत्र के मन में रानी के लिए गहरा प्रेम उत्पन्न हो गया। फिरंग-सम्राट की सहमति से दोनों का विवाह हो गया। रानी की दासी को मृत्युदंड दिया गया।
राजकुमार और रानी के जीवन में
छा गई बहार,
एक और कहानी
मैं लाऊँगी अगली बार!!
तब तक के लिए विदा!
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