कप्तान और सेनाध्यक्ष
सरोजिनी पाण्डेय
मूल कहानी: इल् कपिटानो ए इल् जनेरेल्; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द कैप्टन एंड द जनरल); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
प्रिय पाठक,
आज की लोक कथा के मूल संग्रहकर्ता के अनुसार यह एक प्राचीन बौद्ध कथा “द इंडियन एंड द चाइनीज़” से प्रभावित है, जिसमें पति को मृत पत्नी के साथ दफ़ना दिया जाने की प्रथा का सांकेतिक रूप दिखलाई पड़ता है। ऐतिहासिक काल से ही यात्रियों और सौदागरों के साथ लोक कथाएँ भी देश-देश का भ्रमण करती रही हैं। यह कथा संभवतः कई परिवर्तित रूपों में यूरोप के विभिन्न देशों में प्रचलित रही होगी। मिस्र में तो मृतक के साथ उसके प्रियजनों को दफ़नाए जाने की प्रथा का ज्ञान मुझे था और भारत में पति के साथ पत्नी के सती होने की प्रथा तो सभी को ज्ञात ही है। इस तथ्य पर विचार करिए और साथ ही कहानी का आनंद भी लीजिए:
एक समय की बात है, सिसली में एक राजा राज्य करता था जिसका एक ही बेटा था इस बेटे की शादी राजकुमारी टेरेसिना से हुई। जब शादी का समारोह पूरा हो गया और वह अपने कमरे में दुलहन के पास पहुँचा तो बहुत उदास और गंभीर था। दुलहन ने उदासी का कारण जानना चाहा इस पर राजकुमार ने कहा, “मेरी प्यारी दुलहन, मैं सोचता हूँ कि हम दोनों को क़सम खानी चाहिए कि हम में से जो भी पहले मरे उसकी क़ब्र पर दूसरा जीवित साथी तीन रात और तीन दिन जागते हुए पहरा दे।”
“बस इतनी सी बात के लिए आप इतने परेशान हैं!” टेरेसिना ने कहा और राजकुमार की कमर से बँधी म्यान से तलवार निकाली और उसकी क़सम लेकर दोनों ने यह बात दृढ़ कर ली।
भगवान की इच्छा देखिए की शादी के एक साल बाद राजकुमारी टेरेसिना बीमार पड़ी और चल बसी। पूरे राजकीय सम्मान के साथ उसे दफ़ना दिया गया। रात में राजकुमार शपथ के अनुसार अपनी तलवार, दो पिस्टल और सोने के सिक्के की एक थैली और चाँदी के सिक्के की दूसरी थैली से लैस होकर टेरेसिना की क़ब्र पर पहरा देने के लिए तैयार हो गया। वह गिरजाघर गया और वहाँ के चौकीदार से बोला, “अब से तीन दिन तक आप क़ब्र पर आकर सुनिएगा, अगर मैं नीचे से खटखटाऊँ तो आप ताबूत खोल दीजिएगा। लेकिन तीन दिनों के बाद रात तक कोई आवाज़ ना हो तो समझ लीजिएगा कि मैं भी ख़त्म हो गया।” ऐसा कह कर राजकुमार ने उसे इस काम के लिए सोने के सौ सिक्के दे दिए।
क़ब्र में बंद होकर राजकुमार ने मशाल जलाई, ताबूत का ऊपरी पटरा खोला और अपनी प्रिय पत्नी की याद में उसे देखकर रोता रहा और पहली रात कट गई।
दूसरी रात को मज़ार के पीछे एक फुफकार सुनाई दी और उसके साथ ही एक भयानक और बड़ा साँप दिखाई दिया, उसके पीछे-पीछे उसके कई सपोले भी थे। अपना डरावना मुँह खोलकर वह अजगर टेरेसिना के शव की ओर झपटा। लेकिन राजकुमार ने अपनी पिस्तौल से निशाना साधा और उसके सिर पर गोली दाग दी। गोली की आवाज़ से सपोले झटपट रेंगते हुए वापस चले गए। राजकुमार बिना डरे मरे हुए साँप के पास ही डटा रहा। कुछ ही देर में सारे सपोले अपने मुँह में घास का एक-एक गुच्छा दबाए हुए आए। मारे साँप के घाव, आँखों और मुँह पर उस घास के