मेरे शब्द और मैं

01-02-2022

मेरे शब्द और मैं

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 198, फरवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

शब्द मुझे प्रिय हैं, मैं नित नए खोजती हूँँ, 
वे जहाँ भी मिल जाएँ, उन्हें सहेजती हूँ
 
हर दिन जब पाती हूँ, एक नई-ताज़ी सुबह
दो शब्दों के पुष्प और कुछ की सुगंधि-शलाका, 
अपने आराध्य प्रभु के चरणों में अर्पित कर देती हूँ
शब्दों से अपने प्रभु की वंदना मैं करती हूंँ, 
 
करती हूंँ शृंगार जब दर्पण के सम्मुख, 
कभी शब्द पुष्प-गुच्छ, कभी एक वेणी, 
अपने केशों में मैं बरबस गूँथ लेती हूँ
शब्द मुझे प्रिय हैं, मैं उनसे सज लेती हूँ
 
करता है परिवार भोजन जब बैठकर, 
कुछ खटमिठे, कुछ चरपरे से रुचिकर शब्द, 
दाल भात के संग चटनी-अचार-सा परस देती हूँ
शब्द मुझे प्रिय हैं मैं उन्हें चख लेती हूँ, 
 
जीवन में होते हैं वाद और विवाद भी
इन्हीं शब्दों का सहारा तब भी मैं लेती हूँ, 
करती हूँ वाक्-युद्ध शब्दों की असि से ही
कभी इन्हें ढाल, कभी तलवार बना लेती हूँ
 शब्द मुझ प्रिय हैं, इन्हीं से विजित, जयी, रक्षित मैं होती हूँ। 
 
होते हैं जब प्रियतम मेरे संग, मेरे आस-पास, 
कुछ सुगंधित शब्दों की माला मैं पिरो लेती हूँ, 
डालकर यह माला अपने प्रियतम-कंठ
अपने अंतर्मन को आनंदित कर लेती हूँ
शब्द मुझे प्रिय हैं, मैं उनसे तृप्त होती हूँ, 
 
कभी इन शब्दों का ही रचकर सुंदर जाल, 
अपनी चेतना के सरोवर में फेंक देती हूँ, 
पकड़ पाती हूँ यदि सीप में बंद 
मोती-सा सुन्दर कोई भाव, 
झटपट एक छोटी सी कविता लिख लेती हूँ
 
शब्द मुझे प्रिय हैं मैं उन पर पतियाती हूँ, 
कभी इनसे उलझती, कभी बतियाती 
और कभी-कभी मैं इनके संग खिलखिलाती हूंँ
नए जहाँ भी मिल जाए, उन्हें सहेज लेती हूँ॥
 
 सरोजिनी पाण्डेय्

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