तिनकों को रखकर उसका शरीर सहलाते हुए परिक्रमा-सी करने लगे। थोड़ी ही देर में बड़े साँप ने अपनी आँखें खोल दीं वह कुछ देर इधर-उधर लहराया और स्वस्थ हो रेंगता हुआ बाहर चला गया। सपोले भी उसके पीछे-पीछे चले गए। राजकुमार ने बिना समय गँवाए इधर-उधर बिखरी घास बटोरी और अपनी पत्नी के मुँह पर और शरीर पर रखी और घास से ही उसका शरीर सहलाने लगा। धीरे-धीरे राजकुमारी साँस लेने लगी, चेहरे का रंग वापस आने लगा और कुछ ही देर में, “ओह मैं कितना तो सो गई!” कहते हुए वह उठ बैठी। वे दोनों गले मिले और फिर वह जगह खोजने लगे जहाँ से साँपों का परिवार क़ब्र में घुसा था। जल्दी ही वह मिल गया, छेद इतना बड़ा था कि उसमें आसानी से घुस जा सकता था। दोनों उसमें से रेंगकर बाहर निकले। वे ऐसे मैदान में आ पहुँचे जहाँ वही ‘सर्पबूटी’ घास लहरा रही थी। राजकुमार ने एक पुली घास काट कर अपने साथ रख ली।
अपनी मर चुकी दुलहन के साथ घर लौटना ख़तरनाक था, वे पेरिस चले गए और नदी के किनारे एक घर किराए पर ले लिया। कुछ समय बाद राजकुमार ने व्यापार करने का विचार किया। अपनी बीवी के लिए एक समझदार स्त्री को सेवा के लिए रख दिया, एक छोटा जहाज़ ख़रीदा और निकल पड़ा सौदागर बनकर। उसने अपनी प्रिया से वादा किया कि वह एक महीने बाद लौटेगा जैसे ही उसे अपना घर दिखाई पड़ेगा वह तीन बार जहाज़ का भोंपू बजाकर अपने आने की सूचना देगा।
अभी राजकुमार को गए कुछ ही दिन हुए थे कि नेपल्स की फ़ौज का एक कप्तान पेरिस की गलियों में घूमता आया और टेरेसिना को खिड़की में देखा। वह उसे पर डोरे डालने की कोशिश करने लगा। लेकिन टेरेसिना ने खिड़की पर आना ही बंद कर दिया।
कप्तान तो किसी न किसी तरह टेरेसिना को पाना चाहता था। वह एक बूढ़ी, धूर्त और चालाक औरत के पास गया और उससे कहा, “देवी जी, अगर आप कुछ ऐसा करें कि इस कोठी में रहने वाली सुंदर स्त्री से मुझसे मिला दें तो मैं आपको सोने के दो सौ सिक्के दूँगा।”
चालाक बुढ़िया पैसों के लालच में टेरेसिना के पास गई और रुआँसी होकर मदद माँगने लगी। बोली, “न जाने क्यों मेरा सामान, सारा का सारा, राजा ज़ब्त करना चाहता है। क्या आप मुझ बुढ़िया की मदद कर सकती हैं? मेरे पास एक बड़ा संदूक है उसे आप अपनी कोठी के एक कोने में पड़ा रहने दे तो वह मेरा प्यारा संदूक बच सकता है!”
टेरेसिना को दया आ गई। धूर्त स्त्री ने अपना कहकर एक बड़ा संदूक तेरे टेरेसिना के घर में रखवा दिया।
रात में सही मौक़ा समझकर संदूक में बैठा कप्तान आया और टेरेसिना को ज़बरदस्ती पकड़ कर अपने जहाज़ पर ले गया। नेपल्स पहुँचकर टेरेसिना और कप्तान सब कुछ भूल कर पति-पत्नी की तरह रहने लगे।
एक महीने बाद जब राजकुमार व्यापार से लौटा तो अपने घर के दिखलाई पड़ते ही तीन बार भोंपू बजाया। परन्तु छज्जे पर कोई नहीं आया। घर पहुँचने पर उसे बस दीवारें मिलीं उसका दिल टूट गया। उसने सब कुछ बेच दिया और दुनिया में यहाँ-वहाँ भटकने लगा। होते-होते नेपल्स आ पहुँचा। वहाँ सिपाहियों की भर्ती हो रही थी। कभी ‘राजकुमार’ कहलाने वाले इस युवक ने भी फ़ौज में भर्ती होने के लिए निवेदन कर दिया और उसे रख भी लिया गया!
एक दिन नेपल्स के राजा ने बहुत भव्य फ़ौजी परेड आयोजित की। सब कप्तान अपनी पत्नियों को अपनी बग़ल में लेकर परेड में आए। तब फ़ौजी राजकुमार ने टेरेसिना को कप्तान के साथ देख लिया। टेरेसिना ने भी अपने राजकुमार पति को देख लिया। उसने कप्तान से कहा, “उधर देखो, सैनिकों के बीच में मेरा पति भी है। अब मैं क्या करूँ?” कप्तान ने टेरेसिना के संकेत से पहचान लिया कि वह फ़ौजी इस की कंपनी में ही था और अभी नया-नया ही हवलदार नियुक्त हुआ था। कुछ ही दिनों बाद कप्तान ने अपने नए भर्ती हुए हवलदार, नायक और लांस नायकों को प्रीतिभोज दिया। इस भोज में टेरेसिना आमंत्रित अधिकारियों के सामने आई ही नहीं!
भोजन करते समय कप्तान ने अपने चंट लेकिन विश्वासपात्र सेवकों से कहकर हवलदार राजकुमार की जेब में चाँदी का एक चम्मच और छुरी डलवा दी।
कुछ देर में ही जब चम्मच और छुरी कम पड़े तो खोज शुरू हुई और राजकुमार हवलदार की जेब से उन्हें बरामद किया गया। तो होना ही था।
हवलदार का कोर्ट मार्शल हुआ और उसे गोलियों से भून कर मार डालने की सज़ा सुनाई गई।
गोली मारने वाले दस्ते में हवलदार का एक मित्र भी था। सज़ा-याफ़्त हवलदार ने अपने उस मित्र को, अपने साथ लाई हुई ‘सर्पबूटी’ देकर कहा, “जब तुम मुझे गोली मारो तो गोली ऐसे चलाना कि ख़ूब धुआँ निकले। जब दस्ते के लोगों को ‘कंधे शस्त्र’ का हुक्म मिल जाए, तब तुम मेरे मुँह, नाक और घावों पर यह घास, धुएँ की आड़ में, रहकर रख देना और मुझे वहीं पड़े रहने देना।”
हवलदार को गोलियाँ मारी गईं। धुएँ की आड़ लेकर उसके दोस्त ने सर्पबूटी उसके घावों, मुँह और नाक पर जल्दी-जल्दी रगड़ी। राजकुमार फिर से जीवित हो घुटनों के बल रेंगता हुआ, धुएँ का सहारा लेकर वहाँ से चला गया।
कुछ समय बाद नेपल्स के राजा की बेटी बीमार पड़ी। बहुत इलाज हुआ कोई फ़ायदा नहीं, बेचारी मरने की कगार पर पहुँच गई। राजा पिता ने सारे राज्य में मुनादी करवा दी, ‘यदि कोई राजकुमारी को ठीक कर देगा तो उसका विवाह राजकुमारी से ही कर दिया जाएगा। यदि वह विवाहित हुआ तो भी उसे राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया जाएगा’!
राजकुमार जो मृत्यु दंड के बाद से छिपता हुआ जी रहा था, एक डॉक्टर का रूप बनाकर राजकुमारी का इलाज करने महल में आया। दरबारी और चिंतित चिकित्सकों से भरे हाल में जब तक वह राह बनाता बीमार के बिस्तर के पास तक पहुँचा तब तक राजकुमारी ने अंतिम साँस ले ली थी। सभी लोग रोने-बिलखने लगे। ऐसे समय में राजकुमार ने राजकुमारी के पिता से कहा “महाराज, आपकी बेटी की मृत्यु तो हो ही चुकी है, लेकिन यदि मुझे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दिया जाए तो मैं अपनी कोशिश भी करके देखना चाहता हूँ!”
उसे राजा की अनुमति मिल गई! जब वह मृत राजकुमारी के पास अकेला रह गया तब अपनी जेब से सर्प बूटी निकाली और राजकुमारी के मुँह में और नाक के पास रख दी। कुछ ही समय में राजकुमारी जीवित हो गई और धीरे-धीरे पूरी तंदुरुस्त भी।
अब राजा ने उस ‘डॉक्टर’ को बुलवाया और राजकुमारी का विवाह उसके साथ करने का प्रस्ताव रखा।
“महाराज, मैं तो पहले से ही विवाहित हूँ, इसलिए मेरा राजकुमारी से विवाह नहीं हो सकता।”
यह सुनकर राजा कुछ उदास हुए फिर पूछा, “तब आप बताइए कि मैं आपके लिए और क्या कर सकता हूँ?”
“यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो मुझे अपनी सेना का अध्यक्ष बना दीजिए,” राजकुमार ने कहा।
“क्यों नहीं, क्यों नहीं!” राजा साहब ने प्रसन्न हो कर कहा।
फिर राज्य में दो बड़े उत्सवों का आयोजन हुआ एक तो राजकुमारी के स्वस्थ होने का और दूसरा राज्य को नया सेनाध्यक्ष पाने का।
अपने सम्मान में मनाए जा रहे समारोह में सेनाध्यक्ष ने सभी सैनिक अधिकारियों को आमंत्रित किया। जिसमें उसकी पत्नी का अपहरण करने वाला कप्तान भी था, साथ ही उसने सोने के चम्मच छुरी काँटे का भी प्रबंध कर लिया जो बड़ी कुशलता से कप्तान की जेब में डाल दिए गए। सोने के चम्मच छोरी काँटे कप्तान की जेब से मिलने के बाद उसे जेल में बंद कर दिया गया।
अगले दिन सेनाध्यक्ष, कप्तान से पूछताछ करने के लिए आए। कई प्रश्नों के बाद कप्तान से सेनाध्यक्ष ने उसके परिवार की जानकारी चाही। इस पर कप्तान ने कहा, “आदरणीय महोदय, मेरा तो अभी विवाह भी नहीं हुआ है।”
“तब वह महिला कौन है जो तुम्हारे साथ रहती है?”
और इस समय हथकड़ी में बँधी टेरेसिना, दो सिपाहियों के बीच में चलती वहाँ पहुँची। अपने पति को देखते ही गिड़गिड़ा कर बोली, “नहीं, नहीं, मैं आपको कभी भूली ही नहीं थी। यह कप्तान तो मुझे जबरन भगा लाया था।”
लेकिन उन शब्दों का कोई मोल न था!
सेनाध्यक्ष की आज्ञा से कप्तान के साथ उसको भी गोलियों से छलनी कर दिया गया।
इतनी पीड़ा सहकर भी राजकुमार अकेला रह गया लेकिन सेनाध्यक्ष तो वह बन ही गया था।
आगे क्या हुआ कौन जाने?
हमने कही कहानी, करके बहाने!
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अँजुरी का सूरज
- अटल आकाश
- अमर प्यास –मर्त्य-मानव
- एक जादुई शै
- एक मरणासन्न पादप की पीर
- एक सँकरा पुल
- करोना काल का साइड इफ़ेक्ट
- कहानी और मैं
- काव्य धारा
- क्या होता?
- गुज़रते पल-छिन
- जीवन की बाधाएँ
- झीलें—दो बिम्ब
- तट और तरंगें
- तुम्हारे साथ
- दरवाज़े पर लगी फूल की बेल
- दशहरे का मेला
- दीपावली की सफ़ाई
- पंचवटी के वन में हेमंत
- पशुता और मनुष्यता
- पारिजात की प्रतीक्षा
- पुराना दोस्त
- पुरुष से प्रश्न
- बेला के फूल
- भाषा और भाव
- भोर . . .
- भोर का चाँद
- भ्रमर और गुलाब का पौधा
- मंद का आनन्द
- माँ की इतरदानी
- मेरी दृष्टि—सिलिकॉन घाटी
- मेरी माँ
- मेरी माँ की होली
- मेरी रचनात्मकता
- मेरे शब्द और मैं
- मैं धरा दारुका वन की
- मैं नारी हूँ
- ये तिरंगे मधुमालती के फूल
- ये मेरी चूड़ियाँ
- ये वन
- राधा की प्रार्थना
- वन में वास करत रघुराई
- वर्षा ऋतु में विरहिणी राधा
- विदाई की बेला
- व्हाट्सएप?
- शरद पूर्णिमा तब और अब
- श्री राम का गंगा दर्शन
- सदाबहार के फूल
- सागर के तट पर
- सावधान-एक मिलन
- सावन में शिव भक्तों को समर्पित
- सूरज का नेह
- सूरज की चिंता
- सूरज—तब और अब
- अनूदित लोक कथा
-
- तेरह लुटेरे
- अधड़ा
- अनोखा हरा पाखी
- अभागी रानी का बदला
- अमरबेल के फूल
- अमरलोक
- ओछा राजा
- कप्तान और सेनाध्यक्ष
- काठ की कुसुम कुमारी
- कुबड़ा मोची टेबैगनीनो
- कुबड़ी टेढ़ी लंगड़ी
- केकड़ा राजकुमार
- क्वां क्वां को! पीठ से चिपको
- गंध-बूटी
- गिरिकोकोला
- गुनी गिटकू और चंट-चुड़ैल
- गुमशुदा ताज
- गोपाल गड़रिया
- ग्यारह बैल एक मेमना
- ग्वालिन-राजकुमारी
- चतुर और चालाक
- चतुर चंपाकली
- चतुर फुरगुद्दी
- चतुर राजकुमारी
- चलनी में पानी
- छुटकी का भाग्य
- जग में सबसे बड़ा रुपैया
- ज़िद के आगे भगवान भी हारे
- जादू की अँगूठी
- जूँ की खाल
- जैतून
- जो पहले ग़ुस्साया उसने अपना दाँव गँवाया
- तीन कुँवारियाँ
- तीन छतों वाला जहाज़
- तीन महल
- दर्दीली बाँसुरी
- दूध सी चिट्टी-लहू सी लाल
- दैत्य का बाल
- दो कुबड़े
- नाशपाती वाली लड़की
- निडर ननकू
- नेक दिल
- पंडुक सुन्दरी
- परम सुंदरी—रूपिता
- पाँसों का खिलाड़ी
- पिद्दी की करामात
- प्यारा हरियल
- प्रेत का पायजामा
- फनगन की ज्योतिष विद्या
- बहिश्त के अंगूर
- भाग्य चक्र
- भोले की तक़दीर
- महाबली बलवंत
- मूर्ख मैकू
- मूस और घूस
- मेंढकी दुलहनिया
- मोरों का राजा
- मौन व्रत
- राजकुमार-नीलकंठ
- राजा और गौरैया
- रुपहली नाक
- लम्बी दुम वाला चूहा
- लालच अंजीर का
- लालच बतरस का
- लालची लल्ली
- लूला डाकू
- वराह कुमार
- विनीता और दैत्य
- शाप मुक्ति
- शापित
- संत की सलाह
- सात सिर वाला राक्षस
- सुनहरी गेंद
- सुप्त सम्राज्ञी
- सूर्य कुमारी
- सेवक सत्यदेव
- सेवार का सेहरा
- स्वर्ग की सैर
- स्वर्णनगरी
- ज़मींदार की दाढ़ी
- ज़िद्दी घरवाली और जानवरों की बोली
- सांस्कृतिक कथा
- आप-बीती
- सांस्कृतिक आलेख
- यात्रा-संस्मरण
- ललित निबन्ध
- काम की बात
- यात्रा वृत्तांत
- स्मृति लेख
- लोक कथा
- लघुकथा
- कविता-ताँका
- सामाजिक आलेख
- ऐतिहासिक
- विडियो
-
- ऑडियो
-